शराब बंदी को लेकर मुख्य मंत्री
की दृढ इच्छा सराहनीय
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सुरेंद्र किशोर
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मुख्य मंत्री नीतीश कुमार ने कल कहा कि
‘शराबंदी खत्म नहीं होने देंगे।’
मैंने पिछले कुछ दशकों में अपने पेशे के साथ-साथ विभिन्न पेशों के अनेक परिचितों को शराब के अति सेवन के कारण अकाल मृत्यु को प्राप्त होते देखा है।
कई प्रतिभाशाली पत्रकार शराब-सिगरेट-गलत खानपान के कारण अपने परिवारों को रोते-कलपते छोड़ असमय गुजर गए।
सीमित आय वाला व्यक्ति जब शराब पीकर समय से पहले गुजर जाता है तो अधिकतर मामलों में उसके परिवार को
भारी कष्ट उठाना पड़ता है।
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जो लोग यह कहते हैं कि बिहार में शराब बंदी विफल है,उनसे मैं पूछना चाहता हूं कि इस ढीले-ढाले लोकतंत्र में कौन सा अन्य कानून पूरी तरह सफल है ?
आई.पी.सी.के तहत के अपराधों में सजा की दर इस देश में 56 प्रतिशत है।
बिहार में हत्या के मामले में सजा की दर तो बहुत ही कम है।
तो क्या दफा-302 को समाप्त कर दिया जाना चाहिए ?
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मेरे अनुमान के अनुसार बिहार में शराबबंदी की सफलता की दर लगभग उतनी है जितनी आई.पी.सी.के तहत के अपराधों में सजाओं की दर है।
इस बात का भी अनुमान करिए कि शराब बंदी के कारण नए पियक्कड़ों की ंसंख्या में पहले जैसी बढ़ोत्तरी़ अब नहीं हो रही है।
आम तौर पर कोई पैसे वाला मित्र किसी कम धनी मित्र को अपने पैसे से शराब पिलाना सिखाता है,आगे उसका साथ देने के लिए।
अब तस्करी वाली शराब इतनी हंगी पड़ रही है कि दूसरों को भी पिलाना अब अधिक महंगा शौक बन चुका है।
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3 फरवरी 23
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