वी.पी.सिंह के जन्म दिन के अवसर पर
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सभी जातियों की महिलाओं को भी विशेष
अवसर देने के पक्षधर थे डा.लोहिया
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काश ! ऐसा मान कर यदि वी.पी.सिंह सरकार ने
आरक्षण लागू किया होता
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आरक्षण का कर्पूरी फार्मला उदाहरण के
रूप में पहले से मौजूद था
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सुरेंद्र किशोर
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‘‘भले मेरी टांग टूट गई,किंतु मैंने गोल कर दिया।’’
प्रधान मंत्री पद से हटने के बाद विश्वनाथ प्रताप सिंह ने यही बात कही थी।
उन्होंने पिछड़ों के लिए आरक्षण का फैसला किया और भाजपा ने उनकी सरकार से समर्थन वापस कर लिया।
एल.के.आडवाणी ने कहा था कि यदि मंडल नहीं होता तो मंदिर आंदोलन भी नहीं होता।
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डा.राम मनोहर लोहिया की आरक्षण नीति का पालन किया होता तो शायद उनकी टांग नहीं टूटती।
मंडल आयोग लागू करने के कारण वी.पी.सिंह न अगड़ों के प्यारे रहे और न ही पिछड़ों के अपने बन सके।
याद रहे कि डा.लोहिया हर जाति व समुदाय की महिलाओं को
भी पिछड़ा ही मानते थे।
यदि आरक्षण होना था तो उसका लाभ महिलाओं को भी मिलना चाहिए था।पहले नहीं तो अब मिले।
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संविधान के अनुच्छेद-340 में यह दर्ज है कि ‘‘सरकार सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछडे़ वर्गों की दशाओं के अन्वेषण और उनकी कठिनाइयों को दूर करने के उपाय करेगी।’’
मंडल आयोग और उससे पहले काका कालेलकर आयोग उसी अनुच्छेद के तहत बना।
इस अनुच्छेद के कार्यान्वयन पर विचार करते समय सरकार को एक काम करना चाहिए था ।
वह आयोग को यह जिम्मेदारी भी सौंपती कि वह समाज में हर जाति की महिलाओं की दशा पर अलग से विचार करता।
यदि मंडल आयोग ने यह काम नहीं किया तो आरक्षण लागू करने से पहले यह काम वी.पी.सिंह सरकार को कर देना चाहिए था।
उसमें तीन प्रतिशत महिलाओं के लिए आरक्षण था।
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वैसे वी.पी.सिंह को याद करने के कुछ अन्य कारण भी हैं।
वी.पी.सिंह ने एक ईमानदार नेता थे।
वे राजनीति में वंशवाद के खिलाफ थे।
उन्होंने व्यापक हित में आरक्षण लागू करते समय
अपनी जाति के हितों का भी ध्यान नहीं रखा।
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उनके बोफोर्स और मंडल आरक्षण के कारण कांग्रेस की ऐसी दुर्दशा हुई कि उसके बाद कभी उसे लोक सभा में बहुमत नहीं मिल सका।
मैं इस आरोप से सहमत नहीं हूं कि वी.पी.सिंह ने अपनी गद्दी बचाने के लिए मंडल आरक्षण लागू कर दिया।
यह इतना बड़ा काम था जिसके हो जाने से हलचल मचने ही वाली थी।मची भी।
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