शनिवार, 24 जुलाई 2021

 


 सुप्रीम कोर्ट ही सुलझा सकता है राजनीति के अपराधीकरण की समस्या --सुरेंद्र किशो

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   सुप्रीम कोर्ट ने ठीक ही कहा है कि 

‘‘लगता है कि अपराधियों को राजनीति में आने और चुनाव लड़ने से रोकने के लिए विधायिका कुछ नहीं कर सकती।’’

   वैसे भी जिस देश की राजनीति,सरकार और विधायिका आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों के संपत्ति-शिक्षा-आपराधिक मामलों का विवरण सार्वजनिक करने के खिलाफ रही हो,वह राजनीति के अपराधीकरण के खिलाफ कैसे जा सकती है !

    ठीक उसी तरह विवादास्पद सांसद-विधायक फंड को समाप्त करने में भी इस देश की सरकारें असमर्थ हैं।

उसकी बुराइयों को देखते हुए यह काम भी देर-सवेर सुप्रीम कोर्ट को ही करना पड़ेगा।

  जिस तरह सुप्रीम कोर्ट ने उलझे हुए अयोध्या विवाद को हल किया,उम्मीद की जाती है कि उसी तरह वह इन दोनों मामलों को भी एक दिन जरूर देखेगा।

  ये दो चीजें राजनीति और शासन को घुन की तरह खा रही हैं।

सुप्रीम कोर्ट न सिर्फ विधायक-सांसद फंड को समाप्त करने का सख्त निदेश दे बल्कि उसे चुनाव आयोग को भी एक खास निदेश देना चाहिए।

 हत्या, बलात्कार और राजद्रोह जैसे संगीन मामलों के आरोपियों के नामांकन पत्रों को चुनाव आयोग अस्वीकार कर दे,ऐसा प्रबंध सुप्रीम कोर्ट करे। 

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    कानून-व्यवस्था की विफलता की देन है 

    राजनीति का अपराधीकरण

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राजनीति का अपराधीकरण, कानून-व्यवस्था की विफलता का मुख्य कारण है।

  इसके लिए क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम को बेहतर बनाना होगा।

  इस दिशा में भी सुप्रीम कोर्ट को ही पहल करनी होगी।

कई बार ऐसा होता है कि प्रशासन, पुलिस व अदालतें जब न्याय नहीं दे पातीं तो पीड़ित व्यक्ति कई बार बाहुबलियों की शरण में चलेे जाते हैं।

एकपक्षीय ही सही, लेकिन बाहुबली कई बार उन्हें त्वरित न्याय दिलाता है।

इस तरह वह अनेक लोगों का चहेता बनता जाता है।

उनमें से कुछ बाहुबलियों को एक दिन लोग  विधायक या सांसद भी बना देते हैं।

  अब सवाल है कि क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम बेहतर कैसे होगा ?

  इसके लिए ऐन केन प्रकारेण अदालती सजाओं का प्रतिशत बढ़ाना होगा।

इस दिशा में शासन को सुप्रीम कोर्ट खास-खास निदेश दे सकता है।

किंतु उससे पहले खुद सुप्रीम कोर्ट को कम से कम दो काम करने होंगे।

 वह आरोपियों के नार्को टेस्ट,पाॅलिग्राफी, ब्रेन मैपिंग और डी.एन.ए.टेस्ट कराने की अनुमति जांच एजेंसी को दे दे।

अभी तो सुप्रीम कोर्ट का वह आदेश लागू है जिसके तहत सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आरोपी की मर्जी के बिना उसके ऐसे टेस्ट नहीं हो सकते।

  यह सुविधा जब जांच एजेंसियों को मिल जाएगी तो सजा का प्रतिशत बढ़ जाएगा।

  साथ ही, पहले से जारी इस ‘न्याय शास्त्र’ को बदलना होगा  कि ‘‘भले 99 दोषी  छूट जाएं, किंतु किसी एक निर्दोष को भी सजा नहीं होनी चाहिए।’’

  अब यह नीति शास्त्र अपनाना होगा कि ‘‘किसी भी कीमत पर एक भी दोषी छूटने न पाए।’’

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  मुठभेड़ों की जरूरत ही क्यों ?

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यदि अदालती सजाओं का प्रतिशत बढ़ जाए तो पुलिस मुठभेड़ों की जरूरत ही नहीं रहेगी। 

 अभी तो कुछ राज्यों की पुलिस इसे रामवाण दवा मान रही है।आम पब्लिक तब खुश होती है जब कोई खूंखार अपराधी पुलिस के साथ हुई मुठभेड़ में मारा जाता है। 

असम पुलिस की गोलियों से गत दो माह में करीब डेढ़ दर्जन  अपराधी और आतंकवादी मारे गए।

 मानवाधिकार आयोग ने स्वतः इन मामलों का संज्ञान लिया है।वैसे मुख्य मंत्री हिमंता विश्वसरमा ने कहा है कि अपराधियों के प्रति शून्य सहनशीलता की नीति के तहत हमारी पुलिस ने यह कदम उठाया है।

 हालांकि मुख्य मंत्री ने सिर्फ पैर में ही गोली मारने का निदेश दे रखा है।

   इससे पहले उत्तर प्रदेश से यह खबर आई कि 2017 में भाजपा सरकार के सत्ता में आने के बाद राज्य में कुल 139 अपराधी पुलिस के साथ मुठभेड़ों में मारे जा चुके हैं।

उस दौरान 13 पुलिसकर्मी भी उन मुठभेड़ों में मारे गए।

  यह भी खबर है कि कुछ लोगों को छोड़ दें तो यू.पी.के आम लोग ऐसी मुठभेड़ों से खुश हैं।

  लगता है कि असम के नये मुख्य मंत्री,  योगी आदित्यनाथ की राह पर है।

वैसे भी बिहार के अनेक लोग यह कहते सुने जाते हैं कि बिहार पुलिस को भी इस मामले में उत्तर प्रदेश जैसा कदम उठाना चाहिए।किंतु बिहार की नीतीश सरकार ने सन 2005  में सत्ता संभालने के बाद अपराधकर्मियों के खिलाफ जिस तरह की कार्रवाइयां शुरू की थीं,उसी शैली को ही दुहराना जाना चाहिए।

  सन 2005 के बाद के कुछ वर्षों तक बिहार के छोटे -बड़े अपराधी सहमे हुए थे।

 अब वह बात नहीं है।

इसे बदलना पड़ेगा।

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मुकदमों का रिकाॅर्ड 

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यह एक रिकाॅर्ड है।

इन दिनों इस देश की बड़ी हस्तियों के खिलाफ भ्रष्टाचार व अपराध के मुकदमे चल रहे हैं।उनकी संख्या एक रिकाॅर्ड है।

इतनी अधिक संख्या में एक साथ पहले कभी मुकदमे नहीं चले।

  ये मुकदमे नेताओं,व्यापारियों तथा अन्य प्रमुख लोगों के खिलाफ चल रहे हैं।

इनमें से कुछ विदेश भाग गए।कुछ जेल में हैं।कुछ अन्य जमानत पर हैं।

 अब इसमें एक और नाम जुड़ गया है।

पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुशर््ीद की पत्नी लुइस खुर्शीद के खिलाफ गिरफ्तारी का गैर जमानती वारंट जारी हुआ हैं।

उत्तर प्रदेश के फरूखाबाद कोर्ट ने वारंट जारी किया है।

पूर्व विधायक श्रीमती खुर्शीद के खिलाफ भ्रष्टाचार का आरोप है।

   सलमान खुर्शीद ने कहा है कि उनकी पत्नी को एक साल पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट से अंतरिम जमानत मिल चुकी है। 

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 और अंत में

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इस देश के जिन किसान परिवारों का कोई भी सदस्य सरकारी नौकरी में नहीं है,उस परिवार के उम्मीदवार के लिए 

नौकरी में आरक्षण का प्रावधान होना चाहिए।

किसानों की आय बढ़ाने का यह परोक्ष, किंतु ठोस उपाय साबित हो सकता है।

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कानोंकान

प्रभात खबर

पटना 

23 जुलाई 21



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