डा.राम मनोहर लोहिया कहा करते थे कि
जो व्यक्ति सार्वजनिक जीवन में रहना चाहते हैं
उन्हें अपना घर नहीं बसाना चाहिए।
याद रहे कि लोहिया ने न तो शादी की और न ही अपने लिए कहीं भी कोई एक कमरा भी बनवाया।
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मैं इसमें एक और बात जोड़ता हूं।
किसी भी क्षेत्र में कार्यरत जो व्यक्ति ईमानदार जीवन जीना चाहता है, उसे भी अपना परिवार खड़ा नहीं कर चाहिए।
यदि खड़ा करता है तो वह जोखिम मोल लेता है।
उनमें से वे थोड़े लोग सौभाग्यशाली होते हैं जो ऐसे जेखिम से बच पाते हैं।
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इस देश के एक पूर्व मुख्य मंत्री को अपनी संतान की गलत महत्वाकांक्षा के खिलाफ लड़ते और अपनी जान गंवाते देखा है।
लोकलाज का ख्याल रखने वाले एक अन्य बड़े नेता के राजनीतिक कैरियर में विराम लग गया क्योंकि उन्होंने अपने एक करीबी रिश्तेदार का कैरियर संवारना चाहा था।
तीसरा उदाहरण भी एक नेता का ही है।
अपने विवादास्पद पुत्र को केस से बचाने के क्रम में उन्हें खुद लंबी जेल यातना सहनी पड़ी।
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यह तो हुई बड़ी हस्तियों की बात।
इस अर्थ युग में ,जिसमें स्वार्थी व संयमी लोगों की संख्या निरंतर घटती जा रही है,असंख्य सामान्य लोग संतान सुख की जगह ‘‘संतान प्रदत्त पीड़ा’’ अकेले ही झेलने को अभिशप्त हैं।
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आप चाहे जिस क्षेत्र में काम कर रहे हों,यदि आप अपनी सिर्फ जायज आय पर संतोष कर लेते हैं तो आप भी एक तरह से सार्वजनिक जीवन में ही हैं।
क्योंकि उस तरह आप परोक्ष रूप से देश का ही भला कर रहे होते हैं।
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--सुरेंद्र किशोर
19 जुलाई 21
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