29 फरवरी, 1896 को जन्मे थे मोरारजी देसाई
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चूंकि इस साल 29 फरवरी आएगी नहीं,इसलिए उन्हें आज ही याद कर लें
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जानिए किस पीएम की जान बचाने के लिए एयरफोर्स के 5 अफसरों ने गंवाई थी अपनी जान
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देश में एक पीएम ऐसे थे जिन्होंने सरकार के पैसे बचाने के लिए छोटे विमान का इस्तेमाल किया और अपनी जान खतरे में डाल दी थी।
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--सुरेंद्र किशोर--
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4 नवंबर, 1977 को तत्कालीन प्रधान मंत्री मोरारजी देसाई विमान दुर्घटना में बाल -बाल बचे थे।
दरअसल वायु सेना के चालक दल के पांच सदस्यों ने आत्म बलिदान देकर प्रधान मंत्री को साफ बचा लिया था।
वायु सेना का वह विमान उस दिन असम में जोरहाट के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गया था।
खराब मौसम और तेल की कमी के कारण विमान का ‘नोज- -डाइव’ कराना पड़ा था।
नोज डाइव यानी, नाक की सीध में विमान को धरती पर गिरा दिया गया।
दिल्ली से उड़ान भरने से पहले अफसरों ने प्रधान मंत्री देसाई से यह आग्रह किया था कि जोरहाट दिल्ली से काफी दूर है । इस विमान में ईंधन की टंकी छोटी है।
इसलिए आप बोइंग -737 से यात्रा करें।
पर,मोरारजी देसाई ने कहा कि हम सामान्य विमान से ही जाएंगे।उनका आशय यह था कि बोइंग -737 पर खर्च अधिक आएगा।गांधीवादी मोरारजी देसाई अपने प्रधान मंत्रित्व काल में सेवा विमान से ही विदेश यात्रा पर जाते थे,भले वह यात्रा सरकारी होती थी।विशेष विमान से न जाने के कारण कई पत्रकार उनसे नाराज रहते थे।याद रहे कि उनसे पहले
और बाद के प्रधान मंत्री विशेष विमान में बड़ी संख्या में पत्रकारों को अपने साथ विदेश ले जाया करते थे।
सन 1977 में वायु सेना के जिन अफसरों ने आत्म बलिदान दिया था,उनमें विंग कमांडर सी.जे.डी.लिमा,विंग कमांडर जोगिन्दर सिंह,स्क्वाड्रन लीडर वी.वी.एस.सुनकर,स्क्वाड्रन लीडर एम.सायरिक और फ्लाइट लेफ्टिनेंट ओ.पी.अरोड़ा शामिल थे।
वे टी.यू.-124 पुष्पक विमान से वहां गए थे।
विमान 4 नवंबर,1977 को दिल्ली से शाम सवा पांच बजे उड़ा।
उसे पौने आठ बजे जोरहाट पहुंचना था।
पर,असम में प्रवेश करने के बाद अचानक विमान का संबंध जमीन से टूट गया।
विमान जोरहाट के पास आकाश में चक्कर लगाने लगा।
ईंधन खत्म होने का डर था।विमान को उसकी नाक के बल पर खेत में यानी बांस के उपवन में गिराना पड़ा।इससे यह हुआ कि विमान के पिछले हिस्से में बैठे महत्वपूर्ण सवारों की जानें बच गई।पर काॅकपीट में पांचों अफसर शहीद हो गए।
साथ चल रहे फ्लाइट लेफ्टिनेंट पी.के. रवीन्द्रण और काॅरपोरल के.एन.उपाध्याय प्रधान
मंत्री और उनके सहयात्रियों को पास के टेकेला गांव ले गए।
प्रधान मंत्री के साथ उनके पुत्र कांति देसाई,सर्वोदय नेता नारायण देसाई और अरूणाचल प्रदेश के मुख्य मंत्री पी.के. थंुगन थे।
इन्हें चोटें आई थीं।
वायु सेना के एक जवान पास के गांव से एक जीप लेकर वायु सेना के निकट के केंद्र में गए और संबंधित लोगों को जानकारी दी।
यह भी बताया कि प्रधान मंत्री सुरक्षित हैं।
मदद करने वाले ग्रामीण इंन्द्रेश्वर बरूआ को तब प्रधान मंत्री मोरारजी देसाई ने आश्वासन दिया था कि इस गांव का विकास किया जाएगा और आपको इनाम दिया जाएगा।
पर,इस संबंध में तैयार फाइल प्रधान मंत्री आॅफिस में 26 साल तक पड़ी रही।
हमारी सरकारें किस तरह काम करती हैं,उसका एक और नमूना 3 अप्रैल, 2003 के दिल्ली के एक अखबार में छपी संबंधित खबर से मिला।
खबर का संबंध 4 नवंबर, 1977 को असम के जोरहाट के पास के एक गांव में हुई चर्चित विमान दुर्घटना से था।
मोरारजी देसाई को बचाने में मुख्य भूमिका तो उन जांबाज विमान चालक दल की थी जिन्होंने अपनी जान देकर प्रधान मंत्री को बचा लिया था।
पर, दूसरी महत्वपूर्ण भूमिका उस गांव के इंद्रेश्वर बरूआ की थी जिन्होंने उस अंधेरी रात में मोरारजी की मदद की।
याद रहे विमान बांस के उप वन में गिर गया था।
तब प्रधान मंत्री मोरारजी देसाई ने उस गांव के विकास का घटनास्थल पर ही वादा किया था।साथ ही, बरूआ को इनाम देने का भी वचन दिया था।
गांव के विकास का क्या हुआ,यह तो पता नहीं चला,पर इनाम की फाइल प्रधान मंत्री आॅफिस में लटक गयी ।सन 1979 में मोरारजी प्रधान मंत्री पद से हट गए।
मोरारजी देसाई के बाद बारी -बारी से सत्तासीन हुए आठ प्रधान मंत्रियों का ध्यान उस फाइल की ओर अफसरों ने नहीं खींचा ।
दरअसल किसी पिछले प्रधान मंत्री के प्रति बाद के प्रधान मंत्री के रुख-रवैये का अनुमान लगा कर ही अफसर ऐसी फाइल की ओर मौजूदा प्रधान मंत्री का ध्यान खींचते हैं।
जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधान मंत्री बने तो प्रधान मंत्री सचिवालय में धूल खा रही संबंधित फाइल किसी संवेदनशील अफसर ने उन्हें दिखाई।अटल जी ने सन 2003 में यानी 26 साल बाद बरूआ को डेढ़ लाख रुपए इंद्रेश्वर बरूआ को भिजवाए थे।
हां वायु सेना ने रवीन्द्रण और उपाध्याय को शौर्य चक्र देने में कोई देर नहीं की थी।
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मेरे लेख का संपादित अंश वेबसाइट ‘मनी कंट्रोल हिन्दी’ में आज 20 फरवरी 23 को प्रकाशित
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