शनिवार, 27 नवंबर 2021

   ईश्वर ने यह शरीर सौ साल के लिए बनाया

  शराब पीकर अपनी आयु आधी क्यों कर रहे हो ?

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  पत्नी व बच्चों को अनाथ व बिलखता छोड़कर 

   क्यों चले जाना चाहते हो ?

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 ---सुरेंद्र किशोर-- 

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महात्मा गांधी के आह्वान पर कांग्रेसियों ने सन 1921 में शराब,गांजा आदि की दुकानों पर धरना दिया और वे जेल गए।

गांधी जी मानते थे कि 

‘‘आबकारी से प्राप्त राजस्व पाप की आमदनी है।’’

डा.राजेंद्र प्रसाद के अनुसार, अंत -अंत तक गांधी जी अपने इस विचार पर कायम रहे।

पर कांग्रेसियों ने बिहार में जगलाल चैधरी को सन 1952 में मंत्री बनाने से इनकार कर दिया क्योंकि जब वे उससे मंत्री थे तो नशाबंदी लागू कर दी थी।

जबकि नशाबंदी की आय से ही उनके परिवार ने जगलाल चैधरी को मेडिकल पढ़ाने के लिए कलकत्ता भेजा था।

चैधरी जी ने जनहित में न तो

अपने परिवार की आय का ध्यान रखा और न ही अपनी जाति पासी की आय का।

देश का नेता हो तो ऐसा !

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आजादी के तत्काल बाद से ही सत्ताधारी कांग्रेसियों ने गांधी की इस बात का भी उलंघन करना शुरू कर दिया था।

तब के शीर्ष सत्तासीनों ने कहा था कि आबकारी राजस्व के बंद होने से शिक्षा व विकास जैसे जनोपयोगी काम रुक जाएंगे।

उस पर गांधी ने कहा कि ‘‘पाठशालाओें को बंद कर देना पड़े तो उसे मैं सहन कर लूंगा।

पर, पैसे के लिए कुछ लोगों को पागल बनाने की नीति एकदम गलत है।’’

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गांधी जी को इस बात का दुख था कि सन 1921 में नशाबंदी के लिए जेल जाने वाले कांग्रेसी सत्ता पाने के बाद अब कहते हैं कि नशाबंदी मौलिक अधिकारों का हनन है।

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2016 से लागू शराबबंदी के बाद बिहार में फर्क आया।

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राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार 2015-16 और 2019-20 के बीच बिहार में एक करोड़ लोगों ने शराब पीना छोड़ दिया।

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बिहार के एक पिता ने अपने पुत्र के बारे में बताया--

‘‘मेरा बेटा अपने अमीर मित्रों के साथ उनके खर्चे से शराब पी रहा था।

अब चूंकि कड़ाई हो गई और काले बाजार में शराब महंगी भी हो गई।इसलिए अब अमीर मित्र अपने गरीब मित्र को मुफ्त में शराब नहीं पिला रहा है।

इस तरह मेरा बेटा आदतन शराबी बनने से बच गया।’’

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कुछ शराबियों का तर्क है कि मशहूर लेखक-पत्रकार खुशवंत सिंह तो रोज शराब पीकर भी सौ साल जीए।

अरे भई,अपवाद नियम नहीं बन सकता।

मैं पटना के ही कई पत्रकारों को जानता हूं जो शराब-सिगरेट के कारण आधी उम्र में ही परिवार को बिलखता छोड़कर ऊपर

चले गए।

इस देश के कई तेजस्वी व जनाधार वाले नेता अपनी किडनी-लीवर डैमेज करके अपने प्रशंसकों व अनुयायियों को 

निराश कर दिया।

कुछ ऊपर चले गए,कुछ अन्य रास्ते में हैं।

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27 नवंबर 21

 


बुधवार, 24 नवंबर 2021

      पवन वर्मा की राजनीतिक यात्रा

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       --सुरेंद्र किशोर--

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बहुत पहले की बात है।

नई दिल्ली के एक बड़े अखबार के सहायक संपादक अखबार के मालिक से मिले।

उन्होंने अपनी एक दर्जन किताबों को उन्हें समर्पित करते हुए उनसे कहा कि ‘‘मुझे संपादक का पद मिलना चाहिए।’’

  मालिक ने पुस्तकों को उलट-पलट कर देखा और सहायक संपादक जी से कहा कि 

‘‘आप हमारा काम कर रहे थे या किताबें लिख रहे थे ?’’

  सहायक संपादक महोदय समझ गए कि मालिक उन्हें संपादक नहीं बनाएगा।

वे वहां से जल्द ही विदा हुए।

कुछ दिनों के बाद अखबार से भी।

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 प्रायवेट सेक्टर में ऐसा ही होता है।

आपको वह काम करना पड़ता है जिस काम के लिए आप बहाल हुए हंै।

पर, सरकार में या राजनीतिक दलों में ?

काम करने की कोई मजबूरी नहीं।

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जदयू से निष्कासित जदयू के पूर्व राज्य सभा सदस्य पवन वर्मा ने अब ममता बनर्जी की पार्टी ज्वाइन कर ली है।

शुभकामना !

उम्मीद है कि वर्मा जी ममता को प्रधान मंत्री बनवाने की भरपूर कोशिश करेंगे।

राजनीति में आने से पहले वर्मा जी विदेश सेवा में थे।

हाल ही में वर्मा जी ने बताया कि

 ‘‘मैंने 24 किताबें लिखी हैं।’’

जब वे सरकारी सेवा में थे,तभी उनकी एक मशहूर किताब 

‘द ग्रेट इंडियन मिडिल क्लास’ (1998)आई थी।

पर,मुझे यह नहीं मालूम कि 24 में से कितनी किताबें उन्होंने सरकारी सेवा काल में लिखीं और कितनी बाद में ?

जवाहरलाल नेहरू जब आंदोलन में थे तो जेल में किताबें लिखते रहे।

पर प्रधान मंत्री बनने के बाद ?

मुझे नहीं मालूम कि उन्हें किताब लिखने की फुर्सत मिली।

आम तौर पर सरकारी सेवक भी रिटायर होने के बाद ही किताब लिख पाते हैं।

एक एम.पी.की भी कम जिम्मेदारियां नहीं होतीं,यदि वह ईमानदारी से उसे निभाए। 

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पवन वर्मा एक सुपठित व विद्वान व्यक्ति हैं।

उनकी किताब भी लोग पढ़ते हैं।

किंतु सवाल है कि किताबें लिखने के क्रम में आपने अपनी सरकारी सेवा व राज्य सभा की सदस्यता के कत्र्तव्यों के साथ कितना न्याय किया ?

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अब आप तृणमूल कांग्रेस के सदस्य बन गए हैं।

 सुप्रीमो ममता बनर्जी की अपने सदस्यों से कुछ सामान्य तो कुछ असामान्य अपेक्षाएं रहती हैं।

टीएमसी नेतृत्व की अपेक्षाएं कई बार राष्ट्रहित से टकराती रहती हैं।

उम्मीद है कि उन सारी अपेक्षाओं पर वर्मा जी खरा उतरेंगे ताकि उनकी राजनीतिक यात्रा में स्थिरता आ सके।

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24 नवंबर 21 


 



सोमवार, 22 नवंबर 2021

 बेहतर हो राजनीतिक पार्टियां तालाब के 

 बदले अविरल नदी बनें।

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     --सुरेंद्र किशोर--

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शहजाद पूनावाला भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाए गए हैं।

भाजपा अध्यक्ष जे.पी.नड्डा ने यह नियुक्ति की है।

पूनावाला को आप अक्सर टी.वी चैनलों पर देखते होंगे।

 उनको विषय की जानकारी रहती है।

  श्री नड्डा ने महाराष्ट्र के विनोद तावड़े को भाजपा का राष्ट्र्रीय महा मंत्री नियुक्त किया है।

ऋतुराज सिन्हा और आशा लकड़ा को राष्ट्रीय मंत्री तथा भारती घोष को राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाया है।

  अब आप पूछिएगा कि इन नियुक्यिों में खास बात क्या है ?

यह सब काम तो अन्य राजनीतिक दल भी करते ही रहते हैं।

खास बात जरूर है।

 अन्य अधिकतर दलों व भाजपा में यह अंतर दिखाई पड़ता है कि भाजपा हर स्तर पर नए -नए लोगों को जिम्मेदारियां देती रहती है।

उदाहरणार्थ कुछ साल पहले एल.के.आडवाणी की जगह नरेद्र मोदी शीर्ष पर ला दिए गए।

 यही प्रक्रिया राष्ट्रीय मंत्री से लेकर राज्यों में सत्ता व पार्टी के संगठनात्मक पदों पर भी चलती रहती है।

  कोई नेता भाजपा में खुद को अपरिहार्य नहीं मान सकता।

कभी जनसंघ में उसके अध्यक्ष बलराज मधोक की तूती बोलती थी।

पर, जनसंघ से हटे तो राजनीति में महत्वहीन हो गए।

हालांकि उन्होंने कुछ किताबें आंखें खोलने वाली लिखी हैं।

  अन्य अधिकतर दलों में दशकों से अधिकतर पदों पर कुछ ही चेहरे या परिवार काबिज रहते रहे हंै।

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नानाजी देशमुख चाहते थे कि नेता को साठ साल के बाद रिटायर हो जाना चाहिए।

वे खुद हो भी रिटायर गए थे।

बाद में भाजपा ने अधिकत्तम आयु सीमा 75 साल तय की।

यानी पुराने लोग हटते जाएं और नए लोगों को जगह मिलती जाए ।

यानी पार्टी नदी बने न कि तालाब।

इससे नए लोगों को भी लगता है कि उनका भी पार्टी में कोई भविष्य है।

दूसरी ओर, कुछ दल ऐसे हैं जिन दलों में आप मुख्य मंत्री,प्रधान मंत्री बनने की आस लिए शामिल नहीं हो सकते।

क्योंकि वे पद खास-खास परिवारों के लिए आरक्षित हंै।

अब तो सांसद व विधायक की सीटें भी परिवार के लिए रिजर्व होती जा रही है।

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तालाब के जल और नदी के जल में क्या अंतर है ?

नदी का जल यदि अविरल है तो वह सड़ता नहीं।

तालाब के जल के सड़ने का चांस अधिक हैं।

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21 नवंबर 21

 


गुरुवार, 18 नवंबर 2021

    पश्चिम बंगाल के एक तिहाई भूभाग कुछ मामलों 

   में अब ममता बनर्जी के कंट्रोल से बाहर

  केंद्र ने किया गंभीर बीमारी का होमियोपैथी इलाज 

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      सुरेंद्र किशोर

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सीमा सुरक्षा बल कानून (यानी बी एस एफ एक्ट) में ताजा संशोधन के साथ ही अब यह फोर्स पश्चिम बंगाल के एक तिहाई भूभाग पर तलाशी और गिरफ्तारी कर सकेगा।

  इसके लिए उसे स्थानीय पुलिस या प्रशासन से अनुमति लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

अंतरराष्ट्रीय सीमा पर घुसपैठ व तस्करी रोकने के लिए केंद्र सरकार ने यह कदम उठाया है।

यह कदम पश्चिम बंगाल की ‘बीमारी’ का केंद्र द्वारा किया जा रहा ‘‘होमियोपैथ इलाज’’ है।

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याद रहे कि मुख्य मंत्री ममता बनर्जी कह चुकी हैं कि यदि पश्चिम बंगाल में सी ए ए और  एन आर सी लागू किया गया तो खून की नदियां बह जाएंगी।

ममता के भतीजे के खिलाफ कोयला तस्करी के आरोप में केंद्रीय एजेंसी इन दिनों जांच कर रही है।

  यानी, ममता बनर्जी नहीं चाहती हैं कि बड़ी संख्या में अवैध ढंग से रह रहे बांग्ला देशी घुसपैठियों के नाम मतदाता सूची से बाहर किया जाए।

कैसे चाहेंगी ?

वह तो उनके वोट बैंक का मुख्य आधार जो है !

ममता ने 2005 में इन्हीं घुसपैठियों के खिलाफ लोक सभा में आवाज उठाई थी। 

 जब उन्हें इस मुद्दे पर बोलने का मौका नहीं मिला तो ममता ने लोक सभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था।

तब मतदाता बने घुसपैठिए वाम मोर्चा को वोट दे रहे थे।

 अब वे ममता के दल को वोट दे रहे है।

वोट के सामने राष्ट्र रक्षा की परवाह इस देश के अनेक नेताओं कत्तई नहीं रहती।

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18 नवंबर 21 


   शराब बंदी के बाद बिहार में 

  एक करोड़ लोगों ने शराब छोड़ी

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  क्या शराबबंदी के बाद ड्रग्स की 

  खपत राज्य में बढ़ गई ? !!

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 यदि यह सच है कि नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो

 को बिहार में भी सक्रिय किया जाना चाहिए

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   --सुरेंद्र किशोर-

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सन 2016 के पूर्वार्ध में बिहार में नीतीश सरकार ने शराबबंदी लागू कर दी।

तब से आज तक के अधिकृत आंकड़ों के अनुसार बिहार में एक करोड़ लोगों ने शराब पीना छोड़ दिया है।

 स्वाभाविक है कि उनके परिवार पर इसका सकारात्मक असर पड़ा होगा।

खबर है कि पडा़ भी है।कुछ अन्य सकारात्मक असर भी पड़े हैं।

  यदि शराबबंदी से समाज को फायदा हो रहा है और आगे और फायदा होने की उम्मीद है तो शराबबंदी को समाप्त क्यों कर दिया जाए ? 

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अन्य लोगों की बातें और लोग करें, किंतु मैंने खुद पिछले कुछ दशकों में पत्रकारिता क्षेत्र के कई प्रतिभाशाली पत्रकारों को शराब-सिगरेट-गुटका-जर्दा पान का अति पान करके समय से पहले काल के गाल में समाते देखा है।

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महात्मा गांधी आबकारी राजस्व को पाप की आमदनी मानते थे।

उनके निदेश पर सन 1921 में लोगों ने शराब,गांजा आदि की दुकानों पर धरना दिया था।

नशा के विरोध में कांग्रेसी जेल भी गए थे।

उससे ब्रिटिश सरकार की आय आंदोलन के दौरान कम हो गई थी।

पर, गांधी जी को आजादी के बाद इस बात का अफसोस था कि वही कांग्रेसी नेता सत्ता में आने के बाद अब शराबबंदी को जरूरी नहीं मानते।

  यहां तक कि बिहार के आबकारी मंत्री जगलाल चैधरी ने,जो स्वतंत्रता सेनानी थे, जब राज्य में नशाबंदी लागू की तो उन पर कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व इतना नाराज हुआ कि उन्हें बाद में कभी मंत्री तक नहीं बनने दिया था।

जबकि जगलाल चैधरी इतने बड़े नेता थे कि सन 1937 के बिहार मंत्रिमंडल के सिर्फ चार कैबिनेट मंत्रियों में एक थे।

अन्य थे--प्रधान मंत्री--डा.श्रीकृष्ण सिंह,डा.अनुग्रह नारायण सिंह और डा.सैयद महमूद।

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खबर है कि शराबबंदी के बाद बिहार में ड्रग्स की खपत बढ़ी है।

यदि यह खबर सही है तो नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो को बिहार में भी सक्रिय किया जाना चाहिए।

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17 नवंबर 21

   


सोमवार, 15 नवंबर 2021

 कानोंकान

सुरेंद्र किशोर

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पार्कांे के बिना सड़कों पर टहल कर दुर्घटनाग्रस्त होते रहेंगे लोग

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एक बार फिर सुबह में टहलने वालों की जानें र्गइं हैं।

भोजपुर जिले के पीरो थाना क्षेत्र में हाल में यह घटना हुई।

स्कोर्पियो से कुचल कर चार महिलाओं की मौत हो गई।

आए दिन ऐसी खबरें जहां- तहां से आती रहती हैं।

टहलने की जगह के अभाव में लोगबाग सड़कों पर टहलने को विवश हैं।

बिहार के अधिकतर छोटे-बड़े शहरों का भी यही हाल है।

 बिहार सरकार ने मुहल्ले बसाना छोड़ दिया है।

व्यवस्थित ढंग से मुहल्ले बसते तो उनमें पार्क आदि का प्रावधान रहता।

निजी क्षेत्र के अधिकतर बिल्डर्स और डेवलपर्स पार्कों के लिए स्थान छोड़ने का वादा तो करते हैं ,पर अपवादों को छोड़कर बाद में वे उसे भी बेच देते हैं।  

  अब सवाल है कि सुबह-शाम में सैर करने वालों की जान कैसे बचे ?

फिलहाल एक उपाय ध्यान में आता है।

 जहां भी जमीन उपलब्ध हो सके,वहां राज्य सरकार पार्क बनवाए।

कुछ जगह तो इस काम के लिए सरकारी जमीन भी मिल जा सकती है।

 एक ऐसी संभावित जगह की चर्चा प्रासंगिक होगी।

प्रारंभिक योजना के अनुसार बक्सर-आरा-पटना  नेशनल हाईवे पटना एम्स तक जाने वाला था।

पर, अब उसकी जगह दानापुर-बिहटा एलिवेटेड रोड बनेगा।

यानी दानापुर-बिहटा मार्ग से निकलकर एम्स की तरफ जाने 

वाले  प्रस्तावित एन.एच.के लिए अधिग्रहीत जमीन अब बिहार सरकार को मिल जाएगी,ऐसी खबर आई है।

यदि यह खबर सही है तो बिहार सरकार उस जमीन पर क्यों न लंबा पार्क बना दे ?

पटना महानगर वहां तक फैलता जा रहा है।

वहां जो मुहल्ले बस रहे हैं,उनमें भी पार्क कहीं नजर नहीं आ रहा है।

यदि सड़क के लिए अधिग्रहीत जमीन को पार्क बना दिया जाए तो उस इलाके के लोग सड़क पर टहलते हुए जान नहीं गंवाएंगे !

हां, एक खास उद्देश्य से अधिग्रहीत जमीन का इस्तेमाल दूसरे काम के लिए किया जा सकता है ?

यह एक कानूनी सवाल है।

यदि इसमें कानूनी बाधा हो तो उसे दूर करने की कोशिश भी राज्य सरकार कर सकती है। 

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प्रयोजन बताए बिना 

बिना विदेशी फंड नहीं

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सुप्रीम कोर्ट ने ठीक ही कहा है कि विदेशी दानकत्र्ता की तरफ से प्रयोजन बताए जाने के बाद यहां के एन.जी.ओ.  विदेश से फंड लेने के हकदार होंगे।

   जिस उद्देश्य से गैर सरकारी संगठन यानी एन.जी.ओ.का गठन हुआ है ,उस उद्देश्य की पूत्र्ति के लिए ही बाहर से पैसे मंगाए जा सकते हैं।

  आम तौर पर सामामजिक,सांस्कृतिक और धार्मिक उद्देश्यों के लिए विदेशी फंड भी इस्तेमाल होते हैं। 

लेकिन हाल के दिनों में भारत सरकार के खुफिया संगठन ने यह जानकारी दी कि विदेशी फंड का दुरुपयाग हो रहा है।

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मधु दंडवते जिनकी 

आज पुण्य तिथि है

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सन 1977 में जब उन्हें मंत्री बनाए जाने की खबर लेकर अफसर बिट्ठल भाई पटेल भवन पहुंचे तो उस समय मधु दंडवते बाथरूम में अपने कपड़े धो रहे थे।

  वे अपने कपड़े खुद ही धोते थे।

  उससे पहले तत्कालीन प्रधान मंत्री मोरारजी देसाई ने मधु लिमये से कहा था कि मैं मधु दंडवते,जार्ज फर्नांडिस और तुम में से किन्हीं दो को मंत्रिमंडल में लेना चाहता हूं।

  लिमये ने उनसे  कहा कि आप मधु दंडवते और जार्ज को मंत्री बना दीजिए।

इस तरह दंडवते रेल मंत्री बने।

  उन्होंने मंत्री बनते ही यह घोषणा की कि ‘‘मैं नहीं चाहता कि मंत्री, राजा -महाराजा की तरह चलें।

यह सामंती प्रथा खत्म होनी चाहिए।’’

    उन्होंने रेलवे में पहले से जारी विशेष कोटा को समाप्त कर दिया।

साथ ही, उन्होंने जनरल मैनेजरों को एक परिपत्र भेजा।

उसमें मंत्री ने लिखा  था कि अगर कोई अपने को मेरा मित्र या रिश्तेदार बताकर विशेष सुविधा चाहे तो उसे

 ठुकरा दिया जाए।

मधु दंडवते कहते थे कि कई बार जो गलत काम होते हैं, भ्रष्टाचार हो या अपने रिश्तेदारों के प्रति पक्षपात हो,वे ऊपर से शुरू होते हैं और नीचे तक जाते हैं।इसलिए जरूरी है कि ऊपर भ्रष्टाचार नहीं हो।

दंडवते ने ही रेलगाड़ी के स्लिपर दर्जे में उस समय तक उपलब्ध लकड़ी के तख्त पर गद्दे लगवाए।

   स्वभाव से विनम्र और मधुरभाषी मधु दंडवते स्वतंत्रता सेनानी और समाजवादी नेता थे जिनका लोगबाग सम्मान करते थे।

 1924 में महाराष्ट्र के अहमद नगर में जन्मे मधु जी का 2005 में निधन हो गया।वे महाराष्ट्र के राजा पुर से पांच बार लोक सभा के लिए चुने गये थे।

वी.सिंह मंत्रिमंडल मंे वित्त मंत्री रहे मधु दंडवते 1951 से 1971 तक  मुम्बई विश्व विदयालय में नाभकीय भौतिकी के अध्यापक थे।

जो व्यक्ति राजनीति के काजल की कोठरी से बेदाग बाहर निकल आता है,उसे आने वाली पीढ़ियां याद रखती हैं।

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और अंत में

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ड्रग्स या मदिरा पान करने वालों को किसी तरह के सरकारी सम्मान या पुरस्कार के योग्य नहीं माना जाना चाहिए।

इससे राज्य में शराबबंदी लागू करने वाली सरकार को नैतिक बल मिलेगा।

  केंद्र सरकार इस मामले में जो करे,किंतु जिन राज्य  सरकारों  ने शराब बंदी लागू की है,कम से कम वे सरकारें तो  शराब पीने वालों को पुरस्कृत न करें।

यदि किसी के बारे में यह पता चले कि मदिरा पान के कारण ही उनका निधन हुआ है तब तो उन्हें मरणोपरांत भी कोई पुरस्कार-सम्मान न मिले। 

  कांग्रेस की सदस्यता पाने के लिए भी आज यह एक जरूरी शत्र्त है कि वह व्यक्ति  मदिरा पान नहीं करता हो।जाहिर है कि स्वतंत्रता सेनानियों ने यह नियम बनाया था।

 आज की राजनीतिक पीढ़ी को उन स्वतंत्रता सेनानी की अच्छी मंशा को ध्यान में रखना चाहिए। 

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शुक्रवार, 12 नवंबर 2021

 शराबी जब पार्टी का सदस्य 

नहीं बन सकता तो उसे कोई 

पुरस्कार या सम्मान क्यों ?

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--सुरेंद्र किशोर--

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ड्रग्स या मदिरा पान करने वालों को किसी तरह के सरकारी सम्मान या पुरस्कार के योग्य नहीं माना जाना चाहिए।

इससे राज्य में शराबबंदी लागू करने वाली सरकार को नैतिक बल मिलेगा।

  केंद्र सरकार इस मामले में जो करे,किंतु जिन राज्य  सरकारों ने शराब बंदी लागू की है,कम से कम वे सरकारें तो  शराब पीने वालों को पुरस्कृत न करें।

यदि किसी के बारे में यह पता चले कि मदिरा पान के कारण ही उनका निधन हुआ है तब तो उन्हें मरणोपरांत भी कोई पुरस्कार-सम्मान न मिले। 

  कांग्रेस की सदस्यता पाने के लिए  आज भी यह एक जरूरी शत्र्त है कि वह व्यक्ति मदिरा पान नहीं करता हो।

  जाहिर है कि स्वतंत्रता सेनानियों ने यह नियम बनाया था।

 आज की राजनीतिक पीढ़ी को उन स्वतंत्रता सेनानी की अच्छी मंशा को ध्यान में रखना चाहिए। 

--कानोंकान ,प्रभात खबर

पटना-12 नवंबर 21

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हाल में इकाॅनामिक्स टाइम्स में छपी एक खबर के अनुसार कांग्रेस उपर्युक्त शत्र्त से अपने भावी सदस्यों को मुक्त कर देना चाहती है।

  उसके अनुसार जमाना बदल गया है।

इसके लिए वह शायद कोई समिति भी बनाने वाली है।

कांग्रेस जो करे ,पर बाकी लोग जिनके दिल में स्वतंत्रता सेनानियों के लिए सम्मान बचा है,वे तो ऊपर लिखी मेरी सलाह को सकारात्मक ढंग से लेंगे,ऐसी उम्मीद है। 

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गुरुवार, 11 नवंबर 2021

 


   कर्पूरी ठाकुर की सादगी 

   उनके स्वभाव में थी,कोई 

   दिखावा नहीं 

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     --सुरेंद्र किशोर--

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  अस्सी के दशक तक भी कर्पूरी ठाकुर के पास निजी कार नहीं थी।

जब अपने दल के एक विधायक से उन्होंने कुछ घंटों के लिए जीप मांगी तो विधायक ने नोट लिखा कि 

‘‘कर्पूरी ठाकुर दो बार मुख्य मंत्री रहे,कार क्यों नहीं खरीदते ?’’

अपने जीवन के अंतिम समय में कर्पूरी जी ने जरूर कार खरीदी थी किंतु शायद सेकेंड हैंड।

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यह कर्पूरी ठाकुर की कोई दिखावटी या बनावटी मुद्रा नहीं थी।

कार वे अपनी जायज आय से नहीं खरीद सकते थे।

हां, सेकेंड हैंड कार भी जब खरीदी होगी तो संभवतः चंदा से ही।

चंदा व घूस में तब अंतर होता था।

कुछ लोग थोड़ा ही सही,पर कर्पूरी जी को बिना किसी रिटर्न की उम्मीद के आदर वश कुछ पैसे दे देते थे।

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प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के महा मंत्री की हैसियत 

 डा.राम मनोहर लोहिया ने समाजवादी विधायकांे के नाम 12 जून 1954 को पत्र लिखा था।

   डा.लोहिया ने अपने दल के विधायकों से कहा था कि समाजवादी विधायकों को यह ध्यान में रखना चाहिए कि वे अपना सामान्य जीवन स्तर नहीं बढ़ाएं और पार्टी सदस्यों को भी चाहिए कि अपनी जिम्मेदारी कारगर ढंग से निभाने के लिए विधायकों को  मिलने वाली जरूरी उपयुक्त सुविधाओं के लिए वे शिकायत न 

करें।

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1954 में कर्पूरी ठाकुर उसी दल के विधायक थे।

वैसे भी विधायकों को वेतन ही कितना मिलता था ?

1972 में आते हैं।

तब बिहार के विधायकांे का वेतन 300 रुपए मासिक था।

कमेटी की बैठक के दिन के लिए 15 रुपए भत्ता।

  इतने में कितना जीवन स्तर उठेगा ?

कर्पूरी जी की पारिवारिक जिम्मेदारी भी थी।

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यदि 1977 में मुख्य मंत्री बन गए तो क्या उन्हें अचानक अपना जीवन स्तर बढ़ा लेना चाहिए था ?

दरअसल सादगी उनके स्वभाव में थी।

उससे  गरीबों के साथ खुद को जोड़ लेने में सुविधा भी थी।गरीब उनमें अपना आदमी देखते थे।

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खुद लोहिया ने सांसद बनने के बाद भी अपने लिए निजी कार नहीं खरीदी।कहिए कि वे खरीद नहीं सके।उनकी आय उतनी नहीं थी।

क्या वह लोहिया का दिखावा था ?

नहीं।

कार मेंटेन लायक उनकी आय नहीं थी सांसद होने के बावजूद। 

हालांकि उन्हीें दिनों करीब 60 सांसद एक व्यापारिक घराने के ‘पे रोल’ 

पर थे।

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10 नवंबर 21


 आज के दैनिक अखबार ‘नया इंडिया’ में प्रकाशित

हरिशंकर व्यास के ‘‘पंडित’ का जिन्दगीनामा’’

काॅलम से

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  ‘‘.........प्रभाष जोशी ने जनसत्ता के स्टाफ सेलेक्सन का 

काम मुझ पर छोड़ा।

.......मेरी राजेंद्र माथुर से होड़ हुई।

राजेंद्र माथुर भी नवभारत टाइम्स में भर्ती के लिए अच्छे पत्रकारों को तलाश रहे थे।

  मैं पटना के सुरेंद्र किशोर को नई दुनिया (इन्दौर )

में लिखते रहने के कारण जानता था।

  मैंने ‘जनसत्ता’ के लिए उससे संपर्क किया

तो मालूम पड़ा कि राजेंद्र माथुर उसे पटना संवाददाता बनाना चाह रहे हैं।

  मैंने उसे जनसत्ता का मतलब समझाया,पटाया और जनसत्ता ज्वाइन कराया।

  ध्यान रहे कि सुरेंद्र किशोर घोर समाजवादी ,जार्ज फर्नांडिस के बड़ौदा डायनामाइट के साथी थे।

  लेकिन नईदुनिया में सुरेंद्र किशोर की पटना रिपोर्ट देख मैं उससे प्रभावित था तो मैंने जनसत्ता में लेने की ठानी।.........।’’

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9 नवंबर 21

 

  


बुधवार, 10 नवंबर 2021

   बेटी मांगने की परंपरा

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बचपन से ही मैं यह छठ गीत सुनता रहा हूं।

‘‘रुनकी झुनकी बेटी मांगी ला,

पढ़ल पंडित दामाद।’’

यानी, स्त्रियां गाती हैं--

रौनकदार, हंसने -बोलने वाली बेटी और पढ़ा -लिखा दामाद मांग रही हूं।

  बेटी मांगने की यह परंपरा लगता है कि सिर्फ बिहार में ही है।

या, कहीं और भी है ?

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सुरेंद्र किशोर

10 नवंबर 21  


सोमवार, 8 नवंबर 2021

       अपराधी साबित होने तक निरपराध ??

       ऐसे न्याय-शास्त्र से इस भ्रष्टाचारग्रस्त 

       देश का काम अब नहीं चलेगा।

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             --सुरेंद्र किशोर--

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‘‘अपराधी साबित होने तक किसी को निर्दोष मानने वाले कानून में परिवत्र्तन होना चाहिए।’’

    यह मशहूर कथन मेरा नहीं है।

वैसे मैं कर्नाटका के पूर्व लोकायुक्त व सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश संतोष हेगडे़ की इस बात से मैं पूरी तरह सहमत हूं।

  यह बात हेगड़े साहब ने कही है।

  अब तक तो यही माना जाता रहा कि जब तक किसी को सुप्रीम कोर्ट से सजा न हो जाए, तब तक उसे अपराधी नहीं माना जाए। 

  हेगड़े साहब के अनुसार, इस कानूनी मान्यता ने भ्रष्टाचार को घटाने में मदद नहीं की।

  जनवरी, 2010 में ही पूर्व न्यायाधीश संतोष हेगडे़ ने कहा था कि कड़े कानून होने के बावजूद देश में भ्रष्टाचार नहीं घटा।

 हेगड़े साहब ने यह भी कहा कि ‘हमें उस न्याय शास्त्र को भी भुला देना चाहिए कि जो यह कहता है कि किसी निर्दोष को पीड़ित करने की तुलना में नौ अपराधियों को बरी करना बेहतर है।

(यानी, भले नौ आरोपी छूट जाएं,किंतु किसी एक भी निरपराध को सजा नहीं होनी चाहिए।)

  अवकाशप्राप्त न्यायाधीश ने यह भी कहा कि आतंकवाद को लेकर हमने कानून बदले हैं और भ्रष्टाचार की समस्या भी ऐसी ही है।

    हेगड़े ने हाल ही मेें यह कहकर हंगामा खड़ा कर दिया था कि एक विधवा महिला से यौन संबंधों की मांग करने वाले आईएएस अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई तो नहीं हुई लेकिन उसे प्रमोट जरूर किया गया।

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6 नवंबर 21


 

    


       ‘दमन तक्षकों का’ 

      नामक किशोर कुणाल (रिटायर 

      आई.पी.एस.) की 

      जीवनी प्रकाशित     

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       --सुरेंद्र किशोर--

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    पुस्तक में बड़े-बड़े अपराधियों और 

    भ्रष्टाचारियों पर अभूतपूर्व प्रहार

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   सनसनीखेज और चर्चित बाॅबी हत्याकांड 

   का प्रामाणिक विवरण इस पुस्तक में समाहित

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   किशोर कुणाल की चिर प्रतीक्षित जीवनी आ गई है।

यह एक निर्भीक पुलिस पदाधिकारी की संघर्ष गाथा है।

  स्वाभाविक ही है इसका नाम - ‘‘दमन तक्षकों का’’ -रखा जाए।

मैंने अभी इसे उलट-पलट कर थोड़ा ही पढ़ा  है।

    जीवनी क्या है मानो इसके पन्नों पर भ्रष्ट व्यवस्था का नंगा चेहरा उद्घाटित है।

  किस तरह सत्ता की बड़ी -बड़ी कुर्सियों पर आसीन लोग भ्रष्टों व अपराधियों को बचाने के क्रम में किसी भी सीमा तक चले जाते हैं,उसका विवरण इस पुस्तक में है। 

 पहली बार श्वेतनिशा त्रिवेदी उर्फ बाॅबी के सनसनीखेज हत्याकांड का प्रामाणिक विवरण इसमें उपलब्ध है। 

  बहुत कुछ जानते हुए भी, जैसी बातें लिखने की हिम्मत मुझमें भी नहीं है,वह सब कुछ इस किताब में आपको मिलेंगी।

   यह सच है कि किशोर कुणाल को रास्ते अनेक तक्षक मिले हैं।

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पुस्तक के प्रस्तुति कत्र्ता सायन के शब्दों में --

‘‘कुणाल गुजरात, बिहार, झारखंड और भारत सरकार में अनेक महत्वपूर्ण पदों पर रहे।

पुलिस से अचानक स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति लेकर उन्होंने सबको स्तब्ध कर दिया।

 तक्षक वह जहरीला सांप था जिसके डंसने से राजा परीक्षित की मृत्यु हुई थी।

  इस पुस्तक में तक्षक अपराधियों का प्रतीक है।

(आज) तक्षक तीन तरह के होते हंै।--

खूंखार अपराधी,

घूसखोर नेता,

और बिके हुए अधिकारी।

जब तक इन तीनों प्रकार के तक्षकों एवं उनके संरक्षकों का कानून सम्मत दमन नहीं किया जाएगा,जुर्म से मही मुक्त नहीं होगी।’’

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‘‘कुणाल नाम है उस शख्स का ,जिसे कोई धनराशि लुभा नहीं पायी,

जिसे कोई पैरवी झुका नहीं पायी और 

जिसे कोई धमकी डरा नहीं पायी।

अपराधियों व भ्रष्टाचारियों पर इतना प्रबल प्रहार किसी (अन्य) पुस्तक में नहीं मिलेगा।’’

समकालीन इतिहास का साक्षी होने के नाते सायन के इस कथन से मैं सहमत हूं।

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  7 नवंबर 21


शनिवार, 6 नवंबर 2021

   राजनीतिक सामान्य ज्ञान पर 

   आधारित एक अनुमान !

         --सुरेंद्र किशोर--

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लगता है कि ममता बनर्जी काफी जल्दीबाजी में हैं।

वह चाहती हैं कि कांग्रेस उन्हें अभी से ‘पी.एम. 

कैंडीडेट’ घोषित कर दे।

   ताकि, उन्हें देशव्यापी दौरे के लिए पर्याप्त समय मिल जाए।

 वैसे मेरा यह सिर्फ अनुमान ही है और कुछ नहीं।

पर, दूसरी ओर यह भी लग रहा है कि कांग्रेस ऐसा नहीं करने जा रही है।

  कांगे्रेस के शीर्ष नेतृत्व को उनके बड़े -बुजुर्ग सिखा गए हंै कि चुनाव से पहले पी.एम.का उम्मीदवार किसी और को घोषित मत करना।

  चाहे चुनाव-बाद जो भी करना पड़े !

यह भी मेरा अनुमान ही है।

हम पत्रकारों को अनुमान के घोड़े दौड़ाने से भला कौन रोक सकता है !

अब देखना है कि आने वाले दिनों में राजनीतिक ऊंट और हाथी किस करवट बैठते हंै !

    या फिर 2024 के लोस चुनाव से ठीक पहले तक कन्फ्यूजन ही बना रहता है !! 

वैसे उससे पहले अगले साल मिनी महाभारत तो उत्तर प्रदेश में होने वाला है।

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5 नवंबर 21

 

  


 पुनरावलोकन

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  ‘‘मैं अपना कीमती वोट राममनोहर लोहिया को दूंगा’’

            ----प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू

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       -----.सुरेंद्र किशोर----.

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17 नवंबर, 2013 के दैनिक ‘प्रभात खबर’ में जवाहरलाल नेहरू और डा.राम मनोहर लोहिया की उक्तियां छपी हैं।

  नेहरू की इस उक्ति से मैं अवगत नहीं था।

हां,लोहिया की उक्ति के संदर्भ का अनुमान लगा सकता हूं।

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इन दोनों उक्तियों में दो संदेश हैं।

 आज के संदर्भ में ये संदेश और भी मौजूं हैं।

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आज के कुछ नेता,यहां तक कि कुछ बड़े नेता भी, अपने राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ कैसी -कैसी ‘‘गालियां’’निकालते रहते हैं !

राजनीति में इतनी कटुता आ गई है कि आम लोगों को शर्म आने लगी है,भले उन गाली वक्ताओं को आए या नहीं !

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कल्पना कीजिए कि किसी नेता या नेता परिवार ने सत्ता में रहते समय अपने लिए अरबों रुपए इकट्ठे किए।

दूसरी सरकार आई और उनके अरबों रुपए मुकदमे में फंस गए।

 वैसी स्थिति में उस नेता की जुबान पर शालीनता बरकरार कैसे रहेगी ?

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खैर, असली बात पर आते हैं।

जवाहरलाल नेहरू ने कभी कहा था कि 

‘‘राजनीतिक मतभेद अपनी जगह है,लेकिन अगर मुझसे कोई यह पूछे मैं अपना वोट किसे दूंगा,तो मैं निश्चित रूप से यही कहूंगा कि मैं अपना कीमती वोट राममनोहर लोहिया को दूंगा।’’

  संभवतः यह बात सन 1962 के आम चुनाव के समय की है जब नेहरू और लोहिया एक दूसरे के खिलाफ फुलपुर में लोक सभा चुनाव लड़ रहे थे।

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अब सन 1957 की राजनीतिक घटना पर

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बिहार में कांगे्रस विधायक दल के नेता पद का चुनाव हो रहा था।

डा.श्रीकृष्ण सिंह और डा.अनुग्रह नारायण सिंह एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ रहे थे।

कांटे का मुकाबला था।

फिर भी श्रीबाबू ने अपना वोट नहीं दिया।

किसी ने उनसे कारण पूछा।

उन्होंने कहा कि वोट देता तो अनुग्रह बाबू को ही देता।

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डा.राममनोहर लोहिया की एक उक्ति प्रस्तुत है।

‘‘मैं वोट के लिए विचार धारा नहीं बदल सकता।

भले ही मैं हार जाऊं।

भले ही पार्टी के सभी उम्मीदवार हार जाएं।

मैं समझता हूं मेरी विचारधारा देशहित में है।

क्योंकि देश किसी दल और चुनावों से बड़ा है।’’

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संभवतः डा.लोहिया ने यह बात सन 1967 के चुनाव के समय कही थी।

तब वे लोक सभा का चुनाव लड़ रहे थे।

1967 तक विधान सभाओं के चुनाव भी साथ- साथ ही होते थे।

किसी पत्रकार ने उनसे पूछा कि सामान्य नागरिक संहिता के बारे में आपकी क्या राय है ?

डा.लोहिया ने कहा कि मैं चाहता हूं कि इस देश में काॅमन सिविल कोड लागू हो।

  इस पर डा.लोहिया के दल के कुछ नेताओं ने उनसे कहा कि अब तो आप चुनाव हार जाइएगा।

क्योंकि आपके चुनाव क्षेत्र में मुसलमान आबादी बहुत है।

उसी की प्रतिक्रिया में लोहिया ने उपर्युक्त बात कही थी।

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अब देखिए,आज क्या हो रहा है ?

शब्द-प्रहार को लेकर और देशहित की नीतियों को लेकर।

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डा.लोहिया आज जिंदा होते और सामान्य नागरिक संहिता के बारे में वही बात कहते तो सेक्युलर दलों की क्या प्रतिक्रिया होती ?

सिर्फ एक ही प्रतिक्रिया होती--

‘‘लोहिया संघी हो गया है।’’

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5 नवंबर 21

 

    


 पुनरावलोकन

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हस्तियों के आॅटोग्राफ्स

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      --सुरेंद्र किशोर-

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किसी हस्ती का आॅटोग्राफ लेने की आम तौर से 

एक उम्र होती है।

  मैं भी जब उस उम्र में था तो मैंने समाजवादी नेता राज नारायण से लेकर आचार्य रजनीश और अशोक मेहता से लेकर मणिराम बागड़ी तक के आॅटोग्राफ लिए थे।

 (अब आप पूछ सकते हैं कि आपने बागड़ी साहब से क्यों लिया।

आॅटोग्राफ लेने से पहले मैंने सम्मेलन मंच से उनका जोरदार भाषण सुना था।

मैं तब तक उन्हें जानता नहीं था।

    पंडाल में पास बैठे एक बुजुर्ग समाजवादी से मैंने पूछा,

‘‘ये कौन हैं ?’’

वे बोले --‘‘इनको नहीं जानते ?’’

मानो इनको जानना समाजवादियों के लिए जरूरी हो !

मैंने जब नहीं कहा तो उन्होंने मुस्कान के साथ बताया कि ‘‘ये वही नेता हैं जो पानी से बिजली निकालते रहते हैं।’’

 बाद में पता चला।

 बुजुर्ग की बात की पृष्ठभूमि है।

वे हरियाणा के थे।

2012 में उनका निधन हुआ।

हिसार से वे तीन बार लोक सभा के सदस्य चुने गए थे।

वहां खेतों में पानी तो पहले ही कांग्रेस सरकार पहुंचा चुकी थी।

  फिर वे उसकी आलोचना कैसे करते ?

इसलिए वे अपनी सभाओं में कहा करते थे,

‘‘ऐ किसानो, तुम्हारे खेतों में जो सरकार पानी पहुंचाती है,उसकी बिजली यानी तेज तो वह पहले ही उससे निकाल लेती है।’’)

  अब भला ऐसे नेता का ,जो जीवन भर समाजवादी व ईमानदार रहे हों, मैं कैसे आॅटोग्राफ नहीं लेता !       

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मेरे आॅटोग्राफ बुक में साठ के दशक में आचार्य रजनीश ने अपने आॅटोग्राफ से पहले लिखा था--

‘रजनीश के प्रणाम !’

  उन दिनों तक वे ओशो नहीं बने थे।

(किसी ने मुझे बताया कि चूंकि महात्मा गांधी किसी के आॅटोग्राफ बुक में ‘बापू के आशीर्वाद’ लिखते थे,

इसलिए रजनीश उनसे अलग दिखने के लिए उससे उल्टा लिख देते थे।)

सन 1967 में मैंने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के गया (बिहार)में संपन्न राष्ट्रीय सम्मेलन में अनेक नेताओं के आॅटोग्राफ लिए।

उनमें ‘अदमनीय’ राज नारायण ने जो कुछ लिख दिया,उसका निहितार्थ  मैं न तो तब समझ सका था और न आज तक समझ पाया हूं।

 यदि आप समझते हों तो जरूर बताइएगा।

उन्होंने लिखा,

‘‘नारी एक पुरुष दुइ जाया,बूझें पंडित ज्ञानी।

पाहन फोर गंग एक निकली,चहुंदिशि पानी पानी।।

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6 नवंबर 21


शुक्रवार, 5 नवंबर 2021

      पुनरावलोकन

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मजाक में कही गई बात सच निकली

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   --सुरेंद्र किशोर--

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   मुख्य मंत्री अब्दुल गफूर ने बिहार विधान सभा में  कहा कि सोशलिस्ट पार्टी के  एक विधायक (उनका इशारा कर्पूरी ठाकुर की ओर था)हस्त रेखा विशेषज्ञ के यहां गये थे।

   उस विश्ेाषज्ञ ने विधायक से कहा कि यदि आप निर्धारित समय से पहले विधान सभा की सदस्यता से इस्तीफा दे देंगे तो आप अगली बार मुख्य मंत्री बन जाएंगे।

   संयोग से सन 1977 में यह बात सही भी हो गई।

  कर्पूरी ठाकुर मुख्य मंत्री बन गये।

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 हालांकि गफूर ने यह बात हंसी -मजाक में कही थी।

  याद रहे कि उन दिनों बिहार में जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में आंदोलन चल रहा था।

जेपी ने विधायकों से अपील की थी कि आप सदन की सदस्यता से इस्तीफा दे दें।

  कर्पूरी ठाकुर सहित अनेक प्रतिपक्षी सदस्यांे ने इस्तीफा दे दिया।

कुछ प्रतिपक्षी सदस्यों ने नहीं भी दिया।

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4 नवंबर 21



बुधवार, 3 नवंबर 2021

  अजित पवार,अनिल देशमुख और आर्यन के समर्थको,   

 रोने-गाने के बदले डा.सुब्रह्मण्यम स्वामी का 

   अनुसरण क्यों नहीं करते ? !!

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   --सुरेंद्र किशोर--

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महाराष्ट्र के सत्ताधारी महा विकास अघाड़ी के एक नेता ने सवाल किया है कि केंद्रीय जांच एजेंसियां भाजपा नेताओं पर कार्रवाई क्यों नहीं करतीं ?

  दूसरे अघाड़ी नेता ने कहा था कि जिसके घर शीशे के होते हैं,वे दूसरों पर पत्थर नहीं फेंका करते।

  यानी,वहां के जिन नेताओं व अन्य मशहूर हस्तियों पर कार्रवाई हो रही है,उनके बचाव में उन्हें कुछ नहीं कहना।

यानी,उन पर जो आरोप हैं,उनको वे परोक्ष रूप से स्वीकार कर रहे हैं।

उनकी मांग है कि भाजपा नेताओं पर भी कार्रवाई हो।

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यदि सचमुच उन पर गंभीर आरोप हैं तो मैं उन भाजपा नेताओं के खिलाफ कार्रवाई के उपाय अघाड़ी नेताओं को बताता हूं।

कांग्रेसी शासन काल में जब कांग्रेस सरकार अपने दल व गठबंधन के भ्रष्ट नेताओं के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर रही थी तो डा.सुब्रह्मण्यम स्वामी ने एक रास्ता बनाया।

डा.स्वामी ने सुप्रीम कोर्ट से यह आॅर्डर पारित करवाया कि कोई निजी व्यक्ति भी भ्रष्टाचार के मामले में बड़ी से बड़ी हस्ती मुकदमा दायर कर सकता है।

डा.स्वामी ने इस आदेश का लाभ उठा कर कुछ बड़ी हस्तियों को सजा दिलवाई थी।

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महाराष्ट्र के सत्ताधारी गठबंधन के

पीड़ित नेता डा.स्वामी से विचार -विमर्श करके या यूं ही भाजपा नेताओं के खिलाफ कोर्ट में  क्यों नहीं जाते ,यदि किसी भाजपा नेता ने सार्वजनिक धन की लूट की है तो ?

डा.स्वामी भी आजकल नरेंद्र मोदी सरकार पर खुश नहीं हैं।

वे अघाड़ी की मदद कर ही सकते हैं।

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पर,मैं जानता हूं कि भाजपा नेताओं के खिलाफ कोई राजग -विरोधी नेता कोर्ट नहीं जाएगा।

क्योंकि अघाड़ी नेता तो सिर्फ यही चाहते हैं कि तुम हमारे खिलाफ कार्रवाई मत करो और हम तुम्हारे खिलाफ नहीं करेंगे।

  यानी हम दोनों मिलकर देश को लूटें।

  जब देश पूरी तरह बर्बाद हो जाए तो हम विदेश भाग चलें जिस तरह परमवीर सिंह बेल्जियम भाग गया।

यहां मैं यह नहीं कह रहा हूं कि भाजपा नेताओं पर अजित पवार व अनिल देशमुख जैसे आरोप हैं या नहीं हैं।

यदि आरोप है तो उन्हें क्यों बख्श रह हो भाई ?

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3 नवंबर 21