केंद्र में बिहार के मंत्रियों से राज्य के विकास को गति देने की उम्मीद -सुरेंद्र किशोर
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केंद्र सरकार में बिहार के मंत्रियों से एक खास उम्मीद है।
वे अपने मंत्रालयों के काम के अलावा बिहार के लिए कुछ खास भी करें।
वे इस राज्य के विकास को गति देने में अपना विशेष योगदान दें।
देश के अन्य हिस्सों के साथ- साथ बिहार में भी हाल के वर्षों में विकास के काफी काम हुए हैं।
सड़क और बिजली के मामले में बिहार अब पहले जैसा पिछड़ा नहीं है।
हां,उद्योग के क्षेत्र में अब भी बहुत काम करने बाकी हैं।
लगता है कि बिहार के नए उद्योग मंत्री शाहनवाज हुसेन एकाग्र चित्त से इस काम में लगे हुए हैं।
कोरोना काल में भी मंत्री के अनुसार करीब 34 हजार करोड़ रुपए के निवेश का प्रस्ताव बिहार आया है।
बिहार से केंद्र में मंत्रियों के बीच दो पूर्व आई.ए.एस अफसर भी हैं।
आर.के सिंह ने अपनी ईमानदारी व कार्य कुशलता के कारण प्रधान मंत्री का ध्यान आकृष्ट किया ।
इसीलिए उन्हें पदोन्नति भी दी गई।
आर.के.सिंह नवीकृत ऊर्जा के क्षेत्र में बिहार जैसे पिछड़े राज्य में विशेष कार्य करा सकते हैं।
यह तो उनका ही मंत्रालय है।
किंतु पूर्व आई.ए.एस. अफसर द्वय यानी आर.सी.पी.सिंह और आर.के.सिंह केंद्र सरकार के अन्य मंत्रालयों में बिहार की लटकी योजनाओं को क्लीयर करवाने में अनौपचारिक रूप से मदद कर सकते हैं।
कभी सुना था कि केंद्रीय सचिवालय में पदस्थापित केरल मूल के आई.ए.एस.अफसर अपने राज्य की योजनाओं को लटकने नहीं देते।
केरल के विकास का यह एक बड़ा कारण रहा।
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नगरों के पास बेतरतीब बसावट
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पहुंच पथ और जल निकासी व्यवस्था के बिना ही
जहां -तहां मकान बना लेने का क्या परिणाम हो सकता है ?
बाद में लोग कई बार रास्ते के लिए पड़ोसी से झगड़ते हैं।
मुकदमेबाजी होती है।
यदाकदा हिंसा भी हो जाती है।
पुलिस का काम बढ़ जाता है।
भारी जल जमाव होता है।
जल जमाव को लेकर पीड़ित लोग व प्रतिपक्षी राजनीतिक दल शासन पर टूट पड़ते हैं।
बरसात में यह समस्या अधिक दिखाई पड़ती है।
मुख्य पटना के आस-पास के ग्रामीण इलाकों में यह हो रहा है।
बिहार के अन्य नगरों के आसपास की स्थिति भी यही है।
ऐसा इसलिए भी हो रहा है क्योंकि सुव्यवस्थित बसावट सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी से राज्य सरकार ने आम तौर पर खुद को अलग कर लिया है।
अधिकतर डेवलपर्स व जमीन की खरीद-बिक्री के काम में लगे लोग सड़क-नाली की उपलब्धता का कम ही ध्यान रखते हैं।
ऐसे में सरकार की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है।
या तो सरकार खुद जमीन विकसित करके इच्छुक लोगों के बीच भूखंड बांटे ।या, डेवलपर्स पर अंकुश लगाकर बेतरतीब मुहल्लों को बसने से रोके।
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मोदी सरकार में ओ.बी.सी.की संख्या
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नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल में ओ.बी.सी.मंत्रियों की संख्या बढ़ाने
पर मिश्रित प्रतिक्रियाएं आई हैं।
कुछ लोगों को एतराज भी है।
वैसे उनके बहाने अलग- अलग हैं।
पर, जब ‘‘गंगा उल्टी दिशा’’ में बह रही थी तो ऐसे लोगों को एतराज नहीं था।
इस संबंध में चैधरी चरण सिंह की एक टिप्पणी आज भी मौजूं लगती है।
खुद पर जातिवाद का आरोप लगने पर चरण सिंह ने 1981 में कहा था कि ‘मेरा दोष केवल यही है कि मैं जाट के घर पैदा हो गया हूं।
अगर अपने को ऊंचा समझने वाली बिरादरी में पैदा हो गया होता तो ऐसा इल्जाम नहीं कोई लगाता।’’
उन्होंने कहा था कि मेरे मंत्रिमंडल में केवल एक जाट मंत्री था। जबकि, पूर्व के प्रधान मंत्री के मंत्रिमंडल में उनकी जाति के दस मंत्री थे।
फिर भी उन पर जातिवाद का आरोप नहीं लगा।’’
याद रहे कि नेशनल सेम्पुल सर्वे के अनुसार इस देश में ओ.बी.सी.की संख्या कुल आबादी का 41 प्रतिशत है।
लोकतंत्र का अर्थ यही है कि सत्ता संचालन में सभी लोगों की सहभागिता हो।
हां, यह जरूर सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि ओ.बी.सी.सहित किसी भी समुदाय के भरसक योग्य व ईमानदार लोगों को ही मंत्री सहित कोई भी महत्वपूर्ण सरकारी पद मिलना चाहिए।
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गोली पैर में मारने की सलाह
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असम के मुख्य मंत्री हिमंत बिश्व शर्मा ने कहा कि ‘‘यदि किसी पर बलात्कार का आरोप है और वह पुलिस से राइफल छीन कर भाग रहा है तौभी उसे पैर में ही गोली मारी जानी चाहिए न कि सीने पर।’’
खबर है कि उत्तर प्रदेश के बाद अब असम में भी अपराधियों को गोली मारे जाने की घटनाएं बढ़ी हैं।
यह काम पुलिस कर रही है।
किंतु यह पता नहीं कि जरूरत पड़ने पर उत्तर प्रदेश में पैर में ही गोली मारने का काम हो रहा है या नहीं।
हां, अपवादों को छोड़कर उत्तर प्रदेश के आम लोग पुलिस की कार्रवाइयों से इन दिनों खुश नजर आते हैं।
अब सवाल है कि ऐसी नौबत क्यों आ रही है ?
पुलिस के सामनेे गोली मारने के अलावा और कितने विकल्प हैं ?
अपराधियों को त्वरित सुनवाई के जरिए अदालतों से सजा दिलवा देना एक बढ़िया विकल्प है।
किंतु राजनीति के अपराधीकरण और अपराध के राजनीतिकरण के कारण यह विकल्प सीमित होता जा रहा है।
बिहार सरकार ने क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम को बेहतर बनाने के लिए हाल में कुछ उपायों पर काम करना शुरू किया है।
उम्मीद की जानी चाहिए कि इस प्रयास को सफलता भी मिलेगी।
वैसे क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम को बेहतर करने के लिए केंद्र सरकार राज्यों की मदद करे।
वह कुछ ठोस उपाय करे ।
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और अंत में
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महाकवि कालिदास के अनुसार
‘‘सज्जन से निष्फल याचना करना अच्छा है।
पर,दुर्जन से सफल याचना भी उचित नहीं।’’
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कानोंकान
प्रभात खबर
पटना 9 जुलाई 21
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