कानोंकान
सुरेंद्र किशोर
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उच्च सदन के लिए एक नेता को राजनीतिक दल एक ही अवसर दें
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उच्च सदन यानी राज्य सभा या विधान परिषद में जाने का किसी राजनीतिक कार्यकर्ता या नेता को सिर्फ एक ही अवसर मिलना चाहिए।
इसके कुछ अपवाद हो सकते हैं।
यदि ऐसा हुआ तो इससे अधिक से अधिक नेताओं और कार्यकर्ताओं को अवसर मिल पाएंगे।
इससे पार्टी के प्रति नए लोगों का आकर्षण व जुड़ाव बढ़ेगा।
दलों में कार्यकर्ताओं के लिए वेतन या गुजारा-भत्ता का कोई प्रावधान नहीं होता।
कम्युनिस्ट दलों में इसका थोड़ा- बहुत प्रावधान रहता था।
अब भी संभव है कि जहां -तहां कुछ होगा।पर,अब तो खुद कम्युनिस्ट दलों के साधन सूख रहे हैं।
अधिक से अधिक नेता या कार्यकर्ता बारी -बारी से उच्च सदन में जाएंगे तो रिटायर होने के बाद उनके लिए पेंशन की व्यवस्था होती जाएगी।
नतीजतन बाद में भी उनके सामने आर्थिक अनिश्चितता नहीं रहेगी।
अभी तो जो कार्यकर्ता घर से अमीर नहीं हैं,उनके लिए अपनी आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति कठिन है।
यदि कार्यकर्ता अच्छी मंशा वाला है और ईमानदार है तो वह सक्रिय राजनीति में टिक नहीं पाता।जो ‘व्यावहारिक’ हैं,वे इधर-उधर से जुगाड़ कर लेते हैं।
अब सांसद-विधायक फंड की ठेकेदारी भी एक उपाय है।
पर यह सब सबके लिए संभव भी नहीं है।
कभी सी.पी.आई.ने एक ही बार भेजने के नियम का पालन किया था।
पर बाद में उसने भी इस नियम को शिथिल कर दिया था।
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सेवांत लाभ में दिक्कतें
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बिहार के सरकारी कर्मचारियों को सेवांत लाभ हासिल करने में आम तौर पर काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
इसलिए भी कि वर्षों तक बगल की कुर्सी पर बैठे सेवारत कर्मचारी का रवैया भी अपने सेवानिवृत सहकर्मी के प्रति अचानक बदल जाता है।
अपवादों की बात और है।
यह आम चर्चा है कि सेवांत लाभ हासिल करने के लिए नजराना-शुकराना अनिवार्य है।
इससे मुक्ति पाना असंभव नहीं तो कठिन जरूर है।
कई मामलों में तो सेवानिवृत सेवक भी उस सेवा का लाभ उठाता रहा था जब वह सेवारत था।
फिर उसे मुक्ति कैसे मिले ?
सरकार चाहे तो मुक्ति संभव है।
क्यों न रिटायर होने के तीन माह पहले ही कर्मचारियों के नाम सेवांत लाभ की राशियां तय हो जाएं ?
छह माह पहले ही उसकी प्रक्रिया शुरू हो जाए।
इस संबंध में नियम बने।
उसका उलंघन करने वालों के लिए कड़ी सजा का प्रावधान हो।
वेतन स्थगन,वार्षिक बढ़ोत्तरी पर रोक और निलंबन जैसी सजाएं अब नाकाफी साबित हो चुकी हंै।कुछ और सोचना होगा।
यदि किसी के लिए सेवांत लाभ तय करने व देने में कठिनाई हो तो
रिटायरमेंट के छह महीने पहले ही निचले स्तर का पदाधिकारी अपने ऊपर के पदाधिकारी को उसकी लिखित सूचना दे।
अगले छह महीने में सेवानिवृत कर्मचारियों से, उनके खिलाफ आए एतराजों पर, सफाई ले ली जाए।
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भूमि अधिग्रहण और मुआवजा
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बिहार में सड़कों के विकास की अनेकानेक योजनाओं पर काम चल रहा है।
इसके लिए जमीन का अधिग्रहण हो रहा है।
सड़कांे के अलावा भी कुछ अन्य योजनाओं के लिए भी जमीन चाहिए।
पर,जमीन अधिग्रहण में एक खास तरह की समस्या भी आ रही है।
राज्य में जारी आम विकास के कारण अनेक लोगों के पास पैसे आ रहे हैं।
वे भी अपने लिए जमीन खरीद रहे हैं।इससे जमीन की कीमत बढ़ रही है।
इस तरह जमीन बेचने वालों के समक्ष दो विकल्प हंै।
सरकार ने हर इलाके के लिए सर्किल दर तय कर रखी है।
वह उसी को ध्यान में रखते हुए कुछ बढ़ाकर मुआवजा देती है।पर निजी खरीददार को बाजार मूल्य पर जमीन खरीदनी पड़ती है।
जहां छोटे -बड़े बाजार या शहर विकसित हो रहे हैं, वहां की बाजार दर बहुत अधिक है।कई-कई गुणा अधिक।
सर्किल रेट उसके सामने कुछ भी नहीं।
सरकार यदि विकास के लिए अधिग्रहण करना चाहती है, तो भूमि स्वामी उसे देने को मजबूर हो जाता है।
यदि वह निजी खरीदार को बेचता तो उसे लाखों-लाख रुपए अधिक मिलते।जब भूमि स्वामी कम पैसे में सरकार को बेचने को मजबूर होता है तो उसमें असंतोष बढ़ता है।
इस असंतोष को दूर करने के लिए शासन को कुछ उपाय करना चाहिए।
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भूली-बिसरी याद
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बात अधिक पुरानी नहीं है।पर, दिलचस्प है।
नब्बे के दशक में बिहार के प्रमुख सी.पी.आई. नेता दिवंगत चतुरानन मिश्र केंद्र सरकार में कृषि मंत्री थे।
उन्होंने एक जगह लिखा है,
‘‘मेरे पूरे मंत्रित्व काल में कामरेड ए.के. राय ही एकमात्र व्यक्ति थे जिन्होंने आकर पूछा कि यह तो नया काम है, आप कैसा महसूस कर रहे है ?
बाकी साथी तो कुछ काम-धंधा के लिए ही आते थे।
जब मैंने ए.के. राय को बताया कि यहां बैठकर पूंजीवाद का विकास कर रहा हूं तो वे आश्चर्य में पड़ गए।
उन्होंने पूछा,तब क्यों यहां हैं आप ?
मैंने कहा कि पूंजीवाद में विकास कार्यों में भी दर्द अवश्यम्भावी है।
मैं यही कोशिश कर रहा हूं कि न्यूनत्तम दर्द हो।’’
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और अंत में
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सुप्रीम कोर्ट ने 3 फरवरी, 2022 को कहा था कि
‘मनी लाउंडरिंग’ का अपराध हत्या से भी अधिक
जघन्य है।
याद रहे कि प्रिवेंशन आॅफ मनी लाउंडरिंग एक्ट के कुछ कड़े प्रावधानों को समाप्त करने की सुप्रीम कोर्ट से गुहार की गई थी।
अब जरा याद कर लें कि इन दिनों इस देश के कितने और किन -किन बडे़ नेताओं के खिलाफ इस कानून के तहत मुकदमे चल रहे हैं।
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13 जून 22
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