पवन वर्मा की राजनीतिक यात्रा
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--सुरेंद्र किशोर--
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बहुत पहले की बात है।
नई दिल्ली के एक बड़े अखबार के सहायक संपादक अखबार के मालिक से मिले।
उन्होंने अपनी एक दर्जन किताबों को उन्हें समर्पित करते हुए उनसे कहा कि ‘‘मुझे संपादक का पद मिलना चाहिए।’’
मालिक ने पुस्तकों को उलट-पलट कर देखा और सहायक संपादक जी से कहा कि
‘‘आप हमारा काम कर रहे थे या किताबें लिख रहे थे ?’’
सहायक संपादक महोदय समझ गए कि मालिक उन्हें संपादक नहीं बनाएगा।
वे वहां से जल्द ही विदा हुए।
कुछ दिनों के बाद अखबार से भी।
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प्रायवेट सेक्टर में ऐसा ही होता है।
आपको वह काम करना पड़ता है जिस काम के लिए आप बहाल हुए हंै।
पर, सरकार में या राजनीतिक दलों में ?
काम करने की कोई मजबूरी नहीं।
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जदयू से निष्कासित जदयू के पूर्व राज्य सभा सदस्य पवन वर्मा ने अब ममता बनर्जी की पार्टी ज्वाइन कर ली है।
शुभकामना !
उम्मीद है कि वर्मा जी ममता को प्रधान मंत्री बनवाने की भरपूर कोशिश करेंगे।
राजनीति में आने से पहले वर्मा जी विदेश सेवा में थे।
हाल ही में वर्मा जी ने बताया कि
‘‘मैंने 24 किताबें लिखी हैं।’’
जब वे सरकारी सेवा में थे,तभी उनकी एक मशहूर किताब
‘द ग्रेट इंडियन मिडिल क्लास’ (1998)आई थी।
पर,मुझे यह नहीं मालूम कि 24 में से कितनी किताबें उन्होंने सरकारी सेवा काल में लिखीं और कितनी बाद में ?
जवाहरलाल नेहरू जब आंदोलन में थे तो जेल में किताबें लिखते रहे।
पर प्रधान मंत्री बनने के बाद ?
मुझे नहीं मालूम कि उन्हें किताब लिखने की फुर्सत मिली।
आम तौर पर सरकारी सेवक भी रिटायर होने के बाद ही किताब लिख पाते हैं।
एक एम.पी.की भी कम जिम्मेदारियां नहीं होतीं,यदि वह ईमानदारी से उसे निभाए।
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पवन वर्मा एक सुपठित व विद्वान व्यक्ति हैं।
उनकी किताब भी लोग पढ़ते हैं।
किंतु सवाल है कि किताबें लिखने के क्रम में आपने अपनी सरकारी सेवा व राज्य सभा की सदस्यता के कत्र्तव्यों के साथ कितना न्याय किया ?
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अब आप तृणमूल कांग्रेस के सदस्य बन गए हैं।
सुप्रीमो ममता बनर्जी की अपने सदस्यों से कुछ सामान्य तो कुछ असामान्य अपेक्षाएं रहती हैं।
टीएमसी नेतृत्व की अपेक्षाएं कई बार राष्ट्रहित से टकराती रहती हैं।
उम्मीद है कि उन सारी अपेक्षाओं पर वर्मा जी खरा उतरेंगे ताकि उनकी राजनीतिक यात्रा में स्थिरता आ सके।
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24 नवंबर 21
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