राजनीति के राष्ट्रीय फलक पर ममता
बनर्जी की भूमिका अत्यंत सीमित
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फिर भी भूमिका की तलाश में
वह इन दिनों दिल्ली में हैं
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--सुरेंद्र किशोर--
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पश्चिम बंगाल की मुख्य मंत्री ममता बनर्जी अभी दिल्ली में हैं।
खबर है कि वह राष्ट्रीय फलक पर अपने लिए भूमिका की तलाश में हैं।
इसमें किसी को भला क्या एतराज हो सकता है !
पर, सवाल यह है कि वह पश्चिम बंगाल से जन समर्थन की कितनी बड़ी पूंजी लेकर दिल्ली पहुंची हैं ?
गत विधान सभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस को 48 दशमलव 8 प्रतिशत मत मिले थे।
एक अनुमान के अनुसार इसमें अल्पसंख्यकों के 32 प्रतिशत वोट थे।
कांग्रेस नेता अधिरंजन चैधरी ने
चुनाव नतीजे के तत्काल बाद कहा था कि हमारे दल के मुस्लिम समर्थकों ने भी तृणमूल को ही वोट दे दिए।
चैधरी के अनुसार सी.पी.एम. ने अपने वोट भी तृणमूल को दिलवा दिए।
यानी, पहली बार मुस्लिम वोट का अभूतपूर्व एकत्रीकरण हुआ।
ऐसा क्यों हुआ ?
इसलिए हुआ क्योंकि ममता बनर्जी ने सार्वजनिक रूप से कह रखा था कि यदि पश्चिम बंगाल में सी ए ए और एन आर सी लागू करने की कोशिश होगी तो खून की नदियां बह जाएंगी।
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केरल के मुख्य मंत्री ने भी ऐसा ही आश्वासान वहां के मुसलमानों को दिया था।
नतीजतन राहुल गांधी अपनी लोस सीट के नीचे वाले सारे विधान सभा क्षेत्रों में भी इस बार हार गए।यानी, वहां कांग्रेेस हार गई।
वहां भी मुस्लिम वोट का अभूतपूर्व ध्रुवीकरण हो गया।
यानी शाहीन बाग प्रकरण के बाद के विधान सभा चुनावों में मुख्यतः एन.आर.सी.--सी ए ए प्रकरण ही हावी रहे।
आगे के चुनावों में भी हावी रहेंगे,ऐसा लगता है।
ममता बनर्जी एन.आर.सी.-सी ए ए विरोधी अभियान की प्रतीक बन गई हैं।
फिर भी उनका प्रतीक बनना राष्ट्रीय स्तर पर उनके दल के फैलाव में कितना सहायक होगा ?
लगता तो नहीं है।
जहां सपा जैसा कट्टर ‘‘शाहीनबाग’’ समर्थक दल पहले से ही मौजूद है,वहां ममता की क्या उपयोगिता ?
अखिलेश यादव ने शाहीनबाग में धरना पर बैठी महिलाओं की तुलना झांसी की रानी से की थी।
यदि 2024 के लोक सभा चुनाव में भी सी. ए. ए.और एन आर सी मुद्दा बना, और बनेगा ही, तो ममता बनर्जी उस चुनाव में पूरे देश के पैमाने पर कितना कारगर हो पाएंगी ?
यदि करगर नहीं होंगी तो प्रधान मंत्री पद की उम्मीदवार कैसे बनेंगी ?
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अब पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस को मिले मतों का विश्लेषण करें।
टीएमसी को 48.8 प्रतिशत वोट मिले।
इसमें 32 प्रतिशत वोट घटा दीजिए।
कितना बचा ?
16.8 प्रतिशत।
इसमें से ब्राह्मण वोट का अधिकांश निकाल दीजिए।
फिर कितना बचा ?
उतने ही वोट ममता को गैर मुसलमान समुदायों से मिले।
ब्राह्मण वोट इसलिए मैंने कहा क्योंकि इस देश में जिस किसी जाति का व्यक्ति प्रधान मंत्री या मुख्य मंत्री होता है,उसे उसकी जाति का अधिकांश वोट बिना मांगे भी मिल जाता है।
इस तरह एक अनुमान लग गया कि बंगाल की भी गैर मुस्लिम आबादी में ममता की कितनी पैठ है ?
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याद रहे कि अगले किसी चुनाव में सी.ए.ए.-एन.आर.सी.विरोधी मुसलमान अलग -अलग राज्यों में अलग -अलग पार्टी को एकजुट होकर वोट देंगे।
जैसे वे यू.पी.में सपा या बसपा को देंगे।
बिहार में राजद के नेतृत्व वाले गठबंधन को देंगे।
पूर्वोत्तर बिहार में वे ओवैसी को देंगे या नहीं, यह देखना होगा।
अन्य राज्यों में से कहीं अल्पसंख्यक मतदाताओं के लिए कांग्रेस अनुकूल होगी तो कोई अन्य राजग विरोधी दल।
इस स्थिति में ममता बनर्जी की भूमिका अत्यंत सीमित रहेंगी।
फिर उनके लोग जो 2024 में उन्हें प्रधान मंत्री के पद पर देखना चाहते हैं उसकी संभावना का अनुमान लगा लीजिए।
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27 जुलाई 21
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