रविवार, 17 अक्टूबर 2021

         काजल की कोठरी के बावजूद ?!!!

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            --सुरेंद्र किशोर--

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नरेंद्र मोदी करीब दो दशकों से लगातार सत्ता के शीर्ष पर हैं।

इतने लंबे समय तक सत्ता में रहने के बावजूद उन पर न तो 

आर्थिक भ्रष्टाचार का कोई आरोप लगा और न ही परिवारवाद का।

अन्य तरह के आरोप जरूर लगे।

हालांकि कुछ भी साबित नहीं हुआ है।

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   ऐसे ही दूसरे और तीसरे नेता बिहार से हैं।

 डा. श्रीकृष्ण सिंह भी करीब 17 साल तक सत्ता के शीर्ष पर रहे।

  किंतु उपर्युक्त दोनों में से किसी तरह का आरोप उन पर नहीं लगा।

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बिहार के मौजूदा मुख्य मंत्री नीतीश कुमार पर भी न तो आर्थिक भ्रष्टाचार का आरोप लगा और न ही वंशवाद-परिवारवाद का।

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आजादी के बाद के देश भर के ऐसे अन्य नेताओं का भी पता लगाया जाना चाहिए जो लंबे समय तक सत्ता के शीर्ष पर रहने के बावजूद इन दो बुराइयों से दूर रहे।

उन पर एक पुस्तक लिखी जाए। 

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  हां, इस पोस्ट को लेकर कोई गलतफहमी न हो।

इसलिए बता दूं कि कम समय तक सत्ता में रहने वाले कुछ  नेता भी धनलोलुपता व वंशवाद से काफी दूर रहे -जैसे कर्पूरी ठाकुर।

  किंतु पुस्तक के लिए उनकी एक अलग श्रेणी बन सकती है।

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 लंबे समय तक सत्ता में रहने वाले इन नेताओं की सरकारों ने समय -समय पर कैसी भूमिकाएं निर्भाइं,वह एक अलग सवाल है।

  इस ढीले-ढाले भारतीय लोकतंत्र में सरकारें तो लस्टम-पस्टम ढंग से ही चलती रही हंै।

सन 1967 से तो मैं खुद भी प्रत्यक्षदर्शी हूं।

पहले राजनीतिक कार्यकत्र्ता (1966-76) के रूप में और बाद में सक्रिय पत्रकार के रूप में।

  उनमें भी कुछ थोड़ी अच्छी सरकारें रहीं तो कुछ अन्य थोड़ी खराब।कुछ बहुत खराब।

 लगता है कि किसी ‘जन हितैषी तानाशाह’ के आने तक इस देश में ऐसा ही चलता रहेगा।

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  मेरी समझ से सिंगापुर के शासक ली कुआन यू (1923-2015) ऐसे ही जन हितैषी तानाशाह थे।

उन्होंने सिंगापुर को बदल दिया।

यहां के कुछ लोग उसी तरह का शासक अपने यहां भी चाहते हैं।

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  आखिर राजनीति जैसी काली कोठरी में डेढ़-दो दशकों तक रहने के बावजूद व्यक्तिगत तौर पर कुछ नेता संयम कैसे बरत पाते हैं ?

वह शक्ति उन्हें कहां से मिलती है ?

यह सब पढ़कर शायद नई पीढ़ियों को कुछ प्रेरणा मिले,यदि वे प्रेरणा ग्रहण करना चाहें तो।

  वैसे तो लगता है कि लगभग पूरे कुएं में ही भांग पड़ी हुई है।

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16 अक्तूबर 21

   

   


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