पितृ पक्ष-(20 सितंबर-6 अक्तूबर 21)
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वह जमाना कब का गुजर गया जब इस देश के
लोग अपने पिता के पैरों में
स्वर्ग देखते थे !!
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--सुरेंद्र किशोर--
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अपवादों को छोड़ दें तो इन दिनों अधिकतर मामलों
में पुत्र का अपने पिता से
यह कहते हुए समय बीतता है कि
‘‘आपने मेरे लिए क्या किया ?’’
ऐसा कह कर एक तरफ पुत्र अपनी नाकामियों को छिपाता है तो दूसरी ओर कूढ़न में पिता की आयु कम होती जाती है।
पिता के गुजर जाने तक यह सब चलता रहता है।
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पुत्र यह कहना चाहता है कि जो भी उपलब्धि मैंने पाई,वह खुद के बल पर।
और, मेरे जीवन में जो भी कमी रह गई,
वह पिता के असहयोग कारण।
वैसे सच तो यह है कि सिर्फ एक पिता को ही अपने पुत्र की तरक्की से कभी ईष्र्या नहीं होती।
यानी, पिता दिल से चाहता है कि उसका पुत्र उससे भी अधिक तरक्की करे।
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समय बीतते देर नहीं लगती।
तब तक पुत्र भी पिता बन चुका होता है ।
और, उसे भी अपने पुत्र से यही सब सुनना पड़ता है।
इस तरह इतिहास चक्र का पहिया न जाने कब से
घर्र -घर्र करते आगे बढ़ता जा रहा है।
एक बार फिर कह दूं।
इस नियम के कुछ अपवाद भी होते हैं।
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जीवन काल में पिता की उपेक्षा करने वाले उनके निधन के बाद कुछ अधिक ही पितृपक्ष मनाने लगते हैं।
दाढ़ी के बाल बढ़ा लेंगे,
थोड़ा उदास दिखने की कोशिश करेंगे और उनमें से कुछ गया में पिंडदान करने भी चले जाएंगे।
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मेरे फेसबुक वाॅल से
29 सितंबर 21
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