अब पटना में भी महाराणा प्रताप स्मारक
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सुरेंद्र किशोर
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करीब बीस साल पहले एक बड़ी (भूमिहार) हस्ती ने मुझे बताया था कि ‘‘हमारे घर में महाराणा प्रताप की तस्वीर वाला कलेंडर
टांगने की परंपरा बहुत पुरानी रही है।’’
वे कहना चाहते थे कि महाराणा प्रताप राष्ट्रीय स्वाभिमान के प्रतीक रहे हैं।
मेरा भी यही मानना है कि उन्हें पूरे देश के स्वाभिमान का प्रतीक ही बने रहने दिया जाना चाहिए न कि किसी एक जाति में बांध कर उन्हें देखना चाहिए।
वैसे महाराणा को राजस्थान के राजपूतों से अधिक भीलों ने मदद की थी।
भामाशाह ने युद्ध के लिए उन्हें साधन मुहैया कराए।
पटना के एक ‘अग्रवाल साहब’ ने मुझे बताया था कि हमारे पूर्वज पहले क्षत्रिय ही थे,परिस्थितिवश हम व्यवसाय में आ गए।व्यवसायी बन गए।
पटना में महाराणा प्रताप की मूर्ति लगने जा रही है।
यह राजपूतों सहित सबके लिए गौरव की बात है।
उस समारोह में यदि बिहार के राजस्थानी समाज को आगे रखा जाए तो बेहतर होगा।
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आजादी के तत्काल बाद की सरकार ने इतिहास लेखकों को यह हिदायत दे दी थी कि वे छत्रपति शिवाजी महाराज और महाराणा प्रताप की गौरव गाथा न लिखें ।
उससे हिन्दुत्व की भावना फैलेगी।
इतिहासकारों ने वैसा ही किया।
घास की रोटी खाने की कथा, दंत कथा बन चुकी है,इसलिए लोग महाराणा प्रताप को भुला नहीं सके।
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शिवाजी और महाराणा प्रताप को उनकी समग्रता से इस देश के विद्यार्थियों को दशकों तक दूर रखा गया।
फिर भी इस देश में ‘हिन्दुत्व’ का उभार क्यों हुआ है ?
(हालांकि असल में वह राष्ट्रवाद की भावना है जिसे स्वार्थी तत्व हिन्दुत्व से जोड़ कर उसे बदनाम करते हैं।
चीन सरकार जेहादी उइगर मुसलमानों से लड रही है।क्या वह वहां के बहुसंख्यक ‘हान’ समुदाय के ‘हानत्व’ के पक्ष में होकर लड़ रही है या अपने देश की रक्षा के लिए राष्ट्रवाद के तहत लड़ रही है ?)
वैसा इसलिए हुआ क्योंकि कुछ तथाकथित सेक्युलर दल व बुद्धिजीवी कुछ जेहादी तत्वों के साथ मिलकर जाने -अनजाने मध्ययुग दोहराना चाहते हैं।
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गत 3 मई को ईद के अवसर पर ममता बनर्जी ने एक अल्पसंख्यक भीड़ को संबोधित करते हुए क्यों कहा कि हम ‘काफिर’ नहीं हैं ?
उस भाषण का वीडियो यू टूब पर उपलब्ध है।
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दूसरी ओर,मोहन भागवत कह रहे हैं कि हर मस्जिद के नीचे शिवलिंग तलाशने की कोई जरूरत नहीं।
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4 जून 22
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