जन्म दिन पर ‘बिहार केसरी’
डा. श्रीकृष्ण सिंह की याद में
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--सुरेंद्र किशोर-
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श्रीबाबू के बारे में कुछ बातें
जो आज की राजनीति में विरल हैं।
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वंशवाद-परिवारवाद
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चम्पारण के कुछ कांग्रेसी सन 1957 में श्रीबाबू से मिले।
कहा कि शिवशंकर सिंह को विधान सभा चुनाव लड़ने की अनुमति दीजिए।
श्रीबाबू ने कहा कि मेरी अनुमति है।
किंतु तब मैं चुनाव नहीं लड़ूंगा।
क्योंकि एक परिवार से एक ही व्यक्ति को चुनाव लड़ना चाहिए।
शिवशंकर सिंह श्रीबाबू के पुत्र थे।
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धन संग्रह
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सन 1961 में बिहार के मुख्य मंत्री डा.श्रीकृष्ण सिंह के निधन के 12 वें दिन राज्यपाल की उपस्थिति में उनकी निजी तिजोरी खोली गयी थी।
तिजोरी में कुल 24 हजार 500 रुपए मिले।
वे रुपए चार लिफाफों में रखे गए थे।
एक लिफाफे में रखे 20 हजार रुपए प्रदेश कांग्रेस कमेटी के लिए थे।
दूसरे लिफाफे में तीन हजार रुपए थे मुनीमी साहब की बेटी की शादी के लिए थे।
तीसरे लिफाफे में एक हजार रुपए थे जो महेश बाबू की छोटी कन्या के लिए थे।
चैथे लिफाफे में 500 रुपए उनके विश्वस्त नौकर के लिए थे।
श्रीबाबू ने कोई अपनी निजी संपत्ति नहीं खड़ी की।
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जातिवाद
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श्रीबाबू के मुख्य मंत्रित्व काल में एल.पी.सिंह राज्य सरकार के मुख्य सचिव थे।
एल.पी.सिंह राजपूत थे।
श्रीबाबू के बाॅडी गार्ड भी राजपूत ही थे।
उनके निजी सचिव रामचंद्र सिंहा कायस्थ थे।
मुख्य मंत्री सचिवालय में कोई भूमिहार अफसर या सहायक नहीं था।
हां,श्रीबाबू के कुछ स्वजातीय नेताओं पर जातिवाद का आरोप जरूर लगता था।
पर, खुद मुख्य मंत्री वैसे नहीं थे,ऐसा उनके समकालीन लोगों ने लिखा हैं।
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प्रशासन से संबंध
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सन 1948 से 1956 तक बिहार के मुख्य सचिव रहे एल.पी.सिंह ने श्रीबाबू की प्रशासनिक दक्षता व कार्यनीति को याद करते हुए एक बार लिखा कि
‘‘श्रीबाबू अफसरों की अनुशासनहीनता के सख्त खिलाफ थे।
एक बार एक एस.डी.ओ.ने अपने तबादले को कुछ महीने के लिए स्थगित कर देने का सरकार से आग्रह किया।
उसने लिखा कि उसने अपनी बेटी की शादी तय कर दी है।
शादी का सारा प्रबंध वहीं किया गया हैं।
यह आग्रह उस अफसर ने उचित आधिकारिक माध्यम से किया।
पर साथ -साथ उस अफसर ने एक प्रभावशाली विधायक के जरिए भी मुख्य मंत्री के यहां तबादला स्थगित करने के लिए पैरवी करवाई।
उस समय इस आचार संहिता का पालन होता था कि कोई सरकारी सेवक विधायक -सांसद से पैरवी नहीं करवाएगा।’’
एल.पी.सिंह के अनुसार ‘श्रीबाबू ने बेटी की शादी के कारण तबादला तो स्थगित कर देने का आदेश दे दिया,पर विधायक की पैरवी को अनुचित माना।
मुख्य मंत्री ने आदेश दिया कि आचार संहिताके उलंघन के लिए उस अफसर के निंदन की टिप्पणी दर्ज कर दी जानी चाहिए।’
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मीडिया के साथ संबंध
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मीडिया के प्रति श्रीबाबू के रुख के बारे में
‘उत्तर बिहार’ नामक पत्रिका के प्रबंध संपादक व स्वतंत्रता सेनानी नंद किशेार सिंह ने लिखा कि
‘श्रीबाबू पत्रकारिता की स्वतंत्रता के गंभीर पक्षधर थे।
उन दिनों अंग्रेजी दैनिक ‘सर्चलाईट ’के संपादक थे एम.एस.एम.शर्मा।
शर्मा जी सर्चलाईट के प्रथम पष्ठ के प्रथम कालम में ‘एलोज एंड एपोल्स’ नामक एक स्तम्भ नियमित रूप से लिखते थे।
इस स्तम्भ के माध्यम से शर्मा जी श्रीबाबू के व्यक्तिगत जीवन पर भी बहुत ही आपत्तिजनक निम्नस्तरीय व्यंग्य लिखा करते थे।’
‘ एक दिन महेश बाबू के निवास पर श्रीबाबू से मेरी भेंट हुई।
मैंने उनसे कहा कि आप ‘सर्चलाइट’ के खिलाफ कोई कठोर कदम क्यों नहीं उठाते ?
थोड़ी देर तक मेरी बात सुनने के बाद श्रीबाबू ने कहा कि ‘‘मैंने सर्चलाइट के विरूद्ध एक अत्यंत कठोर
कदम उठाया है।’’
मुझे श्रीबाबू के इस कथन पर घोर आश्चर्य हुआ।
क्योंकि तब मैं सूचना व जन संपर्क विभाग में सहायक निदेशक के पद पर था।
सरकार द्वारा किसी भी कार्रवाई की मुझे जानकारी होती।
मैंने जब यह बात कही तो श्रीबाबू ने कहा कि ‘वह कठोर कदम यह है कि मैंने सर्चलाइट पढ़ना ही छोड़ दिया है।
मैं अपनी क्षुद्रता पर लज्जित हो गया।’
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परिवार के प्रति रुख
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एक व्यक्ति ने बहुत पहले इन पंक्तियों के लेखक को बताया था कि श्रीबाबू के परिवार के एक अत्यंत करीबी सदस्य ने जब पटना में अपना मकान बनवाया तो मुख्य मंत्री ‘घर भोज’ में भी नहीं गये।
श्रीबाबू का कहना था कि मुझे इस बात पर शक है कि उसने अपनी वास्तविक निजी कमाई से ही वह घर बनवाया है।
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एक कहावत है कि ‘‘गलती करना मानव का स्वभाव है।’’
संभव है कि श्रीबाबू ने भी अपने जीवनकाल में गलतियां की होंगी।
पर, जितनी खूबियां ऊपर मैंने गिर्नाइं,उनमें से कोई दो गुण भी आज के जिस नेता में है,उसकी हमें सराहना करनी चाहिए।(ऐसे इक्के -दुक्के नेता हैं भी आज।)
क्योंकि अभी तो लग रहा है कि कुछ अपवादों को छोड़ कर देश-प्रदेश की पूरी राजनीति रसातल की ओर जा रही है।
लगता है कि पूरे कुएं में भांग पड़ चुकी है !
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21 अक्तूबर 21
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