मेरा यह लेख 4 जून, 23 को वेबसाइट ‘‘मनी कंट्रोल हिन्दी’’ पर प्रकाशित
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आखिर किस महारानी ने हारे हुए पति के लिए किले का दरवाजा बंद कर दिया था ?
वह उदयपुर के महाराणा की पुत्री थी और महाराजा जसवंत सिंह को ब्याही गयी थी
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इस अभूतपूर्व घटना का विवरण किसी भारतीय ने नहीं बल्कि फ्रांसीसी इतिहासकार बर्नियर ने लिखा है।
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सुरेंद्र किशोर
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मध्य युग में राजस्थान की एक महारानी ने अपने पराजित
महाराजा पति के लिए किले का दरवाजा बंद करवा दिया था।
फ्रांसिसी इतिहासकार बर्नियर ने लिखा है कि महाराजा जसवंत सिंह जब युद्ध में हार कर अपने किले के गेट पर वापस पहुंचे तो उनकी पत्नी ने किले का दरवाजा बंद करवा दिया।
उसने पति की हार से खुद को अपमानित महसूस किया था।
अपने राज घराने की परंपरा को ध्यान में रखते हुए वह चाहती थी कि पति या तो जीत कर आएं या युद्ध भूमि में ही शहीद हो जाएं।
याद रहे कि कई राज घरानों की महिलाएं पराजय के बाद खुद को जला लिया करती थीं।क्योंकि उन्हें आशंका रहती थी कि आक्रांता मृत शरीर के साथ भी कुकृत्य कर सकते थे।ऐसा ही उन आक्रांताओं का इतिहास था।
एक तरफ तो बर्नियर ने ऐसा लिखा है,पर,दूसरी तरफ
आधुनिक भारत में बंधकों के कुछ सौ रिश्तेदारों ने
अटल बिहारी सरकार पर भारी दबाव बनाकर सन 1999 में खूंखार आतंकवादी मसूद अजहर और उसके दो साथियों को रिहा कर देने के लिए बाध्य कर दिया था।
अजहर के गुर्गों ने भारतीय विमान का अपहरण करके फिरौती में मसूद अजहर की रिहाई की मांग की थी।
आज भी जब कुछ खास आतंकवादियों के खिलाफ सरकार कोई कार्रवाई करती है तो इसी देश के कुछ खास तरह के (वोटलोलुप) लोगों को भारी दर्द होने लगता है।
बर्नियर के अनुसार महाराजा जसवंत सिंह राठौर अपने 30 हजार राजपूत वीरों को लेकर विदेशी हमलावरों की सेना के साथ युद्ध करने के लिए गया था।
राजपूतों ने पूरी बहादुरी दिखाई।
जहां तक उनका वश चला वे लड़े भी।
परंतु आखिर में हुआ यह कि शत्रु सेनाओं ने हर ओर से घेरा डाल दिया। घेराव से बचने के लिए महाराजा जसवंत सिंह राठौर अपने 20 हजार सैनिकों को लेकर अपनी राजधानी वापस पहुंच गया।
याद रहे कि उसके 10 हजार सैनिक युद्ध में मारे जा चुके थे।
महाराजा के लौटने की खबर सुनकर महारानी के चेहरे पर जो भाव व्यक्त हो रहे थे,उसे देख कर बर्नियर को यही लग रहा होगा,जो उसने लिखा।
बर्नियर के अनुसार महाराजा की पत्नी उदय पुर के महाराणा की पुत्री थी।
वह राठौर को युद्ध से हार कर लौटते देखना नहीं चाहती थी।वह समझती थी कि वैसा व्यक्ति न तो मेरा पति होने लायक है और न ही राणा का दामाद होने लायक है।
महारानी ने बंद द्वार के उस पार खड़े अपने पति को यह संदेश भिजवाया कि या तो जीत कर आएं या वीर गति को प्राप्त हो जाएं।
यह संदेश पाते ही महाराजा फिर से युद्ध भूमि की ओर चला गया और वहीं लड़ते -लड़ते वीर गति को प्राप्त हो गया।
बर्नियर ने लिखा कि बाद में महारानी ने खुशी -खुशी अपने लिए
चिता जलवायी और उसमें कूद गयी।
बर्नियर ने लिखा कि ऐसी हिम्मत मैंने इसी देश की महिलाओं में देखी।
पर, इस घटना की तुलना सन 1999 की एक घटना से करें।
उस साल के दिसंबर में कंधार विमान अपहरण कांड हुआ था।
उस विमान में डेढ़ यात्री बंधक थे।
वे जीवन और मौत के बीच झूल रहे थे।
इधर नई दिल्ली में प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के आवास के समक्ष उनके घरों के स्त्री-पुरूषों की भीड़ तरह -तरह के नारे लगा कर सरकार पर दबाव डाल रही थी।
भीड़ में शामिल स्त्रियां अधिक गुस्से में थीं।भीड़ यह मांग कर रही थी कि केंद्र सरकार किसी भी कीमत पर उन बंधकों को रिहा कराए।
उधर कश्मीर को लेकर भारत के खिलाफ अघोषित युद्ध में संलग्न आतंकवादियों ने बड़ी कीमत मांगी थी।
‘युद्धरत’ मसूद अजहर नामक खूंखार आतंकवादी को रिहा कर देने की मांग थी।इस युद्ध की गंभीरता की कत्तई परवाह उन परिजनों को नहीं की।
उनके लिए देश के ऊपर उनके अपने रिश्तेदार थे।
सरकार पर जब बंधकों के रिश्तेदारों से भारी दबाव पडा़ तो उसने सर्वदलीय बैठक बुलाई।
सोनिया गांधी सहित सभी प्रमुख दल के नेता बैठक में आए।
सर्वदलीय बैठक ने सर्वसम्मति से अटल सरकार को यह सलाह दी कि वे बंधकों को छुड़ाने के लिए कुछ भी करें।
मसूद अजहर और दो अन्य खूंखार आतंकवादियों को जेल से निकाल कर उन्हें केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह के संरक्षण में कंधार पहुंचा दिया गया।
एक वह महाराजा जसवंत सिंह राठौर की पत्नी थी और दूसरे एक आधुनिक जसवंत सिंह थे जिन्होंने वोट के लिए आतंकवादियों को कंधार पहंुचा दिया।
पर, इस प्रकरण में सिर्फ आधुनिक जसवंत सिंह जिम्मेदार नहीं थे।
बल्कि सर्वदलीय बैठक में शामिल वे सारे नेता गण जिम्मेदार थे।
इन विपक्षी नेताओं में से कई नेताओं ने बाद में राजनीतिक कारणों से उस कंधार रिहाई के लिए अटल सरकार को दोषी ठहराया जबकि उस फैसले में वे खुद भी शामिल थे।
सन 2016 में पठानकोट में आतंकी हमला मसूद अजहर ने ही करवाया था।उससे पहले भी न जाने उसने और उसके साथियों ने भारत में कितने सौ लोगों के खून बहाए और बहवाए !
याद रहे कि अमेरिका तथा इसरायल जैसे देश ऐसे किसी अपराधी को किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ते, चाहे वे बंधकों के साथ जो भी व्यवहार करें।उन देशों की जनता भी सरकार के ऐसे किसी निर्णय को स्वीकार करती है।
मध्य युग की उस की महारानी ने जो काम किया, अमेरिका -इसरायल जैसे देश आज भी कर रहे हैं।
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4 जून 23
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