खेतों के भी नाम होते हैं।
-------------
सुरेंद्र किशोर
--------
खेतों के भी नाम होते हैं।
मेरे खेतों के भी अलग अलग नाम हैं।
मेरे जन्म के समय हमारे परिवार के पास जितनी
जमीन थी,अब उसकी आधी भी नहीं रह गयी है।
फिर भी जो बची है,उनके नाम
1.-दालान पर
2.-तरी का खेत
3.-बड़का खेत
4.-गाछी
5.-डीह
5.-बड़ (पेड़ )वाली जमीन
6.-बांसवाड़ी आदि आदि
----
जो जमीन बिक गई,उनमें से दो जमीनों की चर्चा करूंगा।
एक का नाम था-लिलही खेत
उसमें अंग्रेजों के जमाने में नील की खेती होती थी।
नीलही खेत से लिलही हो गया।
अंग्रेज किसानों से जबरन नील की खेती करवाते थे।
-----------
दूसरी जमीन जो सबसे बड़ी थी--
यानी पांच बिगहा का एक ही प्लाॅट,
बचपन में मैं उस खेत में जाता था।
एक साथ कई हल चलते थे।
कुछ दशक पहले वह खेत पास के गांव खजौता के
एक व्यक्ति को बेचा गया।
खजौता के हमारे एक मित्र ने,जो पटना में ही रहते हैं, हाल में मुझे बताया कि उस खेत का अब नाम है--शिनन सिंह वाला खेतवा।
नये मालिक उसी नाम से उस खेत को इंगित करते हैं।
याद रहे कि मेरे पिता का नाम शिवनंन्दन सिंह (दिवंगत)है।
---------------
4 जनवरी 24
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें