कहीं देर न हो जाए !!
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सुरेंद्र किशोर
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पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टी.एस.कृष्णमूर्ति ने लिखा है (हिन्दुस्तान-20 जुलाई 23)कि
‘‘चुनाव के तुरंत बाद या नजीदीकी दिनों में पार्टियों में होने वाली टूट वास्तव में हमारी राजनीति का एक दुखद पहलू है।
यह हमें परिपक्व लोकतंत्रों की सूची से बाहर कर देता है।’’
कृष्णमूर्ति साहब,अपवादों को छोड़कर आज इस देश की राजनीति ने व्यापार, यूं कहें कि ‘पारिवारिक उद्योग’ का स्वरूप ग्रहण कर लिया है।
उद्योग-व्यापार जगत में क्या होता है ?
होता यह है कि जब किसी कंपनी की तरक्की होने लगती है तो उसके शेयर का भाव बढ़ जाता है।
खरीदार उसी ओर दौड़ पड़ते हैं जिस तरह गुड़ की ओर चिटियां।
आम तौर पर चुनाव से ठीक पहले राजनीति के मौसमी पक्षियों का रुख उसी दल की ओर होता है जिस दल
का भाव मतदातागण बढ़ा दिए होते हैं।
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दरअसल इसके साथ -साथ देश में दो-तीन अन्य भयंकर बुराइयों के बढ़ते जाने के कारण इस देश का लोकतंत्र भारी खतरे में है।वे बुराइयां हैं भीषण भ्रष्टाचार और व्यापक जेहादी हिंसा का मड़राता खतरा।भ्रष्टाचार से जेहादियों के हाथ मजबूत होते हैं।
सब भारत और इंडिया भक्त लोग मिलजुल कर इन खतरों से देश को बचाइए अन्यथा आप जाने-अनजाने तानाशाही को बुलावा दे रहे हैं।
तरह -तरह के खतरे हमारे दरवाजों पर लगातार दस्तक दे रहे हैं ,पर अधिकतर लोग ‘स्वार्थ की नींद’ में डूबे हुए हैं।
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20 जुलाई 23
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