55 किलोमीटर की साइकिल यात्रा
साइकिल एक, सवार दो
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सुरेंद्र किशोर
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मैं आरा के महाराजा काॅलेज में प्री.-साइंस का छात्र था।
सन 1963-64 के बैच में था।
मेरे मित्र राम कुमार गुप्त भी मेरे सहपाठी थे।
मित्र भी।
वे आरा के एक बड़े व्यवसायी परिवार से आते थे।
उनके पास चार चक्के वाली गाड़ी भी थी।
एक दिन तो हम लोग उस गाड़ी से आरा से कोइलवर आए और फिर बबुरा की ओर मुड़े।
किंतु बीच से ही लौट गए।
खुद राम कुमार गाड़ी चला रहे थे।
राम कुमार को गाड़ी चलाते देख कर मन ही मन तय किया था कि किसी दिन मैं भी ड्राइविंग
सीखूंगा।
पर यह काम आज तक नहीं हो सका।
अब क्या होगा ?
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किसी और दिन हमने तय किया कि हम साइकिल से ही आरा से पटना चलें।
एक साइकिल और दो सवार।
आरा से पटना की दूरी 55 किलोमीटर है।
कभी मैं साइकिल चलाता तो राम कुमार बैठते।
कभी राम कुमार चलाते थे तो मैं बैठता।
हम पटना पहुंचे।
पर्ल सिनेमा हाॅल में फिल्म देखी।
हम फिर साइकिल से ही
आरा की ओर लौटे।
किंतु दानापुर पहुंचते-पहंुचते हम काफी थक चुके थे।
इसलिए दानापुर में ट्रेन में साइकिल रखी और आरा पहुंचे।
राम कुमार गुप्त अपनी पढ़ाई पूरी करके अपने पारिवारिक व्यवसाय में लग गए।
2007 से पहले तक उनसे मुलाकात होती थी जब मैं हिन्दुस्तान,पटना में काम करता था।
बाद में हम नहीं मिले।
पता नहीं, अब वे कहां हैं !
उनका मोबाइल नंबर भी मेरे पास नहीं।
राम कुमार की एक तस्वीर पर नजर पड़ी तो सोचा कि अपनी उस साहसिक साइकिल यात्रा की याद कर लूं।
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20 जुलाई 21
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