गुरुवार, 11 नवंबर 2021

 


   कर्पूरी ठाकुर की सादगी 

   उनके स्वभाव में थी,कोई 

   दिखावा नहीं 

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     --सुरेंद्र किशोर--

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  अस्सी के दशक तक भी कर्पूरी ठाकुर के पास निजी कार नहीं थी।

जब अपने दल के एक विधायक से उन्होंने कुछ घंटों के लिए जीप मांगी तो विधायक ने नोट लिखा कि 

‘‘कर्पूरी ठाकुर दो बार मुख्य मंत्री रहे,कार क्यों नहीं खरीदते ?’’

अपने जीवन के अंतिम समय में कर्पूरी जी ने जरूर कार खरीदी थी किंतु शायद सेकेंड हैंड।

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यह कर्पूरी ठाकुर की कोई दिखावटी या बनावटी मुद्रा नहीं थी।

कार वे अपनी जायज आय से नहीं खरीद सकते थे।

हां, सेकेंड हैंड कार भी जब खरीदी होगी तो संभवतः चंदा से ही।

चंदा व घूस में तब अंतर होता था।

कुछ लोग थोड़ा ही सही,पर कर्पूरी जी को बिना किसी रिटर्न की उम्मीद के आदर वश कुछ पैसे दे देते थे।

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प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के महा मंत्री की हैसियत 

 डा.राम मनोहर लोहिया ने समाजवादी विधायकांे के नाम 12 जून 1954 को पत्र लिखा था।

   डा.लोहिया ने अपने दल के विधायकों से कहा था कि समाजवादी विधायकों को यह ध्यान में रखना चाहिए कि वे अपना सामान्य जीवन स्तर नहीं बढ़ाएं और पार्टी सदस्यों को भी चाहिए कि अपनी जिम्मेदारी कारगर ढंग से निभाने के लिए विधायकों को  मिलने वाली जरूरी उपयुक्त सुविधाओं के लिए वे शिकायत न 

करें।

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1954 में कर्पूरी ठाकुर उसी दल के विधायक थे।

वैसे भी विधायकों को वेतन ही कितना मिलता था ?

1972 में आते हैं।

तब बिहार के विधायकांे का वेतन 300 रुपए मासिक था।

कमेटी की बैठक के दिन के लिए 15 रुपए भत्ता।

  इतने में कितना जीवन स्तर उठेगा ?

कर्पूरी जी की पारिवारिक जिम्मेदारी भी थी।

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यदि 1977 में मुख्य मंत्री बन गए तो क्या उन्हें अचानक अपना जीवन स्तर बढ़ा लेना चाहिए था ?

दरअसल सादगी उनके स्वभाव में थी।

उससे  गरीबों के साथ खुद को जोड़ लेने में सुविधा भी थी।गरीब उनमें अपना आदमी देखते थे।

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खुद लोहिया ने सांसद बनने के बाद भी अपने लिए निजी कार नहीं खरीदी।कहिए कि वे खरीद नहीं सके।उनकी आय उतनी नहीं थी।

क्या वह लोहिया का दिखावा था ?

नहीं।

कार मेंटेन लायक उनकी आय नहीं थी सांसद होने के बावजूद। 

हालांकि उन्हीें दिनों करीब 60 सांसद एक व्यापारिक घराने के ‘पे रोल’ 

पर थे।

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10 नवंबर 21


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