शुक्रवार, 5 जनवरी 2024

 लोकबंधु राजनारायण की पुण्य तिथि पर

(23 नवंबर 1917--31 दिसंबर 1986)

----------

राजनारायण की जिद्द ने देश की राजनीति 

में बदलाव की प्रक्रिया में तेजी ला दी थी 

------------

सुरेंद्र किशोर

------------

सन 1971 की बात है।

समाजवादी नेता राजनारायण, रायबरेली 

में प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी से लोस चुनाव हार गये थे।

वे चुनाव याचिका दायर करने की तैयारी कर 

रहे थे।

उस सवाल पर उनकी पार्टी में मतभेद था।

मधु लिमये ने कहा कि 

‘‘हम चुनाव में विश्वास करते हैं,

चुनाव याचिका में नहीं।’’

याद रहे कि डा.लोहिया सन 1962 में जब फूलपुर में प्रधान मंत्री 

जवाहरलाल नेहरू से लोस चुनाव हारे तो उन्होंने कोई याचिका 

दायर नहीं की।

संभवतः मधु लिमये के सामने लोहिया वाला उदाहरण था।

पर,राजनारायण नहीं माने।

जिद्द की।

याचिका दायर हो गयी।

 ................................

राजनारायण की याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के

न्यायाधीश जगमोहनलाल सिन्हा ने 12 जून 1975 को 

 इंदिरा गांधी को जन प्रतिनिधित्व कानून, 1951 के तहत दोषी माना।

1.-प्रधान मंत्री की चुनाव सभा के लिए मंच बनाने और बिजली की 

व्यवस्था करने का काम सरकार ने किया था।

यह कानूनन गलत था।

2.-यशपाल कपूर प्रधान मंत्री के ओ.एस.डी.थे।

उस सरकारी पद पर रहते हुए वे इंदिरा गांधी के चुनाव एजेंट बन गए थे।

यह भी कानूनन गलत था।

इन दोनों बिन्दुओं पर कोर्ट ने इंदिरा गांधी को चुनाव कानून के उलंघन का दोषी माना था।

इंदिरा जी का लोस चुनाव रद कर दिया गया। (उस निर्णय पर मशहूर वकील ननी पालकीवाला ने कहा था कि यह मामूली ट्रैफिक नियमों को भंग करने जैसा अपराध है।)

-------------

एकाधिकारवादी प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने देखा कि चुनाव कानून में संशोधन के बिना सुप्रीम कोर्ट में भी उनकी जीत संभव नहीं।

कानून में बदलाव इमरजेंसी लगाकर किया जा सकता है।

साथ ही, सारे प्रतिपक्षी नेताओं को जेलों में बंद करना पड़ेगा।

वही सब हुआ भी।

इंदिरा जी फायदे के लिए कानून बदल गया।

उसे पिछली तारीख से लागू करके इंदिरा गांधी मुकदमा सुप्रीम कोर्ट से 

जीत गयीं।

सबसे बड़ी अदालत पर भी आपातकाल का इतना आतंक था कि सुप्रीम कोर्ट ने यह नहीं पूछा कि पिछली तारीख से लागू क्यों हो ?

यहां तक कि एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा सरकार के कहने पर आम लोगों के जीने तक का अधिकार स्थगित कर दिया था।

----------

आपातकाल (1975--77)में पूरे देश को जेल में तब्दील कर दिया गया था।

लोगों में भारी गुस्सा था।

1977 में लोस चुनाव हुआ तो इंदिरा गांधी की पार्टी केंद्र की सत्ता से बाहर हो गयी।इंदिरा -संजय दोनों लोक सभा चुनाव हार गये।राजनारायण ने इंदिरा गांधी को हराया।राजनारायण मोरारजी सरकार में स्वास्थ्य मंत्री बने।

रवींद्र प्रताप सिंह ने संजय गांधी को अमेठी में हराया।

उन दिनों दैनिक ‘आज’ के पहले पेज पर फोल्ड से ऊपर पूरे साइज में छपा कांजीलाल का एक कार्टून बहुत चर्चित हुआ था।

कार्टून में यह दिखाया गया था कि एक किसान अपने खेत से गाय और बछड़े को लाठी से भगा रहा है।

कांग्रेस का चुनाव चिन्ह गाय-बछड़ा था।

------------------

उससे पहले जयप्रकाश नारायण जैसे साख वाले बड़े नेता के नेतृत्व में जारी आंदोलन के कारण देश में इंदिरा 

 शासन के प्रति असंतोष की आग लगी हुई थी।

इमरजेंसी के सरकारी जुल्म ओ सितम ने आग में घी का काम

किया।

इंदिरा जी का चुनाव रद नहीं होता तो इमरजेंसी भी नहीं लगती।

नतीजतन 1977 में देश की राजनीति बदल गयी।

पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार देश में बन गयी।

------------

31 दिसंबर 23

 


 


कोई टिप्पणी नहीं: