गुरुवार, 6 जुलाई 2023

 अपवादों को छोड़कर !

इस देश की राजनीति का अधिकांश त्रिदोष-ग्रस्त हो चुका है।

यदि इस त्रिदोष का समय रहते इलाज नहीं हुआ तो एक दिन लोकतंत्र 

का ही अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।

आज के लोगों के वंशजों का भविष्य भी भारी खतरे में पड़ जाएगा।

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1.-भीषण भ्रष्टाचार

2.-बेेशर्म परिवारवाद-वंशवाद

3.-वोट के लिए जेहादियों का परोक्ष-प्रत्यक्ष समर्थन

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ऐसी ही स्थिति में किसी देश में तानाशाह पैदा होता है या गृह युद्ध होता है।

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इन दोनों आशंकाओं से इस देश को आखिर कौन बचाएगा ?

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एक पुराना दृश्य

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कुछ दशक पहलंे बिहार के एक बड़े नेता इस कारण ‘शहीद’ हो गए क्योंकि  उन्होंने अपने पुत्र को  

एम.एल.सी.नहीं बनाने की जिद नहीं छोड़ी।

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विपरीत दृश्य

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उत्तर प्रदेश के दो पूर्व मंत्री व प्रमुख नेता चाहते हुए भी भाजपा में इसलिए नहीं 

शामिल हो सके क्योंकि भाजपा ने उनसे कहा कि टिकट या तो पिता को मिलेगा या पुत्र को।

पर, उन्हें तो दोनों को टिकट चाहिए।

बिहार नेता की तरह पुत्र के कारण वे ‘शहीद’ नहीं होना चाहते थे।

परिवारवाद-वंशवाद  इस तरह प्रभावित कर रहा है राजनीति की दशा-दिशा को।

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आंध्र प्रदेश के कभी के महाबली नेता व मुख्य मंत्री रहे एन.टी.रामाराव अपनी पत्नी लक्ष्मी पार्वती को अपनी पार्टी का उत्तराधिकारी बनाना चाहते थे।

 किंतु उनका दामाद चंद्रबाबू नायडु ने उनकी पूरी पार्टी का ‘अपहरण’ कर लिया। क्योंकि पार्टी व राज्य के अधिकतर लोग इस मामले में एन.टी.आर.के खिलाफ हो चुके थे।यानी पत्नी वाद ने एन.टी.आर.की राजनीति बर्बाद कर दी।

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परिवारवाद पर आए दिन खूब भ्रम फैलाया जाता है।

शरद पवार ने अपनी पुत्री को अपना उत्तराधिकारी बनाने के चक्कर में अपने अधिकतर विधायकों को खो दिया।

इसे वंशवाद -परिवारवाद कहते हैं।

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कांग्रेस सहित ऐसे कई दल हैं जिन्हें कोई न कोई परिवार कंट्रोल करता हैै।

‘‘पार्टी में परिवार’’ और 

‘‘परिवार में पार्टी’’ 

का अंतर समझिए। 

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भाजपा ने गत उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव के साथ एक नियम बनाया--एक परिवार एक ही टिकट।

हालंाकि यह नियम भी क्यों ?

टिकट का आधार परिवार के बदले पार्टी के लिए कार्यकर्ता का योगदान बने।

हां,यदि किसी नेता के परिवार का सदस्य सचमुच अच्छा कार्यकर्ता रहा है तो उसे वंचित भी नहीं किया जाना चाहिए। 

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दूसरी तरफ अतिवाद

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दूसरी ओर, एक राजनीतिक दल को कंट्रोल करने वाले एक परिवार के तीन दर्जन से अधिक सदस्य किसी न किसी पद पर थे जब वह दल सत्ता में था।

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किसीे दल के सुप्रीमो के परिवार का कोई सदस्य यदि किसी भ्रष्टाचार में लिप्त हो जाए तो उसे बचाने के लिए सुप्रीमो को सत्ता विरोध की अपनी पिछली लाइन को नरम कर देना पड़ता है।

ताजा उदाहरण मायावती और के.चंद्रशेखर राव का हैं।

परिवारवाद की यह कमजोरी है।

नवीन पटनायक इस मामले में सौभाग्यशाली हैं।

उन्होंने अपनी बहन से कहा था कि अमेरिका से आकर हमारे काम में हाथ बंटाइए।

बहन ने साफ -साफ यह कह दिया कि राजनीति में हमारी कोई रूचि नहीं है।

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त्रिदोष की कहानियां अनंत हैं।

लिखने-पढ़ने वालों का यह कत्र्तव्य बनता है कि खतरा उठाकर भी ऐसी कहानियां लिखें।

लोगों को समय रहते हकीकत से आगाह करें।

अन्यथा,

उनके आने वाले वंशजों की धन,धर्म और धरती खतरे में पड़ जाएगी।

क्योंकि इन मुद्दों पर भारी कंफ्यूजन फैलाने वाले निहितस्वार्थी नेताआंे व बुद्धिजीवियों की बड़ी जमात आज अत्यंत सक्रिय है।

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सुरेंद्र किशोर

6 जुलाई 23


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