बुधवार, 10 जनवरी 2024

 विश्व हिन्दी दिवस पर

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सुरेंद्र किशोर

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1.-रिमबर्स

2.-टर्न आउट

3.-रेंडमाइजेशन

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 हिन्दी अखबारों में ऊपर लिखे शब्दों का इस्तेमाल होते मैंने हाल में देखा।

  इस बात के बावजूद कि हिन्दी अखबारों के पाठक पीएच.डी.से लेकर नन-मैट्रिक तक होते हैं।

अखबार पढ़ते समय कितने लोग शब्दकोश लेकर बैठते हैं ?

कितने नान-मैट्रिक या उससे भी थोड़ा अधिक पढ़े -लिखे लोग ऊपर लिखे तीन शब्दों के अर्थ जानते हैं ?

अब हिन्दी अखबारों में इस तरह के अन्य अनेक अंग्रेजी शब्दों का धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रहा है। 

मैंने तो नमूना के तौर पर सिर्फ तीन शब्दों की चर्चा की।

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कौन कहेगा कि रेलवे स्टेशन के बदले आप ‘लौह पथ गामिनी विराम स्थल’ का इस्तेमाल करें ?

अंग्रेजी के आक्सफोर्ड शब्दकोश में भी भारतीय शब्दों को अंगीकार किया गया है।

जैसे-जुगाड़,

दादागिरी,

नाटक,

सूर्य नमस्कार,

अन्ना,

अब्बा, 

गुलाब जामुंन, 

वाडा आदि आदि। 

हिन्दी अखबारों मेें वैसे अंग्रेजी शब्दों का इस्तेमाल किया ही जा सकता है जो यहां आम लोगों की बोलचाल में हैं।

अन्यथा, कम अंग्रेजी जानने वाले वैसे हिन्दी अखबारों को ही पसंद करेंगे जो अंग्रेजी के कठिन शब्दों का इस्तेमाल न करते हांे।

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10 जनवरी 24

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पुनश्चः

सन 1977 से 1983 तक जब मैं दैनिक ‘आज’ में काम कर रहा था तो इस संबंध में बहुत सारी बातें संपादक लोग हमें बताया करते थे। अनुवाद के बारे में भी।

कहते थे कि यह लिखना सही नहीं है कि निर्णय लिया गया।

निर्णय कहीं रखा हुआ नहीं था जो आपने उसे ले लिया।

बल्कि आपने निर्णय किया।

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एक बार एक मझोले कद के नेताजी ‘आज’ आॅफिस में आये।

उन्होंने अपना ‘हैंडआउट’ संपादक पारसनाथ सिंह को दिया।

उनसे परिचित थे।

उसमें उन्होंने किसी बड़े नेता के जन्म दिन पर उन्हें बधाई दी थी।

वे चाहते थे कि छपे। 

पारस बाबू ने उनसे कहा कि यह आपके और नेता जी के बीच का मामला है।

आप उन्हें व्यक्तिगत चिट्ठी भिजवा दें।

आपकी बधाई से हमारे अखबार के आम पठकों का भला क्या लेना -देना !

न्यूज प्रिंट बड़ा महंगा होता है।

उसका हम ऐसी सामग्री के लिए उपयोग नहीं कर सकते।

बेचारे उदास होकर चले गये थे।

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