कानोंकान
सुरेंद्र किशोर
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पार्कांे के बिना सड़कों पर टहल कर दुर्घटनाग्रस्त होते रहेंगे लोग
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एक बार फिर सुबह में टहलने वालों की जानें र्गइं हैं।
भोजपुर जिले के पीरो थाना क्षेत्र में हाल में यह घटना हुई।
स्कोर्पियो से कुचल कर चार महिलाओं की मौत हो गई।
आए दिन ऐसी खबरें जहां- तहां से आती रहती हैं।
टहलने की जगह के अभाव में लोगबाग सड़कों पर टहलने को विवश हैं।
बिहार के अधिकतर छोटे-बड़े शहरों का भी यही हाल है।
बिहार सरकार ने मुहल्ले बसाना छोड़ दिया है।
व्यवस्थित ढंग से मुहल्ले बसते तो उनमें पार्क आदि का प्रावधान रहता।
निजी क्षेत्र के अधिकतर बिल्डर्स और डेवलपर्स पार्कों के लिए स्थान छोड़ने का वादा तो करते हैं ,पर अपवादों को छोड़कर बाद में वे उसे भी बेच देते हैं।
अब सवाल है कि सुबह-शाम में सैर करने वालों की जान कैसे बचे ?
फिलहाल एक उपाय ध्यान में आता है।
जहां भी जमीन उपलब्ध हो सके,वहां राज्य सरकार पार्क बनवाए।
कुछ जगह तो इस काम के लिए सरकारी जमीन भी मिल जा सकती है।
एक ऐसी संभावित जगह की चर्चा प्रासंगिक होगी।
प्रारंभिक योजना के अनुसार बक्सर-आरा-पटना नेशनल हाईवे पटना एम्स तक जाने वाला था।
पर, अब उसकी जगह दानापुर-बिहटा एलिवेटेड रोड बनेगा।
यानी दानापुर-बिहटा मार्ग से निकलकर एम्स की तरफ जाने
वाले प्रस्तावित एन.एच.के लिए अधिग्रहीत जमीन अब बिहार सरकार को मिल जाएगी,ऐसी खबर आई है।
यदि यह खबर सही है तो बिहार सरकार उस जमीन पर क्यों न लंबा पार्क बना दे ?
पटना महानगर वहां तक फैलता जा रहा है।
वहां जो मुहल्ले बस रहे हैं,उनमें भी पार्क कहीं नजर नहीं आ रहा है।
यदि सड़क के लिए अधिग्रहीत जमीन को पार्क बना दिया जाए तो उस इलाके के लोग सड़क पर टहलते हुए जान नहीं गंवाएंगे !
हां, एक खास उद्देश्य से अधिग्रहीत जमीन का इस्तेमाल दूसरे काम के लिए किया जा सकता है ?
यह एक कानूनी सवाल है।
यदि इसमें कानूनी बाधा हो तो उसे दूर करने की कोशिश भी राज्य सरकार कर सकती है।
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प्रयोजन बताए बिना
बिना विदेशी फंड नहीं
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सुप्रीम कोर्ट ने ठीक ही कहा है कि विदेशी दानकत्र्ता की तरफ से प्रयोजन बताए जाने के बाद यहां के एन.जी.ओ. विदेश से फंड लेने के हकदार होंगे।
जिस उद्देश्य से गैर सरकारी संगठन यानी एन.जी.ओ.का गठन हुआ है ,उस उद्देश्य की पूत्र्ति के लिए ही बाहर से पैसे मंगाए जा सकते हैं।
आम तौर पर सामामजिक,सांस्कृतिक और धार्मिक उद्देश्यों के लिए विदेशी फंड भी इस्तेमाल होते हैं।
लेकिन हाल के दिनों में भारत सरकार के खुफिया संगठन ने यह जानकारी दी कि विदेशी फंड का दुरुपयाग हो रहा है।
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मधु दंडवते जिनकी
आज पुण्य तिथि है
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सन 1977 में जब उन्हें मंत्री बनाए जाने की खबर लेकर अफसर बिट्ठल भाई पटेल भवन पहुंचे तो उस समय मधु दंडवते बाथरूम में अपने कपड़े धो रहे थे।
वे अपने कपड़े खुद ही धोते थे।
उससे पहले तत्कालीन प्रधान मंत्री मोरारजी देसाई ने मधु लिमये से कहा था कि मैं मधु दंडवते,जार्ज फर्नांडिस और तुम में से किन्हीं दो को मंत्रिमंडल में लेना चाहता हूं।
लिमये ने उनसे कहा कि आप मधु दंडवते और जार्ज को मंत्री बना दीजिए।
इस तरह दंडवते रेल मंत्री बने।
उन्होंने मंत्री बनते ही यह घोषणा की कि ‘‘मैं नहीं चाहता कि मंत्री, राजा -महाराजा की तरह चलें।
यह सामंती प्रथा खत्म होनी चाहिए।’’
उन्होंने रेलवे में पहले से जारी विशेष कोटा को समाप्त कर दिया।
साथ ही, उन्होंने जनरल मैनेजरों को एक परिपत्र भेजा।
उसमें मंत्री ने लिखा था कि अगर कोई अपने को मेरा मित्र या रिश्तेदार बताकर विशेष सुविधा चाहे तो उसे
ठुकरा दिया जाए।
मधु दंडवते कहते थे कि कई बार जो गलत काम होते हैं, भ्रष्टाचार हो या अपने रिश्तेदारों के प्रति पक्षपात हो,वे ऊपर से शुरू होते हैं और नीचे तक जाते हैं।इसलिए जरूरी है कि ऊपर भ्रष्टाचार नहीं हो।
दंडवते ने ही रेलगाड़ी के स्लिपर दर्जे में उस समय तक उपलब्ध लकड़ी के तख्त पर गद्दे लगवाए।
स्वभाव से विनम्र और मधुरभाषी मधु दंडवते स्वतंत्रता सेनानी और समाजवादी नेता थे जिनका लोगबाग सम्मान करते थे।
1924 में महाराष्ट्र के अहमद नगर में जन्मे मधु जी का 2005 में निधन हो गया।वे महाराष्ट्र के राजा पुर से पांच बार लोक सभा के लिए चुने गये थे।
वी.सिंह मंत्रिमंडल मंे वित्त मंत्री रहे मधु दंडवते 1951 से 1971 तक मुम्बई विश्व विदयालय में नाभकीय भौतिकी के अध्यापक थे।
जो व्यक्ति राजनीति के काजल की कोठरी से बेदाग बाहर निकल आता है,उसे आने वाली पीढ़ियां याद रखती हैं।
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और अंत में
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ड्रग्स या मदिरा पान करने वालों को किसी तरह के सरकारी सम्मान या पुरस्कार के योग्य नहीं माना जाना चाहिए।
इससे राज्य में शराबबंदी लागू करने वाली सरकार को नैतिक बल मिलेगा।
केंद्र सरकार इस मामले में जो करे,किंतु जिन राज्य सरकारों ने शराब बंदी लागू की है,कम से कम वे सरकारें तो शराब पीने वालों को पुरस्कृत न करें।
यदि किसी के बारे में यह पता चले कि मदिरा पान के कारण ही उनका निधन हुआ है तब तो उन्हें मरणोपरांत भी कोई पुरस्कार-सम्मान न मिले।
कांग्रेस की सदस्यता पाने के लिए भी आज यह एक जरूरी शत्र्त है कि वह व्यक्ति मदिरा पान नहीं करता हो।जाहिर है कि स्वतंत्रता सेनानियों ने यह नियम बनाया था।
आज की राजनीतिक पीढ़ी को उन स्वतंत्रता सेनानी की अच्छी मंशा को ध्यान में रखना चाहिए।
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