पद्मभूषण सुशील कुमार मोदी कुछ
अलग ढंग के नेता थे
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सुरेंद्र किशोर
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जाना तो एक दिन सबको है।
पर,कुछ लोगों का जाना और वह भी समय से
पहले ही परलोक सिधार जाना, बहुत अखरता है।
सुशील कुमार मोदी और किशोर कुणाल का जाना भी अखर गया।
ये दोनों न सिर्फ अपने काम में पूर्णतावादी थे बल्कि व्यक्तिगत संबंधों में भी सहृदय थे।
पत्रकार के नाते मेरा इन दोनों बेजोड़ हस्तियों से संबंध रहा।
दोनांे के कामों को करीब से देखा।
दोनों के लिए मेरे दिल में सराहना के भाव रहे हैं।
इस बार जब इन्हें पद्म सम्मान मिले,तो जाहिर है कि मुझे खुशी हुई।
पर,कुणाल साहब के मामले में पता नहीं केंद्र सरकार ने क्यों थोड़ी ‘कंजूसी’ कर दी !
उन्हें तो पहले ही पद्म सम्मान मिल जाना चाहिए था।देर से इस बार मिला भी तो कम से कम पद्म भूषण मिलना चाहिए था।
खैर,जो भी और जितना भी हुआ,उसके लिए केंद्र सरकार को बहुत धन्यवाद।
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नियमित सेवा के रिटायर हो जाने के बाद मैं मुख्य पटना से करीब 15-20 किलोमीटर दूर एक गांव में घर बनाकर रहता हूं।
शहर में जाना बहुत ही कम होता है।
सुशील कुमार मोदी हर साल एक खास दिन को पत्रकारों को अपने यहां बुलाते थे।
उन्होंने मुझे हर बार बुलाया।
पर,मैं कभी नहीं गया।उन्हें लगा कि
शायद मैं उनसे उदासीन या नाराज हूं।
एक दिन वे मेरे गांव यानी मेरे घर पहुंच
गये।
मैंने उनकी गलतफहमी दूर की।मैंने कहा कि मैं आपका प्रशंसक रहा हूं और रहूंगा।चूंकि मेरे पास स्थायी महत्व के काम अब भी बहुत हंै और मेरे पास समय कम हैं,इसलिए मैं आम तौर पर कहीं नहीं जाता।
एक जगह जाऊंगा तो अन्य जगह भी जाना पड़ेगा।
दूर बसने के कारण आने-जाने में कुछ व्यावहारिक कठिनाइयां भी हैं।
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दरअसल आम तौर पर न तो नेतागण रिटायर पत्रकारों की खोज -खबर लेते हैं और न ही पत्रकार गण, रिटायर नेताओं की।
ऐसे कुछ संबंध पेशागत और अस्थायी होते हैं।
पर,सुशील मोदी कुछ अलग ढंग के नेता थे।
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और अंत में
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मैं जब अखबार की नियमित सेवा में था तो नव वर्ष के अवसर पर हर साल मुझे बधाई के करीब सौ-सवा सौ फोन आते थे।अब उनमें से कोई फोन नहीं करता।मैं भी रिटायर नेताओं को थोड़े ही याद करता हूं !
इसलिए वैसे किसी के फोन का मैं इंतजार भी नहीं करता।
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