शुक्रवार, 30 अगस्त 2024

       

      एक निवेदन अपने असहमतों से

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         सुरेंद्र किशोर

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 मेरे कुछ पोस्ट पर कुछ लोगों की इन दिनों बड़ी शिकायतें रहती हैं।

चूंकि वे भी बुद्धिजीवी ही हैं,इसलिए गाली-गलौज तो नहीं करते,पर मेरी मंशा पर सवाल जरूर उठाते रहते हैं।

  यदि वे मुझसे स्वस्थ बहस करना चाहते हैं तो उन्हें चााहिए कि वे मेरे तथ्यों को गलत साबित करें और मेरे तर्कों और निष्कर्षों का तार्किक ढंग से खंडन करें।

  पर, वे वैसा नहीं करेंगे,कर भी नहीं पाएंगे, यह मैं जानता हूं।क्योंकि उनमें से अनेक के विचार ठहर गये हैं।

इसलिए मैं उन्हें ‘अन फे्रंड’ कर देता हूं।क्योंकि उनसे बहस में पड़ने का मेरे पास समय भी नहीं है।

मुझसे असहमत लोगों से निवेदन है --आप खुश रहिए, मस्त रहिए, जिस विचार धारा में आप जी रहे हैं,उसमें ही बने रहिए।

मैं तो आपसे यह सवाल नहीं करता कि आप उस खास विचार धारा में क्यों पड़े हुए हैं ?

 मैं आपकी मंशा पर भी शक नहीं करता। मैं आपका अभिभावक नहीं हूं।

इसलिए आप भी किसी का अभिभावक बनने की कोशिश न करें,यही शिष्टता है।

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  मैं हमेशा कहता हूं कि अच्छे नेताओं और शासकों का यह कत्र्तव्य है कि वे देश, काल, पात्र की मौजूदा जरूरतों के अनुसार अपनी काल बाह्य नीतियों -रणनीतियों से बाहर निकलें ।अन्यथा, न तो देश बचेगा और न ही आपका नेतृत्व।

इस मामले में मैं इस देश के सिर्फ दो और दो विदेश के उदाहरण देता हूं।

डा.राममनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण ने समय -समय पर और देश की जरूरतों के अनुसार  

(भगवा धारी !)जनसंघ से सहयोग किया और लिया था।

इतना ही नही, डा.लोहिया को तो इस बात पर भी अफसोस रहा कि उनके समाजवादी सहकमियों ने उनके निदेश के बावजूद सन 1963 में जौनपुर जाकर जनसंघ के दीनदयाल उपाध्याय के चुनाव में उनकी मदद नहीं की।वहां लोस का उप चुनाव हो रहा था।उपाध्याय जी हार गये थे।क्योंकि उन्होंने ब्राह्मणवाद नहीं किया। 

  ध्यान रहे कि सिर्फ देश की तात्कालिक जरूरतों को ध्यान में रखते हुए ही दोनों महान नेताओं ने लीक से हटकर भी वैसे कदम उठाये थे।

  न तो समाजवादी, सर्वोदयी, भूदानी नेता जेपी को खुद सत्ता में आना था और न ही कट्टर समाजवादी लोहिया को।(आज भी देश के समक्ष कुछ अत्यंत कठिन समस्याएं और कुछ कठोर प्रश्न उपस्थित हैं।)

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सन 1967 में डा.लोहिया के ही प्रयास से जनसंघ,सी.पी.आई.और संयुक्त समाजवादी पार्टी के नेतागण एक साथ महामाया प्रसाद सिन्हा की बिहार सरकार में मंत्री थे।याद रखिए--उस सरकार में सी.पी.आई.के चंद्रशेखर सिंह और इंद्रदीप सिंहा कैबिनेट और तेज नारायण झा राज्य मंत्री थे।तब यू.पी. में भी उपर्युक्त तीनों दल एक साथ कैबिनेट में थे।

(दूसरी ओर ,मशहूर लेखक रशीद किदवई ने दैनिक भास्कर --17 मार्च 24--में लिखा है कि ‘‘समाजवादी विचारधारावाली पार्टियों और आर.एस.एस.नियंत्रित जनसंघ सहित मध्यमार्गी दक्षिणपंथी ताकतों के द्वारा गठबंधन की राजनीति में एक नया प्रयोग था।’’ उस संदर्भ में रशीद साहब सी.पी.आई.की चर्चा करना भूल गये।पता नहीं क्यों, जबकि देश की राजनीति की अभूतपूर्व घटना यही थी कि सी.पी.आई. और जनंसघ दोनों एकाधिक राज्यों के एक ही मंत्रिमंडल में मंत्री बने थे।)

जेपी आंदोलन (1974-77) में अ.भा.वि.प.के लोग भी शामिल थे।

1977 के चुनाव के बाद जो सरकारें केंद्र व राज्यों में बनीं,उनमें जनसंघ घटक के भी नेतागण मंत्री और मुख्य मंत्री बने थे।

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इसके बावजूद किसी ने यह आरोप नहीं लगाया कि समाजवादी लोहिया और जेपी भगवाधारी बन गये।

दरअसल इन दो महान नेताओं ने देश की तात्कालिक जरूरतों के अनुसार ही अपनी पिछली रणनीति बदली और उन्हें सफलता भी मिली।

उन लोगों को देश को विचारधारा से ऊपर रखा।

दरअसल विचारधारा देश के लिए होती है न कि देश विचारधारा के लिए।

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अब आप आज के रूस और चीन पर नजर दौड़ाइए।

 सन 1985 में ही एक चीनी पत्रकार ने लिख दिया था कि ‘‘आज का चीन बस पूंजीवाद का इस्तेमाल समाजवाद को सुदृढ़ करने के लिए कर रहा है।’’

एक चीनी शासक ने यह भी कहा है कि हम समाजवाद की रक्षा के लिए पूंजीवाद अपना रहे हैं।

  पर,भारत के कम्युनिस्टों की पब्लिक सेक्टर के बारे में क्या राय रही है ?

दरअसल वे यह बात समझ ही नहीं पाए हैं कि पब्लिक सेक्टर की सफलता के लिए भ्रष्ट और काहिल स्टाफ की जरूरत नहीं होती।

  कम्युनिस्टों के बारे में यह माना जाता रहा है कि वे धर्म निरपेक्ष होते हैं।सही भी है बशर्ते यह विचारधारा देश को नुकसान न पहुंचाए। (दरअसल ‘‘भाजपा को सत्ता से बाहर रखने ’’के बहाने कम्युनिस्ट लोग इस देश की भ्रष्टत्तम राजनीति से हाथ मिलाते रहते हैं,उन्हें ताकत पहुंचाते रहते हैं, जबकि कम्युनिस्टों में अधिकतर नेतागण खंुद ईमानदार होते हैं।इस गलत रणनीति के कारण न तो वे भाजपा को सत्ता में आने से रोक सके न ही अपना अस्तित्व ही बचा पा रहे हैं।)

 तदनुसार जब चीन की सरकार ने देखा कि उसकी अंध धर्म निरपेक्षता देश को खंडित कर देगी तो उसने उसके बदले राष्ट्रवाद अपनाया।(भारत में इसके विपरीत हो रहा है।)

 उसने चीन के दो करोड़ उइगर मुसलमानों के बीच के जेहादियों की अभूतपूर्व प्रताड़ना शुरू कर दी।

अब भी जारी है।उस प्रताड़ना के खिलाफ भारत के कोई प्रगतिशील बुद्धिजीवी या कम्युनिस्ट चीन के खिलाफ कभी कुछ नहीं बोलते।

जबकि यहां की ऐसी छोटी -छोटी घटनाओं पर भी शोर मचाने लगते हैं।यह उनके खिलाफ जाता है।

(उनमें से अधिकतर भारत को खोखला कर रहे जेहादियों से गलबहियंा करते हैं।शाहीन बाग में भी वे उनके साथ ही थे।)

दरअसल उइगर मुसलमान हथियारों के बल पर चीन के शिंगजियांग प्रांत में इस्लामिक जेहाद करने के काम में लगे थे।लगता है कि अब वहां के उइगर मुसलमान जेहाद भूल गये हैं।

भारत में भी पी.एफ.आई.तथा इस तरह के अन्य संगठन जेहाद के काम में गंभीरता से लगे हुए हैं।पर,भारत के कम्युनिस्ट उनका विरोध नहीं करते।

 ऐसे ही कारणों से पश्चिम बंगाल से माकपा साफ हो गयी और अब केरल में भी उनकी स्थिति डंावाडोल हो रही है।

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कभी पब्लिक सेक्टर के लिए जाना जाता था सोवियत संघ।

पर, बाद के वर्षों में जब रूस के हुक्मरानों ने देखा कि अब निजीकरण करना होगा तो वे उसी राह पर चल दिए।ऐसे बदलाव के नतीजतन ही रूस और चीन में कम्युनिस्ट पार्टी भी बची हुई है और कम्युनिस्टों की सरकारें भी चाहे आज स्वरूप जो भी हो।

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पर,हमारे यहां की कई ऐसी जमातों को यह पता ही नहीं चल रहा है कि भारत की आज की विषम समस्याएं कौन-कौन सी हैं और उनका क्या इलाज है ?या फिर वे ईमानदारी से सोच नहीं रहे हैं।जो लोग सोच भी रहे हैं,उन्हें बदनाम करने में वे लोग लगे हुए हैं।या कोई और बात है ?

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28 अगस्त 24 



  इस देश में आत्म रक्षा दल और स्वयंसेवी 

जमात की जरूरत इसलिए भी है 

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सुरेंद्र किशोर

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इन दिनों रेलवे लाइनों पर छोटे -बड़े पत्थर रख कर

या अन्य तरह के अवरोधक खड़ा करके टे्रन दुर्घटनाएं कराने के काम में जेहादी तत्व बड़े पैमाने पर लगे हुए हैं।

पाकिस्तान परस्त देसी-विदेशी इस्लामिक जेहादी इस तरीके से आए दिन रेल गाड़ियां उलट रहे हैं।लोग मर रहे हैं,घायल हो रहे हैं।उन जेहादियों के लिए इस बात का कोई महत्व नहीं है कि उस ट्रेन में भाजपाई बैठे हैं या उनसे सहानुभति रखने वाले वोट लोलुप नेता या उनके परिजन।

    इस देश में रेलवे लाइन की कुल लंबाई लगभग सवा लाख किलोमीटर से भी अधिक है।

इतनी लंबी रेलवे लाइन की रखवाली करने के काम में कितने अधिक रेलवे स्टाफ व सुरक्षाकर्मियों की जरूरत होगी ?

क्या उतने अधिक स्टाफ कोई सरकार बहाल कर सकती है ?

नहीं।

जब भी बाढ़,भूकम्प,तूफान आदि की समस्या आती है तो बड़े पैमाने पर स्वयंसेवी दल अपने सरंजाम के साथ सक्रिय हो जाते हैं।

पर,जिस अनुपात में रेलवे लाइनों पर जेहादियों से खतरा उपस्थित हो गया है और जितनी बड़ी संख्या में दुघर्टनाएं कराई जा रही हंै,वैसे में संगठित आत्म रक्षा दलों और स्वयं सेवी जमातों की जरूरत होगी।उन्हें अपने अपने इलाकों में रेल लाइनों की रखवाली का भार दिया जा सकता है।

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देसी-विदेशी जेहादी गण पूरी दुनिया में अब काफी जल्दीबाजी में हैं, न सिर्फ भारत में बल्कि यूरोप और इजरायल में भी।

(विश्वास न हो तो गुगल पर यूरोप के अखबार पढ़ लीजिए।)

भारत में सक्रिय प्रतिबंधित संगठन पी.एफ.आई.ने तो सन 2047 तक हथियारों के बल पर

भारत को इस्लामिक देश बना देने का लक्ष्य निर्धारित कर ही दिया है।

  इस विपत्ति के क्षण में भी भारत पहले की ही तरह विभाजित है मतलब मध्य युग और ब्रिटिश काल की तरह ही।

इस देश के कुछ राजनीतिक और गैर राजनीतिक तत्वों को लगता है कि वे बांग्ला देश की तरह ही यहां भी तख्ता उलटवा कर अपने मुकदमों से बरी हो जाएंगे और फिर से गद्दी भी पा लेंगे।

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जो लोग यह कह रहे हैं कि यहां के मुसलमान, भाजपा-संघ के कारण परेशान हैं तो फिर ब्रिटेन,जर्मनी और फ्रांस में कौन सा भाजपा-संघ है ?

इजरायल में इस तरह की क्या समस्या है ?

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यानी कुल मिलाकर स्थिति यह है कि हमें समय से पहले चेत जाने की जरूरत है।

इस बीच यह अच्छी बात है कि प्रतिबंधित जेहादी संगठन

पी.एफ.आई.ने कहा है कि यदि भारत के 10 प्रतिशत मुसलमान भी हमारा साथ दे दें तो हम जल्द ही भारत में इस्लामिक शासन ला देंगे।

यानी दस प्रतिशत भी अभी उनके साथ नहीं हैं।किंतु रेल गाड़ियां उलटने या इस तरह की हिंसक कार्रवाईयों के लिए तो 9 प्रतिशत भी काफी साबित होंगे।

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30 जनवरी 1985 को बिहार विधान सभा में कर्पूरी ठाकुर ने कहा था कि ‘‘बूथ लुटेरों और जान लेने की कोशिश करने वालों का मुकाबला करने के लिए हथियार उठाना पड़े तो भी वह गलत नहीं होगा।कानूनन जायज है।

इसलिए आम्र्स लाइसेंस का प्रावधान बिहार सरकार खत्म कर दे । इस बात की छूट दे दे कि जिनके पास पैसे हों वे आग्नेयास्त्र खरीद लें।’’

आज जब कुछ लोग हथियारों के बल पर इस पूरे देश पर कब्जा करने के लिए सक्रिय है तो देशभक्त सरकार व राष्ट्रभक्त लोगों को क्या-क्या करना चाहिए ?

इस समस्या की चिंता करने वालों को गालियां देनी चाहिए ?

उनकी मंशा पर शक करना चाहिए ?

 शुतुरमुर्ग की भूमिका निभानी चाहिए ?

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30 अगस्त 24


बुधवार, 28 अगस्त 2024

 क्या हम तीसरी बार भी 

बंटेंगे भी और कटेंगे भी ?!

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योगी जी,आपकी चेतावनी सुनने वाले नहीं हैं वे।

जब मध्य युग में नहीं सुने,ब्रिटिश काल में नहीं 

सुने तो आज कैसे सुन लेंगे ?ं!

यदि सुन लें तो देश बच जाएगा ।

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      सुरेंद्र किशोर

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योगी जी, यदि नहीं सुनेंगे तो आप ही जैसे नेताओं को देश और लोगों को बचाने का कोई दूसरा उपाय करना पड़ेगा। वह भी जल्द ही करना पड़ेगा।क्योंकि खतरा तेजी से बढ़ता जा रहा है।

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एक उपाय यहां पेश है-मंदिरों की आय से देश भर में बड़े पैमाने पर

आत्म सुरक्षा या आत्म बलिदानी दस्ते बनवाइए।

साथ ही,देश के सभी मंदिरों पर से सरकारी कब्जे को हटवाइए।उनसे हो रही भारी आय को इसी काम में लगाइए।

क्योंकि अन्य धर्मों के पूजा स्थलों पर सरकारी कब्जा नहीं है।

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उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ ने कल आगरा में कहा कि 

‘‘राष्ट्र से बढ़कर कुछ नहीं हो सकता है।

यह तब होगा जब हम एक रहेंगे।

हम बटंेगे तो कटेंगे।’’

मुख्य मंत्री ने यह भी कहा कि ‘‘बांग्ला देश देख रहे हो न,क्या हो रहा है।

ऐसी गलती यहां नहीं होनी चाहिए।

हम एक रहेंगे तो सुरक्षित रहेंगे।’’  

  योगी जी ने समयोचित बातें कही हैं।

आज इसीलिए योगी देश के सर्वाधिक लोकप्रिय मुख्य मंत्री हैं।

इंडिया टूडे ं(4 सितंबर 2024)के ताजा सर्वे (देश का मिजाज) की चर्चा करूं।

उसके तहत योगी जी के बारे में देश भर के (सिर्फ उत्तर प्रदेश के नहीं)एक लाख 36 हजार 463 मतदाताओं से राय पूछी गई।

उनमें से 46 दशमलव 30 प्रतिशत लोगों ने मुख्य मंत्री के रूप में योगी को देश में पहले स्थान पर रखा।

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क्योंकि लोगों का मानना है कि यू.पी.की जो मुख्य समस्याएं हैं,उन्हें योगी जी अच्छी तरह समझते हैं और विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भारी खतरा उठाकर भी उनके निदान की गंभीर कोशिश में लगे रहते हैं।

काश ! विभिन्न राज्यों के अन्य सत्ताधारी नेता भी ऐसा ही करते !

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खैर, अब मुख्य बात पर आते हैं।

 हम कब नहीं बंटे थे ?!

ब्रिटिश इतिहासकार सर जे.आर.सिली (1834-1895)ने लिखा है कि ब्रिटिशर्स ने भारत को कैसे जीता।

मशहूर किताब ‘‘द एक्सपेंसन आॅफ इंगलैंड’’ के लेखक सिली  की स्थापना थी कि 

‘‘हमने (यानी अंग्रेजों ने) नहीं जीता,बल्कि खुद भारतीयों ने ही भारत को जीतकर हमारे प्लेट पर रख दिया।’’

पुस्तक की सिर्फ एक पंक्ति यहां प्रस्तुत है--

‘‘भारत को जीतने की दिशा में जिस समय हमने पहली सफलता प्राप्त की थी,उसी समय हमने अमेरिका में बसी अपनी जाति के तीस लाख लोगों को ,जिन्होंने इंगलैंड के ताज के प्रति अपनी भक्ति को उतार फेंका था,अनुशासन के तहत लाने में पूरी तरह विफलता का मुंह देखा था।’’

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यानी,ब्रिटिश काल में भी हम बंटे हुए ही थे।

इस बात के बावजूद हम ब्रिटिश काल में भी बंटे रहे कि उससे पहले के मुस्लिम शासकों ने यहां की बहुसंख्यक आबादी के साथ लगभग वैसा ही सलूक किया जैसा सलूक आज बांग्ला देश के जेहादी तत्व वहां के अल्पसंख्यकों के साथ कर रहे हैं।

हम तब भी बंटे थे।राणा प्रताप एक तरफ थे तो मान सिंह दूसरी तरफ।अधिकतर आम लोगों को भी यह पढ़ा दिया गया था--‘‘को नृप होहिं हमें का हानि ?’’

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आज इस देश के बहुसंख्यक समाज के जो लोग बांग्ला देशियों और रोहिंग्याओं के समर्थक दलों की मदद कर रहे हैं,उन्हें वोट दे रहे हैं,वे लोग वही पुरानी गलती दोहरा रहे हैं।

इस गलती का नतीजा भी पहले जैसा ही खतरनाक होगा।

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इसलिए हमारे राष्ट्र की रक्षा हमारी गैर राजनीतिक सेना,अर्ध सैनिक बल और राज्यों की पुलिस तो करेगी ही।

पर,उनकी संख्या पर्याप्त साबित नहीं होगी।

इनके अलावा आत्म बलिदानी लोगों की बड़ी फौज भी तैयार करनी पड़ेगी।वे गांव -गांव में फैलेंगे।

  जिस तरह निजी सुरक्षा संगठनों को काम करने की अनुमति सरकार देती है,उसी तरह ‘‘आत्म बलिदानी दस्तें’’ तैयार करने वालों को सरकार मान्यता दे ही सकती है।

हमारे आधुनिक कानून के किताब में भी यह दर्ज है कि हमें आत्म रक्षा के लिए हमलावर पर आक्रमण करने का कानूनी अधिकार हासिल है।

आत्म बलिदानी दस्तों को मंदिरों की भारी आय से प्रशिक्षित किया जा सकता है।

चाहे तो सरकार ‘‘देश सुरक्षा कर’’ लगा सकती है।उसके जरिए आए पैसों से हम अपनी सेना,अर्धसैनिक बल और पुलिस की संख्या बढ़ा सकते हैं।आधुनिक हथियारों से वे लैस हों।

यह सब तैयारी अभी से नहीं होगी तो हम अचानक बड़ी भारी मुसीबत में फंस सकते हैं।

फिर तो योगी जी की चेतावनी निरर्थक जाएगी कि ‘‘बंटेंगे तो कटेंगे।’’

जिस तरह की तैयारी दूसरे देसी-विदेशी भारत द्रोही पक्ष की ओर से इस देश को बर्बाद करने के लिए हो रही है,उसके अनुपात में ही और उससे कहीं अधिक मजबूत तैयारी हमारी भी होनी चाहिए।

तभी हम इस मिश्रित संस्कृति वाले लोकतांत्रिक देश को मौजूदा स्वरूप में बचा सकेंगे जहां संविधान का शासन चलता है।

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27 अगस्त 24



सोमवार, 26 अगस्त 2024

 भारत को कृष्ण की गीता के 

नये संस्करण की जरूरत ?!

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सुरेंद्र किशोर

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भारत आज विषम स्थिति से गुजर रहा है।

यदि भगवान कृष्ण आज होते तो वे इस देश 

के वासियों को क्या उपदेश देते ?

उन्हें कैसी- कैसी हिदायतंे देते ?

कुछ अनुमान आप भी लगाइए।

आपको तो पता ही होगा कि उन्होंने

द्वापर में अर्जुन से क्या -क्या कहा था।

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26 अगस्त 24


रविवार, 25 अगस्त 2024

 केंद्रीय मंत्रि परिषद--1973 और 2023 का फर्क !

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गत 50 साल में सामाजिक समीकरण की दृष्टि से

मंत्रि परिषद की बनावट में कितना फर्क आया ?

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सुरेंद्र किशोर

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 नरेंद्र मोदी मंत्रि परिषद (2023)और इंदिरा गांधी मंत्रि 

परिषद (1973)के सदस्यों की सूची यहां पेश है।

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इन दोनों मंत्रि परिषदों में से किस में सामाजिक न्याय का अधिक ध्यान रखा गया है और किसमें अपेक्षाकृत कम ?

यह निर्णय आप पर ही छोड़ता हूं।क्योंकि सभी मंत्रियों की सामाजिक पृष्ठभूमि की जानकारी मुझे नहीं है।

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केंद्रीय मंत्रि परिषद-(सन 2023)

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1.-नरेंद्र मोदी-प्रधान मंत्री

2.-राजनाथ सिंह

3.-अमित शाह

4.-नितिन गडकरी

5.-निर्मला सीतारमण

6.-एस.जय शंकर

7.-अर्जुन मुंडा

8.-स्मृति जुबिन इरानी

9.-पीयूष गोयल

10-धर्मेंद्र प्रधान

11.-प्रहलाद जोशी

12.-नारायण तातू राणे

13.-सर्वानन्द सोनोवाल

14.-डा.वीरेद्र कुमार

15.-गिरिराज सिंह

16.-ज्योतिरादित्य एम.सिंधिया

17.-अश्विनी वैष्णव

18.-पशुपति कुमार पारस

19.-गजेंद्र सिंह शेखावत 

20.-किरेन रिजिजु

21.-राज कुमार सिंह

22.-हरदीप सिंह पुरी

23.-मनसुख मांडविया

24.-भूपेंद्र यादव

25.-डा.महेंद्र नाथ पांडेय

26.-परषोत्तम रूपाला

27.-जी.किशन रेड्डी

28.-अनुराग सिंह ठाकुर

29.-राव इन्द्रजीत सिंह

30.-डा.जितेंद्र सिंह

31.-अर्जुन राम मेघवाल

32.-श्रीपद येस्सो नाइक

33.-फग्गन सिंह कुलस्ते

34.-अश्विनी कुमार चैबे

35.-जनरल बी.के.सिंह

36.-कृष्ण पाल

37.-दानवे रावसाहेब दादाराव

38.-रामदास आठवाले

39.-साध्वी निरंजन ज्योति

40.-डा.संजीव कुमार बालयान

41.-नित्यानंद रय

42-पंकज चैधरी 

43.-अनुप्रिया सिंह पटेल

44.-डा.सत्यपाल सिंह बघेल

45.-राजीव चंद्रशेखर

46.-सुश्री शोभा करांदलाजे

47.-भानु प्रताप सिंह वर्मा

48.-श्रीमती दर्शना विक्रम जरदोश

49.-वी.मुरलीधरन

50.-श्रीमती मीनाक्षी लेखी

51.-रामेश्वर तेली

52.-कैलाश चैधरी

53.-अन्नपूर्णा देवी

54.-ए.नारायण स्वामी

55.-कौशल किशोर

56.-अजय भट्ट

57.-बी.एल.वर्मा

58.-अजय कुमार मिश्र

59-देवू सिंह चैहान

60.-भगवंत खूबा

61.-कपिल मोरेश्वर पाटिल

62.-प्रतिमा भौमिक

63.-सुभाष सरकार

64.-डा.भागवत किशन राव कराड

65.-डा.राजकुमार रंजन सिंह

66.-डा.भारती प्रवीण पवार

67.-विश्वेश्वर टुडू

68-शांतनु ठाकुर

69.-डा.मंुजपरा महेंद्र भाई

70.-जाॅन बर्ला

71.-डा.एल.मुरुगन

72.-निसिथ प्रामाणिक 

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केंद्रीय मंत्रि परिषद--(सन 1973)

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1.-श्रीमती इंदिरा गांधी--प्रधान मंत्री

2.-उमाशंकर दीक्षित

3.-राम निवास मिर्धा

4.-कृष्ण चंद्र पंत

5.-एफ.एच.मोहसिन

6.-फखरूद्दीन अली अहमद

7.-अन्ना साहब शिंदे 

8.-शेर सिंह

9.-वाई.बी.चव्हाण

10.-के.आर. गणेश

11.-अरविंद नेतम

12.-जगजीवन राम

13.-जानकी बल्लभ पटनायक

14.-विद्या चरण शुक्ल

15.-स्वर्ण सिंह

16.-सुरेंद्र पाल सिंह

17.-डी.पी.धर

18.-मोहन धारिया

19.-एच.आर.गोखले

20-नीतिराज सिंह चैधरी

21.-डी.आर.चव्हाण 

22.-वेदव्रत बरूआ

23.-मोहन कुमार मंगलम्

24.-सुबोध हंसदा

25.-टी.ए.पै

26.-सुखदेव प्रसाद

27.-सिद्धेश्वर प्रसाद

28.-राज बहादुर

29.-एम.बी.राणा

30.-कर्ण सिंह

31.-श्रीमती सरोजिनी महिषी

32.-सी.सुब्रह्मण्यम

33.-प्रणव कुमार मुखर्जी

34.-जियाउर रहमान

35.-भोला पासवान शास्त्री

36.-ओम मेहता

37.-के.रघुरमैया

38-बी.शंकरानंद

39.-केदारनाथ सिंह

40.-देवकांत बरुआ

41.-दिलबीर सिंह

42.-ललित नारायण मिश्र

43-मोहम्मद शफी कुरैशी

44.-हेमवती नन्दन बहुगुणा

45.-जगन्नाथ पहाड़िया

46.-आर.के खाडिलकर

47.-ए.के.किस्कू

48.-कोंडाजी बासप्पा

49.-नुरुल हसन

50.-सुशीला रोहतगी

51.-डी.पी.यादव

52.-शाहनवाज खान

53.-रघुनाथ रेड्डी

54.-जी.बेंकटस्वामी

55.-डी.पी.चट्टोपाध्याय

56.-ए.सी.जार्ज

57.-के.एल.राव

58.-बाल गोविन्द वर्मा

59.-इंद्र कुमार गुजराल

60.-धर्मवीर सिन्हा

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25 अगस्त 24




 (पुरुष) डाक्टर को धरती का भगवान कहा जाता है।

फिर तो महिला चिकित्सक धरती की देवी कैसे नहीं है ?।

किसी देवी के साथ ऐसा सलूक ?!!

कहते हैं कि डायन भी एक घर बख्श देती है।

पर,राक्षस ??

वह तो किसी को नहीं बख्शता।

पर,लगता है कि हमारे सुप्रीम कोर्ट ने उन राक्षसों के 

कानूनी तरीके से सफाये का रास्ता साफ कर दिया है।

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साथ ही, एक बात और लगती है।

वह यह कि कभी देश को दिशा देने वाले बंगाल के भद्र लोक का विवेक ताजा घटना के बाद एक बार फिर जग रहा है।

‘‘ममता -मोह’’ कम होने के संकेत साफ हैं।

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क्या एक और ‘‘नन्दी ग्राम’’??

पता नहीं !

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सुरेंद्र किशोर

24 अगस्त 24



















 

शनिवार, 24 अगस्त 2024

 रांची के अलकायदा माॅड्यूल से संकेत साफ

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आत्म रक्षा के लिए आम लोगों को आंग्नेयास्त्रों के 

लाइसेंस देने में राष्ट्रवादी राज्य सरकारें उदारता दिखाएं।

अन्यथा, बाद में पछताना पड़ेगा यदि खुर्शीद-मणिशंकर

 की धमकी इस देश में भी अचानक लागू हो गयी !!

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        सुरेंद्र किशोर

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इस देश को दहलाने की कोशिश में लगे अल कायदा के जेहादियों की गतिविधियों की खबरें कल रांची से आई थी।

  उसी तरह की खबर आज के अखबारों में भी आई है।

इन खबरों के आए कई घंटे बीत गये।किंतु किसी तथाकथित सेक्युलर दल या नेता ने ऐसे भीषण व डरावने राष्ट्रविरोधी षड्यंत्र पर अब तक चिंता प्रकट नहीं की है।

भला वे अपने वोट बैंक की कीमत पर ऐसा क्यों करेंगे ?!

उल्टे कुछ दिन पहले कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद और मणिशंकर अय्यर यह धमकी दे चुके हैं कि बांग्ला देश भारत में भी दोहराया जा सकता है।

अब यह कल्पना कठिन नहीं है कि कैसी- कैसी शक्तियों के बल पर ‘‘दोहराने’’ की वे धमकी दे रहे हैं !!

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कुछ साल पहले इस देश के एक तथाकथित सेक्युलर मुख्य मंत्री के राज्य में जेहादियों के स्लीपर सेल की मौजूदगी के बारे में एक अंग्रेजी अखबार में सनसनीखेज खबर छपी थी।

जिस संवाददाता ने वह खबर लिखी थी,उसे मुख्य मंत्री ने बुलाया और कहा कि ऐसी खबरें मत छापिए।

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  संवाददाता ने मुझसे बाद में कहा कि कैसा मुख्य मंत्री है यह ?

यह तो जेहादियों के स्लीपर सेल के फलने-फूलने में मदद कर रहा है।

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भारत के अनेक वोट लोलुप नेताओं की ऐसी ही सांठगांठ वाली या शुतुरमुर्ग वाली मानसिकता रही है।ऐसे स्लीपर सेल किस राज्य में नहीं है ?

पचास के दशक को याद करिए।

तिब्बत पर कब्जा करने के बाद चीन भारत की भूमि पर जब कब्जा करने लगा तो भारतीय संसद में आवाज उठी।

प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा कि उस जमीन पर तो घास का तिनका भी नहीं उगता।यानी मेरे काम का नहीं !

उसके बाद चीन ने सोवियत संघ की पूर्व सहमति से 1962 में हम पर हमला किया और हजारों वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्जा कर लिया।

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रांची में अल कायदा के जिस आंतकी माॅड्यूल का अब पता चल गया है,यदि उसके बाद भी हमारी सरकारें नेहरू की तरह सोयी रही तो हम बहुत बड़े खतरे में पड़ जाएंगे।

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ऐसे में उन राज्य सरकारों से, जो मुस्लिम वोट पर आश्रित नहीं हैं,अपील है कि वे उदारतापूर्वक लोगों को आग्नेयास्त्रों के लाइसेंस दें।

हां, वैसे लोगों को ही दें जिनके खिलाफ कोई आपराधिक मामला नहीं चल रहा है।

 ‘‘बांग्ला देश’’की पुनरावृति की स्थिति में सेना-पुलिस तो अपना काम करेगी ही,जो इस देश में अब बहुत मजबूत हो चुकी है ,पर आम लोगों को भी वैसी आपात स्थिति में प्राण और प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए सक्रिय होना होगा।‘‘प्रतिष्ठा’’ का मतलब आप समझ ही गये होंगे।

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 जो नेता व दल रंाची के आतंकी माॅड्यूल पर चुप हैं,वे उस आशंकित आपात स्थिति में क्या व कैसी भूमिका निभाएंगे,उसकी कल्पना आप आसानी से कर ही सकते हैं।

  सन 1962 के चीनी हमले के समय सी.पी.आई.के एक बड़े हिस्से ने कहा था कि चीन ने हम पर नहीं बल्कि भारत ने ही चीन पर हमला किया।

उसी आधार पर सी.पी.आई. 1964 में टूट गई और चीनपंथी सी.पी.एम.बनी।

चीन ने तब अपने पक्ष में जो पुस्तक तैयार की थी,उसे चीन पंथी भारतीय कम्युनिस्टों ने यहां के  लोगों के बीच खूब बटवाया।वह पुस्तक मेरे पास अब भी है।ऐसे लोगों की अब भी कमी नहीं है,इस देश में।बल्कि अब अधिक हैं।

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आज भी जब इस्लामिक जेहादी यहां कोई हिंसक कार्रवाई करते हैं तो कुछ खास दलों के नेतागण आरोप लगाते हैं कि यह सब भाजपा-आर एस एस के कारण हो रहा है जिसने सांप्रदायिक माहौल बना रखा है।

अब वे इस सवाल का जवाब नहीं देते कि बांग्ला देश में न तो भाजपा है और न ही आर.एस.एस.।

ब्रिटेन सहित दुनिया के अन्य कई देशों में भी जेहादी लोग भारी हिंसा कर रहे हैं तो वहां किस भाजपा या संघ से वे लड़ रहे हैं ?

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24 अगस्त 24


सोमवार, 19 अगस्त 2024

 हमारी दारुण गाथा

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1.-मध्य युग में हम विभाजित थे,नतीजतन हम हारे।

विदेशी आक्रांता जीते।

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2.-ब्रिटिश काल में हम विभाजित थे,हम हारे।

विदेशी आक्रांता जीते।

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3.-आज तो हम सबसे अधिक विभाजित हैं।

इसका सबसे बड़ा कारण कुछ लोगों की 

‘वोट लोलुपता’ है।

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सुरेंद्र किशोर

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 जेहादी तत्व इस देश को पूरी तरह हड़प लेने के लिए इन दिनों दिल ओ जान से रात-दिन लगे हुए हैं।

यदि कोई जेहादियों का विरोध करता है तो ‘‘सेक्युलरिस्ट’’ उल्टे आरोप लगाते हैं कि वे (जेहाद विरोधी) नफरत फैला रहे हैं।

 प्रतिबंधित संगठन पी.एफ.आई.ने सन 2047 तक हथियारों के बल पर इस काम को पूरा कर लेने का लक्ष्य निर्धारित कर रखा है।

(पटना के पास फुलवारी शरीफ में कुछ महीने पहले गिरफ्तार पी.एफ.आई.के लोगों के पास से जो ‘‘साहित्य’’बरामद हुआ था ,उसी से 2047 वाले लक्ष्य का पर्दाफाश हुआ।उसमें लिखा है कि हम हथियारों के बल पर सन 2047 तक भारत को इस्लामी देश बना देंगे।)

   दूसरी ओर, पी.एफ.आई.से जुड़े राजनीतिक संगठन एस.डी.पी.आई.से तालमेल करके कुछ राजनीतिक दल चुनाव लड़ रहे हैं।उनकी मदद से कुछ राज्यों में 

वे जीत भी रहे हैं।उन राज्यों में जेहादियों का काम आसान हो गया है।

जेहादी तो किसी लोभ-लालच से ऊपर उठकर अपना काम कर रहे हैं।

क्या हम अपनी भूमिका निभा रहे हैं ?

नहीं निभा रहे हैं।

नतीजतन जेहादियों को इस देेश में गांव दर गांव, जिला दर जिला सफलता मिलती जा रही है।

इसलिए कि आज हम कुछ अधिक ही विभाजित हैं।

हममें से अनेक लोग उनके प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से मददगार हैं।

पता नहीं, कल इस लोकतांत्रिक और सेक्युलर देश का क्या होने वाला है ?!

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इस पृष्ठभूमि में यहां एक उदार ब्रिटिश इतिहासकार सर जे.आर.सिली की स्वीकारोक्ति से आपका परिचय करा रहा हूं।

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पहली बार आम जन को सिली से चैधरी चरण सिंह ने  परिचय कराया था।

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पढ़िए सिली के शब्दों में हमारे ही कुछ पूर्वजों के शर्मनाक कारनामों का इतिहास।

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‘‘हमने (यानी ब्रिटिशर्स ने)नहीं जीता, बल्कि खुद भारतीयों ने 

भारत को जीतकर हमारे प्लेट पर रख दिया’’

      --- सर जे.आर. सिली

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 ब्रिटिश इतिहासकार सर जे.आर.सिली (1834-1895)ने लिखा है कि ब्रिटिशर्स ने भारत को कैसे जीता।

मशहूर किताब ‘द एक्सपेंसन आॅफ इंगलैंड’ के लेखक सिली  की स्थापना थी कि 

‘‘हमने (यानी अंग्रेजों ने) नहीं जीता,बल्कि खुद भारतीयों ने ही भारत को जीतकर हमारे प्लेट पर रख दिया।’’

पुस्तक की सिर्फ एक पंक्ति यहां प्रस्तुत है--

‘‘भारत को जीतने की दिशा में जिस समय हमने पहली सफलता प्राप्त की थी,उसी समय हमने अमेरिका में बसी अपनी जाति के तीस लाख लोगों को ,जिन्होंने इंगलैंड के ताज के प्रति अपनी भक्ति को उतार फेंका था,अनुशासन के तहत लाने में पूरी तरह विफलता मुंह देखा था।’’

 पूर्व प्रधान मंत्री चैधरी चरण सिंह ने सर जे.आर.सिली की पुस्तक का हिन्दी में अनुवाद करवा कर बड़े पैमाने पर बंटवाया था।

  चरण सिंह ने एक तरह से हमें चेताया था कि यदि इस देश में गद्दार मजबूत होंगे तो देश नहीं बचेगा।पर,हमने चरण सिंह की बातों पर भी ध्यान नहीं दिया।

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मध्य युग में भी वीरता की कमी के कारण हम नहीं हारे।

बल्कि आधुनिक हथियारों की कमी और आपसी फूट के कारण हम हारे।

हमारे राजा अपने विदेशी दुश्मन की माफी को बार-बार स्वीकार कर उसे बख्श देते थे।

  पर, दुश्मन एक बार भी हमें नहीं बख्शता था।

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आजादी के तत्काल बाद के भारत के हुक्मरानों ने यह सुनिश्चित किया कि ऐसा इतिहास लिखवाया जाए जिसमें हमारे देश के शूरमाओं के शौर्य,बलिदान और वीरता की चर्चा तक नहीं हो।उल्टे कहा गया--‘‘शिवाजी लुटेरा था और महाराणा प्रताप भगोड़ा था।’’

वे इस काम में सफल रहे।आज आप उन वीरों पर कोई पोस्ट

लिखेंगे तो आपको एक दर्जन लाइक भी नहीं मिलेंगे।मेरा अनुभव तो यही है।

1947 के बाद के हमारे शासकों का तर्क था कि उनके शौर्य का बखान करने से हिन्दुत्व पनपेगा।

यानी, भले दूसरा धर्म पनप जाए, किंतु हिन्दुत्व न पनपे।

जवाहरलाल नेहरू अजमेरशरीफ की दरगाह पर चादर चढ़ाने तो जाते थे,(गुगुल पर उसका वीडियो उपलब्ध है) किंतु वे सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण के सख्त विरोधी थे।

आज भी कांग्रेस तथा अन्य तथाकथित सेक्युलर दल हिंसक जेहादी संगठन पी.एफ.आई.का सार्वजनिक रूप से कभी विरोध नहीं करते।(ऐसा कोई बयान उनका छपा हो तो बताइएगा।मेरा ज्ञानवर्धन होगा।)

किंतु संसद के भीतर और बाहर राहुल गांधी हिन्दुओं को हिंसक और नफरती बताते नहीं थकते।

ऐसी ही रही है अपने वोट बैंक की रक्षा की उनकी रणनीति।

अब उनकी वह रणनीति धीरे -धीरे फेल हो रही है।

पूरी तरह फेल करने की कोशिश भी हो रही है।पता नहीं इस कोशिश का क्या भविष्य होगा।

  हालांकि इस कोशिश के साथ भारत के मौजूदा स्वरूप का भविष्य भी जुड़ा हुआ है।

हालांकि जेहाद समर्थक इस देश का नुकसान तो कर ही चुके हैं।

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आज की स्थिति क्या है ?

आज की स्थिति का पता ठीक ठाक यानी ईमानदार अध्ययन 

हो तो चल जाएगा।

वैसे वास्तविक स्थिति यह है कि आज इस देश में गद्दारों की संख्या मध्य युग और ब्रिटिश काल से भी काफी अधिक हो चुकी है।

  जिन्हें मेरी बात पर विश्वास न हो,वे कम से कम निजी टी.वी.चैनलों के डिबेट्स को ही ध्यान से देख-सुन लें।

इस तरह आज उपस्थित भीषण व चैतरफा खतरों के समक्ष इस देश का भगवान ही मालिक है,ऐसा मुझे साफ लगता है।

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19 अगस्त 24

    


रविवार, 18 अगस्त 2024

     फोन -शिष्टाचार

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      सुरेंद्र किशोर

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यदि आप किसी को फोन कर रहे हैं तो पहले अपना पूरा नाम बता दीजिए।

  यह मान कर मत चलिए कि आपकी आवाज उस तरफ वाला तुरंत पहचान लेगा।

यदि आप किसी अन्य शहर से बोल रहे हैं तो पहले उस शहर का नाम बताइए।

 यह भी संभव है कि सुरेंद्र नाम के उसके मित्रों की संख्या एक से अधिक हो और कई स्थानों में कई सुरेंद्र हों।

इसलिए पूरा नाम बताना जरूरी है।

  जब आप निश्ंिचत हो जाएं कि आपको उसने पहचान लिया तभी जरूरी बात पर आइए।

   फोन पर संक्षेप में सिर्फ जरूरी बात कीजिएगा तो बेहतर रहेगा।यदि दोनों को लंबी बातचीत की आदत है तब तो कोई बात नहीं।

अन्यथा, वह अगली बार आपका फोन उठाएगा ही नहीं।

फोन पर बातचीत मुलाकात का विकल्प नहीं है।

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नोट--इस संबंध में अन्य सुझाव आमंत्रित है।

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  17 अगस्त 24


  राहुल गांधी ने 2004 में कहा था 

 कि वेरोनिका मेरी महिला मित्र हैं।

कोई किसी की महिला मित्र है तो इसमें

 किसी को क्या एतराज हो सकता है ?!

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सुरेंद्र किशोर

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डा.सुब्रह्मण्यम स्वामी कह रहे हैं कि राहुल गांधी ब्रिटिश नागरिक हैैं।

  एक मशहूर बांग्लादेशी पत्रकार ने ब्लिट्ज में लिखा है कि राहुल गांधी के दो बच्चे हैं।

मैं इन दोनों विवादों में नहीं पड़ना चाहता।क्योंकि मेरे पास इन बातों का कोई सबूत अब तक उपलब्ध नहीं है।

  पर, मेरे पास अंग्रेजी दैनिक ‘‘द पायनियर’’ की संवाददाता अमिता वर्मा से राहुल गांधी की एक पुरानी बातचीत का सबूत जरूर मौजूद है।

  सन 2004 में राहुल गांधी ने अमेठी यात्रा के दौरान स्वीकारा था कि वेरोनिका मेरी महिला मित्र हैं।वे बेनजुएला में रहती हैं।

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31 जुलाई 2004 के ‘‘द पायनियर’’ में लखनऊ डेटलाइन से छपी इस रपट का खंडन नहीं आया।

  हां,सार्वजनिक क्षेत्र के इतने बड़े नेता के बारे में सहज ही यह सवाल उठता है कि क्या वह वही वेरोनिका हैं जिसकी चर्चा हाल में बांग्लादेशी पत्रकार ने की है ?

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पुनश्चः

राहुल गांधी ने सन 2012 में ही यह कह दिया था कि ‘‘मैं ब्राह्मण हूं।’’

  इसके बावजूद आप राहुल गांधी से जोड़कर फिरोज गांधी और सोनिया गांधी की जाति की चर्चा क्यों कर रहे हैं ?

कम ही लोग जानते हैं कि इस देश में अग्निहोत्र यज्ञ कराकर  कोई अन्य जाति का व्यक्ति भी ब्राह्मण बन सकता है।

 सर्वाधिक पढे़-लिखे व्यक्ति डा.श्रीकांत जिचकर ऐसे ही यज्ञ के जरिए ब्राह्मण बने थे।

दिवंगत जिचकर जन्मना पिछड़ी जाति के थे।

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18 अगस्त 24


मंगलवार, 13 अगस्त 2024

 ‘‘अग्रतः सकल शास्त्रं पृष्ठतः सशरं धनुः’’

भगवान परशुराम की यह उक्ति बिहार 

परीक्षा बोर्ड के प्रमाण पत्र पर  ?!

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सुरेंद्र किशोर

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अग्रतः सकल शास्त्रं पृष्ठतः सशरं धनुः

यह उक्ति भगवान परशुराम की है।

किंतु इसे ही ंबिहार विद्यालय परीक्षा समिति

का ध्येय घोष क्यों बनाया गया ?

कब बनाया गया ,यह मुझे नहीं मालूम। 

किंतु सन 1963 के मेरे प्रमाण पत्र में तो था।

अब है या नहीं, वह भी मुझे नहीं मालूम।

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विद्यार्थियों को इसके जरिए कैसा संदेश दिया गया ?  

जाहिर है कि वही संदेश जो भगवान परशुराम का था।

माना गया कि उससे देश व समाज मजबूत होगा।

उसकी पूरी रक्षा हो पाएगी।

क्या आज ऐसा हो रहा है ?

देश के नौजवानों को आत्म रक्षा के लिए कितना 

तैयार किया जा रहा है ? 

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मैंने बोर्ड परीक्षा के संबंधित प्रमाण पत्र की स्कैन काॅपी 

इस पोस्ट के साथ पेश की है।

पता नहीं, कि इसके खिलाफ किसी तथाकथित सेक्युलर तत्व ने कभी आवाज उठाई थी या नहीं !!

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12 अगस्त 24


शनिवार, 10 अगस्त 2024

    


   देर न हो जाये,कहीं देर न हो जाये !!

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इन दिनों बांग्ला देश से जो असंख्य वीडियो आ रहे हैं,उनमें वीभत्स और हृदय विदारक दृश्य देखने को मिल रहे हैं।

इसके बावजूद इस देश की खास जमात उन मध्ययुगीन जंगली और बर्बर कृत्यों पर भी चुप है।निन्दा तक का कोई बयान नहीं। 

हालांकि उनकी अखंड चुप्पी चिल्ला-चिल्ला कर कुछ कह भी रही है।राज खोल रही है।

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इस पृष्ठभूमि में मध्य युग की कुछ खास घटनाएं याद आ रही हैं।

सन 1192 में हुई तराइन की दूसरी लड़ाई में मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चैहान का काम तमाम कर दिया।

इसको लेकर आज तक लोग जयचंद की आलोचना करते रहते हैं।

पर, आज के कम ही लोग जानते हैं,राजनीतिक वर्ग से तो और भी कम लोग जानते हैं कि सन 1194 के चंदावार युद्ध में गोरी की सेना ने जयचंद का भी काम तमाम कर दिया था।

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यानी, जयचंद भी उनके हाथों नहीं बचा।दरअसल वे ‘‘जयचंदो’’ं को भी नहीं छोड़ते।

  अब आज के संदर्भ में चतुर -सुजान लोग 12 वीं सदी की उन दो घटनाओं से जो भी सबक सीखना चाहते हैं,जल्दी सीख लें अन्यथा बाद में काफी देर हो चुकी होगी।

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 दिनकर ने ठीक ही लिखा है--

‘समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध,

जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध ।’

         


 

  

  


शुक्रवार, 9 अगस्त 2024

     आसान प्रतियोगिता !

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भ्रष्टों के बीच प्रतियोगिता बहुत ही कड़ी है।

क्योंकि उस क्षेत्र में प्रतिभागियों की संख्या अपार है।

इसलिए वहां ‘‘ओलम्पिक मेडल’’मिलना यानी शीर्ष पर 

पहुंचना बहुत ही मुश्किल है।

दूसरी ओर, ईमानदारों के बीच की प्रतियोगिता बहुत ही कम और आसान है।

क्योंकि इस क्षेत्र में उम्मीदवार बहुत ही कम है।

जहां रहिए, शीर्ष पर रहिए !!

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इसलिए आसान प्रतियोगिता में शामिल होइए।

इस क्षेत्र में प्रतियोगिता जीत कर 

शीर्ष पर पहुंचना अपेक्षाकृत 

बहुत ही आसान है।

आसान रास्ता उपलब्ध है ही तो 

कठिन राह क्यों चुनना ??

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----सुरंेद्र किशोर

    9 अगस्त 24


गुरुवार, 8 अगस्त 2024

 मैं एक ऐसी मांग कर रहा हूं 

जो पूरी नहीं होने वाली 

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मांग 

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बैंक लोन-बिजली -पानी फ्री करने की जगह देश भर 

के सरकारी दफ्तरों को ‘‘रिश्वत-फ्री’’ करो

(अपवाद के तौर पर कुछ दफ्तरों में,कुछ 

ही दफ्तरों में अब भी घूस नहींे ली जाती)

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पर,इसके लिए सांसद-विधायक फंड 

को पहले बंद करना होगा

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यदि ऐसा हुआ तो आम जनता अधिक खुश 

होगी और जो ऐसा करेगा ,उसके वोट बढ़ेंगे

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सुरेंद्र किशोर

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बैंक लोन-बिजली-पानी फ्री करने की जगह 

सरकारी आॅफिसेज को ‘‘रिश्वत-फ्री’’ करो

कहोगे कि यह कैसे होगा ?

बड़ा मुश्किल काम है।

कोई मुश्मिकल नहीं।

जिससे रिश्वत ली जाती है,उसे बहुधा परेशान 

और अपमानित भी किया जाता है।

यानी,रिश्वत बंद माने अपमान-परेशानी भी बंद

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मंत्री और आफिसर मलाईदार पदों पर अफसरों की 

पोस्टिंग फ्री मंे करे।

(हालांकि कुछ मामलों मंे अब भी फ्री होती है पोस्ट्रिग)

अंचल तथा अन्य कार्यालयों की ऊपरी आय से नेतागण कट-मनी न लें।

इसके बावजूद यदि रिश्वतखो री हो तो राज्य और केंद्र सरकार अपने -अपने यहां एक ‘‘स्टिंग आपरेशन विभाग’’ स्थापित करें।उनमें कुछ निजी तो कुछ गैर पेशेवर सरकारी सेवक हों।

आज तो आम तौर पर रिश्वतखोर जब मीडिया या अन्य के प्रायवेट स्टिंग आॅपरेशन में पकड़ाते हैं तो सजा से नहीं बचते।ं 

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भारतीय संसद ने सन 2005 में कोबरापोस्ट.काॅम(चैनल -आजतक) के ‘‘आॅपरेशन दुर्योधन’’ में रिश्वत लेेते उजागर लोक सभा के 10 सांसदों और राज्य सभा के एक सदस्य को बरखास्त करके इतिहास रच दिया था।

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8 अगस्त 24




 बिहार में डायल-112 पुलिस 

इमर्जेंसी सेवा से सकारात्मक 

फर्क आ रहा है

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सुरेंद्र किशोर

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बिना नजराना-शुकराना के पुलिस

तत्क्षण पीड़ित की सहायता में पहुंच जाए तो

इसे क्या कहेंगे ?

असंभव सी लगने जैसी इस बात को

बिहार जैसे लगभग अराजक राज्य में 

मिनी क्रांति ही तो कहेंगे।

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पटना में तो यह कमाल घटित हो रहा है।

पिछले दिनोें मैंने देखा कि फुलवारीशरीफ थाना क्षेत्र 

के एक पीड़ित व्यक्ति को डायल -112 पुलिस इमर्जेंसी सेवा ने भारी राहत दी।

आज के दैनिक प्रभात खबर में पटना कोतवाली इलाके की ऐसी ही एक खबर छपी है।

पटना हाईकोर्ट के अधिवक्ता कासिम युसुफ को डायल --112 सेवा ने तत्काल मदद पहुंचाई।वे सपेरों की दुष्टता और मुद्रामोचन से परेशान थे।

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गत साल दिसंबर में बिहार पुलिस के एक बड़े अफसर ने 

मीडिया को बताया था कि डायल-112 सेवा अगले साल यानी 2024 में राज्य के गांवों में भी उपलब्ध हो जाएगी।

मुझे पता नहीं कि उपलब्ध हुई या नहीं।

यदि हो जाए तब तो उसे ‘‘मिनी राम राज्य’’ ही कहेंगे।

यदि गांवों के कमजोर व पीड़ित लोगों को यह भरोसा हो जाए कि 112 पर डायल कर देने से ही पुलिस (मुफ्त में) उसकी मदद में तुरंत पहुंच जाएगी तब तो उससे ग्रामीण जीवन पर काफी फर्क पड़ेगा।

गांवों से पलायन रुकेगा।

लोग निर्भीक होकर अपने गांवों में ही छोटे-मोटे रोजगार करके रोजी-रोटी कमा लेंगे। 

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8 अगस्त 24

 


बुधवार, 7 अगस्त 2024


कुल आबादी के करीब 2 प्रतिशत लोग ही 
इस देश में आय कर देते हैं।
क्या इतने ही लोगों की वास्तविक 
आय कर के योग्य है ?
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सुरेंद्र किशोर
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आंतरिक सुरक्षा को लेकर इस देश के समक्ष
9 प्रमुख चुनौतियां हैं।
उत्तर प्रदेश के पूर्व डी.जी.पी.प्रकाश सिंह का लेख 4 जुलाई 24 के इंडियन एक्सप्रेस में छपा है।
उसमें उन्होंने आंतरिक चुनौतियों की चर्चा की है।ं  
बाहरी चुनौतियां कैसी हैं,उसकी झलक बांग्ला देश की ताजा घटनाएं हमेें भी दिखा-बता रही हंै।चेता भी रही हैं,यदि हम चेतना चाहें तो।
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सभी तरह की चुनौतियों के मुकाबले के लिए सरकारों के पास पर्याप्त धन चाहिए।साथ ही, उस धन को हैंडिल करने वाले ईमानदार हाथ भी चाहिए।
इस देश के अधिकतर लोग जब तक कर वंचना करते रहेंगे तो धन कहां से आएगा ?
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करीब दो साल पहले मैंने अपनी कुछ जमीन बेची।
 पत्रकार को मिलने वाली पेंशन राशि नाम मात्र(मुझे 1231 रुपए की राशि हर माह पी.एफ.पेंशन के रूप में मिलती है।) 
की होती है,इसलिए मुझे वैकल्पिक व्यवस्था करनी पड़ी।
जमीन बिक्री से मिले पैसों से मैंने एफ.डी.करवाई।
ताकि, रोज-ब-रोज के जरूरी खर्चे के लिए मुझे किसी के समक्ष हाथ नहीं पसारना पड़े।
पर,इसके साथ ही एक असामान्य बात भी हुई।(हालांकि मेरे लिए वह असामान्य नहीं थी।)
 जमीन के खरीदार से मैंने पूरे पैसे व्हाइट में लिये यानी बैंक खाते के जरिए।
उस पर पूरा आयकर भी दिया।ऐसा मैंने अपने कुछ शुभचिंतको की ‘‘नेक सलाह’’ को नजरअंदाज करके किया।
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यह बात मैंने यहां इसलिए लिखी ताकि मैं जब किसी से यह कहंू कि पूरा टैक्स भुगतान करिए तो मुझमें वैसा कहने का नैतिक बल भी हो।
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केंद्र सरकार के कुल कर राजस्व का 27 प्रतिशत हिस्सा आयकर से मिलता है।
सन 2013-14 वित्तीय वर्ष में केंद्र सरकार को विभिन्न करों से जितने पैसे मिले थे,उसकी अपेक्षा आज तिगुनी राशि मिल रही है।
  क्योंकि भ्रष्टाचार थोड़ा कम हुआ है।
  थोड़ा ही कम ही हुआ है।
भ्रष्टाचार खत्म नहीं हुआ है।
  यदि कुछ और कम हो जाएगा तो सरकार के पास और भी अधिक धनराशि आएगी।
उससे न सिर्फ देश का सर्वांगीण विकास होगा बल्कि आंतरिक और बाह्य खतरों से मुकाबला करने के लिए सरकार के पास पर्याप्त मानव संसाधन और जरूरी हथियार उपलब्ध होंगे।
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इसलिए जो लोग अपनी आगे की पीढ़ियों के लिए भी इस देश को सुरक्षित स्थान बनाये रखने की कामना करते हैं,कम से कम वे लोग तो टैक्स चोरी के लोभ पर काबू पाएं।
अन्यथा आगे भारी खतरा है।खतरनाक मोड़ हैं।
यदि अधिक विस्तार से लिखूंगा तो मेरा फेसबुक एकाउंट बन्द हो सकता है।पहले ही चेतावनी मिल चुकी है।
इसलिए थोड़ा कहना,पर,अधिक समझना !!
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7 अगस्त 24 ं 

मंगलवार, 6 अगस्त 2024

 सुनिश्चित हो परीक्षाओं की शुचिता

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भर्ती परीक्षाओं के साथ-साथ स्कूल-कालेज की परीक्षाओं

में भी कदाचार रोकने की दिशा में ठोस कदम जरूरी है

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सुरेंद्र किशोर

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प्रश्न पत्र लीक होने के सिलसिले को रोकने के लिए केंद्र सरकार के साथ आठ राज्य सरकारों ने भी इससे संबंधित कानून बनाए हैं।

हाल में बिहार सरकार ने भी बिहार लोक परीक्षा(अनुचित साधन निवारण)विधेयक पारित किया है।

यह सराहनीय और समयानुकूल है।

सामान्य और भर्ती परीक्षाओं में कदाचार की समस्या देशव्यापी है।

यह जरूरी था कि केंद्र सरकार के साथ राज्य सरकारें भी इसे रोकने की दिशा में ठोस कदम उठातीं।

भर्ती परीक्षाओं के अलावा सामान्य परीक्षाओं में भी कदाचार रोकने की दिशा में ठोस काम होना चाहिए,तभी नये कानून कारगर हो पाएंगे।

यह संयोग नहीं है कि नीट में प्रश्न पत्र 

लीक के केंद्र हजारीबाग और पटना रहे।

 बिहार के प्रश्न पत्र लीक रोधी कानून में भी दस साल तक की सजा और एक करोड़ रुपए के जुर्माने का प्रविधान किया गया है।

इससे कानून का उलंघन करने वालों में अधिक भय पैदा होगा।

 इससे पहले बिहार में 1981 में नकल विरोधी कानून बना था।

उसके तहत छह महीने की जेल और दो हजार रुपए के जुर्माने का प्रविधान था।

वह कानून तनिक भी कारगर साबित नहीं हुआ।

बिहार ने जो नया कानून बनाया है,उसके तहत दायर मुकदमों की जांच डी.एस.पी.स्तर के अधिकारी करेंगे।

पुराने कानून में ऐसा प्रविधान नहीं था।

बिहार सरकार पेपर लीक कांड की जांच बिहार पुलिस के अलावा किसी अन्य एजेंसी से करा सकेगी।

बिहार का यह कानून जिन संस्थाओं की प्रतियोगी परीक्षाओं पर लागू होगा,उनमें बिहार लोक सेवा आयोग,बिहार राज्य विश्व विद्यालय सेवा आयोग ,बिहार कर्मचारी चयन आयोग ,बिहार

पुलिस अवर सेवा आयोग, केंद्रीय सिपाही चयन परिषद ,बिहार तकनीकी सेवा आयोग शामिल हंै।

यह सब ठीक है, लेकिन प्रश्न है कि क्या स्कूल-कालेज और विश्व विद्यालय स्तर की परीक्षाओं को कदाचारमुक्त किए बिना भर्ती परीक्षाओं में जारी कदाचार को पूर्णतः रोका जा सकता है ?

यह सवाल बिहार के सामने ही नहीं,सभी राज्यों के समक्ष है।

आखिर आज देश के कितने राज्यों के विद्यालयों और विश्व विद्यालयों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा -परीक्षा हो पा रही है ?

शिक्षा-परीक्षा को सुधारे बिना भर्ती परीक्षाओं के लिए कितने सुशिक्षित उम्मीदवार मिल पाएंगे ?

इसलिए अगले कदम के तहत राज्य सरकारों को वहां जारी गंदगी की भी सफाई के लिए कारगर कदम उठाने होंगे।

इस दिशा में अब तक जो भी कदम उठाए गए, वे विफल ही रहे हैं।समय -समय पर अनेक राज्यों में सच्ची परीक्षा और सच्ची पढ़ाई की कोशिशें र्हुइं।,लेकिन निहित स्वार्थी ने उन्हें विफल कर दिया।

वे तत्व आज भी कमजोर नहीं हुए हैं।

 यह उम्मीद की जाती है कि सरकारें हर स्तर की परीक्षाओं को कदाचार से मुक्ति के लिए अपनी कठोर इच्छा शक्ति का इस्तेमाल करें।

   उत्तर भारत के कई राज्यों और खासकर बिहार की शिक्षा-परीक्षा में गिरावट की शुरूआत पहले ही हो चुकी थी,लेकिन 1995 तक बिहार में उसकी हालत ऐसी दयनीय हो चुकी थी कि कई राज्य सरकारों ने (सरकारी संस्था) बिहार इंटर काउंसिल द्वारा जारी प्रमाण पत्रों को मानने से ही इन्कार कर दिया था।

कई मामलों में जाली अंक पत्र और प्रमाण पत्र भी जारी होने लगे थे।

उस स्थिति से ऊबकर पटना हाईकोर्ट में लोकहित याचिका दायर की गई।

हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि जिलाधिकारी और प्रमंडलीय आयुक्त कदाचारमुक्त परीक्षाएं आयोेजित कराने के लिए जिम्मेदार होंगे।

 इसके चलते 1996 में बिहार में मैट्रिक और इंटर की कदाचारमुक्त परीक्षाएं हुईं।

1996 की इंटर साइंस की परीक्षा में सिर्फ 15 प्रतिशत परीक्षार्थी उतीर्ण हो सके थे।पटना जिले में मैट्रिक परीक्षा में सिर्फ 16 प्रतिशत परीक्षार्थी ही सफल हो सके।

कमोबेश ऐसा ही परिणाम अन्य जिलों में रहा।

नतीजतन कालेजों में एडमिशन के लिए विद्यार्थियों का अकाल सा हो गया।

शिक्षा माफिया के पांव उखाड़ना इतना आसान काम नहीं था।उन्हें शासन से अघोषित रूप से यह आश्वासन मिल गया कि अब आगे की परीक्षाओं में कड़ाई नहीं होगी।

इस मोर्चे पर शिक्षा माफिया ही अंततः जीत गया और दोगुने उत्साह से परीक्षाओं में कदाचार करने लगा।

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज बिहार में शिक्षा-परीक्षा का हाल वैसा ही हो गया है जैसा 1995 में था।

 होना तो यह चाहिए था कि परीक्षा में कड़ाई जारी रहती,शिक्षा-परीक्षा में सुधार के लिए यह जरूरी था।पर,जिन्हें एक समय शिक्षा मंत्री ने शिक्षा माफिया करार दिया था,उन्हीं लोगों ने ऐसी जुगत भिड़ाई कि दोबारा कदाचार शुरू हो गया।

1996 की कड़ाई के बाद के वर्षों में कदाचार की ऐसी छूट मिली कि एक दफा तो जो छात्र बिहार की बोर्ड़ परीक्षा में पूरे राज्य में प्रथम आया था,वह दिल्ली में ऊंची कक्षा में नामांकन के बाद एक सेमेस्टर भी पास तक नहीं कर सका।

  देश भर में शिक्षा क्षेत्र एक ऐसा उद्योग बन गया है जिसमें 

कोई घाटा नहीं होता।

इस उद्योग में सिर्फ आधुनिक तकनीक के साथ-साथ उच्च स्तर के जन संपर्क की आवश्यकता होती है।

इस उद्योग से जुड़े एक कारखाने का जिक्र अपनी पुस्तक ‘‘इंटर काउंसिल एक हकीकत’’ में दिवंगत प्रो. नागेश्वर प्रसाद शर्मा ने किया है।

उस अल्पज्ञात कारखाने यानी कालेज के इंटरमीडिएट के परीक्षाथियों का जब एक साल का रिजल्ट देखा गया तो पता चला कि उसके कुल 477 में से 461 परीक्षार्थियों ने प्रथम श्रेणी में परीक्षा पास की।

जब इस मामले की जांच हुई तो पाया गया कि वास्तव में सिर्फ तीन छात्रों को ही प्रथम श्रेणी मिली थी।

आज देश के तमाम शिक्षा संस्थान ऐसे हैं जो मात्र शिक्षा के कारखाने बनकर रह गए हैं और जो घटिया माल का ही अधिक उत्पादन करते हैं।

अपवाद को छोड़कर इनके संचालकों को उन तमाम लोगों का प्रत्यक्ष और परोक्ष संरक्षण हासिल होेेता है,जिन पर कदाचार मुक्त शिक्षा और परीक्षा उपलब्ध कराने की संवैधानिक जिम्मेदारी है।

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6 अगस्त 2024 के दैनिक जागरण में प्रकाशित

 


रविवार, 4 अगस्त 2024

 हिंसा-प्रतिहिंसा से पीड़ित ब्रिटेन

हिंसा किसी के हित में नहीं

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सुरेंद्र किशोर

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ब्रिटेन में पहले प्रवासियों,घुसपैठियों और शरणार्थियों की ओर से हिंसा हुई। 

ताजा हिंसा, मूल निवासियों की ओर हुई है।

हालांकि ताजा हिंसा एक फेक न्यूज के चलते हुई।

किंतु वैसे भी वहां बारुद बिछी हुई है।पता नहीं कब क्या हो जाये !

शांतिप्रिय लोग शांति की उम्मीद जरूर कर रहे हैं।

पर, शांति आएगी या नहीं,आएगी तो कब आएगी, वह अब अनिश्चित सा हो गया है।

समान कारणों से भारत में भी कमोबेश वैसी ही स्थिति तैयार हो रही है।यहां की भी समस्या गंभीर है।

भारत सरकार तथा प्रतिपक्ष को चाहिए कि वे ब्रिटेन की घटनाओं से सीख लेकर भारत में स्थिति को बिगड़ने से रोकें।

इसी में सबकी भलाई है।

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आज ब्रिटेन में जो कुछ हो रहा है,वह वहां के कुछ नेताओं,दलों और सरकारों की गलत व अदूरदर्शी नीतियों के कारण हो रहा है।

 भारत के भी अधिकतर नेतागण ऐसे मामलों में अदूरदर्शी ही साबित हुए हैं। 

सन 1947 में जब ब्रिटिशर्स भारत छोड़ रहे थे तो वहां के पूर्व प्रधान मंत्री विंस्टन चर्चिल ने कहा था कि भारत के नेतागण आजाद भारत का संभाल नहीं सकेंगे।

बदली हुई परिस्थिति में चर्चिल परलोेक में अब सोच रहे होंगे कि मैं तो दूसरे देश के बारे में यह सब कह रहा था, पर, अब तो हमारे ही देश के कई नेतागण हमारे गौरवशाली देश को संभाल नहीं पा रहे हैं।

ब्रिटेन के पूर्व प्रधान मंत्री सुनक ने इस गंभीर (व ब्रिटिश निर्मित) समस्या के समाधान के लिए गंभीर कोशिश की थी।

पर निहितस्वार्थी तत्वों ने उन्हें फिर से सत्ता में नहीं आने दिया।

समान कारणों से देशी-विदेशी शक्तियों द्वारा भारत की सत्ताधारी जमात की सीटें हाल के लोक सभा चुनाव में कम करा दी गईं। 

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4 अगस्त 24


 


शनिवार, 3 अगस्त 2024

 


मोदी या शाह किसी को जेल नहीं भेज सकते।

जेल भेजती हैं अदालतें !

इन दिनों के राजनीतिक विमर्श में

यह तथ्य ओझल है।

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सुरेंद्र किशोर 

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4 अक्तूबर, 1977 को सी.बी.आई.ने गिरफ्तार पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी को दिल्ली के एडीशनल चीफ मेट्रोपाॅलिटन मजिस्ट्रेट आर.दयाल की अदालत में पेश किया।

 कोर्ट ने अभियोजन पक्ष से पूछा --‘‘सबूत कहां है ?’’

सी.बी.आई. के वकील ने कहा --‘‘एकत्र किया जा रहा है।’’

आर.दयाल ने श्रीमती गांधी को तुरंत बिना शर्त रिहा कर देने का आदेश दे दिया।

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गिरफ्तार इंदिरा गांधी के खिलाफ जब सी.बी.आई.(पहली नजर में सही लगने लायक )कोई सबूत पेश नहीं कर सकी तो अदालत ने उन्हें तुरंत बिना शर्त रिहा कर देने का आदेश दे दिया था।

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यदि आपके खिलाफ भी कोई सबूत नहीं है तो अदालत 

आपको पहले ही दिन रिहा कर देगी जिस तरह इंदिरा गांधी को रिहा कर दिया था।

यहां मैं यह नहीं कह रहा हूं कि इंदिरा गांधी निर्दोष थीं।उनके मामले में हुआ यह था कि ऊपरी निदेश पर सी.बी.आई.इंदिरा गांधी को जल्द से जल्द जेल भिजवाना चाहती थी। 

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इसके विपरीत आज जैसे ही किसी नेता को अदालत जेल भेजती है,

प्रतिपक्षी दल आरोप लगाने लगते हंै कि मोदी-शाह ने बदले की भावना से जेल भेज दिया।

जबकि इंदिरा गांधी वाला उदाहरण सामने है।

  अदालत भी तभी किसी को जेल भेजती है, जब अभियोजन प़क्ष यानी पुलिस,सी.बी.आई.,ई.डी.या कोई अन्य एजेंसी प्रथम द्रष्ट्वा कुछ सबूत आरोपी के साथ-साथ कोर्ट में तत्काल पेश कर देती है।

  यानी,जांच एजेंसी किसी को गिरफ्तार करके सिर्फ कोर्ट में पेश कर सकती हैं,पर खुद जेल नहीं भेज सकती भले ऊपरी आदेश हो।

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इस कानूनी प्रक्रिया की मौजूदगी के बावजूद यदि कोई नेता सार्वजनिक तौर पर यह आरोप लगाता है कि सरकार ने जांच एजेंसी का इस्तेमाल करके फलां नेता को गलत तरीके से बदले की भावना से जेल भेज दिया तो आप क्या कहेंगे ?

क्या वैसा कहना अदालत की अवमानना नहीं है ?

क्या अदालत की मंशा पर सवाल उठाना नहीं है ?

क्या यह कहा जा रहा है कि अदालत ने सरकार के साथ मिलकर गैरकानूनी तरीके से आरोपी के खिलाफ षड्यंत्र किया जबकि उसके खिलाफ कोई सबूत नहीं थे ?

  इसको लेकर अदालत की मानहानि का मुकदमा चल सकता है या नहीं, इस बारे में कानून विद् यहां इस मंच पर अपनी राय दे सकते हैं।

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3 अगस्त 24