शुक्रवार, 2 जून 2023

 समकालीनों के भी अच्छे कामों की चर्चा वाला कठिन 

काम कर रहे हैं एक बड़े संपादक शंभूनाथ शुक्ल

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सुरेंद्र किशोर

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दुनिया में सर्वाधिक ‘कष्टकर’ काम क्या है ?

मेरी समझ से तो दूसरों की प्रशंसा में दो शब्द बोलना या लिखना।

खासकर उनके बारे में लिखना जो समकालीन हों,समकक्ष हों,सहकर्मी रहे हों, और लगभग समवयस्क भी।

  पर, इतना कठिन काम भी शंभूनाथ शुक्ल सहज भाव से कर लेते हैं।

पहले भी कर चुके हैं।

क्योंकि वे कोई कुंठा भाव नहीं पालते।

शंभूनाथ जी कोई मामूली लेखक नहीं हैं।

वे सन 1999 से ही राष्ट्रीय अखबारों के ंसंपादक रहे हैं।

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इधर शुक्ल जी अपने फेसबुक वाॅल पर एक श्रृंखला चला रहे हैं जिसका नाम है--‘जिनसे मैंने भाषा सीखी।’

नौ किस्तें प्रस्तुत कर चुके हैं।

सुखद आश्चर्य-उस श्रृंखला में शुक्ल जी ने मुझे भी शामिल कर लिया है।

इस बार उन्होंने रवीश कुमार पर लिखा है।

मैं जब जनसत्ता में था तो शुक्ल जी मेरी काॅपी शुद्ध किया करते थे।

   पर,पता नहीं,उन्होंने मुझसे क्या सीखा जो अपनी इस श्रंृखला में शामिल किया !

खैर, मुझ पर लिखकर मुझे कुछ और जीने का उन्होंने सहारा दे दिया।

इसमें एक और बात हुई है।

जिन -जिन हस्तियों पर उन्होंने लिखा है,वे मुझसे बहुत बड़े लोग हैं।

पर,मुझ पर लिखे शुक्ल जी के विवरण पर अब तक सर्वाधिक ‘लाइक’ आई है।

वैसे कुल मिलाकर (यानी,लाइक -कमेंट -शेयर)चंचल जी मुझसे आगे हैं।

यह बात मुझे चकित करती है।

चंचल बीएचयू-716 लाइक

हेमंत शर्मा-514 लाइक

रवीश कुमार-346 लाइक

डा.शारिक अहमद खान-475 लाइक

वीर विनोद छाबड़ा--422 लाइक

राकेश तिवारी--292 लाइक 

प्रियदर्शन-231 लाइक 

वीरेंद्र यादव-424 लाइक 

सुरेंद्र किशोर--735 लाइक

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 अभी और किस्तें आनी हैं।

शुक्ल जी मुक्त चिंतक और खुले दिल -ओ -दिमाग के पत्रकार रहे हैं।

लगता है कि उनके अधिकतर फेसबुक फं्रेड भी मुक्त चिंतक ही हैं।

मैं भी पूरा नहीं तो थोड़ा-थोडा़ मुक्त चिंतक ही हूं।

लगता है कि इसीलिए इस श्रृंखला में शामिल किए गए बड़ों की अपेक्षा  अधिक ‘लाइक’ मुझे मिली हंै।

वैसे इसका कोई कारण शुक्ल जी भी बता ही सकते हैं।

क्योंकि यह तो अचंभे की बात मानी जाएगी  कि आज के एक बड़े वर्ग के लिए स्टार रवीश कुमार से भी अधिक लाइक पटना जिले के एक गांव में बैठा मुझे मिल जाए !!

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 कभी के हम समाजवादी युवजन के स्टार रहे चंचल बीएचयू के गांव जाकर शुक्ल जी ने उनके बारे में लिखा है।

उस पर चंचल जी ने शुक्ल जी को संबोधित करते हुए जो कुछ लिखा है ,उसे मैं यहां पेश कर रहा हूं।--

‘‘आज तो हम धन्य हो गये पंडित जी आपकी कृपादृष्टि आपका प्यार पाकर।

एक साथ कई रंगों में डूब उतरा रहा हूं।

कुछ दबा हुआ भी महसूस कर रहा हूं और बार -बार खुद से पूछ रहा हूं  

कि क्या हम ऐसे हैं ?

लेकिन एक शब्द बार -बार फंस रहा है-चंचल के साथ ‘सर’ इसे मिटा दीजिए पंडित जी तो जायका और बढ़ जाएगा।...’’

अपने बारे में शुक्ल जी की टिप्पणी पढ़कर मुझ मंे भी चंचल जी जैसी ही भावानुभूति हुई है।वैसे शुक्ल जी का आभारी हूं।उनको एक हद तक इस स्थायी सवाल का जवाब मिला है कि.‘‘...सुरेंद्र किशोर ने अपने जीवन में किया ही क्या है ?’’

यानी,वैसे सफल लोगों के लिए असफल जीवन रहा है मेरा। 

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23 अप्रैल 23

  


  


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