शनिवार, 14 अक्टूबर 2023

 यदाकदा

सुरेंद्र किशोर

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अतिक्रमणकारियों के खिलाफ सख्त रुख से राहत की उम्मीद

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पटना में इन दिनों मुख्य सड़कों पर से अतिक्रमण हटाने का अभियान चल रहा है।

यह अभियान पहले भी चले और विफल हुए।

संकेत मिल रहे हैं कि इस बार का अभियान सख्त है।

हठीले अतिक्रमणकारियों के खिलाफ पहले की अपेक्षा इस बार अधिक कड़ी कार्रवाई हो रही है।वैसा प्रावधान भी किया गया है।

फिर से अतिक्रमण न हो,इस बार यह भी सुनिश्चित किया जा रहा है।

मुख्य मार्ग पर भारी अतिक्रमण के कारण यातायात दुरुह हो चुका है।

अतिक्रमण के कारण घायलों ,गंभीर रूप से बीमार, गर्भवती महिलाओं और परीक्षार्थियों आदि को अपार असुविधाओं का सामना करना पड़ता है।

अतिक्रमणकारी शक्तियों के बारे में प्रशासन को भी मालूम रहता है।

इसलिए सख्ती होने पर उनके होश ठिकाने आ जाएंगे,ऐसी उम्मीद है।

प्रादेशिक राजधानी में यातायात सुगम हो जाए तो दूसरे राज्यों से यहां यदाकदा आने वालोें के दिल-ओ-दिमाग में बिहार की छवि बेहतर बनेगी।

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जिला मुख्यालयों में समस्या

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 अतिक्रमण की समस्या जिला मुख्यालय तथा छोटे शहर भी झेल रहे हैं।

अतिक्रमणकारियों और उनके संरक्षकों के खिलाफ सख्त कार्रवाई जिला मुख्यालयों में भी होनी चाहिए।

बिहार में हाल के वर्षों में सड़कों का बड़े पैमाने पर निर्माण हुआ है। कई पतली सड़कें चैड़ी भी हुई हैं।

पर,जैसे ही सड़कें चैड़ी होती हैं,उन पर अतिक्रमणकारी हावी हो जाते हैं।

अतिक्रमण कराने से कई सरकारी व गैर सरकारी लोगों की ऊपरी आय बढ़ जाती है।यह सब ढीले-ढाले शासन के लक्षण हैं।

यह अच्छी बात है कि पटना में वैसे कानून तोड़कों के खिलाफ वास्तविक सख्ती बढ़ रही है।उस सख्ती का विस्तार जिला स्तरों पर भी हो।

उससे जनता राहत महसूस करेगी।

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अंडरग्राउंड पार्किंग 

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नगरों की मुख्य सड़कों पर स्थित मार्केट काम्प्लेक्स में आम तौर पर भूतल पार्किंग की व्यवस्था नहीं है।

मार्केट काम्प्लेक्स का नक्शा तो पार्किंग के साथ ही पास होता है।पर,काम्पेक्स के मालिक संबंधित अफसरों को प्रभावित करके उसमें भी दुकान खोलवा देते हैं।

यदि शासन इस अनियमितता को दूर करे तो यातायात सुगम करने में सुविधा होगी।

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आर.टी.आई.कानून 

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यह खबर चैंकाती है।

देश के सूचना आयोगों के पास  3 लाख 21 हजार 537 अपील और शिकायतें लंबित हंै।निपटारे की गति धीमी हैं।इस बीच शिकायतों की संख्या बढ़ती जा रही हैं।

बड़ी उम्मीदों के साथ सन 2005 में सूचना अधिकार कानून बनाया गया था।

इसे मनमोहन सिंह सरकार की उपलब्धि मानी गयी।

शुरुआती वर्षों में इस मामले में अच्छे काम हुए भी।

पर,कई कारणों से बाद में शिथिलता आने लगी।

सूचना अधिकार कानून का जितना अधिक उपयोग होगा,भ्रष्ट और काहिल शासन पर उतनी ही अधिक लगाम लगेगी।जनता को राहत मिलेगी।

 इस दिशा में शिथिलता जनता के लिए नुकसानदेह है।

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़1998 के निर्णय पर विचार

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सन 1998 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सांसदों पर सदन के भीतर कोई भी भाषण या वोट देने के लिए आपराधिक मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।

संविधान के अनुच्छेद-105 ने इसकी छूट दे दी है।

पर,अब सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर विचार कर रहा है कि क्या कोई सांसद रिश्वत लेकर सदन में किसी के पक्ष में वोट दे तो उसे भी छूट मिलनी चाहिए ?

याद रहे कि नब्बे के दशक में यह आरोप लगा था कि कुछ प्रतिपक्षी सांसदों ने रिश्वत लेकर तत्कालीन सरकार के पक्ष में मतदान किया जिससे वह सरकार गिरने से बच गयी।

रिश्वत के पैसे उन सांसदों के बैंक खाातों में पाए गए थे।फिर भी तब सुप्रीम कोर्ट ने उन सांसदों को राहत दे दी।

सुप्रीम कोर्ट कभी -कभी अपने ही पिछले निर्णयों को बदल देता है।

राजनीतिक और कानूनी हलकों में यह उम्मीद की जा रही है कि

सुप्रीम कोर्ट सन 1998 के अपने निर्णय को बदल देगा।

यदि ऐसा हुआ तो क्या तब के आरोपितों के खिलाफ अब मुकदमा चलेगा ?

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और भी हैं ऐसे कुछ मामले 

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सुप्रीम कोर्ट को लगे हाथ इस बात पर भी विचार करना चाहिए कि सदन में कुछ प्रमुख सदस्य भी इन दिनों अपने राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगा देते है।उन आरोपों के बारे में भाषण से पहले पीठासीन पदाधिकारी से पूर्वानुमति नहीं ली जाती।

टी.वी.पर सीधे प्रसारण के इस दौर में लोगबाग उन आरोपों के बारे में जान जाते हैं।बाद मंें पीठासीन पदाधिकारी उन आरोपों को कार्यवाही से निकाल देने का आदेश दे देते हैं।कई बार आदेश नहीं देते।

शालीनता वाले दौर में सदस्य किसी के खिलाफ गंभीर आरोप लगाने से पहले स्पीकर को उसका सबूत दिखाते थे।यदि स्पीकर संतुष्ट होते थे तभी  वे सदन में वह बात रखने देते थे।

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और अंत में

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आम चुनाव के तत्काल बाद एक प्रतिपक्षी

विधायक ने सत्ताधारी दल ज्वाइन कर लिया।

दल बदल विरोधी कानून के अनुसार उस दल बदलू की सदन की सदस्यता समाप्त हो जानी चाहिए थी।

सदस्यता समाप्त करने के लिए प्रतिपक्षी दल के नेता ने स्पीकर से लिखित शिकायत भी की।पर,स्पीकर ने सदन का कार्यकाल बीत जाने के बाद भी उस दलबदलू के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की।

ऐसे मामलों पर भी सुप्रीम कोर्ट को विचार करना चाहिए।

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प्रभात खबर 

पटना

14 अक्तूबर 23

   


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