बुधवार, 26 जुलाई 2023

  जाली कागजात के आधार पर ताज महल और लाल किले तक को बेच देने वाला नटवर लाल एक बार खुद ठगी का शिकार बन गया था

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सुरेंद्र किशोर

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करीब चार सौ लोगों को बारी -बारी से ठगने वाला नटवर लाल सत्तर के दशक में खुद ठगी का शिकार बन गया था।

  दशकों के उसके आपराधिक जीवन में उसने ताज महल और लाल किले तक को बेच डाला था।

संसद भवन को बेचने के लिए तो उसने राष्ट्रपति डा.राजेंद्र प्रसाद का नकली हस्ताक्षर कर दिया था।

  यह संयोग ही था कि डा.प्रसाद और नटवरलाल दोनों बिहार के अविभाजित सारण जिले के जिरादेई के मूल निवासी थे।अब जिरादेई सिवान जिले में है।

राजेंद्र बाबू के छात्र जीवन में एक परीक्षक ने उनकी उत्तर पुस्तिका में लिख दिया था कि परीक्षार्थी यानी राजेन्द्र प्रसाद परीक्षक से भी अधिक ज्ञानवान  है।

  उधर नटवरलाल शब्द, संज्ञा से सर्वनाम बन चुका है।

 मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव उर्फ नटवर लाल के जयपुर में ठगे जाने की कहानी शकील अख्तर ने लिखी है।

  सन 1970 में नटवरलाल जयपुर केंद्रीय जेल का ‘मेहमान’ था।

उस समय उसकी उम्र 55 साल थी।

नटवर जब जेल लाया गया,उस समय उसके पास दो महंगे सूट थे।

जेल नियम के अनुसार दोनों सूट जेल में जमा कर लिए गए।

एक दिन एक जेल अधिकारी नटवर लाल का शानदार बंद गले का सूट

पहनकर नटवर से मिलने पहुंच गया।

अपना सूट दूसरे के शरीर पर देखकर नटवर चैंका।

उसने कहा कि यह तो मेरा सूट है,आपने कैसे पहन लिया ?

यह तो जेल में जमा रहना चाहिए।

जेल अधिकारी ने कहा कि आप तो इस सूट को वापस ले चुके हैं।

आपने हमारे रजिस्टर में इसे वापस करने के दस्तखत किये हैं।

नटवर बड़ा भन्नाया।

उसने सख्ती से कहा कि मैंने तो इसे वापस लिया ही नहीं।

जेल अधिकारी ने बड़े इत्मीनान से उसे जेल का  इंट्री रजिस्टर लाकर दिखा दिया।

  वहां वाकई दोनों सूट वापस लेने के लिए नटवरलाल के दस्तखत मौजूद थे।

एकदम असली दस्तखत।

ठग सम्राट बुरी तरह चैंेक गया।

यह नटवर की कल्पना से परे था।

जयपुर के उस जेल अफसर ने नटवरलाल को कांगजों में ही उसे मात दे दी थी।

जेल अफसर ने इस घटना का मजा लेते हुए बताया कि हमारे जेल में आने वाले हर कैदी की एंट्री के लिए एक रजिस्टर होता है।

उसमें हम उससे संबंधित जानकारियां दर्ज करते हैं।

उसी में कैदी के साथ जो सामान होता है,उसे जमा करके लिखा जाता है।

 उसमें दो सूट जमा थे।

एक बार पेशी की तारीख पर नटवर लाल बाहर गया था।

जाते समय वह अपना एक सूट ले गया।

 उस सूट की प्राप्ति के दस्तखत उसने किए थे।

 ठीक उसके नीचे उसका दूसरा सूट दर्ज था।

जेल अधिकारी ने कहा कि मैंने किया यह कि नटवर लाल ने जो एक सूट की प्राप्ति के दस्तखत किए थे उस दस्तखत के आगे एक कोष्ठक बना दिया।

अब वह दस्तखत दोनों सूटों की प्राप्ति के लिए हो गया।

पहली नजर में सीधे-सादे सामान्य से दिखने वाले नटवरलाल को जयपुर जेल में कड़े बंदोबस्त के साथ रखा गया था।

  जेलों से अक्सर भाग जाने का उसका इतिहास था।

इसलिए नटवर को फांसी की कोठरी नंबर दो में रखा गया था।

 पर,यह नटवर को मंजूर नहीं था।

उसने जयपुर के सेशन कोर्ट में अपील की।उसकी अपील अलग कोठरी में बंद किए जाने के खिलाफ थी।

वकालत की पढ़ाई कर चुका नटवर ने कहा कि उसे ‘कंडम सेल’ में रखा गया है,जो नियम के खिलाफ है।

जेल अधिकारी इस अपील के बाद परेशानी में पड़ गये।

जेल अधिकारी चाहते थे कि उसकी अपील मंजूर न हो।अन्यथा उसके लिए विशेष सुरक्षा की व्यवस्था करनी पड़ेगी।

 क्योंकि नटवर लाल बेहद शातिर था।वह बात करने में उस्ताद था।

किसी को भी वह जल्दी ही प्रभावित कर लेता था।

जेल शासन ने कोर्ट में ऐसी बहस की कि नटवर की अपील खारिज हो गयी।

नटवर लाल की कहानी अद्भुत है।

अब तो वह दंत कथाओं का पात्र बन चुका है।

सन 1912 में जन्मे नटवरलाल के बारे में नटवर लाल के भाई ने सन 2009 में कोर्ट में यह हलफनामा दिया कि नटवर लाल की मृत्यु 13 साल पहले हो चुकी है।

  याद रहे कि अदालत के आदेश से पुलिस 24 जून 1996 को नटवर लाल को कानपुर जेल से इलाज के लिए दिल्ली ले गई।लौटते समय यानी 25 जून को दिल्ली स्टेशन पर से संतरियों को चकमा देकर नटवरलाल फरार हो गया।उस समय उसकी उम्र 84 साल थी।उसके बाद वह कहीं नहीं देखा गया।

वैसे तो नटवर लाल ने वाराणसी से ठगी की शुरूआत की थी।पर,उसके खिलाफ आठ राज्यों में 100 मुकदमे दायर हुए थे।

उसके 52 छद्म नाम थे।

उसे कुल मिलाकर 113 वर्षों की सजा हो चुकी थी।

उसके खिलाफ सबसे चर्चित मामला

दिल्ली की कुछ मश्हूर इमारतों को बेच देने का था।

उसने अफसर बन कर विदेशियों को  ताज महल,लाल किला,राष्ट्रपति भवन और संसद भवन तक को बेच दिया।उसके लिए उसने जाली कागजात तैयार कर लिए थे।

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19 जुलाई 23

   


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