तब और अब
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नेहरू और नेहरू-गांधी परिवार
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सुरेंद्र किशोर
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बात तब की है जब भीमसेन सच्चर पंजाब के मुख्य मंत्री और सी.एम.त्रिवेदी राज्यपाल थे।
तब शिमला पंजाब में ही था।
विजयलक्ष्मी पंडित शिमला के सर्किट हाउस में रहीं ,पर उन्होंने बिल का पेमेंट नहीं किया।
बकाया बिल ढाई हजार रुपए का था।
राज्यपाल ने मुख्य मंत्री से कहा कि आप इसे राज्य सरकार के फुटकर खर्चे में शामिल कर लीजिए।
पर,उन दिनों के नेता आज जैसे नहीं होते थे।
सच्चर साहब ऐसा करने को तैयार नहीं हुए।
इसके बदले मुख्य मंत्री ने प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू से इस संबंध में बात की।
अब इस मामले में नेहरू कर बड़प्पपन देखिए।
उन्होंने सच्चर साहब से कहा कि यह तो बड़ी राशि है।
एक बार में तो नहीं किंतु मैं कुछ किश्तों में इसका भुगतान कर दूंगा।
नेहरू ने अपने निजी खाते से पांच किश्तों में चेक के जरिए उस राशि की भुगतान कर दिया।
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नई पीढ़ी के जिन लोगों को मालूम नहीं हो,उनके लिए बता दूं कि विजयलक्ष्मी पंडित जवाहरलाल नेहरू की सगी बहन थीं।
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यह कहानी भीमसेन सच्चर के दामाद ने लिखी है।
उनके दामाद अन्य कोई नहीं बल्कि मशहूर पत्रकार कुलदीप नैयर थे।
बियोंड द लाइन्स के अलावा भी उनकी कई पुस्तकें काफी चर्चित हुईं।
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अन्य अनेक मामलों में आप भले नेहरू पर दोषारोपण कर सकते हैं,पर रुपए-पैसे के मामले में वे अंत तक ईमानदार बने रहे।
हां,अपनी सरकार में अपने सहकर्मियों के भ्रष्टाचार पर उन्होंने अंकुश नहीं लगाया।
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इसके विपरीत उनके परिजन का हाल जानिए।
इस देश में यदि सचमुच कानून का शासन होता तो अधिकतर परिजन बारी -बारीे से जेल में होते।
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आज भी क्या हाल है ?
नेहरू-गांधी परिवार के दो प्रमुख सदस्य फिलहाल जमानत पर हैं।
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7 जून 22
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