कैसे चलेगा वह देश जहां बेल
नियम और जेल अपवाद हो !
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सुरेंद्र किशोर
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सुप्रीम कोर्ट के दिवंगत जस्टिस वी.आर.कृष्णा अय्यर ने कहा था कि ‘‘बेल नियम होना चाहिए और जेल अपवाद।’’
तिस्ता सितलवाड और ब्रजभूषण शरण सिंह को मिली जमानत के बाद मुझे कृष्णा अय्यर की वह मशहूर उक्ति याद आ गयी।
न्यायपालिका के भीष्म पितामह कहे जाने वाले कृष्णा अय्यर की उक्ति का अदालतें पालन कर रही हंै।
याद रहे कि जज बनने से पहले कृष्णा अय्यर सन 1957 में गठित ई.एम.एस.नम्बूदरीपाद की कम्युनिस्ट सरकार के मंत्री थे।
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यह संयोग नहीं है ।
सन 2020 में आई.पी.सी.मामलों में इस देश में 59 प्रतिशत आरोपितों को अदालतों से सजा हुई थी।
पर सन 2021 में सजा की दर में दो प्रतिशत की कमी आ गयी।
सब जानते हैं कि बेल पर बाहर आने के बाद अधिकतर प्रभावशाली आरोपित कौन -कौन से जतन करते हैं।
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जापान में सजा की दर 99 प्रतिशत है और अमेरिका में 93 प्रतिशत।
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सन 2001 में वल्र्ड ट्रेंड सेंटर पर आतंकी हमले के बाद अमेरिका में पहले से मौजूद संबंधित कानून को और भी कड़ा बनाया गया।
पर,उसके विपरीत सन 2004 में सत्ता में आने के बाद मनमोहन सरकार ने आतंकवाद विरोधी कानून को ढीला कर दिया जबकि भारत में भी आतंकवादी घटनाओं की बाढ़ आई हुई थी।
नाइन एलेवेन की घटना के बाद पटना की एक बड़ी सेक्युलर हस्ती ने एक अखबार में लेख लिखा कि हमला यहूदियों ने किया था जबकि ओसामा बिन लादेन ने कहा कि हमारे आदमियों ने हमला किया है।मुद्दई सुस्त,गवाह चुस्त।
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नेहरू युग में विदेश सेवा में आए एक रिटायर अफसर को टी.वी.पर एक बार यह बोलते हुए मैंने सुना था कि हमारे देश की सीमाआंे पर यदि हम बाड़ लगाएंगे तो दुनिया में भारत की छवि खराब होगी।तब उन्हें यही सिखाया गया था।
उस पर टी.वी.डिबेट में शामिल शिवसेना के सांसद ने उनसे सवाल किया--आप भारत के विदेश सचिव थे या बंाग्ला देश के ?
ध्यान दीजिए आज घुसपैठियों की बाढ़ के कारण भारत में कैसी -कैसी विपत्तियां आ रही हैं।
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जस्टिस संतोष कुमार हेगडे ने कहा था कि इस देश के इस परंपरागत ‘‘न्याय शास्त्र’’ में परिवर्तन किया जाना चाहिए कि
‘‘भले 99 दोषी छूट जाएं किंतु एक भी निर्दोष को
सजा न मिले।’’
बदली हुई परिस्थिति में अब होना चह चाहिए
कि ‘‘कोई भी दोषी सजा से बच न पाए, भले इस सिलसिले में दो -चार निर्दोष फंस जाएं।’’
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आज हमारे यहां बड़ी -बड़ी शक्तियों सक्रिय हैं जो इस बात की कोशिश करती रहती है कि हमारे यहां सुशासन न आए।
भ्रष्टाचार न रुके।
चाहे सीमाओं की रक्षा का सवाल हो या शिक्षण संस्थाओं में शिक्षकों की उपस्थिति सुनिश्चित कराने का प्रयास हो।
परीक्षा में चोरी रोकने पर तो यहां राज्य सरकार (नब्बे के दशक की उत्तर प्रदेश सरकार इसका उदाहरण है।)का ही पतन तक हो जाता है।
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और अंत में
एक स्कूली शिक्षक ने आठवीं कक्षा के छात्र से पूछा--
लोक सभा -विधान सभा के बारे में तुम कितना जानते हो ?
छात्र--ये वैसी जगहें हैं जहां बैठक शुरू होने के तुरंत बाद भारी हंगामा कर देने की मजबूरी होती है ताकि बैठक स्थगित हो जाए।
हम तो आपके क्लास रूम में कदम रखते ही शांत हो जाते हैं।
पर,लोक सभा -विधान सभा के हेड मास्टर लोगों (यानी स्पीकर)को भी वहां कोई कुछ नहीं समझता।
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21 जुलाई 23
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