बुधवार, 10 जनवरी 2024

 ‘‘ईमानदारी के 90 प्रतिशत पेट्रोल में जब तक बेईमानी के 10 प्रतिशत मोबिल नहीं मिलाओगे,तबतक जीवन की गाड़ी नहीं चलेगी’’

---धर्मेंद्र के नायकत्व में 60 के दशक में बनी 

एक फिल्म में नायक के जोकर साथी का डाॅयलाग।

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सुरेंद्र किशोर

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साठ के दशक में एक फिल्म आई थी जिसके हीरो धर्मेंद्र थे।

हीरो आदर्शवादी था।

उनके जोकर मित्र की भूमिका में

महमूद या जाॅनी वाॅकर थे,ठीक -ठीक मुझे याद नहीं।

धर्मेंद्र संभवतः एक अत्यंत ईमानदार सरकारी सेवक की भूमिका मंे थे।

और भ्रष्टाचार से पूरी तरह अलग थे--यानी 24 कैरेट के सोना।

नीतजतन उन्हें कदम-कदम पर भारी कष्ट हो रहा था।

जोकर साथी ने हीरो धर्मेंद्र से एक दिन कहा--



‘‘अरे भई ,ईमानदारी के 90 प्रतिशत पेटा्रेल में बेईमानी के 10 प्रतिशत मोबिल जब तक नहीं मिलाओगे, तब तक जीवन की गाड़ी नहीं चलेगी।’’

संभवतः तब सरकारी घूस का रेट 10 प्रतिशत ही रहा होगा।

अब तो औसतन 40 प्रतिशत की खबर है।

अंदाज लगा लीजिए कि जीवन की गाड़ी को 

रफ्तार में लाने के लिए कितना मोबिल आज मिलाना पड़ता होगा !!

बिहार के चारा घोटाले की एक कहानी--

 पशुपालन विभाग का पूरे साल का बजट 75 करोड़ रुपए का था।

पर घोटालेबाजों ने जाली बिलों के आधार पर खजाने से उस साल निकाल लिए थे 225 करोड़ रुपए।

अब आप खुद ही इसका प्रतिशत निकाल लीजिए।

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  जो अत्यंत थोड़े से लोग आज भी फिल्मी धर्मेंद्र की भूमिका में हैं,उनके जीवन के साथ क्या-क्या  हो रहा है,कभी सोचा है ?

उसकी कल्पना कर लीजिए।

दो जून की रोटी और तृतीय श्रेणी का जीवन स्तर बनाये रखने के लिए कई बार बुढ़ापे तक भी हाड़तोड़ मेहनत करनी पड़ती है।

क्योंकि सेवा काल में और सेवांत लाभ उठाकर अपनी कमाई तो बाल-बच्चों को स्थापित करने में पहले ही खप चुकी होती है।

 इस ढीले-ढाले लोकतंत्र के हमारे आधुनिक हुक्मरानों ने सामान्य जनता के लिए यही उपहार दिया है--और उनके खुद के लिए ?

थोड़ा कहना, अधिक समझना और सिस्टम पर कंूढ़ना !

हालांकि इसके थोड़े ही हुक्मरान अपवाद भी हैं जिनकी गद्दी और जान पर खतरा बना रहता है।

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 7 जनवरी 24

 

    


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