मंगलवार, 27 जून 2023

 इमरजेंसी (1975-77) और सामान्य 

दिनों के बीच के फर्क या समानताएं बताइए

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सुरेंद्र किशोर

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आज विभिन्न क्षेत्रों के अनेक बेईमान या अनजान लोग आए दिन यह कहते रहते हैं कि आपातकाल में जो कुछ हुआ था,वही सब या उससे से भी बुरा आज देश में हो रहा है।

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  क्या यह बात सही है ?

इस संबंध में मैं जानकारियों के आधार पर इमरजेंसी की कुछ अनर्थकारी बातें व घटनाएं बताता हूं।

फैसला आपको करना है।

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1.-इमरजेंसी में (भारत सरकार के वकील) एटार्नी जनरल नीरेन डे ने सुप्रीम कोर्ट को साफ-साफ यह कह दिया था कि देश में लोगों के  ंमौलिक अधिकारों को, जिनमें जीने का अधिकार भी शामिल है,स्थगित कर दिया गया है।

 डे ने कोर्ट से यह भी कहा कि यदि हमारी पुलिस किसी की जान भी ले ले तो उस हत्या के खिलाफ आज अदालत की शरण नहीं ली जा सकती।

नीरेड डे की बात को उचित मानकर सुप्रीम कोर्ट ने उस पर अपनी मुहर लगा दी।

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1.-देश में इमरजेंसी से पहले या बाद में क्या ऐसा कुछ कभी हुआ या हो रहा है ?

क्या अंग्रेजों के राज में भी ऐसा हुआ था ?

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2.-इमरजेंसी में मीडिया पर पूर्ण सेंसरशिप लागू कर दिया गया था।

अखबारों के संपादकीय विभागों के लोग जो खबर,लेख, रिपोर्ट आदि छपने के लिए तैयार करते थे,उन्हें लेकर पहले प्रेस इंफोरमेशन ब्यूरो (भारत सरकार)के स्थानीय आॅफिस में जाते थे।

पी.आई.बी.के अफसर को उसे दिखाकर उस पर मुहर लगवाते थे,तभी अखबारों में वह सामग्री छप पाती थीं।

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2.-क्या इमरजेंसी से पहले या बाद में ऐसा कुछ हुआ ?या हो रहा है ?

प्रतिपक्षी नेताओं के बयोन कौन कहे,उनके नाम तक अखबारों में नहीं छपते थे।

बीमारी के कारण इमरजेंसी में ही जेपी जब जेेल छूट

कर आए तो केंद्र सरकार ने मीडिया को निदेश दिया कि उनकी किसी गतिविधि की खबर न छपे,यानी उनके कहीं आने-जाने की खबर भी न छपे।नहीं छपा। 

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3.-जयप्रकाश नारायण सहित एक लाख से अधिक प्रतिपक्षी राजनीतिक नेताओं और कार्यकर्ताओं को अनिश्चित काल तक के लिए जेलों में ठूंस दिया गया था।

उन्हें अपनी गिरफ्तारी के खिलाफ अदालत में अपील करने से भी रोक दिया गया था।

जब उन गिरफ्तारियों के खिलाफ बंदी प्रत्यक्षीकरण के कई मामले हाईकोर्ट होते हुए सुप्रीम कोर्ट गये तो सुप्रीम कोर्ट ने कह दिया था कि 

गिरफ्तारियों के खिलाफ अदालतें सुनवाई नहीं कर सकतीं।

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3.-क्या इमरजेंसी से पहले और बाद में ऐसा कोई आदेश सुप्रीम कोर्ट की तरफ से कभी आया ?

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 4.-1971 में रायबरेली संसदीय क्षेत्र में इंदिरा गांधी ने संसोपा के राजनारायण को हराया।

राजनारायण ने चुनाव में भ्रष्ट आचरण का आरोप लगाते हुए याचिका दायर की।

12 जून 1975 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आरोप सही पाते हुए प्रधान मंत्री की लोस की सदस्यता रद कर दी।

इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी में चुनाव कानून की उन धाराओं को संसद से बदलवा दिया जिन धाराओं के तहत उन्हें अयोग्य करार दिया गया था।

इतना ही नहीं,उस कानूनी संशोधन को पिछली तारीख से लागू करा दिया गया ताकि उसका लाभ इंदिरा गांधी को तुरंत मिल सके।

किसी कानून को पिछली तारीख से लागू करने की बात अजूबी थी।

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4.-क्या इमरजेंसी से पहले या बाद में वैसा कुछ हुआ था ?

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जो लोग अब भी कहना चाहते हैं कि जो कुछ इमरजेंसी में हुआ था,वह सब आज भी हो रहा है तो वे आज के ऐसे उदाहरण दें।

कुछ अशिष्ट टी.वी.डिबेटरों की तरह इधर-उधर की बातें न करें।

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27 जून 23


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