गुरुवार, 22 जुलाई 2021

 


शोरगुल से सदन स्थगित होने पर परेशानी से बच जाती है सरकार-सुरेंद्र किशोर

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संसद और बिहार विधान मंडल के सदनों की कार्यवाही इसी महीने शुरू होगी।

 आए दिन यह देखा जाता है कि सदन की कार्यवाही शुरू होते ही शोरगुल-हंगामा शुरू हो जाता है।कभी -कभी तो मारपीट भी।

  इससे जनता का भला होता है या सरकार का ?

 या प्रतिपक्षी नेताओं का जो आम तौर पर हंगामा शुरू करते हैं ?

किसी का नहीं।

हां,एक हद कत्र्तव्य विमुख सरकारी अफसर व मंत्री जरूर 

राहत महसूस करते हैं।

   दूसरी स्थिति क्या हो सकती है ?

यदि शांतिपूर्वक सदन चला करे तो मंत्रियों को पक्ष-विपक्ष सदस्यों के प्रश्नों व ध्यानाकर्षण सूचनाओं के जवाब देने होंगे।

   शून्य काल में जो मामले उठाए जाते हैं,उनका भी महत्व है।

आधे घंटे की चर्चा और आम वाद विवाद से भी जनता का भला होता है।

पर, इन सब कामों के लिए सदस्यों को अध्ययनशील व कुशल वक्ता बनना पड़ेगा।

  कितने सदस्य हैं जिन्हें जन समस्या व सरकारी कामकाज का अध्ययन करने की फुर्सत है ?

  कितने सदस्य सदन संचालन नियमावली के प्रावधानों का उपयोग करके अपनी दमदार व सोददेश्य उपस्थिति दर्ज कराना चाहते हैं ?

हंगामा व मारपीट करने पर मीडिया में नाम

और चेहरे आ ही जाते हैं।

इसका एक नुकसान यह भी होता है कि शांतिप्रिय सदस्यों को अपनी बातें कहने का अवसर कम ही मिल पाता है।  

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 राज्य सभा में दलगत स्थिति

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राज्य सभा में राजग के 116 सदस्य हैं।

यू.पी.ए. के सदस्यों की संख्या 54 है।

अन्य दलों के 61 सदस्य हैं।

14 सीटें खाली हैं।

राजनीतिक रूप से जागरूक लोग इन दिनों अक्सर यह कहा करते हैं कि राज्य सभा में बहुमत न रहने के कारण ही मोदी सरकार पश्चिम बंगाल में

राष्ट्रपति शासन नहीं लगा पा रही है।

पता नहीं, इस बात में कितनी सच्चाई है !

किंतु यह भी सच है कि मोदी सरकार ने अपना बहुमत न रहने के बावजूद कई महत्वपूर्ण विधेयक राज्य सभा से भी हाल के महीनों में पास करवा लिए हैं।

वैसे यह उम्मीद की जा रही है कि अगले साल तक 

राजग को राज्य सभा में भी बहुमत मिल जाएगा।

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 तबादला सजा नहीं

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बिहार में बालू का अवैध खनन नहीं रुक रहा।

रोकने की जिन पर जिम्मेदारी रही,वे अपनी ड्यूटी में विफल रहे।

नतीजतन इस काम से संबंद्ध विभागों के अनेक अफसर बदल दिए गए।

पर, क्या तबादला कोई सजा है ?

बिलकुल नहीं।

ऐेसे कत्र्तव्य च्युत अफसरों व उनके करीबियों की संपत्ति की जांच भी होनी चाहिए।

  संभव है,उस जांच में कुछ अफसर पाक -साफ साबित हो जाएं।

  किंतु कुछ अन्य तो जरूर पकड़ में आ जाएंगे।

ऐसे तो उन सभी अफसरों पर संदेह के बादल मंड़रा रहे हंै

जिन्हें बदला गया है।

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    बिहार में टै्रक्टर की 

  खरीद में असामान्य वृद्धि

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सितंबर , 2019 में बिहार में 2725 टैक्टर बिके थे।

किंतु सितंबर , 2020 में इस राज्य में 5022 ट्रैक्टर बिके।

यानी, एक साल में 84 प्र्रतिशत की वृद्धि।

टैक्टर की खरीद में यहां इतनी वृद्धि क्यों ?

उपर्युक्त अवधि में हरियाणा में 51 प्रतिशत और पंजाब में 

79 प्रतिशत ही वृद्धि हुई ?

क्या बिहार में टैक्टर की बिक्री में इतनी अधिक वृद्धि इसलिए हो रही है क्योंकि टैक्टर का इस्तेमाल बालू के अवैध व्यापार में हो रहा है ?

कौन लोग हैं जिनके नाम से टैक्टर खरीदे जा रहे हैं ?

उनके पास खेती की कितनी जमीन है ?

इन टैक्टरों का वे किस तरह का इस्तेमाल कर रहे हैं ?

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भूली -बिसरी याद

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अस्सी के दशक की बात है।

कर्पूरी ठाकुर ने लोक दल विधायक दल के नेता पद से इस्तीफा दे दिया था।

 वे अपने ही दल के कुछ विधायकों के व्यवहार से दुखी रहते थे।

यह खबर छपी नहीं थी।

किंतु लोकदल खेमे में इस बात की दबे स्वर में

चर्चा हो रही थी।

पहले मैंने इस्तीफे की चिट्ठी की काॅपी हासिल कर ली।

 उन दिनों मैं दिल्ली के एक दैनिक अखबार का बिहार संवाददाता था।

मैंने वह खबर भेजी।

 वह पहले पेज पर छप गई।

कर्पूरी जी ने उस खबर का खंडन कर दिया।

उसके बाद मैंने वह इस्तीफा पत्र भी छपवा दिया।

फिर क्या था !

कर्पूरी जी चाहते तो कह सकते थे कि चिट्ठी जाली है।

किंतु उन दिनों के कुछ नेता आज जैसे नहीं थे।

कर्पूरी जी ने मुझे बुलवाया।

मैं बिहार विधान सभा स्थित उनके कमरे में पहुंचा।  

उन्होंने अन्य सारे लोगों को बाहर निकल जाने के लिए कहा।

कमरे में सिर्फ हम दोनों थे।

मैं अपनी पृष्ठभूमि बता दूं।

1972-73 में मैं समाजवादी कार्यकत्र्ता की हैसियत से उनके बुलावे पर कर्पूरी जी का निजी सचिव था।

  कर्पूरी जी को लगता था कि मैं उन्हें यह बता दूंगा कि उस चिट्ठी को किसने लीक किया।

  उन्होंने आग्रह के साथ पूछा कि आपको मेरी चिट्ठी किसने दी ?

वे बहुत ही विनयी स्वभाव के थे।

उनके व्यक्तित्व के प्रभाव मंे आकर एक क्षण तो मुझे लगा कि मैं बता दूं।

पर, तुरंत ही संभल गया।

मैंने उनसे कहा कि यदि बता दूंगा तो एक संवाददाता के रूप में मेरी साख समाप्त हो जाएगी।

  मैंने नहीं बताया।

वह भी मेरी मजबूरी समझ कर मान गए।

इस घटना की सीख यह है कि ऐसी खबर छापने से पहले उसका सबूत अपने पास रख लेना चाहिए।

वैसे सही सबूत को भी जाली करार दे देने का खतरा आज अधिक है।       

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और अंत में

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पहले से यह कहा जाता रहा है कि ‘‘चुनाव जीतने वाले अपनी सीटें गिनते हैं तो हारने वाले मतों का प्रतिशत।’’

अब हारने वाले एक और काम अगले चुनाव तक करते रहते हैं।

वे इस बात का प्रचार करते हैं कि मध्यावधि चुनाव होने ही वाला है।

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16 जुलाई 21

कानोंकान

प्रभात खबर

पटना



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