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शेर को हराने वाला विदेशी पहलवान जब भारतीय
पहलवान से डरा,किया कुश्ती से इनकार
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सुरेंद्र किशोर
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मशहूर जर्मन पहलवान सैंडो ने भारत के ‘‘कलियुगी भीम’’ से कुश्ती लड़ने से इनकार कर दिया था। क्योंकि उससे पहले कलियुगी भीम राममूत्र्ति ने सैंडो के शरीर के वजन की अपेक्षा अधिक वजन उठाकर दिखा दिया था।
याद रहे कि सैंडो भी कोई मामूली पहलवान नहीं था।
सैंडो ने एक बार अमेरिका में निहत्था लड़कर शेर को भी पराजित कर दिया था।
इस कलियुगी भीम का जन्म आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले के वीराघट्टम् गांव के एक साधारण परिवार में सन 1882 में हुआ था।सन 1942 में उनका निधन हो गया।
लंदन के राज भवन बकिंघम पैलेस में कोडा राममूत्र्ति नायडु का शारीरिक बल और कौशल देख कर जार्ज पंचम ने पहले तो उन्हें इंडियन हरकुलिस और बाद में इंडियन सैंडो की उपाधि दी थी।
पर जब राममूत्र्ति ने शारीरिक बल के मामले में उन्हें महाभारतयुगीन भीम का महत्व बताया तो जार्ज पंचम ने उन्हें राजकीय समारोहपूर्वक ‘‘कलियुगी भीम’’ की उपाधि दी।
साथ ही, गलत तुलना के लिए उन्होंने साॅरी भी कहा।
राममूर्ति ने दुनिया भर में अपने शारीरिक बल का लोहा मनवा दिया था।
जर्मनी का मशहूर पहलवान सैंडो एक बार भारत आया था।उसने राममूत्र्ति से कुश्ती लड़ने से इसलिए इनकार कर दिया क्योंकि राममूत्र्ति ने सैंडो की अपेक्षा अधिक वजन उठाकर दिखा दिया ।
याद रहे कि उससे पहले सैंडों ने एक बार अमेरिका में निहत्था लड़कर शेर को भी पराजित कर दिया था।
राममूत्र्ति को आंध्र प्रदेश के लोग बड़े सम्मान से याद करते हैं।
उनकी विशाल मूत्र्ति विशाखापत्तनम् के बीच रोड पर लगी हुई है।
उनकी दूसरी मूत्र्ति उनके पैतृक जिला श्रीकाकुलम में भी लगी है।
बचपन में मां के निधन हो जाने के कारण बालक राममूत्र्ति निरंकुश हो गया था।
वह गांव के हमउम्र लड़कों की बुरी तरह पिटाई करता रहता था।इससे क्षुब्ध होकर पिता ने एक बार राममूत्र्ति की पिटाई कर दी।वह जंगल में जाकर छिप गया।एक सप्ताह बाद जब वह लौटा तो उसके साथ चीते का बच्चा था।
वह उसे गर्दन पर उठाए गांव में घूमता रहता था।
डर के मारे लोग उसे देखकर अपने घरों में छिप जाते थे।
पिता ने परेशान होकर उसे अपने छोटे भाई नारायण स्वामी के पास विजयनगरम् भेज दिया।
स्वामी वहां पुलिस निरीक्षक थे।
वहां राममूत्र्ति ने मन लगाकर पढ़ाई की और साथ ही वह कसरत भी करता रहा।शरीर बनाने के प्रति उसकी तीव्र इच्छा को देखते हुए नारायण स्वामी ने उसे फिटनेस सेंटर में भर्ती करा दिया।
वहां राममूत्र्ति ने जी तोड़ मेहनत की।उसका सपना महाबली बनने का था।
वह गांव लौटा।
पर गांव में उसे शाबासी के बदले व्यंग्य वाण ही मिलने लगे। उसकी पहलवानी का मजाक उड़ाने वाले लोगों को वह पटक -पटक कर पीटने लगा।
गांव में तनाव का माहौल बन गया।
इससे परेशान पिता ने राममूत्र्ति को एक बार फिर विजयनगरम् भेज दिया।
नारायण स्वामी ने राममूत्र्ति को मद्रास भेज दिया।
वहां उसने एक साल तक पहलवानी की ट्रेनिंग ली।राममूत्र्ति एक विद्यालय में शिक्षक बन गये।
उसके बाद वह अपने शारीरिक बल का सार्वजनिक रुप से प्रदर्शन करने लगे।
इस बीच सन 1911 में एक घटना हुई जिसने राममूत्र्ति के जीवन में मोड़ ला दी।
एक बार लार्ड मिंटो विजयनगरम् गये हुए थे।
वह एक लंबी-चैड़ी कार पर सवार थे।राममूत्र्ति ने उस कार के चालक को चुनौती दे दी।
चुनौती अपनी ताकत से चलती कार को रोक लेने की थी।
मिंटो ने भी इस तमाशे को देखना चाहा।
राममूत्र्ति ने कार के पीछे का हुड अपने हाथों से कसकर पकड़ लिया।
ड्रायवर ने कार स्टार्ट कर दी।मिंटो के आश्चर्य के ठिकाना नहीं रहा कि उनकी कार राममूत्र्ति की ताकत के सामने हार मान गई।
कार एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकी।
इस घटना से राममूत्र्ति की ख्याति दूर-दूर तक फैल गई।
फिर क्या था।राममूत्र्ति ने अपने एक मित्र के साथ मिलकर एक सर्कस कंपनी बना ली।वह लोहे के चेन को अपने सीने में कस कर बांध लेते थे।फिर वह सीने को फुलाकर चेन को तोड़ देते थे।वह हाथी के पैर को अपने सीने पर थाम लेते थे।
दर्शक वाह -वाह कर तालियां बजाने लगते थे।
उनकी सर्कस कंपनी खूब चलने लगी।
राममूत्र्ति अपने कार्यक्रमों के जरिए देशभक्ति जगाने का भी काम करते थे।
वे लोगों को दंड -बैठक करके अपने शरीर मजबूत रखने की सीख देते थे ताकि दुश्मनों का सामना किया जा सके।सर्कस कंपनी ने पूरे देश का भ्रमण किया।
उनकी ख्याति सुनकर महामना मदन मोहन मालवीय ने उन्हें कांग्रेस के इलाहाबाद अधिवेशन में बुलाया।
वहां उन्होंने अपने शारीरिक बल का प्रदर्शन करके मालवीय जी का मन मोह लिया।मालवीय जी ने उनके विदेश दौरे का प्रबंध करा दिया।
उसी के बाद लंदन में उन्होंने बकिंघम पैलेस में प्रदर्शन किया और किंग जार्ज पंचम और क्विन मेरी को प्रभावित किया।उसके बाद उन्हें कई देशों से बुलावा आया।
वह फ्रांस,जर्मनी और जापान भी गये।स्पेन में तो राममूत्र्ति ने कमाल ही कर दिया।
वहां उन्हें सांड़ की लड़ाई देखने के लिए बुलाया गया था।
वह वहां की लड़ाई से प्रभावित नहीं हुए।
वह खुद सांड़ से लड़ने के लिए निहत्था मैदान में उतर गये।
कुछ देर के लिए तो कुछ लोग घबरा गये कि क्या होगा।
पर अति बलशाली कलियुगी भीम ने सांड का सींग पकड़ कर उसे जमीन पर पटक दिया।
सांड़ को मैदान से बाहर भागना पड़ा।ऐसे थे कलियुगी भीम।
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11 जून 23
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