कर्पूरी ठाकुर जन्म शताब्दी वर्ष के अवसर पर
( 24 जनवरी 1924--17 फरवरी 1988)
----------------------
कर्पूरी ठाकुर को ‘पिछड़ा नेता’ या ‘अति पिछड़ा
नेता’ बताना उन्हें छोटा करके दिखाना हुआ
-----------------
सुरेंद्र किशोर
--------------
‘‘ कर्पूरी जी, आप सभी जातियों का नेता बनने का मोह छोड़िए।
आप सिर्फ पिछड़ों का नेता बनिए।
आपमें उत्तर भारत के कामराज बनने की क्षमता है।
आप हनुमान जी की तरह ही अपनी ताकत का आकलन नहीं कर पा रहे हैं।’’
यह बात जब प्रमुख समाजवादी नेता भोला प्रसाद सिंह कर्पूरी जी से कह रहे थे,तब मैं वहां मौजूद था।
तब मैं राजनीतिक कार्यकर्ता की हैसियत से कर्पूरी जी का निजी सचिव (1972-73) था।
कर्पूरी जी तब बिहार विधान सभा में प्रतिपक्ष के नेता थे।
भोला बाबू की बातों को कर्पूरी जी ने सिर्फ सुना।
उस पर कोई टिप्पणी उन्होंने नहीं की।
हां, उनके चेहरे पर जो भाव थे,उससे मुझे लगा कि भोला बाबू की बात को उन्होंने पसंद नहीं किया।
-----------------
बिहार की सरकारी सेवाओं के सन 1978 में 26 प्रतिशत आरक्षण लागू हुआ।
यह काम मुख्य मंत्री के रूप में कर्पूरी ठाकुर ने किया।
26 में 12 प्रतिशत अति पिछड़ों और 8 प्रतिशत पिछड़ों के लिए आरक्षण हुआ।
3 प्रतिशत महिलाआं और 3 प्रतिशत सवर्णों के लिए भी आरक्षण हुआ।
चूंकि पिछड़ों की अपेक्षा अति पिछड़ों को अधिक आरक्षण मिला था,इसलिए कई लोगों ने कर्पूरी जी को अति पिछड़ों का नेता कहना शुरू कर दिया।
पर,पंचायतों में अति पिछड़ों के लिए आरक्षण का काम तो मुख्य मंत्री नीतीश कुमार ने किया।उसके कारण कोई नीतीश कुमार को सिर्फ अति पिछड़ों का नेता तो नहीं कहता।
दरअसल यह समाजवादियों की सोच रही है कि कमजोर वर्ग के लोगों के लिए विशेष प्रावधान किया जाये।
--------------
मैंने 1967 से 1977 तक एक समाजवादी कार्यकर्ता की नजर से कर्पूरी जी को देखा।
1977 से 1988 तक उन्हें एक सक्रिय पत्रकार की नजर से मैंने देखा।
डेढ साल तक मैं पटना के वीरचंद पटेल पथ स्थित उनके सरकारी आवास में रहा।
इतने लंबे समय तक आप यदि किसी व्यक्ति के साथ रात-दिन रहते हैं तो आप उनके गुण-दोष जान जाते हैं।
कुल मिलाकर मेरा आकलन है कि कर्पूरी जी जैसा महान नेता मैंने कोई और नहीं देखा।कुछ अन्य वैसे जरूर होंगे,पर मैंने नहीं देखा।
जातीय पक्षपात की भावना तनिक भी कर्पूरी जी में नहीं थी।हां,किसी कमजोर के साथ अन्याय होता था तो वे जरूर उठ खड़े होते थे।
------------
कोई नेता अपना निजी सचिव किस जाति के व्यक्ति को रखता है,उससे पूरा तो नहीं लेकिन,एक हद तक उस नेता की पहचान हो जाती है।
कर्पूरी जी जब 1967 में उप मुख्य मंत्री बने तो उन्होंने बिहार प्रशासनिक सेवा के एक ईमानदार अफसर यू.पी.सिंह को ,जो राजपूत हैं,अपना निजी सचिव बनाया था।तब मैंने अम्बिका दादा से पूछा था कि राजपूत को कैसे बनाया?(तब तक यू.पी.सिंह मेरे रिश्तेदार नहीं बने थे)
दादा ने कहा कि यह ईमानदार अफसर है।
वे बाद में श्री सिंह आई.ए.एस.भी बने।अब भी हमलोगों के बीच मौजूद हैं।
उनके पुत्र व मशहूर नेत्र चिकित्सक डा.सुनील कुमार सिंह उनके पुत्र हैं।सुनील जी जदयू के प्रवक्ता भी हैं।
----------------
सन 1972 में बिहार सरकार ने कर्पूरी जी के साथ काम करने के लिए टाइपिस्ट रामचंद्र ठाकुर को भेज दिया।
(मैं तब निजी सचिव था)
कर्पूरी जी ने जब यह जाना कि रामचंद्र जी हज्जाम हैं तो उन्होंने अपना माथा पकड़ लिया--कहा कि यह सड़े हुए दिमाग के अफसरों का काम है।मैंने तो विभाग से किसी खास जाति का टाइपिस्ट नहीं मांगा था।
पर,साथ में काम करने के सिलसिले में मुझे लगा कि रामचंद्र बाबू की शालीनता,ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा के कारण उन्हें कर्पूरी जी के यहां भेजा गया था।
संभव है कि जाति वाली बात भी संसदीय कार्य विभाग के अफसरों के दिमाग में हो।
क्योंकि तब भी अधिकतर मंत्री अपनी ही जाति के स्टाफ मांगते रहे थे।
----------------ं
1978 के पिछड़ा आरक्षण का भी बिहार में भारी विरोध हुआ था।कर्पूरी जी को जमकर गालियां दी गयीं।
पर,अपने शालीन स्वभाव के कारण कर्पूरी जी ने पलट कर जवाब नहीं दिया।
पर,जब 1990 के मंडल आरक्षण के समय लालू प्रसाद ने पलट के जवाब दिया तो पिछड़ों में लालू के पक्ष में अभूतपूर्व एकता आ गयी।
यह और बात है कि लालू प्रसाद उस एकता को कायम नहीं रख सके।
जवाब देने का यह काम यदि कर्पूरी जी ने 1978 में किया होता तो बाद में भी वे सत्ता में आते।पर,वैसी भाषा-शब्दावली कर्पूरी जी के स्वभाव में नहीं थी।
याद रहे कि 1978 के आरक्षण विवाद के बाद भी कर्पूरी जी के एक निजी सचिव सवर्ण रहे।
------------------
7 जनवरी 24
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें