मंगलवार, 28 जनवरी 2025

 पद्मभूषण सुशील कुमार मोदी कुछ 

अलग ढंग के नेता थे

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सुरेंद्र किशोर

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जाना तो एक दिन सबको है।

पर,कुछ लोगों का जाना और वह भी समय से 

पहले ही परलोक सिधार जाना, बहुत अखरता है।

सुशील कुमार मोदी और किशोर कुणाल का जाना भी अखर गया।

ये दोनों न सिर्फ अपने काम में पूर्णतावादी थे बल्कि व्यक्तिगत संबंधों में भी सहृदय थे।

 पत्रकार के नाते मेरा इन दोनों बेजोड़ हस्तियों से संबंध रहा।

दोनांे के कामों को करीब से देखा।

दोनों के लिए मेरे दिल में सराहना के भाव रहे हैं।

  इस बार जब इन्हें पद्म सम्मान मिले,तो जाहिर है कि मुझे खुशी हुई।

पर,कुणाल साहब के मामले में पता नहीं केंद्र सरकार ने क्यों थोड़ी ‘कंजूसी’ कर दी !

उन्हें तो पहले ही पद्म सम्मान मिल जाना चाहिए था।देर से इस बार मिला भी तो कम से कम पद्म भूषण मिलना चाहिए था।

खैर,जो भी और जितना भी हुआ,उसके लिए केंद्र सरकार को बहुत धन्यवाद।

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नियमित सेवा के रिटायर हो जाने के बाद मैं मुख्य पटना से करीब 15-20 किलोमीटर दूर एक गांव में घर बनाकर रहता हूं।

  शहर में जाना बहुत ही कम होता है।

सुशील कुमार मोदी हर साल एक खास दिन को पत्रकारों को अपने यहां बुलाते थे।

उन्होंने मुझे हर बार बुलाया।

पर,मैं कभी नहीं गया।उन्हें लगा कि 

शायद मैं उनसे उदासीन या नाराज हूं।

एक दिन वे मेरे गांव यानी मेरे घर पहुंच

गये।

मैंने उनकी गलतफहमी दूर की।मैंने कहा कि मैं आपका प्रशंसक रहा हूं और रहूंगा।चूंकि मेरे पास स्थायी महत्व के काम अब भी बहुत हंै और मेरे पास समय कम हैं,इसलिए मैं आम तौर पर कहीं नहीं जाता।

एक जगह जाऊंगा तो अन्य जगह भी जाना पड़ेगा।

दूर बसने  के कारण आने-जाने में कुछ व्यावहारिक कठिनाइयां भी हैं।

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दरअसल आम तौर पर न तो नेतागण रिटायर पत्रकारों की खोज -खबर लेते हैं और न ही पत्रकार गण, रिटायर नेताओं की।

ऐसे कुछ संबंध पेशागत और अस्थायी होते हैं।

पर,सुशील मोदी कुछ अलग ढंग के नेता थे।

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और अंत में 

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मैं जब अखबार की नियमित सेवा में था तो नव वर्ष के अवसर पर हर साल मुझे बधाई के करीब सौ-सवा सौ फोन आते थे।अब उनमें से कोई फोन नहीं करता।मैं भी रिटायर नेताओं को थोड़े ही याद करता हूं !

 इसलिए वैसे किसी के फोन का मैं इंतजार भी नहीं करता।

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सोमवार, 27 जनवरी 2025

 जिन्दगी..कैसी है पहेली हाय..!

कभी तो हंसाए,कभी ये रुलाए !!

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सुरेंद्र किशोर

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नौकरी--

यह आपको कभी भूखा नहीं मरने देगी,

पर,आपको कभी अमीर भी नहीं होने देगी।

आपकी पूरी जवानी खा जाएगी,

और बुढ़ापे में जब आप किसी काम के 

नहीं रहोगे  

तो आपको लात मार देगी।

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फिर कौन काम आएगा ?

बेटा ?

भूल जाइए।

क्योंकि (अपवादों को छोड़कर)उसका भी अपना जीवन है,अपना संसार है।

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यदि आप कोई सरकारी मदद स्वीकार करेंगे तो 

ज्वलन शील साॅरी ‘जलन’ शील और ईष्र्यालु तत्व 

आपको तुरंत दलाल घोषित कर देंगे।

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यानी, न पहले चैन और न बाद में कोई सुख !

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फिर तो ‘आनन्द’ फिल्म की इस गीत के 

साथ संतोष कीजिए---

‘‘जिन्दगी कैसी है पहेली हाय !

कभी तो हंसाए ,कभी तो रुलाए।

...............’’

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नोट--किसी गलत फहमी में मत रहिएगा।

किसी एक की नहीं,बल्कि यह घर-घर की कहानी है।

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27 जनवरी 25


रविवार, 26 जनवरी 2025

 मैग्सेसे पुरस्कार बनाम पद्म सम्मान

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सुरेंद्र किशोर

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सन 1965 में जयप्रकाश नारायण को मैग्सेसे पुरस्कार 

मिला था।

सन 1974 में जब प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने उन पर आरोप लगाया था तो जेपी ने जवाब में यह कहा था कि मैग्सेसे पुरस्कार के रूप में मिले पैसों के सूद से मेरे घर का खर्च चलता है।

उससे पहले इंदिरा जी ने कहा था कि जो लोग पूंजीपतियों के पैसों पर पलते हैं,उन्हें हमारी सरकार के भ्रष्टाचार पर बोलने का नैतिक अधिकार नहीं है।

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अब आप कल्पना कीजिए कि जिस जेपी ने देश की आजादी के लिए खुद को होम कर दिया,जिन्होंने आजादी के बाद भी बड़े- बड़े पद ठुकरा दिए,उन्हें मैग्सेसे पुरस्कार के तहत यदि कुछ पैसे नहीं मिल गये होते तो उनकी आर्थिक स्थिति 

कैसी होती ?!

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 तेलांगना के दर्शनम् मुगोलैया को भारत सरकार ने सन 2022 में पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया।

देश के चैथे सबसे बड़े नागरिक सम्मान से सम्मानित व्यक्ति मुगोलैया को जब बाद में भी हैदराबाद की एक निर्माण कंपनी में मजदूरी करते देखा गया तो तेलांगना सरकार ने उसे भारी आर्थिक मदद की।

याद रहे कि पद्म सम्मानितों को केंद्र सरकार कोई आर्थिक मदद नहीं करती।इसका कोई प्रावधान ही नहीं।बल्कि पद्मश्री,पद्मभूषण या पद्म विभूषण शब्द को अपने नाम के साथ जोड़ने की भी सम्मानितों को अनुमति नहीं।

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ओडिशा में पद्म सम्मानित लोगों में मुगोलैया की तरह ही  विपन्न लोग जब पाये गये तो वहां की राज्य सरकार ने उन पर अनुकंपा करके वैसे पद्म सम्मानित लोगों को 30 हजार रुपए मासिक मानदेय देना शुरू कर दिया है।

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26 जनवरी 25


शनिवार, 25 जनवरी 2025

 जन्म दिन पर बधाई से आम तौर पर 

होेते हैं व्यक्तिगत संबंध मजबूत

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सुरेंद्र किशोर

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केंद्रीय मंत्रिमंडल के सदस्यों के हर जन्म दिन पर राष्ट्रपति बधाई दिया करते हैं।

सांसदों के हर जन्म दिन पर प्रधान मंत्री बधाई देते हैं।

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मुझे मालूम नहीं कि यह परंपरा मोदी सरकार ने शुरू की है या पहले से रही है !

कोई जानकार व्यक्ति मेरा ज्ञान बढ़ाए।

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पर, लगता है कि यह नई है जिसकी चर्चा मैं करने जा रहा हूं।

पद् सम्मान से सम्मनित व्यक्तियों के हर जन्म दिन पर केंद्रीय गृह मंत्री खुद फोन करके बधाई देते हैं।

  उससे पहले सम्मान मिलने के तत्काल बाद भी गृह मंत्री ‘‘परसनल टच’’ देते हुए सम्मानित व्यक्ति को थोड़ी लंबी चिट्ठी लिख कर बधाई देते हंै।

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दूसरी ओर, राज्यों के मुख्य मंत्रियों का कम से कम अपने राज्य के पद्म सम्मानित व्यक्तियों के प्रति कैसा रुख-रवैया रहता है ?

क्या वे उन्हें बधाई देते भी हैं ?

व्यक्तिगत रूप से या सार्वजनिक - सामूहिक रूप से ?

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इस संबंध में बहुत तो नहीं मालूम ।

लेकिन हाल में यह खबर आई थी कि ओड़िशा सरकार ने अपने प्रदेश के पद्म सम्मानित व्यक्तियों को मासिक 30 हजार रुपए मानदेय देना शुरू किया है।

  संभवतः उस राज्य सरकार ने इसलिए ऐसा किया है क्योंकि मोदी राज में आम तौर पर आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को कुछ अधिक ही संख्या में पद्म सम्मान मिलने लगे हैं।

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उधर तेलांगना सरकार ने कुछ महीने पहले एक दैनिक मजदूर दर्शनम मुंगलैया को भारी आर्थिक सहायता दी।

मुंगलैया को मोदी सरकार के ही कार्यकाल में पद्म सम्मान से राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किया गया था।

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25 जनवरी 25

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पुनश्चः --

आज देर रात भी देश के उन अनेक लोगों के नामों की घोषणा होगी जिन्हें पद्म सम्मान के लिए चुना गया होगा।

इस बार विभिन्न राज्यों के मुख्य मंत्रियों को चाहिए कि वे अपने -अपने राज्य के सम्मानित लोगों को कम से कम फोन पर बधाई दे दें और कुछ भले संभव न हो।

फोन पर बधाई दे देने में कौन सा पैसा लगता है ?


बुधवार, 22 जनवरी 2025

 बिहार पुलिस के बड़े अफसरों के ध्यानार्थ  

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आज के एक अखबार में यह खबर छपी है कि बिहार पुलिस 

एक फरार आरोपी की तलाश में पटना,वैशाली और समस्तीपुर जिलों में छापेमारियां कर रही है।

  जाहिर है कि पुलिस ने ही अखबार को यह जानकारी दी

होगी।

हर जगह का अखबार नेट पर हर जगह उपलब्ध है।

यह खबर पढ़ने के बाद क्या वह आरोपी किसी चैथे जिले में नहीं भाग जाएगा ?

क्या यह खबर छपवा कर पुलिस

ने आरोपी को आगाह कर दिया कि तीन जिलों में से किसी में  हो तो वहां से भाग जाओ ?यह आरोप लग ही सकता है।

या पुलिस ने यह खबर अपनी लापारवाही या अनुभवहीनता के कारण मीडिया को दे दी ?  

वैसे ऐसी खबरें अक्सर छपती रहती हंै।

अक्सर यह छपता है कि फलां अपराधी को गिरफ्तार करने के लिए बिहार पुलिस नोयडा गई है।

  किसी अन्य अपराधी को पकड़ने बिहार पुलिस कोलकाता गई है।

क्या ऐसी लापरवाही या साठगांठ पर बिहार पुलिस के बड़े अफसरों ने कभी ध्यान दिया है ?

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सुरेंद्र किशोर

22 जनवरी 25


मंगलवार, 21 जनवरी 2025

 ईश्वर उसी की मदद करता है जो 

अपनी मदद खुद करता है

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सुरेंद्र किशोर

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1.-मोतियाबिंद का आॅपरेशन अब तक तो मुझे करवाना नहीं पड़ा है।

2.-एक को छोड़कर मेरे सारे दांत अब भी सही सलामत हैं।

(वह एक भी मेरा साथ नहीं छोड़ता,यदि ‘उपाय’ का पता मुझे उससे पहले चल गया होता !)

3.-मेरे बाल भी अधिकतर सम वयस्कों की अपेक्षा कम पके हैं।

4.-नौकरी के दौर में जितने घंटे मैं काम करता था,उसकी अपेक्षा आज कुछ अधिक ही काम कर रहा हूं।

फिर भी थकावट नाम की चीज नहीं है।आदि आदि

मैं पूरी अवधि सेवा करने के बाद आज से बीस साल पहले रिटायर कर गया था।

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शरीर के सारे महत्वपूर्ण अंग अभी काम कर रहे हैं।स्वास्थ्य संबंधी एक -दो समस्याएं जरूर हैं,पर उनका प्रबंधन संभव है।

इस उपलब्धि में ईश्वर,चिकित्सक और मेरे अपने अनुशासन का योगदान रहा है।

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सन 1966-67 से लेकर 1976-77 तक अपने शरीर को एक तरह से मैंने जर्जर बना लिया था।

राजनीतिक कार्यकर्ता के तौर पर समाजवाद लाने की भोली मृगतृष्णा में दस साल तक भटकता रहा।

न खाने का ठीक, न सोने का।मान-सम्मान ताखे पर।

साठ के दशक में पटना के विधायक फ्लैट इलाके की झोपडियों में 10 आने में भरपेट भोजन मिलता था।

पर हमेशा उतने पैसे मेरे पास होते नहीं थे।छह आने में एक प्लेट पकौड़ी से काम चला लेता था।वैसे में पाचन क्रिया का कचूमर निकल चुका था।

पर जब संभला तो कठोरता से कई तरह के संयम बरतने लगा।

उसका नतीजा है --आज की उपलब्धि।

गांधी जी की जो थोड़ी सी बातें मैं मानता हूं ,उनमें एक यह भी ़है कि ‘‘बीमारी मनुष्य के पाप का फल है।’’

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मैंने यह पोस्ट इसलिए लिखा ताकि मैं यह बता सकूं कि यदि आप संयम बरतंेगे तो इस शरीर से अधिक दिनों तक काम लेते रहंेगे।साथ ही,यदि परिवार आप पर निर्भर है तो उसे आपके  असमय उठ जाने की पीड़ा नहीं सहनी पड़ेगी।

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यह पढ़कर मुझसे उपाय मत पूछने लगिएगा।क्योंकि मैं कोई लाइसेंसधारी चिकित्सक नहीं हूं।

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20 जनवरी 25


 


‘‘बांग्ला देश,पाकिस्तान,कश्मीर,असम,केरल और भारत के अन्य हिस्से मिलाकर हम मुसलमानों ने हिन्दुओं से 70 प्रतिशत जमीन छीन ली है।

  फिर भी हिन्दू इस भ्रम में हैं कि हम 1400 साल में उनका कुछ बिगाड़ नहीं सके।

भारत लगभग इस्लामी देश बन चुका है।’’

-----अबू बकर,

प्रतिबंधित इस्लामिक संगठन 

पी.एफ.आई.का पूर्व प्रमुख

स्त्रोत--सोशल मीडिया

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18 जनवरी, 2025 को जनसत्ता में छपी एक खबर

यहां नीचे दी जा रही है।

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पीएफआई के पूर्व प्रमुख अबू बकर को 

सुप्रीम कोर्ट से लगा झटका

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नयी दिल्ली, 17 जनवरी।

पाॅपुलर फं्रट आॅफ इंडिया के पूर्व प्रमुख अबू बकर की जमानत याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी।(याद रहे कि पी.एफ.आई.केरल में सर्वाधिक मजबूत है।)

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गत 22 दिसंबर, 2024 के इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक खबर के अनुसार,

सी.पी.एम.पाॅलिट ब्यूरो के सदस्य विजय राघवन ने यह आरोप लगाया कि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की, केरल के वायनाड लोक सभा क्षेत्र से जीत के पीछे सांप्रदायिक मुस्लिम गठबंधन का बल था।

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लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी ने गत 15 जनवरी 25 को नयी दिल्ली में कहा कि ‘‘अब हम भाजपा,आर.एस.एस.और इंडियन स्टेट से लड़ रहे हंै।’’

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उधर पी.एफ.आई.ने पहले से ही यह घोषणा कर रखी है कि हम हथियारोें के बल पर सन 2047 तक भारत को इस्लामिक देश बना देंगे।

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यानी, पी.एफ.आई.भी इंडियन स्टेट के खिलाफ लड़ रहा है।

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जानकार सूत्रों के अनुसार जो शक्तियां भारत को इस्लामिक देश बनाना चाहती हंै ,वह इस कोशिश में भी लगी रहती है कि मुसलमानों को एक करो और हिन्दुओं को बांटो।

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क्या यह सिर्फ संयोग है कि राहुल गांधी जातीय गणना पर जोर दे रहे हैं और कह रहे कि आरक्षण 50 प्रतिशत वाली ऊपरी सीमा को हम समाप्त करेंगे ?

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21 जनवरी 25


सोमवार, 20 जनवरी 2025

 मेरे फेसबुक वाॅल से

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पटना की मुख्य सड़कों पर अतिक्रमण 

और जानलेवा जाम

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सुरेंद्र किशोर

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पटना की सड़कों पर अतिक्रमण होता नहीं है बल्कि करवाया जाता है।मेरा निजी अनुभव तो यही है।

कुछ सरकारी और कतिपय गैर सरकारी तत्व वैसा करवाते हैं।क्योंकि उस काम में काफी ऊपरी आय है।

  इधर बिहार सरकार के बड़े -बड़े प्रशासनिक अफसरगण बड़ी -बड़ी बैठकें करके अतिक्रमण हटाने के लिए नये-नये फैसले करते रहते हैं।यह सब वर्षों से होता रहा है।

  पर,इस समस्या का अंत कहीं नजर नहीं आता।

समस्या की जड़ तक जब तक पहुंचेंगे नहीं 

तो उसका अंत कैसे होगा ?

ऊपरी आय करने वाले कौन -कौन हैं ?

यदि बड़े अफसरों को यह बात नहीं मालूम तो उसकी बाहरी एजेंसियों से गुप्त जांच करवा लीजिए।

इस काम में यदि एस.आई.बी.(आई.बी.)मदद कर दे तो बेहतर होगा।

अन्यथा, मुम्बई के टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान यानी टिस के छात्रों से जांच करवा लीजिए।

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20 जनवरी 25


 शीर्ष सत्ताधारियों से 

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देश-काल-पात्र की जरुरतों के अनुसार ही अपनी नीतियां-रणनीतियां-रुख-रवैया तय कीजिए।

कालबाह्य नीतियां-रणनीतियां नयी परिस्थितियों 

में कत्तई काम नहीं आएंगी।

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सुरेंद्र किशोर

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मौजूद मुख्य समस्याएं

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1.-अपवादों को छोड़कर सरकारों में 

सर्वव्यापी भीषण भ्रष्टाचार 

2.- बेलगाम अपराध

3.-राजनीति में वंशवाद-परिवारवाद की पराकाष्ठा

4.- जेहादी तत्वों से देश को भारी खतरा

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समस्याओं का कारगर हल

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जो भी शीर्ष सत्ताधारी इन चार तत्वों के खिलाफ शून्य सहनशीलता वाला रुख अपनाएगा,

वह भी योगी आदित्यनाथ की तरह ही देश भर 

में लोकप्रिय हो जाएगा।

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सुरेंद्र किशोर

20 जनवरी 25



शनिवार, 18 जनवरी 2025

 ई पी एफ पेंशनर्स के साथ कंेद्र

सरकार का अन्याय क्यों जारी है ?

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भाजपा और केंद्र सरकार अपने दोहरे मान दंड

पर जरा गौर करे और उसे सुधारे

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सुरेंद्र किशोर

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भाजपा ने दिल्ली विधान सभा के मतदाताओं को यह भी आश्वासन दिया है कि वह सत्ता में आने के बाद बुजुर्गों 

को हर माह पेंशन राशि के रूप में 2500 रुपए देगी।

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ई.पी.एफ. पेंशन की न्यूनत्तम मासिक राशि 1000 रुपए ही है।

मुझे ई पी एफ पेंशन के रूप में 1231 रुपए हर माह मिलते हैं।

सन 2005 से अब तक मेरी इस राशि में कोई बढ़ोत्तरी नहीं हुई है।

 दुनिया के किस देश में ऐसी पेंशन योजना का प्रावधान है जिसमें बढ़ोत्तरी की कोई गुंजाइश ही नहीं ?!!

कोई हमें बताए।

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इस तरह पैसे बांट कर वोट लेने की परंपरा इस देश में अच्छी है या खराब ,इस पर अभी बहस नहीं करूंगा।

अभी तो दोहरे मानदंड की ही चर्चा करूंगा।

  मेरे जैसे ई पी एफ.पेंशनर्स की संख्या दिल्ली राज्य में एक लाख 38 हजार 693 है।

क्या वे लोग भाजपा की प्रस्तावित पेंशन योजना का भी लाभ उठा पाएंगे ?

  या फिर ई पी एफ पेंशन की राशि बढ़ाई जाएगी ?

यदि ऐसा कुछ नहीं होता है कि केंद्र सरकार व भाजपा के प्रति आम ई पी एफ पेंशनर्स की धारणा कैसी बनेगी ?

देश भी ऐसे ई पी एफ पेंशनर्स की कुल संख्या लगभग 78 लाख हंै।

इन्हीं में मीडिया से रिटायर लोग भी आते हैं।

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मेरी खुद की आर्थिक स्थिति तो अभी ठीक ठाक है।जब तक शरीर साथ दे रहा है,ठीक रहेगी भी।

क्योंकि मैं स्वतंत्र लेखन के जरिए आज भी यानी इस उम्र में भी अच्छा-खासा कमा लेता हूं।रात-दिन घटता हूं।

इस साल तो मैंने उस कमाई पर आयकर भी दिया है।

पर,सारे ई पी एफ पेंशनर्स तो वैसे नहीं हैं।कुछ जरूर होंगे।

दरअसल भाजपा व उसकी सरकार जब अन्य मामलों में भरसक दोहरा मानदंड नहीं अपनाती है तो ई पी एफ पेंशनर्स को लेकर ही दोहरा मानदंड क्यों ?

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18 जनवरी 25

  


शुक्रवार, 17 जनवरी 2025

   दैनिक आज--16 फरवरी 1977

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‘‘आज’’ से जयप्रकाश नारायण की बातचीत

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16 फरवरी, 1977 के दैनिक आज अखबार (वाराणसी और कानपुर संस्करण)में जयप्रकाश नारायण से भेंट वार्ता छपी थी।

 ‘आज’ के पटना ब्यूरो प्रमुख पारसनाथ सिंह के साथ मिलकर मैंने वह इंटरव्यू लिया था।

वह अंक मेरे पास नहीं है।

मुझे उसकी सख्त जरूरत है।

यदि किन्हीं सज्जन के पास हो तो कृपया उपलब्ध कराएं।या कोई उपाय बताएं।मुझे सिर्फ वह भेंट वार्ता चाहिए,पूरा अंक नहीं।

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सुरेंद्र किशोर

16 जनवरी 25


गुरुवार, 16 जनवरी 2025

 ‘‘जिन्हें आप आज स्वर्गीय कहते हैं,सब कुछ जान 

जाने पर उनके नाम से पहले नारकीय शब्द आपको 

लगाना पड़ेगा’’

-- एक मशहूर स्वतंत्रता सेनानी ने कहा था

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सुरेंद्र किशोर

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गंगा शरण सिन्हा पचास-साठ के दशकों में राज्य सभा के सदस्य थे।

बिहार से थे।

मशहूर स्वतंत्रता सेनानी भी।

आजादी की लड़ाई के वरीयत्तम कांग्रेसी -सोशलिस्ट नेताओं के वे काफी करीबी रहे थे।सबको बाहर-भीतर से जानते थे।

‘‘द इंडियन एक्सप्रेस’’ के मालिक ,संविधान सभा और लोक सभा के पूर्वं सदस्य रामनाथ गोयनका के भी गंगा बाबू काफी करीबी थे।

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जब मैं ‘जनसत्ता’ में था तो गोयनका जी की एक चिट्ठी लेकर गंगा बाबू को देने के लिए मैं उनके पटना स्थित  आवास पर गया था।

गंगा बाबू से मेरी लंबी बातचीत हुई।बहुत ही रोचक व जानकारी भरी बातें बता रहे थे।उनके पास से हटने की इच्छा ही नहीं हो रही थी।

मैंने पाया कि देश के शीर्ष दिवंगत-जीवित नेताओं के बारे में 

 गंगा बाबू के पास जितने संस्मरण थे,वे शायद ही किसी अन्य के पास हो।

बाद में मैंने गंगा बाबू के एक परिचित बुजुर्ग गांधीवादी नेता से पूछा--गंगा बाबू अपना संस्मरण क्यों नहीं लिखते ?

उन्होंने बताया कि उनसे किसी ने कभी यह सवाल किया था।

गंगा बाबू का जवाब था-

‘‘यदि मैं सच-सच लिख दूं तो जिन नेताओं को आप स्वर्गीय कहते हैं,उन्हें कल से आप नारकीय कहने लगेंगे।’’

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इसके बावजूद मेरा खुद का विचार कुल मिलाकर स्वतंत्रता सेनानियां के पक्ष में ही रहा है।मैं न तो उन्हें स्वर्गीय कहूंगा और न ही नारकीय।

आजादी की लड़ाई लड़ने के लिए घर से निकल जाना क्या कोई मामूली बात थी ?

आज तो बिना मलाईदार पद के ठोस आश्वासन के,अपवादों को छोड़कर  कोई भी व्यक्ति अपना आरामतलब जीवन त्याग़कर सक्रिय राजनीति मंे नहीं जाना चाहता।

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कहते हैं कि मनुष्य कमजोरियों का पुतला है।

पूरी दुनिया के मनुष्य।

पर, इन दिनों इस देश के खास तबके के कुछ बुद्धिजीवी -पत्रकार-नेतागण राष्ट्रपति पद के शपथ ग्रहण करने को प्रतीक्षारत डोनाल्ड टम्प की सरेआम फजीहत करने में लगे हैं।शुरुआत मणिशंकर अय्यर ने की थी।

ट्रम्प के खिलाफ हाल ही में एक अदालती फैसला आया है।

यह तो अमेरिका के मतदाता जानंे और वहां की अदालत जाने।

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काश ! डोनाल्ड ट्रम्प के खिलाफ निन्दा अभियान चलाने वाले अपने पिछवाड़े में भी झांक लेते।

गंगा बाबू जिन्हें नारकीय कह रहे थे,उन तथाकथित नरकवासियों के इतिहास पर रिसर्च कर लेते।देश का भला होता।अगली पीढ़ी को शिक्षा मिलती।

मेरा खुद का मानना है कि जिस व्यक्ति में गुण अधिक और अवगुण कम हो,उसकी तारीफ होनी चाहिए।

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ट्रम्प प्रकरण को ध्यान में रखते हुए अस्सी के दशक के भारत पर एक बार फिर एक नजर डालिए।

ताजा राजनीतिक इतिहास तो 

यह पीढ़ी देख ही रही है।अपने -अपने चश्मे के अनुसार आकलन भी कर रही है।नतीजे भी निकाल रही है।

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पुनरावलोकन

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सन 1984 आते-आते इस देश की कैसी हालत 

कर दी थी हमारे हुक्मरानों ने !?

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दशकों से जमी काई को कुछ लोग आज साफ करना चाहते हैं।क्या वे सफल होंगे ?

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आजादी के बाद सन 1984 तक इस देश का क्या हाल हो चुका था ?

भारत सरकार की पत्रिका ‘‘योजना’’ के 15 अगस्त, 1984 के अंक में जो कुछ छपा था,उससे देश के तब तक के हालात का पता नई पीढ़ी के लोगों को भी चल जाएगा।

उससे 1985 के प्रधान मंत्री राजीव गांधी की एक टिप्पणी को जोड़कर देख लीजिए।राजीव गांधी ने कहा था कि हम 100 पैसे दिल्ली से भेजते हैं,पर उसमें से सिर्फ 15 पैसे ही गांवों तक पहुंच पाते हैं।

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उस सरकारी पत्रिका ‘‘योजना’’के कवर पेज ही पर 

लिख दिया गया था-

‘‘ये गंदे लोग, यह गंदा खेल।’’

‘योजना’ के तब के प्रधान संपादक रघुनन्दन ठुकराल की हिम्मत व देश सेवा की भावना तो देखिए !

पता नहीं, वह अंक आने के बाद उनकी नौकरी रही या गई ?

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सन 1946 से 1984 तक इस देश मंे जितने भी प्रधान मंत्री हुए,सबको भारत रत्न सम्मान मिल चुका है।

ऐसे ‘‘भारत रत्नों’’ की यही उपलब्धि थी ? !

100 पैसा घिसकर एक दिन में तो 15 पैसा नहीं बन गया होगा।

1949 के जीप घोटाले से ही घिसना शुरू हो चुका था।

याद रहे कि भारत रत्न का सम्मान राजीव गांधी को भी मिल चुका है।याद रहे कि भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे राजीव गांधी के कारण कांग्रेस को लोक सभा में पूर्ण बहुमत मिलना जो बंद हो गया सो आज तक नहीं मिला।

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  जब अपवादों को छोड़ कर सरकारी व निजी क्षेत्रों में गंदे लोग ही फैले हुए हों तो वही होना था जैसा राजीव गांधी ने 1985 में कहा था।

 यानी 100 पैसों को तभी घिसकर 15 पैसे बना दिया गया था।

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उन गंदे लोगों की सूची ख्वाजा अहमद अब्बास ने ‘योजना’ के उसी अंक में पेश की थी।

अब्बास के अनुसार,

1.-अफसरशाह

2.-सत्तारूढ़ दल के राजनीतिज्ञ

3.-विपक्षी दलों के राजनीतिज्ञ

4.-योजनाकार (अधिकारी वर्ग)

5.-योजनाकार (स्वप्नद्रष्टा)

6.-बड़े पत्रकार

7-छोटे पत्रकार

8.-उपदेशक (धर्म संबंधी)

9.-उपदेशक (मंद बुद्धि वाले दर्शन शास्त्री और शिक्षा शास्त्ऱी)

10.-साधु संत (ढोंगी)

11.-व्यापारी तथा 

12-शिक्षा विद्

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यह सूची पेश करते हुए अब्बास ने लिखा कि 

‘‘किसी का नाम लेने की कोई जरूरत नहीं, पर वे सभी समूह

जो हमारे सामजिक जीवन को अपने कारनामों से दूषित करते हैं,उनका भंडाफोड़ करने से समाज के लोग इन गंदे लोगों और उनके खेल के बारे में जान जाएंगे।

आशा है कि इससे वे आत्म शुद्धि का मार्ग अपनाएंगे।

.................................

 ‘‘योजना’’ के छपने के दशकों बाद के भारत पर नजर दौड़ाइएगा ।

 क्या अब्बास साहब की भोली आशा पूरी हो सकी ?

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हां, एक बात जरूर कही जा सकती है कि गंदगी साफ करने की कोशिश आज कुछ अधिक ही हो रही है।

 किंतु इस नेक कोशिश के अनुपात में समस्याएं बहुत विराट हो चुकी हैं।कोशिश करने वाले की जान पर खतरा जरूर है।  

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अब अगस्त 1984 की योजना पत्रिका में प्रकाशित कुछ लेखों के शीर्षक देख लीजिए।

केंद्रीय मंत्री रहे बसंत साठे के लेख का शीर्षक है-

‘‘हम तो केवल सत्ता भोगते हैं,शासन तो अफसर चलाते हैं।’’

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खुशवंत सिंह ने लिखा कि अनेक पत्रकार बंधु गैर कानूनी ढंग से पैसे कमाते हैं।

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मधु दंडवते लिखते हैं कि मूल्यों के अनवरत ह्रास ,बढ़ते हुए जातिवाद व भ्रष्टाचार के कारण राजनीति पतन के गर्त तक जा पहुंची है।

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अफसरशाही के बारे में बिहार सरकार मुख्य सचिव रहे पी.एस.अप्पू ने लिखा है कि ‘‘जब राजनीतिक व्यवस्था पतनोन्मुख हो

और समाज में विघटन हो जैसा कि भारत में आजकल हो रहा है,तो यह निस्संदेह कहा जा सकता है कि अफसरशाही को सुधारना संभव नहीं।’’

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 15 जनवरी 2025

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मंगलवार, 14 जनवरी 2025

 किसने नष्ट की गंगा की निर्मलता !

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आज प्रयाग के पास गंगा जल न तो 

नहाने लायक है और न ही पीने लायक

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सुरेंद्र किशोर

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गंगा तेरा पानी अमृत

झर- झर बहता जाए।

युग -युग से इस देश की 

धरती तुझसे जीवन पाए।।

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दशकों पूर्व एक फिल्म बनी थी जिसके गीत का यही मुखरा था।

सही भी था।

मुगल सम्राट अकबर भी रोज गंगा जल ही पीता था।

अंग्रेजों ने भी गंगा की अविरलता को जारी रहने दिया था जिससे गंगा जल की निर्मलता बनी रही।

दरअसल गंगा जल में जैसे दिव्य औषधीय गुण हंै,वैसा गुण 

दुनिया की किसी नदी में नहीं है।यह संयोग नहीं कि कुम्भ-महा कुम्भ का हजारों साल से आयोजन गंगा के ही किनारे होता रहा है।

तीर्थ प्रयाग गंगा,सरयुग और (विलुप्त पौराणिक) सरस्वती का संगम स्थल है।

यदि गंगा नदी किसी अन्य देश में होती तो वहां की सरकार 

इसकी दिव्यता -निर्मलता को बनाये रखने के लिए कुछ भी उठा नहीं रखती।

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पर, आजादी के बाद की एक अलग एजेंडा वाली कांग्रेसी सरकार ने सिंचाई के बहाने गंगा की अविरलता को भारी नुकसान पहुंचाया।

गंगा नदी पर कुल मिलाकर 940 बांध,बराज और वीयर बना दिये गये।अविरलता को बाधित कर दिया गया।

कहते हैं कि जब गंगा अविरल थी तो वह खुद को निर्मल भी करती जाती थी।

सिंचाई का प्रबंध तो किसी अन्य तरीके से भी किया जा सकता था।

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पर,कहते हैं कि एकतरफा सेक्युलर नेहरू सरकार ने गाय,गंगा और पीपल को लेकर जान बूझकर कुछ ऐसा कर दिया जिससे पीढ़ियों को नुकसान हो रहा है।

 देसी गाय के दूध में औषधीय गुण होता है।इसकी जगह कांग्रेस सरकार ने हाईब्रिड गाय का चलन शुरू किया।

सरकार ने खुद पीपल लगाने का काम बंद कर दिया।

जबकि यदि हर पांच सौ मीटर पर पीपल का वृक्ष हो तो पर्यावरण की समस्या उत्पन्न ही नहीं होगी।क्योंकि पीपल से 24 घंटे आक्सीजन निकलता हैं।

दरअसल सनातनी लोग गाय को माता कहते हैं।गंगा को गंगा मइया कहते हैं।

यह भी मानते हैं कि पीपल में देवता का वास होता है।

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 आजादी के तत्काल बाद की हमारी सरकारों को यह मंजूर नहीं था क्योंकि उसमें वे हिन्दू पुनरुत्थान की संभावना देख रहे थे।

उन्हें तो किसी और का उत्थान करना था।

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14 जनवरी 25


गुरुवार, 9 जनवरी 2025

 सदिच्छा है कि इस बार भी बिहार में कार्यरत 

किसी बिहारी पत्रकार को मिले पद्म सम्मान !

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सुरेंद्र किशोर

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सदिच्छा है कि इस बार भी बिहार में कार्यरत किसी बिहारी पत्रकार को पद्म सम्मान मिले।

गत साल मुझे मिला था।

बिहार में कार्यरत किसी बिहारी पत्रकार को पहली बार गत साल मिला।

अधिक महत्वपूर्ण यह है कि बिना मांगे मिला।

 पिछली बार जब मुझे मिला तो संपादक रवीन्द्र नाथ तिवारी ने अपनी मासिक पत्रिका ‘‘भारत वार्ता’’ मेरे नाम समर्पित की थी।

 शायद उन्हें मालूम था कि मैंने उस सम्मान के लिए कभी किसी से आग्रह नहीं किया था।

सन 1954 में ही पद्म सम्मान का प्रावधान शुरू हुआ था।

पर,दशकों बाद यानी गत साल ही पहली बार बिहार में कार्यरत किसी बिहारी पत्रकार को यह सम्मान मिल सका। 

लगता है कि रवीन्द्र नाथ तिवारी मेरी पृष्ठभूमि 

के बारे में भी कुछ जान गये थे।

वह यह कि मैं एक ऐसे किसान परिवार से आता हूं जो अपने परिवार का पहला मैट्रिकुलेट था।

काॅलेज जाने से पहले नंगे पांव ही स्कूल जाता था।

जब सामान्य प्रतिभा और सामान्य पृष्ठभूमि से आने वाले को 

बिन मांगे यह सम्मान मिल सकता है तो बेहतर प्रतिभा वाले पत्रकार बिहार में मौजूद हैं और पहले भी रहे हैं।

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याद रहे कि हर साल 25 जनवरी को पद्म सम्मानित लोगों के नामों की घोषणा हो जाती है।

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9 जनवरी 25


   ताकि आप बाद में यह न कहें कि

 पहले बताया-चेताया क्यों नहीं था ?!

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सुरेंद्र किशोर

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सन 2020 में ही अंतरराष्ट्रीय  इस्लामिक प्रचारक डा.जाकिर नाइक ने कह दिया था कि भारत में हिन्दुओं की संख्या ,कुल आबादी का अब 60 प्रतिशत से भी कम रह गई है।

(यह बात आप भी गुगल पर पढ़ सकते हैं।)

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हाल में सम्बल से सपा सांसद जिया उर रहमान बर्क को टी.वी.पर मैंने यह कहते सुना कि ‘‘भारत में मुसलमानों की संख्या अब 40 प्रतिशत हो चुकी है।’’

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प्रतिबंधित जेहादी संगठन पी.एफ.आई.ने यह तय कर रखा है कि ‘‘हम हथियारों के बल पर सन 2047 तक भारत को इस्लामिक देश बना देंगे।’’

हाल में टी.वी.की चर्चित हस्ती मौलाना रशीदी को मैंने टी.वी.पर ही यह कहते सुना कि 2047 से पहले ही वह काम हो जाएगा।

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अब आप समझ लीजिए कि आप यदि गैर मुस्लिम हैं तो आने वाले वर्षों में आपका और आपके बाल-बच्चों का क्या हाल होने वाला है !

  अन्य देशों और मध्यकालीन भारत का इतिहास आप जानते ही होंगे।नहीं जानते हैं तो एक बार पढ़ लीजिए।

या फिर बांग्ला देश की ताजा घटनाओं को टी.वी.चैनलों पर लाइव देख ही रहे होंगे।गौर से देखिए।

  लगे हाथ यह भी बता दूं कि इस देश का कोई भी तथाकथित सेक्युलर राजनीतिक दल या बुद्धिजीवी इन जेहादियों या इनके कारनामों के खिलाफ कुछ नहीं बोलता या लिखता।

बल्कि उनका बचाव ही करता है।क्योंकि उन्हें उनके एकमुश्त वोट मिलते हैं।

इस मामले में स्थिति मध्यकालीन भारत से भी आज बहुत खराब और चिंताजनक है।

(दरअसल यह बात हमें नहीं पढ़ाई गई है कि पृथ्वीराज चैहान की हत्या के बाद मुहम्मद गोरी के लोगों ने जयचंद को भी मार दिया था।) 

इस देश में सक्रिय जेहादी संगठन पी.एफ.आई से जुड़े राजनीतिक संगठन एस.डी.पी.आई.से, जो चुनाव भी लड़ता है,कांग्रेस की मजबूत साठगांठ है।पूर्व उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी पी.एफ.आई.की महिला शाखा के समारोह में शामिल होने के लिए 23 सितंबर, 2017 में कोझीकोड क्यों गए थे।

उन्हीं तत्वों के बल पर नायनाड से, जहां 48 प्रतिशत मुस्लिम हैं,राहुल गांधी लोस में गये थे। और प्रियंका गांधी वहीं से अब सांसद हैं।

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पी.एफ.आई.का ताजा बयान है कि जिस दिन भारत के 10 प्रतिशत भी मुसलमान हमारे साथ आ जाएंगे ,उस दिन हम भारत को हथियारों के बल पर इस्लामिक देश बना देंगे।

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यानी, 10 प्रतिशत मुस्लिम भी अभी उनके साथ हथियार उठाने को तैयार नहीं हैं।यह इस देश की बहुसंख्यक आबादी के लिए  राहत की बात हंै।

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8 जनवरी 25 

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नई परिभाषा

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पुनश्चः

इस देश के जो राजनीतिक दल, व्यक्ति या बुद्धिजीवी इन जेहादियों के मंसूबे के खिलाफ बोलता या कुछ करता है,उसे इस देश में कुछ लोग नफरती तत्व और कम्युनल कहते हंैं।

  इससे उलट जो राजनीतिक दल या बुद्धिजीवी या व्यक्ति इन जेहादियों के पक्ष में बोलता है या उनके कारनामों को दबाता-छिपाता है,उन्हें कुछ सेक्युलर कहते हंै।

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मंगलवार, 7 जनवरी 2025

 छत्तीगढ़ के खबरखोजी पत्रकार मुकेश 

चंद्राकार की गत माह हुई निर्मम हत्या

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खबर खोजी पत्रकारों की सुरक्षा के लिए संस्थागत

 प्रबंध करे सरकार और मीडिया संस्थान

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सुरेंद्र किशोर

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छत्तीस गढ़ के खबर खोजी पत्रकार मुकेश चंद्राकर की अत्यंत निर्मम तरीके से गत माह हत्या कर दी गयी।

सरकार की सड़क योजना में घटिया निर्माण को लेकर रिपोर्टिंग करने के कारण उसकी हत्या कर दी गयी।

यानी वह पत्रकार एक तरह से सरकार यानी जनता का ही काम कर रहा था। 

हत्याकांड का षड्यंत्रकारी गिरफ्तार कर लिया गया है।यदि सिस्टम ने ठीक से काम किया तो उसे सजा भी हो जाएगी।

पर,बेचारे पत्रकार के परिवार को तो परिवार के मुखिया की गैर मौजूदगी की पीड़ा आजीवन भुगतनी पड़ेगी।

दरअसल खबरखोजी पत्रकारों की जान पर अक्सर खतरा बना रहता है।

कुछ की जान बच जाती है, पर कुछ अन्य की चली जाती है।

या, दूसरे प्रकार से भी ऐसे पत्रकारों को निहित स्वार्थी तत्वों की ओर से भारी नुकसान पहुंचाया जाता है।

बेचारा पत्रकार तो निहत्था होता है--घर पर भी और कार्य स्थल पर भी।

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मीडिया संस्थान यदि किसी पत्रकार को खतरे वाली खबर खोजने में लगाता है तो अब उसकी सुरक्षा का प्रबंध भी उसे करना ही चाहिए।

या तो सरकार बाॅडी गार्ड दे या फिर मीडिया संस्थान कोई इंतजाम करे।यदि सुरक्षा नहीं दे सकता हो तो ऐसे काम में पत्रकार को न लगाये। 

  आज सांसदों-विधायकों तथा अन्य बड़ी हस्तियों को सरकारें उदारतापूर्वक बाॅडी गार्ड क्यांे देती है ?

क्योंकि आज कानून-व्यवस्था को लेकर देश-प्रदेश में आदर्श स्थिति नहीं है।कई मामलों में अवकाश ग्रहण करने के बाद भी उन्हें बाॅडी गार्ड की सुविधा उपलब्ध कराई जाती है।

क्योंकि यह माना जाता है कि जनहित के काम के सिलसिले में उनकी जान पर खतरा कभी भी आ सकता है।सेवा काल में भी और रिटायर होने के बाद भी।

चैथा स्तम्भ भी तो जनहित का ही काम करता है।पत्रकार के  रिटायर होने के बाद उन्हें भी खतरा हो सकता है।

     करीब दो दशक पहले केंद्रीय खुफिया एजेंसी (एस.आई.बी.)के पटना आॅफिस ने अपने दिल्ली आॅफिस और बिहार के डी.जी.पी.को रिपोर्ट भेजी कि एक माफिया ने पटना के एक वरीय पत्रकार (जाहिर है कि रिपोर्ट में नाम भी लिखा था।)को मारने के लिए शूटर रवाना कर दिया है।

डी.जी.पी.,डी.पी.ओझा ने तत्काल उस पत्रकार को आधुनिक आग्नेयास्त्रों के साथ दो सुरक्षा गार्ड मुहैया करा दिये।

वह पत्रकार भाग्यशाली था जो समय पर सूचना मिल गयी थी।

पर, छत्तीस गढ़ का पत्रकार मुकेश चंद्राकर उतना भाग्यशाली नहीं था।

इसलिए ऐसे मामलों को देखते हुए देश -प्रदेश की सरकारें कोई न कोई संस्थागत प्रबंध करे।

ताकि कोई दूसरा मुकेश माफियाओं का शिकार न बने।

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7 जनवरी 25  


रविवार, 5 जनवरी 2025

 उप मुख्य मंत्री विजय कुमार सिन्हा

 के आश्वासन से खुशी हुई

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सुनिश्चित कीजिए कि अगुवानी-सुल्तानगंज 

जैसा हश्र शेरपुर-दिघवारा पुल का न हो !

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सुरेंद्र किशोर

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बिहार के उप मुख्य मंत्री सह पथ निर्माण मंत्री विजय कुमार सिन्हा ने कहा है कि गंगा नदी पर निर्माणाधीन अगुवानी घाट-सुल्तान गंज पुल के ढहने के दोषियों को नहीं छोड़ेंगे।

  वह पुल अब तक तीन बार गिर चुका है।

 निर्माण एजेंसी है-एस.पी.सिंघला।

मंत्री जी के आश्वासन से उम्मीद तो बंधती है।

क्योंकि वे मजबूत आदमी हैं।

शेरपुर-दिघवारा गंगा पुल को भी सिंगला निर्माण एजेंसी ही बना रही है।

अभी तो उसके पिलर का निर्माण हो रहा है।

खुशी है कि अब तक कोई पिलर नहीं ढहा।

पर, असली टेस्ट होगा--सुपर स्क्रचर के निर्माण के समय।

पूरी उम्मीद है कि मंत्री जी तब तक ‘‘अगुवानी’’ के दोषियों के खिलाफ कार्रवाई कर चुके होंगे।

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मैं अभी जेपी गंगा सेतु से गांव जाता हूं।

शेरपुर- दिघवारा पुल के बन कर तैयार होने की बेचैनी से प्रतीक्षा है।

उम्मीद कर रहा हूं कि मेरे जीवन काल में वह पुल तैयार हो जाएगा !!

   निर्माणाधीन शेरपुर-दिघवारा पुल से गांव जाने में अपेक्षाकृत बहुत कम समय लगेगा।

यदि अगुवानी वालों के खिलाफ सबक सिखाने लायक कार्रवाई हो गयी, तब तो मैं शेरपुर-दिघवारा पुल से यात्रा करूंगा।

अन्यथा, मैं खतरा मोल क्यों लूंगा ?!

यह बात मैं इसलिए कहता हूं क्योंकि इस देश में भ्रष्टों पर कार्रवाई करने वाली शक्तियां जितनी मजबूत हैं,उनसे कई गुना अधिक मजबूत वे शक्तियों हैं जो जाति व पैसे के आधार पर उन्हें बचाती रहती हैं। 

गांव जाने में थोड़ा समय ही तो ज्यादा लगेगा-झेल रहा हूं-आगे भी झेल लूंगा।शेरपुर -दिघवारा पुल को दूर से ही प्रणाम कर लूंगा !!

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4 जनवरी 25


बुधवार, 1 जनवरी 2025

 राजनारायण की पुण्य तिथि पर

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(23 नवंबर 1917--31 दिसंबर 1986)

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समाजवादी कार्यकर्ता के रूप में जैसा 

मैंने लोकबंधु राज नारायण को पाया !

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प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी को चुनाव में पराजित करने वाले राजनारायण ने एक फिल्म में भी भूमिका निभाई थी।

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--सुरेंद्र किशोर--

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यह बात सत्तर के दशक की है।

लोहियावादी नेताओं में फूट पड़ 

गयी थी।

सन 1967 में डा.राम मनोहर लोहिया के असामयिक निधन के 

बाद लोहियावादी समाजवादी मुख्यतः राज नारायण और मधु लिमये के खेमों में बंट गये थे।

 जार्ज फर्नांडिस, मधु लिमये के साथ थे।

पूर्व मुख्य मंत्री कर्पूरी ठाकुर समाजवादियों की एकता के पक्षधर थे।

उन्होंने एकतावादी-समतावादी नाम से एक संगठन भी बना लिया था।

 जब एकता का कर्पूरी जी का प्रयास सफल नहीं हुआ तो वह जयप्रकाश नारायण से मिले।

कर्पूरी जी ने जयप्रकाश जी से कहा कि आप पार्टी में एकता के लिए राज नारायण जी को व्यक्तिगत पत्र लिख दें।

जेपी राजी हो गये।

उन्होंने लिख दिया।

पत्र अंग्रेजी में था।

दूसरे दिन मैं वह पत्र लेने पटना के कदमकुआं स्थित जेपी के आवास पर गया था।

जेपी के निजी सचिव सच्चिदानंद ने चिट्ठी तैयार रखी थी।

चिट्ठी लिफाफे रखी थी।

पर, लिफाफा बंद नहीं था।

स्वाभाविक उत्सुकता के तहत मैंने उसे खोल कर पढ़ा।

उस पत्र की कुछ ही बातें मुझे याद हैं।

उस पत्र से राज नारायण यानी नेताजी के प्रति जेपी के स्नेह का पता चला।

फिर समाजवादी आंदोलन में राज नारायण के महत्व का भी पता चला।

साथ ही, जेपी ने उस पत्र में राजनारायण से यह उम्मीद की थी कि वे समाजवादियों की एकता बनाये रखने में अपनी भूमिका निभाएं।

 जेपी की चिट्ठी उनके आवास से लाने का यह मौका मुझे इसलिए मिला था क्योंकि मैं समाजवादी कार्यकत्र्ता के नाते  उन दिनों कर्पूरी ठाकुर का निजी सचिव था।

कर्पूरी ठाकुर उन दिनों बिहार विधान सभा मंे प्रतिपक्ष के नेता थे।उससे पहले कर्पूरी जी सन 1970 में बिहार के मुख्य मंत्री और 1967 में उप मुख्य मंत्री रह चुके थे।

 कर्पूरी जी 1952 से ही लगातार विधायक थे और समाजवादी आंदोलन में उनका बड़ा मान था।

पर, मुझे बाद में लगा कि जेपी की चिट्ठी भी समाजवादियों की खेमेबाजी पर कोई सकारात्मक असर नहीं डाल सकी।

उन्हीं दिनों ही बांका में हुए लोक सभा उप चुनाव में राज नारायण जी का मुकाबला मधु लिमये से हो गया।

दरअसल कर्पूरी ठाकुर ने ही लोक सभा के उस उप चुनाव में राज नारायण जी को उम्मीदवार बनवा दिया था।

संभवतः राजनारायण जी वहां की चुनावी संभावना के बारे मंे पहले से ही सशंकित थे।

 यह बात मैं व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर  कह रहा हूं।

मैं राज नारायण जी से पहले से परिचित था।

पर, शायद उन्हें इस बात की खबर नहीं थी कि मैं इस बीच कर्पूरी जी का निजी सचिव बन चुका था।

राज नारायण जी बांका जाने के लिए पटना रेलवे स्टेशन से गुजरने वाले थे।

वह वहां नामांकन दाखिल करने जा रहे थे।

कर्पूरी जी के साथ मैं भी नेता जी यानी राज नारायण जी से मिलने पटना जंक्शन गया था।

 मुझे देखा तो नेता जी मेरे कंधे पर हाथ रखकर मुझे सबसे अलग ले गये।

  अपने कमजोर कंधे पर उनके भारी हाथ का दबाव मुझे आज भी याद है।

  उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मेरा बांका में उप चुनाव लड़ना सही रहेगा ?

मैं भला क्या कहता !

 कर्पूरी जी का मैं निजी सचिव था।

हालांकि एक राजनीतिक कार्यकत्र्ता के रूप मैं यह महसूस कर रहा था कि सही नहीं रहेगा।

फिर भी मुझे कहना पड़ा कि आपका लड़ना ठीक रहेगा।

नेता जी लड़े और हारे।

मधु लिमये जीत गये।

समाजवादी आंदोलन के लोगों के बीच पहले ‘नेता जी’ राजनारायण ही थे।

मुलायम सिंह यादव तो बाद में नेता जी कहलाए।

   राज नारायण से मेरी थोड़ी लंबी मुलाकात एक बार छपरा में हुई थी जहां वह एक राजनीतिक कार्यक्रम के सिलसिले में आए थे।

उससे पहले सन 1967 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के गया राष्ट्रीय सम्मेलन में मैं उनसे आॅटोग्राफ के लिए मिला था।

उन्होंने मेरे आॅटोग्राफ बुक पर एक अच्छा सा दोहा लिख दिया था।

मैंने तब कई अन्य राष्ट्रीय समाजवादी नेताओं के भी आॅटोग्राफ लिये थे।

वह आॅटोग्राफ बुक अब भी मेरे पास है।

छपरा वाली मुलाकात संभवतः 1969 में हुई।

 तब मैं वहां छात्र था और लोहियावादियों की पार्टी के छात्र संगठन क्रांतिकारी विद्यार्थी संघ का जिला सचिव था।

उसके प्रदेश स्तर के नेता बिहार सरकार के पूर्व नरेंद्र सिंह थे।

 बिहार में युवजन सभा से हटकर छात्रों का भी एक संगठन था जिसका नाम था क्राांतिकारी विद्यार्थी संघ।

 छपरा में  नेता जी के सबसे करीबी थे वकील रवींद्र वर्मा।

  ठीक उसी तरह, जिस तरह पटना में नेता जी के सहयोगी थे भोला प्रसाद सिंह।

 वर्मा जी वकील थे और इलाहाबाद विश्व विद्यालय के छात्र रह चुके थे।

वहीं वे समाजवादियों के प्रभाव में आए थे।

  वर्मा जी अब नहीं रहे।

पर इस अवसर पर इतना जरूर कहूंगा कि समाजवादी आंदोलन को आगे बढ़ाने में अपने छोटे दायरे में ही सही, पर,वर्मा जी का जितना योगदान था,उस अनुपात में न तो उनकी पार्टी ने और न ही समाजवादी सरकारों ने उन्हें कुछ  दिया।

खैर, उसकी चिंता उन्हें नहीं थी।

तब देश के अन्य अधिकतर समाजवादी भी उसकी चिंता नहीं करते थे।

  खैर, वर्मा जी राज नारायण जी को लेकर टैक्सी से सारण जिले के एक सुदूर गांव की ओर जा रहे थे जहां कार्यक्रम था ।मैं भी साथ था।

 वर्मा जी ने राजनारायण जी से मेरा परिचय कराया, 

‘ये हैं सुरेंद्र अकेला।

अच्छे कार्यकत्र्ता हैं।’

 नेता जी ने अपने लहजे में सवाल किया, 

‘का हो अकेला ? 

अभी अकेले हउ अ ?

 शादी नइख कइले ?’ 

मैंने कहा कि जी नहीं।

इस पर नेता जी ने वर्मा जी से कहा कि 

‘रवींदर, फलां .......की छोटी बहन से इसकी शादी करा दूं ?

 वह मेडिकल में पढ़ती है।’ 

उन्होंने लखनऊ के अल्पसंख्यक समुदाय की एक समाजवादी महिला का नेता का नाम लिया था।

जानबूझ कर मैं उनका नाम नहीं लिख रहा हूं।

मैंने कहा कि ‘नेता जी , बहुत गैप है।कहां वह मेडिकल छात्रा और कहां मैं जो बी.एससी. की परीक्षा छोड़कर कार्यकत्र्ता बना हुआ हूं।’

 नेता जी ने कहा कि 

‘मैं सारा गैप पाट दूंगा।’

 पता नहीं, वह मजाक कर रहे थे या वह सिरियस थे।

पर, मुझे उनके चेहरे के भाव से लगा कि वे सिरियस थे।

पता नहीं वे चाहते हुए भी ऐसी शादी करा पाते या नहीं,पर उनका आत्म -विश्वास देखने लायक था।

साथ ही धर्म निरपेक्षता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता भी। 

  तब सांप्रदायिक माहौल आज जैसा बिगड़ा हुआ भी नहीं था।

तब समाजवादी आंदोलन के नेता यह चाहते थे कि राजनीतिक कार्यकत्र्ताओं की पत्नियां नौकरी वाली हों ताकि परिवार चलाने के लिए पैसे की तंगी नहीं हो।

 देश के कई समाजवादी नेताओं की पत्नियां ऐसी थीं भी।

 आज तो राजनीति में इतना पैसा है कि किसी को इसकी चिंता नहीं।

कुल मिलाकर मैं राज नारायण जी को एक निःस्वार्थ, निर्भीक  और जुझारू नेता के रूप मंे याद करता हूं।

 वह अपने साथियों और कार्यकत्र्ताआंे का बड़ा ध्यान रखते थे।

सन 1968 में समाजवादी आंदोलन के सिलसिले में दिल्ली के संसद भवन के पास  हुए प्रदर्शन में मैं भी था।

गिरफ्तारियां हो गयीं।

अनेक नेताओं और कार्यकत्र्ताओं के साथ मैं भी तिहाड़ जेल पहुंच गया।

उस समय जेल जाने वालों में मधु लिमये,राज नारायण ,जनेश्वर मिश्र, किशन पटनायक ,शिवानंद तिवारी ,राजनीति प्रसाद, राम नरेश शर्मा, देवेंद्र कुमार सिंह सहित अनेक छोटे- बड़े नेता-कार्यकत्र्ता  थे।

कुछ समय तक जेल में रहना पड़ा।

कड़ाके की जाड़ा थी।

वह भी दिल्ली की जाड़ा।

फिर भी कंबल ओढ़े ‘‘नेता जी’’ सुबह-सबेरे सभी बंदियों के पास जाते थे।

सबका हाल चाल पूछते थे।

किसे चाय मिली या नहीं, इसका बड़ा ध्यान रखते थे।

मैंने महसूस किया कि व्यक्तिगत रूप से कार्यकत्र्ताओं का ध्यान रखने में राजनारायण जी अन्य बड़े नेताओं से थोड़ा अलग थे।

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(यह विवरण मैं नई पीढ़ी के लोगों के लिए दोबारा यहां पोस्ट

कर रहा हूं।वे छोटे कार्यकर्ताओं से भी स्नेह रखते थे।)