.............................................
विदेशी धन का खतरनाक दखल
.......................................................
--सुरेंद्र किशोर-
.........................................................
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल में जिस नए ढंग
की एफ.डी.आइ.के खतरे की ओर इशारा किया,
उसके पीछे विदेशी धन की ताकत है।
.............................................
पिछले दिनों प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने एफडीआइ
की एक नई परिभाषा दी।
उन्होंने कहा कि एफडीआइ यानी फाॅरेन डिस्ट्रक्टिव आइडियोलाॅजी।
देखा जाए तो देश में इसकी नींव सन 1967 में ही पड़ गई थी।
तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री यशवंत राव चव्हाण ने तब लोक सभा में कहा था कि
‘‘जिन दलों और नेताओं को विदेशों से धन मिले हैं,उनके नाम जाहिर नहीं किए जा सकते,क्योंकि उससे उनके हितों को नुकसान पहुंचेगा।’’
उनके बयान के बाद विदेश से मिले नाजायज धन को लेकर इस देश के अनेक नेताओं ,संगठनों और दलों की झिझक समाप्त हो गई।
उसके दुष्परिणाम आज तक नजर आ रहे हैं।
याद रहे कि तब धन पाने वालों में कांग्रेस सहित कई प्रमुख दल शामिल थे।
समय बीतने के साथ इस देश की राजनीति एवं अन्य क्षेत्रों में विदेशी पैसों का दखल बढ़ता चला गया।
पहले विदेशी धन का उद्देश्य सीमित था।
अब न सिर्फ व्यापक हो गया,बल्कि खतरनाक भी बन गया है।
पहले विचारों को प्रभावित करने के लिए और लोगों को अपनी ओर मोड़ने के लिए विदेशी तत्वों ने भारत में पैसे झोंके।
पर अब तो देश को तहत -नहस करने ,अशांति फैलाने और अततः देश को तोड़ने की कोशिश में विदेशी पैसों का इस्तेमाल हो रहा है।
यह देश के खिलाफ अघोषित युद्ध जैसा है।
इस गंभीर स्थिति से निपटने के लिए तदनुसार सख्त कानून बनाने की ओर अभी केंद्र सरकार का ध्यान नहीं है।
नतीजतन हमारी अदालतें भी इस नई एफडीआइ के वाहकों के खिलाफ वांछित सख्ती नहीं बरत पा रही हैं।
हालांकि सन 2014 के बाद एनजीओ के बहाने गलत उद्देश्यों की पूत्र्ति के लिए आने वाले धन पर काफी हद तक रोक लगी है।
पर हवाला चैनलों पर प्रभावकारी रोक लगना अब भी बाकी है।
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस नए ढंग की एफडीआइ के खतरे की ओर इशारा किया है ,उसके पीछे विदेशी धन की ताकत है।
अब यह बात छिपी हुई नहीं है कि कुछ देसी-विदेशी शक्तियों का घोषित और अघोषित उद्देश्य इस देश को तोड़ना है।
काश ! सन 1967 में ही इस स्त्रोत पर प्रभावी रोक लगा दी गई होती तो आज स्थिति इतनी नहीं बिगड़ती।
चिंताजनक बात यह है कि बाद के वर्षों में भी विदेशी धन की आवक पर कारगर रोक नहीं लग सकी।
अब जरा हम सन 1967 में चलें।
तब आम चुनाव के बाद देश के नौ राज्यों से (सात राज्यों से आम चुनाव के जरिए और दो से दल बदल के जरिए)कांग्रेस सत्ताच्युत हो गई।
लोक सभा में भी कांग्रेस का बहुमत घट गया।
इस हार से चिंतित तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने अनुमान लगाया कि शायद विदेशी पैसों ने चुनाव नतीजे पर असर डाला है।
(तब इंदिरा जी को लगा था कि विदेशी पैसों का चुनाव में इस्तेमाल सिर्फ गैर कांग्रेसी दलों ने कांग्रेस के खिलाफ किया।)
इंदिरा जी ने (विदेश से मिले)चुनावी चंदे के बारे में खुफिया एजेंसी से जांच कराई।
उसकी रपट के अनुसार तब कांग्रेस सहित कई प्रमुख दलों ने (सिर्फ एक दल अपवाद था)चुनाव लड़ने के लिए किसी न किसी देश से धन लिया था।
(जब खुफिया रपट में सरकार ने कांग्रेस का भी नाम देखा तो उस रपट को दबा दिया गया।
किंतु ‘न्यूयार्क टाइम्स’ ने उसे छाप दिया।
उस अमरीकी अखबार की खबर इस देश में फैल गई।)
लोक सभा में यह मांग की गई कि सरकार उन दलों व व्यक्तियों के नाम बताए।(दिलचस्प बात यह रही कि उन दलों के नेता भी मांग कर रहे थे जिन दलों ने पैसे लिए थे।)
पर चव्हाण ने वह मांग नहीं मानी।
तब दुनिया में शीत युद्ध का दौर था।
भारत सहित अनेक देशों में अमरीका और सोवियत संघ अपने समर्थकों की संख्या बढ़ाने की कोशिश में लगे हुए थे।
इसके लिए वे पैसे खर्च कर रहे थे।
कम्युनिस्ट देश भारत में भी कम्युनिस्टों पर निर्भर सरकार चाहते थे।
दूसरी ओर, अमेरिका ऐसी किसी कोशिश को विफल कर देना चाहता था।
यानी, यहां के.जी.बी.और सी.आइ.ए.दोनों सक्रिय थे।
देश में ‘सोवियत सक्रियता’ का ठोस सबूत तब मिला जब वहां की खुफिया एजेंसी के.जी.बी.की भारत में गतिविधियों पर लिखित पुस्तक ‘द मित्रोखिन अर्काइव-दो’ सन 2005 में सामने आई।
इसके अनुसार के.जी.बी.ने भारत में विचारधारा के प्रचार और सरकारी नीतियों को अपने पक्ष में मोड़ने के लिए पैसे बांटे थे।
बाद में जैन हवाला कांड ने तो विदेशी धन के आगमन को और भी आसान बना दिया।
पुलिस ने 25 मार्च, 1991 को श्रीनगर में अशफाक हुसैन लोन को गिरफ्तार किया।
वह हिजबुल मुजाहिद्दीन का सदस्य था।
उसके पास से 16 लाख रुपए बरामद किए गए।
वे रुपए कश्मीर में आतंकवादियों को बांटे जाने थे।
उससे पूछताछ के आधार पर पुलिस ने जे.एन.यू. के एक शोध छात्र शहाबुद्दीन गौरी को गिरफ्तार किया।
उससे मिली जानकारी के आधार पर सी.बी.आई.ने हवाला व्यापारी जैन बंधुओं के यहां छापा मारा।
उसमें भारी रकम के अलावा एक डायरी भी मिली।
छानबीन से पता चला कि उन्होंने देश के 115 बड़े नेताओं (पैसे पाने वालों में कोई कम्युनिस्ट नेता शामिल नहीं था)
और अफसरों को कुल 64 करोड़ रुपए दिए थे।
तब के विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद के अनुसार चुनाव फंड में पारदर्शिता न होने के कारण हवाला कांड जैसे कांड होते हैं।
पर सवाल यह भी उठा कि क्या कोई व्यक्ति आपको पैसे देने आएगा तो बिना उसका कुल-गोत्र जाने उससे आप पैसे ले लेंगे ?
उसका असल परिचय जानने की कोशिश भी नहीं करेंगे ?
यदि तब सही से जांच हो जाती तो और कुछ बड़ी हस्तियों को जेल की हवा खानी पड़ती तो आज नई एफडीआइ की चर्चा नहीं हो रही होती।
(एक बड़े नेता ने हवाला व्यापारी से तब 60 लाख रुपए लिए थे।
30 लाख अपने दल को और 30 लाख अपने दामाद को दे दिए।)
माना जाता है कि राजनीतिक हित सध जाने के बाद हवाला कांड में लीपापोती करा दी गई।
यह लीपापोती ऐसे कांड में हुई जिसमें आतंकवाद का तत्व भी जुड़ा हुआ था।
साफ है कि हवाला कारोबारियों पर शुरू से ही कड़ी नजर रखी गई होती तो आज इस देश के टुकड़े -टुकड़े गिरोह को विदेशी पैसे मिलने में दिक्कत आती।
हालांकि आतंकवाद के प्रति मौजूदा शासकों का रवैया हाल के वर्षों में काफी बदला जरूर है। (नरेंद्र मोदी के लिए जन समर्थन बढ़ने का यह एक बड़ा कारण है।)पर,अभी बहुत कुछ करना बाकी है।
आज कृषि कानून विरोधी आंदोलन के बहाने जो कुछ लोग राज सत्ता को चुनौती दे रहे हैं,उनमें से कतिपय के विदेशी कनेक्शन हैं।
कुछ ‘आंदोलनजीवियों’ के तो विदेशी कनेक्शन हैं ही।
कैसे कोई एक ही व्यक्ति जो कभी जेएनयू में आतंकी अफजल गुरु की बरखी मनाने वालों के साथ होता था,वही कृषि कानून विरोधी आंदोलन के साथ दिखता है।
वही शख्स शाहीन बाग में भी भीड़ को बौद्धिक खुराक देता नजर आता था।
तोड़फोड़ एवं देशद्रोही नारे लगाने वाले तत्व बारी -बारी से तीनों जगह पाए गए हैं।
इससे पता चलता है कि आज हमारे देश के सामने कितने बड़े -बड़े खतरे मौजूद हैं।
उनसे हमें मुकाबला करना ही होगा।
इसके लिए यह जरूरी है कि हमारा देश आर्थिक रूप से काफी मजबूत हो जाए।
.............................
17 फरवरी 21
...........................
(कोष्ठक में लिखी गई बातें दैनिक जागरण में इस लेख के छपने के बाद जोड़ी गई है ताकि बातें और स्पष्ट हो सकें।)