मंगलवार, 7 जून 2022

 कानोंकान

सुरेंद्र किशोर

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सिर्फ योग्य और ईमानदार वी.सी.ही बहाल हांे,इस जरूरत को  कौन करेगा पूरा !

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बिहार में उच्च शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए इस बात की सख्त जरूरत महसूस की जाती रही है कि सिर्फ योग्य और ईमानदार कुलपतियों की ही विश्व विद्यालयों में तैनाती हो।

एक हद तक यह काम हो भी रहा है।पर, कई विश्व विद्यालयों में ऐसा नहीं हो रहा है।कुछ जगह तो स्थिति शर्मनाक है।

 मगध विश्व विद्यालय का मामला ताजा है।

उसके कुलपति रहे डा.राजेंद्र प्रसाद इन दिनों भारी विवादों में हैं।

वैसे यह इस तरह का इकलौता मामला नहीं है।

करीब एक दशक पहले तत्कालीन चांसलर यानी राज्यपाल से एक कांग्रेस विधायक ने सार्वजनिक रूप से यह सवाल कर दिया था कि 

‘‘आज कल आपके यहां वी.सी.का रेट क्या चल रहा है ?’’

ऐसे हालात में केंद्र सरकार और राज्य सरकार को मिल बैठकर इस समस्या का जल्द से जल्द समाधान कर ही लेना चाहिए।क्योंकि समस्या नई पीढ़ियोें की बर्बादी का है।

यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि किसी दागदार व्यक्ति को बिहार के विश्व विद्यालय का वी.सी.न बनने दिया जाए।

इसके लिए वी.सी.की बहाली का तरीका बदलने की जरूरत हो तो वह काम भी हो ही जाना चााहिए।क्योंकि बिहार की उच्च शिक्षा को बचाने का काम किसी अन्य काम से कम महत्वपूर्ण नहीं है।

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अन्य राज्यों में भी विवाद

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पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु सरकारें वी.सी.बहाल करने के राज्यपाल के अधिकार को समाप्त करने की तैयारी में है।

 केरल के गवर्नर ने तो खुद सी.पी.एम. सरकार से कहा है कि वह हमें चांसलर की जिम्मेदारी से मुक्त कर दे।

   पश्चिम बंगाल के मंत्रिमंडल और वहां के राज्यपाल में इस मामले में भी तनातनी चलती रहती है। 

 चांसलर पद से मुक्त करने के लिए एक राज्य ने विधेयक भी तैयार कर लिया है।

ये बातें तो वैसे राज्यांे के बारे में हैं जहां गैर राजग दलों की सरकारें हैं। 

वहां की इस समस्या का समाधान कठिन लगता है।

किंतु बिहार और केंद्र में तो राजग की ही सरकारंे हंै।

दोनों पक्ष चाहें तो बिहार के विश्व विद्यालयों की आर्थिक व शैक्षणिक दुर्दशाओं  का हल मिल बैठकर खोजा जा सकता है। 

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तेलंगाना के मुख्य मंत्री का प्रचार

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तेलंगाना के मुख्य मंत्री का इन दिनों पूरे देश में प्रचार चल रहा है।

अच्छी बात है।चलना ही चाहिए।उन्होंने अपने राज्य में कुछ ऐसे काम किए भी हंै जिनका प्रचार होना चाहिए।

उन कामों से न सिर्फ उन्हेें राजनीतिक लाभ मिला है,बल्कि आम जनता को भी फायदा हुआ है।

पर,उनका मौजूदा प्रचार का उद्देश्य सीमित नहीं है।

संकेत बता रहे हैं कि के.सी.आर.की नजर 2024 के लोक सभा चुनाव पर है।

उससे भी बड़ा लक्ष्य है।

यानी प्रधान मंत्री की कुर्सी पर उनकी नजर है।

लोकतंत्र में यह चलता ही है।

पर सवाल है कि प्रधान मंत्री पद के लिए  यदि अधिक उम्मीदवार होंगे तो उसका राजनीतिक व चुनावी लाभ किसे मिेलगा ?

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 ब्यायलर विस्फोट की घटनाएं

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पिछले साल बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में एक कारखाने का ब्यायलर

में विस्फोट हो गया।सात लोगों की जानें चली गईं।

उत्तर प्रदेश के हापुड़ के एक कारखाने में इसी शनिवार को ब्यायलर में विस्फोट हुआ।उसमें 12 लोगों की जानें चली गईं।

इस तरह की घटनाएं होती रहती हैं।ऐसी घटनाओं में आम तौर पर मजदूरों की ही जानें जाती हैं।

ब्यायलर में विस्फोट के अन्य कारण भी हो सकते हैं।किंतु मुख्य कारण यह होता है कि आम तौर पर उसके रख-रखाव में लापारवाही बरती जाती है।ऐसी घटनाओं के जिम्मेदार लोगों को सबक सिखाने वाली कोई सजा भी नहीं मिल पाती है।

मिलती है तो पता नहीं चलता।सरकार की तरफ से कारखानों के निरीक्षण के लिए तैनात अफसर अपनी भूमिका ठीक ढंग से निभाते हैं ?

मुजफ्फरपुर में गत साल हुई विस्फोट की घटना के लिए कौन जिम्मेदार था ?

या कोई जिम्मेदार नहंीं था ?

कोई जिम्मेदार था तो उसे क्यों सजा मिली ?

क्या मजदूरंो की जान की कोई कीमत नहीं ? 


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भूली बिसरी याद

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सोनिया गांधी ने प्रधान मंत्री पद क्यों स्वीकार नहीं किया,यह जानने के लिए पूर्व प्रधान मंत्री वी.पी.सिंह सोनिया जी से मिलने गए थे।

दोनों के बीच क्या बातें हुईं ?

उसका खुलासा वी.पी.सिंह ने अपने जीवनी लेखक के सामने किया है।

  वे बातें ‘‘मंजिल से ज्यादा सफर’’नामक पुस्तक में दर्ज है।

वी.पी.सिंह बताते हैं.‘‘सोनिया जी ने इस संबंध में दो-तीन बातें कहीं।

उन्होंने कहा कि अगर मैं प्रधान मंत्री पद स्वीकार कर लेती हूं तो बी.जे.पी.को बड़ा भारी हथियार मिल जाएगा।

उससे मेरी पार्टी और मेरी सरकार हमेशा परेशान रहेगी।

भाजपा विदेशी मूल का मुद्दा उठाती रहेगी।

तो मेरा कर्तव्य है कि मैं कांग्रेस और सरकार को इससे बचाऊं।

यह भी हमें सोचना होगा कि ये यानी मेरा प्रधान मंत्री बनना देश के मिजाज के माफिक होगा भी या नहीं ।’’

खैर, यह सच है कि पद अस्वीकार करके सोनिया जी ने उस समय तो पार्टी व सरकार को आशंकित फजीहत से बचा लिया।

किंतु उनके निदेशन में चलने वाली मनमोहन सिंह सरकार ने ऐसा क्या कर दिया कि सन 2014 के लोक सभा चुनाव में  कांगे्रस की सदस्य संख्या 50 के आसपास आकर अटक गई ?

उन कारणों की न तो अब तक पहचान हुई है और न ही उसमें सुधार का कोई रास्ता कांग्रेस को मिला है।

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और अंत में

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सरस्वती सम्मान प्राप्त कन्नड लेखक एस.एल.भैरप्पा ने कहा है कि विद्यालयों के टेक्स्ट बुक्स में सिर्फ तथ्य होने चाहिए।

खास विचारधारा के प्रचार के लिए तथ्यों के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए।

उन्होंने यह भी कहा है कि मातृभाषा में ही पढ़ाई होनी चाहिए। 

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प्रभात खबर

पटना 

6 जून 22   



   

 


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