देश की सुरक्षा के प्रति ऐसी लापरवाही ?!!
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मनमोहन सिंह के शासनकाल में वित्त
मंत्रालय ने रक्षा मंत्रालय से पूछा था कि क्या
चीन से खतरा दो साल बाद भी बना रहेगा ?
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उन दिनों प्रणव मुखर्जी वित्त मंत्री थे
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सुरेंद्र किशोर
रक्षा मंत्रालय ने चीन से भारतीय सीमा पर खतरे को देखते हुए सेना विस्तार के लिए 65 हजार करोड़ रुपये की योजना बनाकर वित्त मंत्रालय को भेजा था।
इस पर वित्त मंत्रालय ने रक्षा मंत्रालय से एक अनोखा सवाल पूछा।
उसने लिख कर यह पूछा कि ‘‘क्या चीन से खतरा दो साल बाद भी बना रहेगा ?’’
यह पूछ कर वित्त मंत्रालय ने रक्षा मंत्रालय को लाल झंडी दिखा दी।
दरअसल वित्त मंत्रालय रक्षा मंत्रालय को यह संदेश देना चाह रहा था कि यदि दो साल बाद भी खतरा बना नहीं रहेगा तो इतना अधिक पैसा रक्षा तैयारियों पर खर्च करने की जरूरत ही कहां है ?
जबकि जानकार लोग हमेशा यह कहते रहे हैं कि हमारे देश को चीन से निरंतर खतरा है।
अब भला रक्षा मंत्रालय या कोई अन्य व्यक्ति भी इस सवाल का कोई ऐसा जवाब कैसे दे सकता था जिससे वित्त मंत्रालय संतुष्ट हो जाता ।
वैसे भी उसे संतुष्ट होना होता तो ऐसा सवाल ही क्यों करता ?
क्या कोई बता सकता है कि चीन का अगला कदम क्या होगा ?
यदि तब 65 हजार करोड़ रुपए के सहारे हमने अपनी रक्षा तैयारियां बेहतर कर ली होतीं तो बाद के वर्षों में हमें चीन समय- समय पर आंखें नहीं दिखाता।
आज भी चीन से खतरे के बीच हमारी सेना सीमा पर उलझी हुई है।
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इस आशय की खबर इंडियन एक्सप्रेस के 11 जनवरी, 2012 के अंक में प्रमुखता से छपी थी।
पर, इस खबर पर तब हमारे देश की ससंद में कोई हंगामा नहीं हुआ।
देश की सुरक्षा को लेकर ऐसी खबर यदि किसी भी दूसरे देश के बारे में वहां छपी होती तो वहां के नेतागण उद्वेलित हो जाते।
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मन मोहन सिंह के शासन काल में अरबों रुपए के कितने अधिक घोटाले-महा घोटाले हुए ,यह सबको मालूम है।
पर रक्षा प्रबंधों के लिए पैसों की कमी थी !
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अब जरा हम पीछे मुड़कर देखें !
1961 में रक्षा मंत्रालय ने अत्यंत जरूरी सामग्री के
लिए मात्र एक करोड़ रुपए मांगे थे।
सरकार ने नहीं दिए।
नतीजा देखिए--
देश के प्रमुख पत्रकार मनमोहन शर्मा के अनुसार,
‘‘एक युद्ध संवाददाता के रूप में मैंने चीन के हमले को कवर किया था।
मुझे याद है कि हम युद्ध के लिए बिल्कुल तैयार नहीं थे।
हमारी सेना के पास अस्त्र, शस्त्र की बात छोड़िये,कपड़े तक नहीं थे।
एक दुखद घटना का उल्लेख करूंगा।
1962 के युद्ध के समय अंबाला से 200 सैनिकों को एयर लिफ्ट किया गया था।
उन्होंने सूती कमीजें और निकरें पहन रखी थीं।
उन्हें बोमडीला में एयर ड्राप कर दिया गया
जहां का तापमान माइनस 40 डिग्री था।
वहां पर उन्हें गिराए जाते ही ठंड से सभी बेमौत मर गए।
युद्ध चल रहा था,मगर हमारा जनरल कौल मैदान छोड़कर दिल्ली आ गया था।
ये नेहरू जी के रिश्तेदार थे।
इसलिए उन्हें बख्श दिया गया।
हेन्डरसन जांच रपट आज तक संसद में पेश करने की किसी सरकार में हिम्मत नहीं हुई।’’
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20 अक्तूबर 21
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