बुधवार, 10 जनवरी 2024

 यदाकदा

सुरेंद्र किशोर

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देश की विधायिकाओं का एजेंडा प्रतिपक्ष भी तय करे

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क्यों न इस देश में भी विधायिकाओं के हर सत्र के कुछ खास दिनों के एजेंडा प्रतिपक्ष तय करे ?

ब्रिटेन और कनाडा में यह परंपरा जारी है।

यदि यहां भी वैसा हो जाए तो शायद सदन के संचालन में उससे फर्क पड़े।

शोरगुल कम हो !

पता नहीं, हमारे संविधान निर्माताओं ने इस पर सोच-विचार किया था या नहीं।

पर,अब तो इसकी जरूरत लग रही है।

इस देश में संसद सहित विधान सभाओं और विधान परिषदों  में शांति बहाल रखना दिन प्रति दिन मुश्किल होता जा रहा है।

ऐसे में इस फार्मूले को अपनाने में क्या हर्ज है !

शायद उससे प्रतिपक्षी दलों को कुछ संतुष्टि मिले।

याद रहे कि ब्रिटिश संसद के हर सत्र के 20 दिन वहां के प्रतिपक्षी दल सदन की कार्यवाही का एजेंडा तय करते थे।

कनाडा में 22 दिन ऐसा होता है।

यदि एक से अधिक दल प्रतिपक्ष में हैं तो उतना समय उन दलों के बीच उनकी सदस्य संख्या के अनुपात बांट दिया जाता है।

हां,यदि प्रतिपक्ष के किसी मुद्दे पर सदन में मतदान होता है तो उसके नतीजों को स्वीकार करने के लिए सरकार बाध्य नहीं हेाती।

हाल में भी कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा है कि असली मुद्दों पर सदन में चर्चा नहीं हो रही है।

यदि उन्हें कुछ दिन मिल जाएं तो वे ‘‘असली मुद्दों’’ को एजेंडा बना सकंेगे।

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भाजपा पहल करे

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प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा सांसदों से कहा है कि वे संयम बरतें और लोकतांत्रिक मानदंड के अनुसार व्यवहार करें।

अभी तो उनका इशारा संसद में शालीनता और संयम बरतने को लेकर हैं।

किंतु ऐसे निदेशों को विधान सभाओं और परिषदों में मौजूद भाजपा सदस्यों तक भी पहुंचाया जाना चाहिए।

यदि ऐसे निदेश का पालन हो सका तो देश की विधायिकाओं में अच्छी परंपरा की शुरूआत होगी।

जिन राज्यों में गैर भाजपा दलों की सरकारें हैं,क्या उन राज्यों की विधायिकाओं में भाजपा सदस्यगण अपने आचरण से आदर्श उपस्थित करेंगे ?

यदि ऐसा हुआ तो संसद के प्रतिपक्षी दलों से भी आदर्श पेश करने के लिए कहने का नैतिक हक भाजपा को हासिल होगा।

चूंकि भाजपा एक अनुशासित दल है,इसलिए वह इसकी शुरूआत कर सकती है।

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कैसे सुधरेगी बिहार की शिक्षा ! 

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बिहार के अतिरिक्त मुख्य सचिव के.के.पाठक राज्य के शिक्षा क्षेत्र में सुधारात्मक कार्य कर रहे हैं।

 उसका सकारात्मक असर है।

 आम जनता के.के.पाठक की इस पहल की सराहना कर रही है।मुख्य मंत्री नीतीश कुमार का भी संरक्षण श्री पाठक

को हासिल है।  

पर,कुछ खास हलकों में के.के.पाठक की पहल का तीखा विरोध हो रहा है।

ऐसे में क्या पाठक जी अभियान अधिक दिनों तक जारी रख पाएंगे ?

अपवादों को छोड़कर बिहार में शिक्षा-परीक्षा की आज जो दुर्दशा है,उसमें सुधार का काम अगली पीढ़ियों के लिए नहीं टाला जा सकता है।

 इन पंक्तियों का लेखक दशकों से देख रहा है कि किस तरह यहां की अच्छी शिक्षा व्यवस्था को धीरे धीरे बर्बाद कर दिया गया।

 कई तत्व जिम्मेदार रहे हैं।एक उच्चस्तरीय न्यायिक आयोग   

बने।दुर्दशा के कारणों को चिन्हित करे।सुधार के उपाय सुझाये।सरकार उन उपायों को लागू करे।

अन्यथा, अधिकतर शिक्षण संस्थान सिर्फ सर्टिफिकेट

बांटने के काउंटर भर बनकर रह जाएंगे।     

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तब और अब की कहानी

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साठ के दशक की बात है।

बिहार के औरंगाबाद जिले के एक क्षेत्र से विधायक ब्रजमोहन सिंह राज्यस्तरीय नेता से बातचीत कर रहे थे।

ब्रजमोहन सिंह ने कहा कि मैं इन दिनों क्षेत्र के विकास के काम में लगा था,इसलिए आपसे बीच में मिल नहीं सका था।

दिवंगत ब्रजमोहन बाबू ने इन पंक्तियों के लेखक से कहा था कि मुझे उम्मीद थी कि नेता जी मेरी तारीफ करेंगे।

पर,उल्टे उन्होंने कहा कि ज्यादा विकास वगैरह के काम में लगोगे तो अगली बार चुनाव नहीं जीत पाओगे।

क्योंकि सरकार से कितने गांवों का विकास करवा पाओगे ?

साधन इतना कम है कि कुछ ही गांव का करा पाओगे।

नतीजतन जिन गावों का नहीं होगा, उन गांवों के लोग तुमको अगली बार वोट नहीं देंगे।

आज यानी सन 2023 में स्थिति बदल चुकी है।

हर तरफ विकास व कल्याण के थोड़ा-बहुत काम हो रहे हैं।केंद्र और राज्य सरकारों के बीच होड़ है।

अन्य गांवों का भी यही हाल है।पर व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर मैं अपने गांव का हाल बताता हूं।

गांव के दक्षिण से उत्तर की ओर पक्की सड़क बन रही है।

पूरब से पश्चिम ओर सीमेंटी सड़क की योजना है।नदी में घाट बन रहा है।

कई साल पहले मेरे प्रयास से वहां कुछ विकासात्मक काम हुए थे।

पर,इन दिनों राज्य के सामान्य विकास के क्रम में मेरे पुश्तैनी गांव का भी विकास हो रहा है।

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और अंत में

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मध्य प्रदेश विधान सभा भवन से जवाहरलाल नेहरू का चि़त्र हटा दिया गया।

कुछ साल पहले जब कमलनाथ ने मुख्य मंत्री पद संभाला तो उन्होंने जेपी सेनानी पेंशन योजना बंद कर दी थी।यह सब चलता रहता है।

बिहार में ,जहां आंदोलन सर्वाधिक सघन था,जेपी सेनानी को अधिकत्तम हर माह 15 हजार रुपए मिलते हैं।मध्य प्रदेश में तब 25 हजार रुपए मिलते थे।

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21 दिसंबर 23


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