बोफोर्स और 2-जी मामले
अब भी जीवित !!
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सुरेंद्र किशोर
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जब -जब चुनाव करीब आता है तो
कई कांग्रेसी नेता और कुछ पत्रकार गण भाजपा
से यह सवाल पूछने लगते हंै कि आप
लोग बहुत हल्ला कर रहे थे,पर बोफोर्स मामले
में क्या हुआ ?
2- जी केस में क्या हुआ ?
एक बार फिर यह सवाल उठ रहा है क्योंकि 2024 का लोक सभा चुनाव बहुत नजदीक है।
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यह सवाल उठाकर वे यह साबित करना चाहते हैं कि इन दिनों जिन गैर भाजपा दलों के अनेक बड़े नेताओं के खिलाफ जो मुकदमे चल रहे हैं,उनमें भी अंततः कोई सबूत नहीं मिलेगा।
इन मामलों का हश्र भी वही होगा जो बोफोर्स और 2 जी का हुआ।
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मैं बताता हूं कि बोफोर्स और 2 जी में क्या हुआ।
क्या -क्या नहीं हुआ ?
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(इन मुद्दों पर मैं 25 अक्तूबर, 2021 और 15 जुलाई, 2023 के दैनिक जागरण के संपादकीय पेज पर विस्तार से लिख चुका हंू।
पर,लगता है कि टी.वी.पर आने वाले भाजपा प्रवक्ता भी हिन्दी अखबार नहीं पढ़ते।)क्योंकि वे बोफोर्स और 2 -जी की चर्चा आते ही सकपका जाते हैं।
सटीक जवाब नहीं दे पाते।ं
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बोफोर्स तोप खरीद घोटाला कांड
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2 नवंबर, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने बोफोर्स मुकदमे में
सी.बी.आई.की अपील को तमादी के आधार पर खारिज कर दिया।
पर, वकील अजय अग्रवाल की इस संबंध में दाखिल जनहित याचिका को सुनवाई के लिए मंजूर करते हुए अदालत ने कहा कि सी.बी.आई. के वकील, अग्रवाल की अपील की सुनवाई के दौरान अपना पक्ष प्रस्तुत कर सकते हंै।
अब अजय अग्रवाल ही बता सकते हैं कि उनकी जनहित याचिका की अद्यतन स्थिति क्या है।
इस बीच मैंने अब तक कहीं नहीं पढ़ा कि अग्रवाल की याचिका अस्वीकार कर दी गयी।
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टू जी घोटाला केस
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कम ही लोगों को यह मालूम है कि 2- जी का मामला अब भी दिल्ली हाईकोर्ट में विचाराधीन है।
सी.बी.आई.ने लोअर कोर्ट के जजमेंट के खिलाफ अपील दायर कर रखी है।
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2 जी. स्पैक्ट्रम घोटाला मुकदमे में ए.राजा और कनिमोझी को दोषमुक्त करते हुए दिल्ली स्थित विशेष सी.बी.आई. जज ओ.पी.सैनी ने 2017 में कहा था कि कलाइनगर टी.वी.को कथित रिश्वत के रूप में शाहिद बलवा की कंपनी डी.बी.ग्रूप द्वारा 200 करोड़ रुपए देने के मामले में अभियोजन पक्ष ने किसी गवाह से जिरह तक नहीं की।
कोई सवाल नहीं किया।
याद रहे कि उस टीवी कंपनी का मालिकाना करूणानिधि परिवार से जुड़ा है।
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मान लिया कि कोई सवाल नहीं किया।
क्योंकि शायद मनमोहन सरकार के कार्यकाल में सी.बी.आई. के वकील को ऐसा करने की अनुमति नहीं रही होगी।
पर, खुद जज साहब के लिए भारतीय साक्ष्य अधिनियम में ऐसे ही मौके के लिए धारा -165 का प्रावधान किया गया है।
आश्चर्य है कि धारा -165 में प्रदत्त अपने अधिकार का सैनी साहब ने इस्तेमाल क्यों नहीं किया।कारण अज्ञात है।
इस सवाल पर अब हाईकोर्ट में विचार होगा।
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बोफोर्स घोटाले पर दिल्ली
हाईकोर्ट का विचित्र न्याय
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सन 2019 के नवंबर में आयकर विभाग ने मुम्बई स्थित बोफोर्स दलाल विन चड्ढ़ा के फ्लैट को 12 करोड ़2 लाख रुपए में नीलाम कर दिया।
विन चड्ढ़ा के परिजन ने इस नीलामी का विरोध तक नहीं किया।
मनमोहन सिंह के प्रधान मंत्रित्व काल में आयकर न्यायाधीकरण ने कह दिया था कि ‘‘बोफोर्स की दलाली के मद में 41 करोड़ रुपए क्वात्रोचि और विन चड्ढ़ा को मिले थे।
उस पर आयकर बनता है।’’
याद कीजिए,राजीव गांधी लगातार कहते रहे कि बोफोर्स सौदे में कोई दलाली नहीं ली गई।
सी.बी.आई. ने स्विस बैंक की लंदन शाखा में बोफोर्स की दलाली के पैसे का पता लगा लिया था।वह पैसा क्वात्रोचि के खाते में था।(ठीक उसी खाता नंबर की चर्चा वी.पी.सिंह ने 4 नवंबर 1988 को पटना की एक जन सभा में की थी।)
उस खाते को गैर कांग्रेसी शासन काल में सी.बी.आई.ने जब्त करवा दिया था।
पर बाद में मन मोहन सरकार ने सरकारी वकील बी.दत्ता को लंदन भेजकर उस जब्त खाते को खुलवा दिया।
क्वात्रोचि को पहले भारत से भाग जाने दिया गया।
बाद वह लंदन बैंक के अपने खाते से पैसे निकाल कर मलेशिया भाग गया।
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याद रहे कि बोफोर्स तोप अच्छी है।
फ्रांस की सोफ्मा तोप उससे बेहतर है।
सोफ्मा वाले दलाली नहीं देते थे।
बोफोर्स वाले देते थे।
इसीलिए भारत सरकार ने बोफोर्स खरीदा।
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अस्सी के दशक में बिहार राज्य पथ परिवहन निगम का एक अफसर मुझसे मिला था।
उसने कहा कि ‘‘मुझ पर ऊपर यह दबाव है कि मैं टाटा कंपनी के चेसिस ही खरीदूं।जबकि मैं एक दूसरी कंपनी के चेसिस खरीदना चाहता हूं।’’
मैंने उस मामले का पता लगया।
एक ईमानदार अफसर ने मुझे बताया कि जो अफसर आपसे मिला था,वह रिश्वत कमाना चाहता है।
इसीलिए वह दूसरी कंपनी का पक्ष ले रहा है।
टाटा कंपनी रिश्वत नहीं देती।यह उसका नियम है।
चाहे आप उसके चेसिस खरीदें या मत खरीदें।
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2 जी केस में अदालती विचित्रता
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जिस मामले में सुप्रीम कोर्ट प्रथम द्रष्ट्वा घोटाला मान कर 122 लाइसेंस रद कर दे और जुर्माना भी लगा दे ,उस केस में लोअर कोर्ट की ऐसी हिमाकत ????
यह अपने ही देश में संभव है।
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10 जनवरी 24
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