शाहरूख खान के पुत्र
व अन्य की गिरफ्तारी !
यह हिमशैल का शीर्ष मात्र !
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--सुरेंद्र किशोर--
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मुम्बई में आज जो कुछ हो रहा है, उसके बारे में एन.एन.वोहरा समिति ने सन 1993 में ही अपनी सनसनीखेज रपट भारत सरकार को सौंप दी थी।
वोहरा तब केंद्रीय गृह सचिव थे।
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वोहरा समिति ने कुछ उपाय करने के लिए भी केंद्र सरकार से कहा था।
पर, केंद्र सरकार ने समिति की रपट को सार्वजनिक तक नहीं होने दिया,उपाय करने की बात कौन कहे !
निहितस्वार्थी तत्वों की अपार ताकत तो देखिए !!
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एन.सी.बी.के खिलाफ एन.सी.पी.नेता के ताजा बयान से राजनीतिक साठगांठ की एक हल्की झलक मिलती है।
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वोहरा समिति की सिफारिश को अब भी
लागू करके नरेंद्र मोदी सरकार देश को बचाए !
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सन 1993 में तत्कालीन केंद्रीय गृह सचिव एन.एन.वोहरा ने भारत सरकार को समर्पित अपनी रपट में कहा था कि
‘‘ इस देश में अपराधी गिरोहों ,हथियारबंद सेनाओं, नशीली दवाओं का व्यापार करने वाले माफिया गिरोहों,तस्कर गिरोहों, आर्थिक क्षेत्रों में सक्रिय लाॅबियों का तेजी से प्रसार हुआ है।
इन लोगों ने विगत कुछ वर्षों के दौरान स्थानीय स्तर पर नौकरशाहों, सरकारी पदों पर आसीन व्यक्तियों, राजनेताओं,मीडिया से जुड़े व्यक्तियों तथा गैर सरकारी क्षेत्रों के महत्वपूर्ण पदों पर आसीन व्यक्तियों के साथ व्यापक संपर्क विकसित किये हैं।
इनमें से कुछ सिंडिकेटों की विदेशी खुफिया एजेंसियों के साथ-साथ अन्य अंतरराष्ट्रीय सबंध भी हैं।’’
गोपनीयता बरतने के लिए इस ‘वोहरा रपट’ की सिर्फ तीन ही काॅपियां तैयार करवाई गयी थी।
इस रपट की सनसनीखेज बातों को देखते हुए, मेरी जानकारी के अनुसार, केंद्र सरकार ने उसे सार्वजनिक तक नहीं किया।
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वोहरा समिति ने केंद्र सरकार से सिफारिश की थी कि
गृह मंत्रालय के तहत
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एक नोडल एजेंसी तैयार हो जो देश में जो भी गलत
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काम हो रहे हैं, जिनकी चर्चा ऊपर की जा चुकी है,
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उसकी सूचना वह एजेंसी एकत्र करे।
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ऐसी व्यवस्था की जाए ताकि सूचनाएं लीक नहीं हों।
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क्योंकि सूचनाएं लीक होने से राजनीतिक दबाव पड़ने
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लगता है और ताकतवर लोगों के खिलाफ कार्रवाई खतरे में
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पड़ जाती है।
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यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि नोडल एजेंसी
पर किसी तरह का दबाव नहीं पड़ सके और वह सूचनाओं को लेकर मामले को तार्किक परिणति तक पहुंचा सके।
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वोहरा समिति ने अपनी रपट में बार -बार इस बात का उल्लेख किया है कि राजनीतिक संरक्षण से ही इस देश में तरह -तरह के गोरख धंधे हो रहे हैं।
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बार-बार यह बात आती है कि इस देश में खासकर मुम्बई में ड्रग्स के धंधे में दाउद इब्राहिम का हाथ रहा है।
यह भी कि वह मुम्बई के फिल्मी जगत को भी कंटा्रेल करता है।
उसके खास आदमी मुम्बई में स्थानीय नेता के रिश्तेदार व करीबी से मिलकर निर्माण क्षेत्र में सक्रिय है।
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जब शरद पवार मुख्य मंत्री थे तो राम जेठमलानी ने पवार से कहा था कि दाउद इब्राहिम भारत में सरेंडर करना चाहता है।
पर सरेंडर का काम नहीं हो सका।
2015 में शरद पवार ने यह स्वीकारा कि सरेंडर का आॅफर था,किंतु उसकी शत्र्त हमें मंजूर नहीं थी।
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क्या बात इतनी ही थी ?
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क्या दाउद के देश से बाहर रहने में ही मुम्बई के कुछ नेताओं व अन्य लोगों का अधिक फायदा रहा है ?
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उम्मीद की जानी चाहिए कि मौजूदा केंद्र सरकार माफिया-नेता-अफसर त्रिगुट को तोड़ने का ठोस उपाय करेगी।
अन्यथा, भ्रष्टाचार, आतंक और अपराध के त्रिगुट को तोड़े बिना देश की सुरक्षा खतरे में ही रहेगी।ड्रग्स का प्रसार यानी नई पीढ़ियों को बर्बाद करना।
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नारकाॅटिक्स कंट्रोल ब्यूरो की ताजा कार्रवाई की तारीफ होनी चाहिए।
इस दौरान कई नेताओं व अन्य हस्तियांें के असली चेहरे सामने आए,और अन्य चेहरे भी बेनकाब होंगे।
पर, क्या इतना ही काफी है ?
कत्तई नहीं।क्योंकि यह तो ‘टिप आॅफ द आइसबर्ग है।’
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6 अक्तूबर 21
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