मंगलवार, 28 फ़रवरी 2023

   

राज्य सभा के सभापति जगदीप धनखड़ की कोशिश 

कामयाब हुई तो देश के लोकतंत्र की छवि सुधरेगी

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सुरेंद्र किशोर

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जो काम करीब ढाई दशक पहले संसद की छह दिनों की गंभीर चर्चा के बावजूद नहीं हो सका ,उसे राज्य सभा के मौजूदा सभापति जगदीप धनखड़ ने पूरा करने का बीड़ा उठा लिया है।

  वह असंभव सा दिखने वाला काम है संसद की कार्यवाही में   अनुशासन और शालीनता लाने का एक बहुत जरूरी काम।

  सभापति की पहल से कई हलकों में उम्मीद तो बंधी है।

क्योंकि सभापति दृढ संकल्प वाले व्यक्ति माने जाते हैं।

सभापति ने राज्य सभा के 12 सदस्यों के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का मामला संबंधित समिति को सौंप दिया है।

   उन पर सदन की कार्यवाही में बार -बार बाधा पहुंचाने का आरोप है।

  देखना है कि इस पर विशेषाधिकार समिति कौन सा कठोर फैसला करती है।

 अब जरा सन 1997 की उस ऐतिहासिक चर्चाओं को हम याद कर लें।

   आजादी की स्वर्ण जयंती के अवसर पर छह दिनों तक संसद के सत्र चले।

कोई दूसरा काम नहीं हुआ।

अपने विशेष सत्र में दोनों सदनों ने प्रस्ताव पास किया।

  कहा गया कि  ‘‘संसद ने एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए भारत के भावी कार्यक्रम के रूप में सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पास किया।

प्रस्ताव में भ्रष्टाचार को समाप्त करने ,राजनीति को अपराधीकरण से मुक्त करने के साथ -साथ चुनाव सुधार करने ,जनसंख्या वृद्धि,निरक्षरता और बेरोजगारी को दूर करने के लिए जोरदार राष्ट्रीय अभियान चलाने का संकल्प किया गया।’’

   उस प्रस्ताव को सर्वश्री अटल बिहारी वाजपेयी,इंद्रजीत गुप्त,सुरजीत सिंह बरनाला,कांसी राम,जार्ज फर्नांडीस, शरद यादव,सोम नाथ चटर्जी,एन.वी.एस.चितन,मुरासोली मारन,मुलायम सिंह यादव,डा.एम.जगन्नाथ,अजित कुमार मेहता,मधुकर सरपोतदार,सनत कुमार मंडल,वीरंेद्र कुमार बैश्य ,ओम प्रकाश जिंदल और राम बहादुर सिंह ने सामूहिक रूप से सदन में पेश किया था।

 यह प्रस्ताव आने की भी एक खास पृष्ठभूमि थी।

सन् 1996 के लोक सभा चुनाव में विभिन्न दलों की ओर से 40 ऐसे व्यक्ति लोक सभा के सदस्य चुन लिए गए थे जिन पर गंभीर आपराधिक मामले अदालतों में चल रहे थे।

उन में से दो बाहुबली सदस्यों ने लोक सभा के अंदर ही चलते सत्र में एक दिन आपस में मारपीट कर ली।

  इस शर्मनाक घटना को लेकर अनेक नेता शर्मसार हो उठे।  उनलोगों ने तय किया कि ऐसी समस्याओं पर सदन में विशेष चर्चा की जाए और इन्हें रोकने के लिए कदम उठाए जाएं। वक्ताओं ने सदन में देशहित में भावपूर्ण भाषण किए।

पर,संकल्प को पूरा करने की दिशा में बाद के वर्षों में कोई खास ठोस काम नहीं हुआ।

बल्कि उससे उलट सदन में हंगामा और शोरगुल बढ़ता चला गया है।

  जिन मुद्दों और समस्याओं को लेकर  हमारे नेताओं ने तब संसद में भारी चिंता प्रकट की थी,उन मामलों में इस देश की हालत तब की अपेक्षा बाद के वर्षों में और बिगडती चली गई है।

  राजनीति में अपराधी और भ्रष्ट तत्वों का पहले की अपेक्षा अब अधिक बोलबाला है।

 हाल के वर्षों में यानी नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद बुराइयों को कम करने की दिशा में कुछ ठोस काम जरूर हुए हैं।

पर,वे नाकाफी माने जा रहे हैं।

  जब आज की अपेक्षा कुछ बुराइयां कम थीं, तब हमारे नेताओं ने सन 1997 में सदन में क्या- क्या कहा था,उसकी कुछ बानगियां यहां पेश हैं।

  इससे भी यह पता चलेगा कि इन समस्याओं को हल करना अब और भी कितना जरूरी हो गया है। 

  लोक सभा में प्रतिपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने बहस का समापन करते हुए तब कहा था कि ‘‘एक बात सबसे प्रमुखता से उभरी है कि भ्रष्टाचार को समाप्त किया जाना चाहिए।इस बारे में कथनी ही पर्याप्त नहीं,करनी भी जरूरी है।

उन्होंने यह भी कहा था कि राजनीति के अपराधीकरण के कारण भ्रष्टाचार बढ़ा है।’’

 पूर्व प्रधान मंत्री एच.डी.देवगौड़ा ने कहा कि ‘‘भ्रष्टाचार के खिलाफ सभी दलों को मिलकर लड़ाई लड़नी चाहिए।’’

  तत्कालीन रेल मंत्री राम विलास पासवान ने कहा कि ‘‘देश के सामने उपस्थित समस्याओं के हल के लिए सभी दलों को मिल बैठकर ठोस कदम उठाने चाहिए।’’

  तत्कालीन स्पीकर पी.ए.संगमा ने तो आजादी की दूसरी लड़ाई छेड़ने का आह्वान कर दिया।

    पर,इस बीच इस देश के लिए एक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह रही  कि कुछ प्रमुख दलों के टिकट पर लोक सभा चुनाव में विवादास्पद छवि के लोग जीत कर आते रहे हैं।

  1997 में संसद में जो प्रस्ताव सर्वसम्मत से पास हुआ था,उसे भाजपा नेता श्री वाजपेयी ने पेश किया था।यह भी दुर्भाग्यपूर्ण ही रहा कि 1997 के बाद के कुछ वर्षों में राजनीति के अपराधीकरण व भ्रष्टीकरण के खिलाफ जो भी कदम उठाए गए,वे मुख्यतः चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट की पहल पर ही उठाए गए।

इस मामले में न तो विधायिकाओं में शांति बनाए रखने केी दिशा में कोई ठोस काम हुआ,न ही अन्य मुद्दों पर बीच की सरकारों ने अपने 1997 के संकल्प का पालन किया।

हां, नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद कई क्षेत्रों में स्थिति सुधर रही है।पर,विधायिकाओं में हंगामों को लेकर स्थिति बिगड़ती ही जा रही है।

उम्मीद है कि राज्य सभा के सभापति जगदीप धनखड़ का प्रयास सफल होगा ताकि देश के लोकतंत्र की छवि सुधरे।

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वेबसाइट ‘मनी कंट्रोल हिन्दी’ पर 27 फरवरी, 23 को प्रकाशित 


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