मंगलवार, 20 जुलाई 2021

 नेहरू के 13 साल तक निजी सचिव 

रहे एम.ओ.मथाई की संस्मरणात्मक 

किताबों पर से कब हटेगा प्रतिबंध ?

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    --सुरेंद्र किशोर--

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  जनवरी, 2020 में दैनिक भास्कर के स्तम्भकार 

डा.भारत अग्रवाल ने अपने काॅलम में एक महत्वपूर्ण जानकारी दी थी।

  उन्होंने लिखा था कि एम.ओ.मथाई की जवाहरलाल नेहरू पर लिखी पुस्तकों पर से प्रतिबंध जल्द ही हटा लिया जाएगा।

पर, वह काम आज तक नहीं हुआ।

अब अग्रवाल साहब को यह पता लगाना चाहिए कि प्रतिबंध हटाने में बाधा क्या है ?

   मेरी समझ से यदि नरेंद्र मोदी सरकार ने ऐसा करने की हिम्मत की तो वह व्यापक देशहित में ही होगा।

भले वह परिवार, दल और कतिपय ‘भक्त’ बुद्धिजीवियों के खिलाफ जाए।

  मैंने मथाई की दोनों किताबें छिटपुट पढ़ी हैं।

मैं यह कहता रहा हूं कि यदि किसी को जानना हो कि आजादी के बाद देश को कैसे गलत रास्ते पर ले जाया गया तो वह मथाई की दोनों किताबें पढं़े।

इसी तरह यदि बिहार की तब की ‘‘राजपाट शैली’’ की असली

कहानी जाननी हो तो अय्यर कमीशन की रपट-1970-पढं़े।

   संभवतः यह रपट पटना के गुलजारबाग स्थित सरकारी प्रेस में बिक्री के लिए अब भी उपलब्ध हो !

  मथाई ने नेहरू ,उनकी सरकार व उनके अनेक महत्वपूर्ण समकालीनों की कमियां लिखी हैं तो अच्छाइयां भी।

  यानी, यह धारणा गलत है कि सिर्फ बुराइयां ही लिखी हैं। 

मथाई ने एक जगह तो यह भी लिख दिया है कि नेहरू की आलोचना करने की हैसियत जार्ज फर्नांडिस में कत्तई नहीं।

  जार्ज तो नेहरू के जूते का फीता बांधने लायक योग्यता भी नहीं रखता।

  खैर, आजादी के तत्काल बाद की हमारी सरकारों ने यह सिखाया कि महाराणा प्रताप और शिवाजी की अच्छाइयां -वीरता न लिखो और न पढ़ो।

हां, अकबर की महानता जरूर पढ़ो।

इसीलिए आज यदि आप महाराणा व शिवाजी के शौर्य -स्वाभिमान की चर्चा करते हुए कोई पोस्ट लिखेंगे तो दस-बीस लाइक मुश्किल से ही मिल पाएंगे।

हां, अकबर पर अधिक मिल सकते हैं।

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  एक नहीं, दो अप्रकाशित अध्याय 

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अब तक आपने सुना होगा कि मथाई की किताब में ‘सी’ यानी ‘वह’ चैप्टर शामिल नहीं किया गया।

पर, यह आधा सच है। 

मथाई ने एक और चैप्टर शामिल नहीं किया।

मथाई ने लिखा कि पात्र के जीवनकाल में ये नहीं छपेंगे।

  दूसरे चैप्टर का शीर्षक था-

‘एक फिल्म की कहानी।’

मथाई के अनुसार,

 ‘‘इसमें बहुत सनसनीखेज मसाला था।

राष्ट्रपति भवन के द्वारिका कक्ष में 1966 में एक दिन तीसरे पहर के समय क्या हुआ,यह उस फिल्म में दिखाया गया है।

.........फिल्म में जिस व्यक्ति की करतूत दिखाई गई है,उसे अपने भाग्य को सराहना चाहिए कि फिल्म मेरे हाथ लग गई है और सुरक्षित है।’’

    मेरा मानना है कि इन अध्यायों को छोड़कर भी यदि मथाई की किताबों को फिर से प्रकाशित करने  की अनुमति मिल जाए तो भी कुछ लोग उसे एक बार फिर प्रतिबंधित कर देने की कोर्ट से मांग कर सकते हैं।

क्योंकि उनमें भी सनसनीखेज सामग्री भरी पड़ी है। 

देखना है कि डा.अग्रवाल की सूचना या अटकल अंततः सही साबित होती है या नहीं।

अब तक तो सही साबित नहीं हुई है।

  किसी ने ठीक ही कहा है कि 

‘‘जो लोग अपने भूतकाल को याद नहीं रखते,वे उसे दुहराने को अभिशप्त होते हैं।’’

न सिर्फ मध्यकालीन भारत के इतिहास के साथ भारी छेड़छोड़ हुई बल्कि आजादी के बाद के इतिहास को भी गोदी मीडिया व गोदी लेखकों गोल कर दिया।

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कुछ साल पहले प्रगतिशील लेखक की मोटी किताब मैंने पढ़ी थी।

उन्होंने लिखा कि इस देश की राजनीति में  वंशवाद-परिवावाद की नींव ग्वालियर के सिंधिया परिवार ने डाली।

 जबकि सच्चाई यह है कि यह काम 1928-29 में मोतीलाल नेहरू ने गांधी पर दबाव डाल कर किया था।सन 1928 में मोतीलाल कांग्रेस अध्यक्ष थे और 1929 में जवाहरलाल।

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हाल में एक लेखक ने मुझे सूचित किया कि वह भागलपुर दंगे पर किताब लिख रहे हैं।

उन्होंने यह भी बताया कि उनके शोध से यह पता चला है कि 

एस.पी.की जीप पर किसने बम फेंका था,उसकी अब तक पहचान नहीं हुई है।

 जबकि पूरा भागलपुर सच्चाई जानता है।

याद रहे कि जीप पर बम फेंकने के बाद ही दंगा भड़का था।

यह और बात है कि उस दंगे को रोकने के बदले बढ़ाने में पुलिस का योगदान रहा।

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 हमारे देश की समस्या यह है कि इतिहास लिखते समय उसमें अपनी राजनीतिक सुविधा के अनुसार भारी छेड़छाड़ कर दी जाती है।

  मथाई के आंखों देखे -भोगे ‘इतिहास’ को तो प्रतिबंधित ही कर दिया गया।

याद रहे कि एम.ओ.मथाई 1946 से 1959 तक प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू के विशेष सहायक रहे।

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पुनश्चः

अपनी पहली पुस्तक के बारे में अपनी दूसरी पुस्तक में 

मथाई ने लिखा है कि 

‘‘अज्ञानी,पूर्वाग्रही व अशिक्षित आलोचकों ने जो कुछ लिखा हो,उसके बावजूद एक गैर सरकारी संस्थान ने मेरी पुस्तक को भारतीय प्रशासनिक सेवा ,भारतीय विदेश सेवा तथा अन्य केंद्रीय सेवाओं की परीक्षाओं के लिए आवश्यक रूप से पढ़ने की पुस्तकों में शामिल किया।

  जिन अन्य लेखकों की पुस्तकों को इसमें शामिल किया गया है वे हैं डा.एस.राधाकृष्णन, के.एम.पणिकर, हक्सले, वी.एस.नाईपाल और आर्थर कोइसलर।

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--सुरेंद्र किशोर--18 जुलाई 21

   


     


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