शुक्रवार, 1 अक्तूबर 2021

 


 राजनीति के अपराधीकरण पर काबू 

के लिए अदालत से ही उम्मीद

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--सुरेंद्र किशोर--

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 इसी साल अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अपराधियों को कानून बनाने की भूमिका नहीं सौंपी जानी चाहिए।

यानी, उन्हें विधायिका का सदस्य नहीं बनने देना चाहिए।

बहुत ठीक कहा।

देश की सबसे बड़ी अदालत ने यह भी कहा कि देश में  दिन -प्रति- दिन राजनीति का अपराधीकरण बढ़ता जा रहा है ।

किंतु उस पर काबू करने का उपाय नहीं हो रहा है।

 सुप्रीम कोर्ट की चिंता जायज है।

  मौजूदा राजनीति को देखने-समझने से यह साफ लगता है कि अधिकतर राजनीतिक दल, विधायिका को ऐसा कोई कानूनी उपाय नहीं करने देंगे जिससे राजनीति में जमे अपराधियों को कोई नुकसान हो।

इसलिए अंततः सुप्रीम कोर्ट ही कुछ करना पड़ेगा।

अयोध्या निर्णय से यह बात साफ हो गई कि संविधान से प्राप्त  विशेष अधिकार का इस्तेमाल करके सुप्रीम कोर्ट जनहित में कोई भी फैसला कर सकता है।

सुप्रीम कोर्ट अपने ही एक पिछले निर्णय पर पुनर्विचार करके राजनीति के अपराधीकरण पर काफी हद तक अंकुश लगा सकता है।

जो व्यक्ति जेल में हैं,कम से कम वे तो चुनाव नहीं लड़ पाएंगे।

  सन 2004 में पटना हाईकोर्ट ने कहा था कि ‘‘जेल में रह कर न तो वोट देने का और न ही चुनाव लड़ने का अधिकार है।चुनाव आयोग को चाहिए कि वह रिजल्ट आने से पहले ही ऐसे उम्मीदवारों का चुनाव रद कर दे जो जेल से चुनाव लड़ रहे हैं।’’

  याद रहे कि सन 2004 के लोक सभा चुनाव के दौरान ही यह निर्णय आया था।

उससे पहले एक लोकहित याचिका के जरिए पटना हाईकोर्ट से यह आग्रह किया गया था कि जब जेल में रहने पर किसी व्यक्ति को वोट देने का अधिकार नहीं है तो जेल में रह कर चुनाव लड़ने का अधिकार कैसे दे दिया गया है ?

  पर पटना हाईकोर्ट के इस ऐतिहासिक जजमेंट को बाद में सुप्रीम कोर्ट का समर्थन नहीं मिला।

इसलिए वह लागू नहीं हो सका।

अपने पिछले तत्संबंधी जजमेंट पर सुप्रीम कोर्ट पुनर्विचार करके देश की विधायिका को खूंखार अपराधियों से काफी हद तक बचा सकता है ।

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कांग्रेस को कितना जन समर्थन

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इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के शासनकाल में कांग्रेस को अच्छा-खासा जन समर्थन हासिल था।

इसलिए वे दोनों नेता बारी- बारी से बेहिचक-बेधड़क राज्यों के  मुख्य मंत्री बदलते रहे।

  कहीं से कोई आंतरिक बगावत नहीं हुई।

बिहार में तो 1985 और 1990 के बीच पांच मुख्य मंत्री बदले गए।

आज कांग्रेस सिर्फ राज्य पंजाब का मुख्य मंत्री ‘‘शांतिपूर्वक’’नहीं बदल सकी।

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     अगले लोस चुनाव में कांग्रेस

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पंजाब के अलावा छत्तीसगढ़ और राजस्थान दो ऐसे राज्य हैं जहां कांग्रेस के पास अपनी पूर्ण बहुमत वाली सरकारें हैं।

  इस राजनीतिक पूंजी के साथ वह 2024 का लोक सभा चुनाव में कैसी सफलता हासिल करेगी ?

कांग्रेस को यदि कम से कम 150 सीटें नहीं मिलेगी, तब तक वह 2024 में मिलीजुली सरकार बनाने के बारे में भी कैसे सोच सकती है !

 कांग्रेस की जो मौजूदा हालत है,उसे देखते हुए क्या यह  लगता है कि सन 2024 के लोस चुनाव में उसे 150 सीटें

मिल पाएंगी ?

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की हालत पहले से खस्ता है जहां अगले साल विधान सभा चुनाव होने वाला है।

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अंतरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस

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आज यानी 1 अक्तूबर को अंतरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस है।क्या इस अवसर पर केंद्र सरकार कर्मचारी प्रोविडेंट फंड से जुड़ी पेंशन योजना पर एक नजर डालेगी ?

यह ऐसी पेंशन योजना है जिसमें किसी तरह की वृद्धि का कोई प्रावधान ही नहीं है।

  मासिक राशि भी बहुत कम है।

 उदाहरणार्थ पेंशनर के लिए जो पेंशन राशि 2005 में तय की गई,वही राशि यानी लगभग 12 सौ रुपए आज भी मिल रही है। 

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भूली बिसरी याद

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यह 1972-73 की बात है। 

तब कर्पूरी ठाकुर सत्ता में नहीं थे।

फिर भी राज्य के अनेक नौजवान उनके पास नौकरी के लिए आते रहते थे।

वे उम्मीद करते थे कि कर्पूरी जी किसी को फोन करके या पत्र लिखकर उन्हें नौकरी दिलवा देंगे।

उन प्रत्याशियों से अक्सर कर्पूरी जी एक बात कहते थे।

कहते थे,‘‘मैं आपको नौकरी दिलवाने की गारंटी देता हूं।

पर, मेरी एक शत्र्त हैं।

आप शाॅर्टहैंड और टाइपिंग सीख जाइए।’’

वे कह कर तो जाते थे कि जरूर सीख लूंगा।

पर कोई लौटकर नहीं आता था।

दरअसल उसे सीखने में मेहनत लगती है।

 अनेक मामलों में आज भी यही स्थिति है।

किसी तरह के कौशल के विकास में लोगों की रूचि बहुत कम है।

पर, नौकरी जरूर चाहिए।

आज शुद्ध-शुद्ध हिन्दी और अंग्रेजी लिखने वालों की भी कमी होती जा रही है।

  अधिकतर पढ़ाने वाले लोगों को भी खुद पढ़ने की जरूरत है।

फिलहाल एक काम करने की जरूरत है।

बिहार मंें कम से कम शुद्ध लिखने वालों का एक ‘‘प्रतिभा समूह’’ तैयार किया जाना चाहिए।कहीं से तो शुरूआत हो। 

इसके लिए जांच परीक्षा आयोजित करने का काम नालंदा ओपेन यूनिवर्सिटी को सौंप दिया जाना चाहिए जहां की परीक्षाओं में कदाचार की गुंजाइश नहीं रहती।

जांच परीक्षा दो स्तरों पर हो--एक प्रारंभिक और दूसरा फाइनल।

  उस प्रतिभा समूह में से स्कूलों में भाषा के शिक्षक तैनात किए जाएं।स्कूल स्तर पर यदि भाषा ठीक हो जाएगी तो तथ्य का ज्ञान तो देर-सवेर हासिल होता रहेगा। 

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   और अंत में

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13 मई, 2018 को तत्कालीन जिलाधिकारी ने यह घोषणा की थी कि ‘‘पटना में बिना पार्किंग वाले प्रतिष्ठान बंद करा दिए जाएंगे।

बंद कराने से पहले दो बार नोटिस और दो बार जुर्माना 

लगेगा।

इसके बाद भी स्थिति नहीं सुधरी तो कार्रवाई होगी।’’

पटना के लोग या यूं कहें कि अन्य नगरों-शहरों के आम लोग भी ऐसी किसी कार्रवाई के लिए आज भी तरस रहे हैं।

कार्रवाई के अभाव में लोगबाग लगातार पीड़ा झेलने को अभिशप्त हैं।  

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1 अक्तूबर, 21 के प्रभात खबर, पटना में 

प्रकाशित मेरे साप्ताहिक काॅलम ‘कानोंकान’ से 



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