शराब बंदी के बाद बिहार में
एक करोड़ लोगों ने शराब छोड़ी
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क्या शराबबंदी के बाद ड्रग्स की
खपत राज्य में बढ़ गई ? !!
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यदि यह सच है कि नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो
को बिहार में भी सक्रिय किया जाना चाहिए
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--सुरेंद्र किशोर-
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सन 2016 के पूर्वार्ध में बिहार में नीतीश सरकार ने शराबबंदी लागू कर दी।
तब से आज तक के अधिकृत आंकड़ों के अनुसार बिहार में एक करोड़ लोगों ने शराब पीना छोड़ दिया है।
स्वाभाविक है कि उनके परिवार पर इसका सकारात्मक असर पड़ा होगा।
खबर है कि पडा़ भी है।कुछ अन्य सकारात्मक असर भी पड़े हैं।
यदि शराबबंदी से समाज को फायदा हो रहा है और आगे और फायदा होने की उम्मीद है तो शराबबंदी को समाप्त क्यों कर दिया जाए ?
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अन्य लोगों की बातें और लोग करें, किंतु मैंने खुद पिछले कुछ दशकों में पत्रकारिता क्षेत्र के कई प्रतिभाशाली पत्रकारों को शराब-सिगरेट-गुटका-जर्दा पान का अति पान करके समय से पहले काल के गाल में समाते देखा है।
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महात्मा गांधी आबकारी राजस्व को पाप की आमदनी मानते थे।
उनके निदेश पर सन 1921 में लोगों ने शराब,गांजा आदि की दुकानों पर धरना दिया था।
नशा के विरोध में कांग्रेसी जेल भी गए थे।
उससे ब्रिटिश सरकार की आय आंदोलन के दौरान कम हो गई थी।
पर, गांधी जी को आजादी के बाद इस बात का अफसोस था कि वही कांग्रेसी नेता सत्ता में आने के बाद अब शराबबंदी को जरूरी नहीं मानते।
यहां तक कि बिहार के आबकारी मंत्री जगलाल चैधरी ने,जो स्वतंत्रता सेनानी थे, जब राज्य में नशाबंदी लागू की तो उन पर कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व इतना नाराज हुआ कि उन्हें बाद में कभी मंत्री तक नहीं बनने दिया था।
जबकि जगलाल चैधरी इतने बड़े नेता थे कि सन 1937 के बिहार मंत्रिमंडल के सिर्फ चार कैबिनेट मंत्रियों में एक थे।
अन्य थे--प्रधान मंत्री--डा.श्रीकृष्ण सिंह,डा.अनुग्रह नारायण सिंह और डा.सैयद महमूद।
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खबर है कि शराबबंदी के बाद बिहार में ड्रग्स की खपत बढ़ी है।
यदि यह खबर सही है तो नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो को बिहार में भी सक्रिय किया जाना चाहिए।
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17 नवंबर 21
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