मंगलवार, 28 फ़रवरी 2023

      सरकारी दफ्तरों के लिए ‘‘आवेदन 

     प्राप्ति स्वीकृति कानून’’ बने

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        सुरेंद्र किशोर

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यदि आप अपना कोई आवेदन पत्र किसी सरकारी आॅफिस में देना चाहते हैं तो क्या होता है ?

आप चाहते हैं कि उसकी ‘प्राप्ति स्वीकृति’ तत्काल आपको मिल जाए।

पर, क्या ऐसा होता है ?

98 प्रतिशत मामलों में ऐसा नहीं होता।

संबंधित सरकारी सेवक उस आवेदन पत्र को लेकर रख लेता है।आप बहस करने लगते हैं तो वह सेवक आपको डांट कर भगा देता है।(दरअसल सरकारी नौकरी पाते ही वह सेवक से आपका मालिक बन चुका होता है।वह अपनी ड्यूटी को अधिकार समझ लेता हैै।अत्यंत थोड़े सरकारी सेवक ही इसके अपवाद होते हैं।) 

यदि कोई आग्रही आवेदक जिद्द करता है तो वह सेवक प्रतिलिपि पर ऐसा घसीट कर दस्तखत कर देता है कि पता ही नहीं चलता कि उसने क्या लिखा।

  अब आप अगली बार वहां गए तो यह बताने के लिए कोई तैयार ही नहीं होता कि आपने किसे अपना आवेदन पत्र दिया था।

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आवेदन पत्र गायब हो जाने के बाद आपको किन परेशानियों का सामना करना पड़ता है,वह आप जानें और आपका काम जाने।

फिर आप अपना काम-धंधा छोड़कर दौड़ते रहिए।

इस तरह लाखों-करोड़ों लोग सरकारी बाबुओं के चक्रव्यूह में फंसकर तब तक पीड़ित होते रहते हैं जब तक वे ‘‘शुकराना-नजराना-हड़काना नीति’’ के तहत आत्म समर्पण नहीं करते।

ऐसा लगभग पूरे देश में होता रहता है।

अपने और अपने परिवार के भरण-पोषण और देश के प्रत्यक्ष-परोक्ष विकास के काम को छोड़कर बड़ी आबादी वर्षों तक आॅफिस -आॅफिस करती रहती है।

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क्या इस संबंध में कोई कानून नहीं बन सकता ?

सूचना के अधिकार की तरह ‘‘आवेदन प्राप्ति स्वीकृति का कानून’’ क्यों नहीं बन सकता ?

ऐसा कड़ा कानून बने जिसके तहत उलंघनकारी के लिए कड़ी सजा का प्रावधान किया जाए।

अलग से यह कानून हो कि आपके आवेदन पत्र पर खास अवधि के भीतर हां या ना का फैसला हो जाए।यदि काम न होना हो तो उसका लिखित कारण बता दिया जाए। 

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25 फरवरी 23

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पुनश्चः

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स्वीडन सरकार ने एक कानून बना रखा है।

जो भी व्यक्ति ,चाहे वे जिस किसी देश के हों,स्वीडन सरकार को पत्र लिखेंगे,तो उन्हें सरकार जवाब जरूर देगी।

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बाफोर्स तोप घोटाला कांड के समय लाखों भारतीयों ने बोाफोर्स सौदे की जानकारी के लिए विभिन्न भाषाओं में स्वीडन सरकार को पत्र लिखे थे।

  स्वीडन सरकार ने भारतीय भाषाओं के जानकार को भारत से बुलवाया।उनसे अनुवाद करवाकर उन्हीं की भाषा में जवाब भिजवाया था।

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किसी पिछले पोस्ट में मैंने जब स्वीडन के इस पक्ष की चर्चा की थी तो किसी ने लिखा कि भारत स्वीडन नहीं है।

खैर,मान लिया कि स्वीडन नहीं है।

पर,इस बार यह टिप्पणी मत कीजिएगा कि भारत के लोगों को ‘‘रिसिविंग’’ हासिल करने का भी अधिकार नहीं मिलना चाहिए।


 


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