अपनी संवैधानिक ताकत को पहचानें विधायकगण
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आज के दैनिक भास्कर(पटना) में प्रकाशित कुछ खबरों के शीर्षक इस प्रकार हैं।
‘‘इतिहास में न तो विधायिका इतनी कममजोर हुई,न हम विधायक।’’
‘‘अफसर हावी, तभी मंत्री ने कहा था चपरासी तक नहीं सुनता है।’’
‘‘सी.एम.बोले--विधायकों की सुनें मंत्री, वे चाहें तो हमसे भी मिलें।’’
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इन शीर्षकों को ही पढ़ने से लगता है कि अनेक जन प्रतिनिधि काफी असंतुष्ट हैं।
उनमें से कई आए दिन यह आरोप लगाते रहते हैं कि बिहार में अफसरशाही हावी है।
अफसर हमारी बात नहीं सुनते।
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पर जन प्रतिनिधि यह नहीं बताते कि जनहित का कौन सा काम करने को किस अफसर से कहा और उसने ध्यान नहीं दिया।
ऐसी कोई शिकायत हो तो जनहित के उस काम का विवरण मीडिया के जरिए आम लोगों तक भी पहंुचना चाहिए।
उससे जन प्रतिनिधि की ही लोकप्रियता बढ़ेगी।
अफसरों के खिलाफ लोगों का गुस्सा बढ़ेगा।
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सन 1977 से सन 2001 तक संवाददाता के रूप में मैंने विधान सभा व विधान परिषद की रिपोर्टिंग की है।
जब तक सदन में अपेक्षाकृत शांति रहा करती थी,तब तक अपने सवालों के जरिए कई विधायक, मंत्रिमंडल व अफसरशाही पर एक हद तक अंकुश रखते थे।
वे राज्य व क्षेत्र के जनहित के कई काम सदन के जरिए भी सरकार से करा लेते थे।
पक्ष-विपक्ष के कई विधायकगण प्रश्न काल, ध्यानाकर्षण सूचना,शून्य काल तथा आधे घंटे की चर्चा आदि के जरिए प्रभावकारी भूमिका निभाते थे।
किंतु अब ????
काम कम,शोर अधिक।
यही हाल संसद का भी है।
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अब तो आम लोगों की भी, सब नहीं किंतु, कई जन प्रतिनिधियों से शिकायत रहती है।
लोगबाग चाहते हैं कि हमारे जन प्रतिनिधि, विधायक-सांसद फंड में कमीशनखोरी के खिलाफ कारगर आवाज उठाएं।
आंदोलन करें।
जन प्रतिनिधि गण इस बात की भी शिकायत-चर्चा उचित फोरम पर या फिर मीडिया के जरिए उठाएं कि अंचल कार्यालयों व थानों में जनता के कितने काम मुफ्त में हो जाते हैं कितने नजराना-शुकराना देकर।
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विधायकांे के पास संवैधानिक ताकत बहुत है।
वे ही तो सरकार बनाते और बिगाड़ते हैं।
वे यदि विधायक के रूप में मिले अपने संवैधानिक अधिकारों का इस्तेमाल भरपूर करें तो अफसरशाही टेकुआ की तरह सीधी हो जाएगी।
किंतु इसके लिए विधायकगण संविधान से मिली अपनी ताकत को पहचानें।
दरअसल हनुमान जी को उनकी खुद की ताकत का भान नहीं होता था तो दूसरे लोग उन्हें याद दिलाते थे।
ऐसी अनाधिकार चेष्टा के लिए माननीय विधायकों से क्षमाप्रार्थी हूं।
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--सुरेंद्र किशोर
27 जुलाई 21
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