यदाकदा
सुरेंद्र किशोर
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सजा मिलते ही सदस्यता की समाप्ति वाले प्रावधान को बदला जाए
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निचली अदालत से सजा मिलने के बाद सपा नेता आजम खान की विधान सभा की सदस्यता गत साल चली गयी।
वे उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य थे।
इस साल ऊपरी अदालत ने उस केस में उन्हें सजामुक्त कर दिया।
इस बीच उस चुनाव क्षेत्र से एक अन्य व्यक्ति चुन लिया गया।
यदि आजम खान का यह मामला बारी -बारी से उच्चत्तर अदालतों में जाए और वहां से भी आजम खान निर्दोष ही घोषित हो जाएं तो क्या कहा जाएगा ?
क्या यह माना जाएगा कि आजम खान के साथ न्याय हुआ ?
दरअसल यह मामला सिर्फ आजम खान का नहीं है।
इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है कि राहुल गांधी के मामले में भी ऊपरी अदालत ऐसा ही जजमेंट नहीं दे देगी।
दरअसल यह प्रकरण लिली थाॅमस मामले में सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश से जुड़ा हुआ है।
उस केस में अदालत ने कहा कि यदि किसी एम.पी.या एम.एल.ए. को दो वर्ष या उससे अधिक सजा होगी तो सदन की सदस्यता तत्काल प्रभाव से चली जाएगी।
अब इस जजमेंट के एक पक्ष को लेकर सुप्रीम का ध्यान आकृष्ट किया जाना चाहिए।
वह यह कि ऐसी परिस्थिति में क्या किया जाए जब ऊपरी अदालत किसी को दोषमुक्त कर दे और उस बीच उस क्षेत्रमें उप चुनाव हो जाए ?
मौजूदा स्थिति बनी रहेगी तो सजामुक्त हुए लोग दिल से यह कैसे यह स्वीकार करेंगे कि उनके साथ न्याय हुआ ?
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आर्यभट्ट स्मारक
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बिहार सरकार ने 2009 में यह घोषणा की थी कि आर्यभट्ट से जुड़े बिहार के तीन स्थलों को विकसित किया जाएगा।
वे स्थान हैं खगौल,तरेगना और परेब।
नीतीश सरकार आम तौर पर अपने वायदे को निभाती रही है।यदि इस बीच यह काम हो चुका है या हो रहा है तो अच्छी बात है।
यदि नहीं हुआ तो इन पंक्तियों के जरिए याद दिलाई जा रही है।
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मेउिकल काॅलेजों में आरक्षण
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मुख्य मंत्री नीतीश कुमार ने जून, 2021 में यह घोषणा की थी कि बिहार के मेडिकल और इंजीनियरिंग काॅलेजों में लड़कियों के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित की जाएंगी।
तब उनकी इस घोषणा का स्वागत हुआ है।
हाल में भारतीय प्रशासनिक सेवा परीक्षा के
नतीजे आए।
लड़कियों ने लड़कों से बेहतर परिणाम दिए हैं।
विद्यालय बोर्ड परीक्षाओं के नतीजों में भी हम यह पाते हैं कि लड़कियों के रिजल्ट बेहतर हो रहे हैं।
आज इंजीनियरिंग और मेडिकल शिक्षा -परीक्षा की गुणवत्ता पर यदा कदा सवाल उठते रहते हैं ।
ऐसे में लड़कियों को यदि अधिक संख्या में वहां दाखिला मिलेगा तो आम तौर पर मेडिकल-इंजीनियरिंग की शिक्षा -परीक्षा -रिजल्ट में बेहतरी आएगी।
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कैसे बनें सुव्यवस्थित काॅलोनियां
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बिहार सरकार ने सत्तर के दशक के पटना के दीघा में और अस्सी के दशक में पटना के ही धनौत में जमीन का अधिग्रहण किया।
प्रादेशिक राजधानी में व्यवस्थित काॅलोनियां बसाने के नेक उद्देश्य से वैसा हुआ था।
पर,दोनों महत्वाकांक्षी योजनाओं में भ्रष्टाचार व्याप्त हो गया।
उसके बाद राज्य सरकार ने काॅलोनी विकसित करने के लिए जमीन के अधिग्रहण का काम त्याग दिया।नतीजतन अब काॅलोनियां बसाने की पूरी जिम्मेदारी निजी डेवलपर्स पर आ गयी है।
अधिकतर निर्माणकर्ताओं को किसी तरह की ‘सुव्यवस्था’ से प्यार नहीं है।
पटना और आसपास के इलाकों में बड़े पैमाने पर अव्यवस्थित काॅलोनियां बस रही हैं। स्लम विकसित हो रहे हैं।वे एक दिन राज्य सरकार के लिए भी सिरदर्द बनेंगे।क्यों नहीं सरकार अभी से उन डेवलपर्स और बिल्डर्स पर नजर रखती है ?
यदि उन्हें किसी तरह की मदद की जरूरत हो तो सरकार उन्हें करे।यदि वे अनर्थ कर रहे हैं तो उन्हें समय रहते सरकार रोके।
निर्माणधीन व प्रस्तावित काॅलोनियांे में राज्य सरकार ही सड़क और नाले बनाए।
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भूली-बिसरी यादें
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इस देश में गठबंधनों की सरकारों का मिलाजुला अनुभव रहा है।
पहली बार केंद्र में सन 1977 में गैर कांग्रेसी सरकार बनी।
चुनाव के ठीक पहले चार दलों ने मिलकर जनता पार्टी बनायी थी।
दल के भीतर दल थे।
वह सरकार 27 महीनों के बाद गिर गयी।
उसकी जगह कांग्रेस के बाहरी समर्थन से चरण सिंह प्रधान मंत्री बने।
वे तो संसद का भी सामना नहीं कर सके।सन 1989 में भाजपा और वाम दलों के बाहरी समर्थन
से वी.पी.सिंह की सरकार बनी।
वह सरकार 343 दिन ही चली।
उनकी जगह कांग्रेस के बाहरी समर्थन से चंद्रशेखर की सरकार बनी।वह 223 दिन चली। बाद में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनी।वह 16 दिन चली।
सन 1996 में ही एच.डी.देवगौड़ा की सरकार बनी।वह 324 दिन चली।
उसके बाद आई.के.गुजराल की सरकार 332 दिन चली।
हां,अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में 1998 में बनी सरकार लगातार 6 साल 64 दिन चली।
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और अंत में
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किसी भी अगले चुनाव के दौरान आप सब मतदान केंद्रों पर जरूर जाइए।
तभी आप अपनी पसंद की सरकार बनवा सकेंगे।
आप चाहे जिस किसी दल,नेता या विचारधारा के समर्थक हों,किंतु आपके मन लायक सरकार तभी बन सकेगी, जब आप मतदान करेंगे।मतदान के दिन न तो आप घर में बैठे रहें और न ही छुट्टी मनाएं। लोकतंत्र का उत्सव मनाएं।
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2 जून 23
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