बुधवार, 10 जनवरी 2024

 वेबसाइट मनी कंटा्रेल हिन्दी पर प्रकाशित

-----------


मधु लिमये की पुण्य तिथि (8 जनवरी) पर 

------------------

हंगामे के बिना ही सरकार और संसद को हिला देने वाले मधु लिमये जैसे सांसद का इंतजार है इस लोकतांत्रिक व्यवस्था को

-----------------------

सुरेंद्र किशोर

--------------

    बिहार से लोक सभा के सदस्य रहे मधु लिमये ने यह सिखाया था कि किसी हंगामे के बिना भी विधायका में किस तरह कटु सत्य भी प्रभावकारी तरीके से बोले जा सकते हैं।

‘‘वन मैन आर्मी’’ लिमये जब लोकसभा में बोलने के लिए

उठते थे तो सरकार सिहर जाती थी।

क्योंकि उनकी बातें तथ्यों से परिपूर्ण होती थीं।

 मुंगेर और बांका से बारी -बारी-बारी से दो-दो बार सांसद रहे मधु लिमये ने सिखाया था कि  

प्रभाव पैदा करने के लिए सदन के नियमों की बेहतर जानकारी होनी चाहिए।

नियमों के इस्तेमाल की सलाहियत भी।

 सन 1964 में मुंगेर से पहली बार लोक सभा में गये मधु लिमये को यह सब अच्छी तरह आता था।

वे तब एक उप चुनाव में विजयी हुए थे।

  आज यह देखकर लोगबाग दुःखी होते हैं कि जन प्रतिनिधियों को  अपनी बातें  कहने के लिए अक्सर हंगामे का सहारा लेना पड़ता है।

  आज जब संसद व विधान सभाओं  की गरिमा का अवमूल्यन हो रहा है ,मधु लिमये जैसे ‘सभा -चतुर’ नेता अधिक ही याद आते हैं।उन दिनों मधु लिमये जैसे कई अन्य सांसद भी थे।फिर भी मधु सबसे अलग थे।

   बिहार से चुनाव जीत कर संसद के दोनों सदनों में बारी -बारी से  गये नामी -गिरामी राष्ट्रीय नेताओं  नेताओं की भी कमी नहीं रही।उन बड़े नेताओं व काबिल सांसदों में बिहारी भी थे और गैर बिहारी भी।

उनमें मधु लिमये का स्थान बेजोड़ था।आजादी के बाद बिहार से लोक सभा व राज्य सभा के संदस्य बने नेताओं में जे.बी.कृपलानी,

अशेाक मेहता,

जार्ज फर्नाडिस,

आई.के.गुजराल,

युनूस सलीम,

कपिल सिब्बल,

रवींद्र वर्मा,

नीतीश भारद्वाज,

मीनू मसानी,

लक्ष्मी मेनन और एम.एस.ओबराय प्रमुख थे।

  मधु लिमये का बिहार से कुछ खास तरह का लगाव भी रहा।

  वे बिहार से मात्र सांसद ही नहीं थे बल्कि वे राष्ट्रीय -अंतरराष्ट्रीय समस्याओं के साथ-साथ  बिहार की मौलिक समस्याओं को भी समान ऊर्जा व मनोयोग से संसद के भीतर व बाहर उजागर करते थे।बिहार पर उनके लेखन व भाषण  चर्चित हुए। 

हंगामे के बिना आज जिन छोटे -बड़े सांसदों व दलों के लिए अपनी बातें कह पाना कठिन होता है,उन्हें मधु लिमये की संसदीय शैली से इस मामले में अब भी कुछ सूत्र सीख लेना चाहिए ।

 हालांकि यह थोड़ा कठिन दिमागी कसरत का काम है जिससे हमारे अधिकतर नेता आज जरा दूर ही रहना चाहते हैं।

समाजवादी विचारक व सभा चतुर मधु लिमये का जन्म 1 मई 1922 को पूणे में हुआ था।

  उनका निधन 8 जनवरी 1995 को दिल्ली में हुआ।

वे दो बार मुंगेर(1964 और 1967 )और दो बार बांका(1973 और 1977)से लोक सभा सदस्य चुने गये।

 सांसद के रूप में मधु लिमये ने तत्कालीन केंद्र सरकार को इतना हिला दिया था कि प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने यह सुनिश्चित किया कि वे अगले चुनाव में हार जाएं।

सन 1971 के चुनाव से ठीक पहले तब के एक ताकतवर कांग्रेसी नेता व ‘शेरे बिहार’ के नाम से चर्चित रामलखन सिंह यादव के सामने अपनी आंचल पसार कर इंदिरा जी ने उनसे यह आग्रह किया था कि  ‘‘आप मुंगेर और बाढ़ की  सीटें हमें विशेष तौर पर उपहार में दे दीजिए।’’

यानी, इंदिरा जी मधु लिमये और तारकेश्वरी सिंहा (बाढ़ से सांसद)को किसी भी कीमत पर सदन में नहीं देखना चाहती थीं।

इस काम में यादव जी ने स्वजातीय मतदाताओं के जरिए उनकी मदद कर दी थी। 

लिमये और तारकेश्वरी सिन्हा दोनों हार गए थे।

 वैसे भी तब ‘गरीबी हटाओ’ का नारे का इंदिरा जी के पास बल  था।  

पर दो साल बाद ही यदि मधु लिमये एक उप चुनाव के जरिए बिहार के ही बांका से 

लोक सभा मे ंचले गये थे तो यह उनके प्रति बिहारी कृतज्ञ मानस का उपकार का भाव ही था।

  मधु ने बिहार का नाम ऊंचा ही किया था।मधु लिमये की चर्चा करने पर 

कुछ  विदेशी राजनयिक भी दिल्ली में यह पूछते थे कि वे कहां से चुनाव जीतते हैं ?

 वैसे क्षेत्रों से कैसे जीतते हैं जहां उनकी जाति यानी ब्राह्मणों के वोट अधिक नहीं हैं ? 

  इस सूचना  के बाद कई विदेशी राजनयिकों  के मन में यह बात भी कुलबुलाने लगती थी कि तब क्यों बिहार को जातिवादी राज्य कहा जाता है ? 

    मधु लिमये ने ऐसे समय में लोक सभा में अपनी संसदीय योग्यता की धाक जमाई थी जब के स्पीकर लोहियावादी समाजवादी सांसदों के सदन में खड़ा होने के साथ ही उन्हें  तत्काल बैठा देने की कोशिश करने लगते थे। क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि वे जवाहरलाल नेहरू या इंदिरा गांधी  के खिलाफ कोई सांसद कटु बात बोल दे।

नेहरू 1964 तक प्रधान मंत्री थे।नेहरू के कटु आलोचक व अदमनीय समाजवादी नेता डा.राम मनोहर लोहिया ने 1963 में लोक सभा में प्रवेश करने के साथ ही नेहरू पर ऐसे कठोर प्रहार शुरू कर दिये थे कि स्पीकर सदा सतर्क रहते थे।

    पर, चूंकि मधु के पास संसदीय फोरम के इस्तेमाल की चतुराई थी,इसलिए उन्हें अपनी बातें कहने से 

 स्पीकर रोक भी नहीं पाते थे।

स्पीकर उन दिनों लोकलाज का काफी ध्यान रखने वाले नेता हुआ करते  थे।

संविधान व लोक सभा की कार्य संचालन नियमावली का सहारा लेकर जब मधु लिमये  प्रस्ताव व सूचनाएं देते थे । उन पर चर्चाएं कराने पर स्पीकर मजबूर हो जाते थे।

इस तरह संसदीय प्रक्रियात्मक ज्ञान का उपयोग करके मधु लिमये देश व समाज के लिए काफी कुछ कर पायेे।

   उनसे ‘‘सकारात्मक ईष्र्या’’ रखने वाले एक अन्य समाजवादी चिंतक व पूर्व सांसद किशन

 पटनायक ने मधु लिमये के बारे में उनके निधन के बाद  लिखा था कि ‘‘एक श्रेष्ठ कोटि के सांसद के रूप में मधु की प्रतिष्ठा हुई।मंत्रियों के भ्रष्टाचार के विरोध में उनका हमला इतना कारगर होने लगा था कि बड़े नेताओं में उनके प्रति भय हुआ।

सन 1964 से 1967 के बीच सांसद के रूप में उनका जो उत्थान हुआ ,उसका मैं सदन के भीतर प्रत्यक्षदर्शी था।

 संसदीय प्रणाली व संविधान के बारे में उनका ज्ञान अद्वितीय था।मधु लिमये शुरू से मेरे लिए आदर, ईष्र्या व असंतोष के पात्र रहे।

मेरे स्वभाव में है कि ईष्र्या उस व्यक्ति के लिए होती है जिसके लिए मेरे मन प्यार होता है।’’

   -----------  

8 जनवरी 24 को प्रकाशित


कोई टिप्पणी नहीं: